
उद्बोधन सूत्र
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* ज्ञानदीक्षा का कर्मकाण्ड प्रारम्भ करने के ठीक पहले समारोह में उपस्थित छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों का ध्यान ‘ज्ञानदीक्षा’ की आवश्यकता एवं महत्ता की ओर आकृष्ट किया जाना चाहिए। इसके लिए नपे-तुले प्रभावी शब्दों में एक संक्षिप्त उद्बोधन देना उचित है। नीचे उसके कुछ सूत्र दिये जा रहे हैं। किन्हीं कुशल वक्ता के माध्यम से उन्हें प्रस्तुत करा देना चाहिए।
* यहाँ शिक्षा का माध्यमिक स्तर पूरा करके, उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने वाले, स्नातक बनने वाले छात्रगण तथा उन्हें सौभाग्य प्रदान करने वाले शिक्षक वृन्द उपस्थित हैं। सभी का हार्दिक अभिनन्दन।
* स्नातक का अर्थ होता है-‘भली प्रकार नहाया हुआ’ ठीक से नहाने के बाद शरीर में स्वच्छता, पवित्रता तथा मन में शान्ति, उल्लास का सञ्चार होता है। एक नई ताजगी का अनुभव होता है। शिक्षा क्षेत्र में स्नातक का अर्थ होता है-ज्ञान की धारा में भली प्रकार स्नान किया हुआ व्यक्ति। जिसके व्यक्तित्व में परिपक्व ज्ञान के अनुरूप चिन्तन, चरित्र एवं व्यवहार परिलक्षित हो। इस स्तर के व्यक्तित्वों की आवश्यकता, समाज, राष्ट्र एवं विश्व के हर क्षेत्र में अनुभव की जा रही है। इस सन्दर्भ में एक बड़ी जिम्मेदारी शिक्षा तन्त्र की होती है। उसी दिशा में यह एक छोटी-सी, किन्तु गरिमामयी महत्त्वपूर्ण पहल की जा रही है।
* हमें ऐसे महान् राष्ट्र में जन्म लेने, विकसित होने का सौभाग्य मिला है, जो अनेक दृष्टियों से विश्व में अद्वितीय है। सांस्कृतिक इतिहास के शोधपूर्ण अध्ययन से यह तथ्य उजागर हो रहे हैं कि इस राष्ट्र के सत्पुरुषों ने लम्बे समय तक सारे विश्व को जीवन सम्बन्धी ज्ञान एवं विज्ञान की विभिन्न धाराओं का शिक्षण दिया है। इसी कारण इसे विश्वगुरु, चक्रवर्ती जैसे सम्मानजनक विशेषणों से सम्बोधित किया जाता रहा है। अनेक भविष्य वक्ताओं तथा स्वामी विवेकानन्द, योगी श्री अरविन्द एवं युगऋषि पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने स्पष्ट शब्दों में यह कहा है कि भारत को निकट भविष्य में फिर से विश्व का आध्यात्मिक, सांस्कृतिक मार्गदर्शन करना है। नई पीढ़ी को इस तेजस्वी भूमिका के लिए तैयार करना हर प्रबुद्ध एवं भावनाशील का पवित्र कर्त्तव्य बनता है।
* इस सन्दर्भ में यहाँ उपस्थित विज्ञजनों का महत्त्व पूज्य आचार्य श्री द्वारा दिये गये इस नारे से स्पष्ट होता है-‘‘अध्यापक हैं युग निर्माता, छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता।’’ ये दोनों ही वर्ग अपने-अपने महत्त्व और उससे जुड़े कर्त्तव्यों, उत्तरदायित्वों एवं अधिकारों को ठीक प्रकार समझें और निभायें, ऐसी अपेक्षा की जाती है। ज्ञानदीक्षा समारोह इसी शुभारम्भ के क्रम में किया जा रहा है।
* इसका प्रारूप इस प्रकार बनाया गया है, जिससे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों के मर्म छोटे-छोटे सूत्रों द्वारा स्पष्ट किये जा सकें तथा सहज क्रियाओं के माध्यम से उन्हें जीवन में अपनाने की पहल की जा सके। यदि भाषा तक ही सीमित न रहकर उसके भावों को स्पष्ट किया जाये, तो यह स्पष्ट अनुभव होगा कि इसमें प्रयुक्त सूत्र हर धर्म, सम्प्रदाय के मूल विश्वासों के अनुरूप ही हैं। आप सब मनोयोगपूर्वक इसमें भाग लें तथा पूरा लाभ उठायें, ऐसी उम्मीद की जाती है। ये सूत्र ऋषि, पैगम्बर स्तर के व्यक्ति द्वारा दिये गये हैं, हम लोग तो छोटे से स्वयंसेवक के रूप में उन्हें प्रस्तुत करने का दायित्व भर पूरा कर रहे हैं।
* यहाँ शिक्षा का माध्यमिक स्तर पूरा करके, उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने वाले, स्नातक बनने वाले छात्रगण तथा उन्हें सौभाग्य प्रदान करने वाले शिक्षक वृन्द उपस्थित हैं। सभी का हार्दिक अभिनन्दन।
* स्नातक का अर्थ होता है-‘भली प्रकार नहाया हुआ’ ठीक से नहाने के बाद शरीर में स्वच्छता, पवित्रता तथा मन में शान्ति, उल्लास का सञ्चार होता है। एक नई ताजगी का अनुभव होता है। शिक्षा क्षेत्र में स्नातक का अर्थ होता है-ज्ञान की धारा में भली प्रकार स्नान किया हुआ व्यक्ति। जिसके व्यक्तित्व में परिपक्व ज्ञान के अनुरूप चिन्तन, चरित्र एवं व्यवहार परिलक्षित हो। इस स्तर के व्यक्तित्वों की आवश्यकता, समाज, राष्ट्र एवं विश्व के हर क्षेत्र में अनुभव की जा रही है। इस सन्दर्भ में एक बड़ी जिम्मेदारी शिक्षा तन्त्र की होती है। उसी दिशा में यह एक छोटी-सी, किन्तु गरिमामयी महत्त्वपूर्ण पहल की जा रही है।
* हमें ऐसे महान् राष्ट्र में जन्म लेने, विकसित होने का सौभाग्य मिला है, जो अनेक दृष्टियों से विश्व में अद्वितीय है। सांस्कृतिक इतिहास के शोधपूर्ण अध्ययन से यह तथ्य उजागर हो रहे हैं कि इस राष्ट्र के सत्पुरुषों ने लम्बे समय तक सारे विश्व को जीवन सम्बन्धी ज्ञान एवं विज्ञान की विभिन्न धाराओं का शिक्षण दिया है। इसी कारण इसे विश्वगुरु, चक्रवर्ती जैसे सम्मानजनक विशेषणों से सम्बोधित किया जाता रहा है। अनेक भविष्य वक्ताओं तथा स्वामी विवेकानन्द, योगी श्री अरविन्द एवं युगऋषि पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने स्पष्ट शब्दों में यह कहा है कि भारत को निकट भविष्य में फिर से विश्व का आध्यात्मिक, सांस्कृतिक मार्गदर्शन करना है। नई पीढ़ी को इस तेजस्वी भूमिका के लिए तैयार करना हर प्रबुद्ध एवं भावनाशील का पवित्र कर्त्तव्य बनता है।
* इस सन्दर्भ में यहाँ उपस्थित विज्ञजनों का महत्त्व पूज्य आचार्य श्री द्वारा दिये गये इस नारे से स्पष्ट होता है-‘‘अध्यापक हैं युग निर्माता, छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता।’’ ये दोनों ही वर्ग अपने-अपने महत्त्व और उससे जुड़े कर्त्तव्यों, उत्तरदायित्वों एवं अधिकारों को ठीक प्रकार समझें और निभायें, ऐसी अपेक्षा की जाती है। ज्ञानदीक्षा समारोह इसी शुभारम्भ के क्रम में किया जा रहा है।
* इसका प्रारूप इस प्रकार बनाया गया है, जिससे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों के मर्म छोटे-छोटे सूत्रों द्वारा स्पष्ट किये जा सकें तथा सहज क्रियाओं के माध्यम से उन्हें जीवन में अपनाने की पहल की जा सके। यदि भाषा तक ही सीमित न रहकर उसके भावों को स्पष्ट किया जाये, तो यह स्पष्ट अनुभव होगा कि इसमें प्रयुक्त सूत्र हर धर्म, सम्प्रदाय के मूल विश्वासों के अनुरूप ही हैं। आप सब मनोयोगपूर्वक इसमें भाग लें तथा पूरा लाभ उठायें, ऐसी उम्मीद की जाती है। ये सूत्र ऋषि, पैगम्बर स्तर के व्यक्ति द्वारा दिये गये हैं, हम लोग तो छोटे से स्वयंसेवक के रूप में उन्हें प्रस्तुत करने का दायित्व भर पूरा कर रहे हैं।