
जग में पीड़ा पतन
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जग में पीड़ा पतन बढ़ा है, ओ बनवारी आओ।
सूख चला वृन्दावन फिर से, मधुवन इसे बनाओ॥
आरत हुआ तुम्हारा भारत, धर्म ग्लानि में डूबा।पूर्ण हो रहा दुर्योधन का, फिर से हर मन्सूबा॥
आकर आकुल धर्मराज को, फिर से धैर्य बँधाओ॥
हर द्रुपदा के नयनों से, अब बहता है जल खारा।मनुज मात्र के मन का अर्जुन, फिर से हिम्मत हारा॥
बनो सारथी पाञ्चजन्य का, घोष पुनः कर जाओ॥
भौतिकता में डूबा मानव, महल लाख के बनते।इस नश्वर शरीर को लेकर, शाश्वत का हक हनते॥
कृपा करो प्रभु एक बार फिर, गीता ज्ञान सुनाओ॥
तरस रहे हैं आज दूध को, ग्वाल- बाल खुद सारे।श्री, सम्पदा हुई इकट्ठी, दुष्ट कंस के द्वारे॥
विनती सुनो पुनः आकर प्रभु, भारी दुःख मिटाओ॥
सूखा वृन्दा विपिन हृदय का, बस करील रक्षित हैं।है अकाल पड़ गया प्रेम का, प्राणी सभी तृषित हैं॥
एक बार फिर रास रचाकर, सबमें प्रेम बढ़ाओ॥
सूख चला वृन्दावन फिर से, मधुवन इसे बनाओ॥
आरत हुआ तुम्हारा भारत, धर्म ग्लानि में डूबा।पूर्ण हो रहा दुर्योधन का, फिर से हर मन्सूबा॥
आकर आकुल धर्मराज को, फिर से धैर्य बँधाओ॥
हर द्रुपदा के नयनों से, अब बहता है जल खारा।मनुज मात्र के मन का अर्जुन, फिर से हिम्मत हारा॥
बनो सारथी पाञ्चजन्य का, घोष पुनः कर जाओ॥
भौतिकता में डूबा मानव, महल लाख के बनते।इस नश्वर शरीर को लेकर, शाश्वत का हक हनते॥
कृपा करो प्रभु एक बार फिर, गीता ज्ञान सुनाओ॥
तरस रहे हैं आज दूध को, ग्वाल- बाल खुद सारे।श्री, सम्पदा हुई इकट्ठी, दुष्ट कंस के द्वारे॥
विनती सुनो पुनः आकर प्रभु, भारी दुःख मिटाओ॥
सूखा वृन्दा विपिन हृदय का, बस करील रक्षित हैं।है अकाल पड़ गया प्रेम का, प्राणी सभी तृषित हैं॥
एक बार फिर रास रचाकर, सबमें प्रेम बढ़ाओ॥