
समता का शंख बजाता
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समता का शंख बजाता, यह होली पर्व है आया।
मन का दुर्भाव हटा लो, यह मर्म सुनाता आया॥
सबमें सत्प्रेम जगा लो ओछापन दूर भगा लो।
भटकों को राह दिखाकर, पिछड़ो को गले लगाओ॥
जिसने यह पथ अपनाया, जीवन को धन्य बनाया॥
प्रह्लाद हमें बनना है, विपदा से क्यों डरना है।
तूफानी बधाओं से, दिग्भ्रमित नहीं होना है॥
फूलों की सुविधा तज कर, काँटो में मार्ग बनाया॥
सबमें सद्भाव जगा लो, अपनेपन को विकसालो।
घर की गन्दगी हटाओ, जन- जन को पाठ पढ़ाओ॥
सन्देश जो यह पहुँचाया, युग साधक वही कहाया॥
मन का दुर्भाव हटा लो, यह मर्म सुनाता आया॥
सबमें सत्प्रेम जगा लो ओछापन दूर भगा लो।
भटकों को राह दिखाकर, पिछड़ो को गले लगाओ॥
जिसने यह पथ अपनाया, जीवन को धन्य बनाया॥
प्रह्लाद हमें बनना है, विपदा से क्यों डरना है।
तूफानी बधाओं से, दिग्भ्रमित नहीं होना है॥
फूलों की सुविधा तज कर, काँटो में मार्ग बनाया॥
सबमें सद्भाव जगा लो, अपनेपन को विकसालो।
घर की गन्दगी हटाओ, जन- जन को पाठ पढ़ाओ॥
सन्देश जो यह पहुँचाया, युग साधक वही कहाया॥