
नयी पीढ़ी का निर्माण
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आज नई पीढ़ी को दिशाहीन देखकर हर व्यक्ति चिन्तित है, किन्तु जब इस समस्या के समाधान की बात सोचते हैं तो दृष्टि नारी पर ही जाती है। नारी माँ के रूप में शिशु की निर्मात्री और प्राथमिक शिक्षिका है। माँ के अनुरूप बच्चों के विकास के अनेकों उदाहरण मिल सकते हैं। बालक- गर्भ लेकर पाँच वर्ष तक अपने जीवन की आधी शिक्षा समाप्त कर चुकता है- मनोवैज्ञानिकों का मत है। इस पाँच साल की आयु तक बालक अधिकांश समय अपनी माँ के सम्पर्क में ही बिताता है और ज्ञान अज्ञान सब अवस्थाओं में माँ से संस्कार प्राप्त करता रहता है। सुशिक्षित, सुसंस्कारित, सुविकसित महिला को इस बात का ज्ञान होता है, अतः यह सदैव ही इस बात की चेष्टा में रहती है कि उसका बालक उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव का अर्जन करे। वह अपनी भावनाओं द्वारा दया, प्रेम, न्याय, शील, संयम, सदाचार, आत्मीयता और सहृदयता के गुणों को दूध के साथ पिलाती रहती है।
शादी- ब्याह के समय हम अच्छे कुटुम्ब की, अच्छे खानदान की लड़की- लड़का ढूँढ़ते हैं। खानदान का अर्थ है- सुसंस्कारी अच्छे गुण, कर्म, स्वभाव के लोग। हमें श्रेष्ठ व्यक्ति चाहिए, श्रेष्ठ समाज के निर्माण के लिए और वे हमें ऐसे ही श्रेष्ठ गुण, कर्म, स्वभाव के कुटुम्बों से प्राप्त हो सकेंगे। महँगी चीजें महँगे दाम की मिलती हैं, योग्यताएँ कठोर श्रम और समय लगाने से प्राप्त होती है। अच्छे आदमी बड़ी से बड़ी कीमत पर भी नहीं मिलते। हर जगह मिलते हैं, बेकार ,, निकम्मे, साहसहीन व्यक्ति, पशुवत। उनका कोई मूल्य नहीं होता। छोटे- से व्यक्ति साहस, अध्यवसाय, परिश्रम और विवेकशीलता के माध्यम से महान् बन जाते हैं। मजबूत स्टील टाटा कम्पनी में ढलती है और नेहरू, पटेल जैसे स्टीलमैन परिवारों की भट्टी में ढाले जाते हैं। कुटेम्बों में उनका निर्माण हुआ था। ये संस्कार- संस्कारवान विकसित नारी से प्राप्त होते हैं। माँ घर की पाठशाला में इन संस्कारों को ढालती है।
हमें सभ्य समाज का निर्माण करना है, अतः अच्छे व्यक्तियों का निर्माण करना होगा। बालकों की शक्ति का रचनात्मक उपयोग सुसंस्कृत नारी ही जानती है। बच्चे स्वच्छ रहें, फैशनेबिल बन जाएँ, साहसी बने पर ढीठ, धृष्ट न हों, सावधानी बरतें पर डरपोक न बनें, शिष्टाचार भी सीखें और शालीनता भी। कुण्ठित न हों, न उद्दण्ड। मनोरंजन और फूहड़पन, उदारता और भौंडापन प्रतिस्पर्द्धा का भेद बच्चों को शनैः- शनैः जीवन व्यवहार से सिखाना यह शिक्षित- सुसंस्कृत माँ के व्यक्तित्व से ही सम्भव है।
श्रम और समय लगाने से प्राप्त होती है। अच्छे आदमी बड़ी से बड़ी कीमत पर भी नहीं मिलते। हर जगह मिलते हैं, बेकार ,, निकम्मे, साहसहीन व्यक्ति, पशुवत। उनका कोई मूल्य नहीं होता। छोटे- से व्यक्ति साहस, अध्यवसाय, परिश्रम और विवेकशीलता के माध्यम से महान् बन जाते हैं।
मजबूत स्टील टाटा कम्पनी में ढलती है और नेहरू, पटेल जैसे स्टीलमैन परिवारों की भट्टी में ढाले जाते हैं। कुटेम्बों में उनका निर्माण हुआ था। ये संस्कार- संस्कारवान विकसित नारी से प्राप्त होते हैं। माँ घर की पाठशाला में इन संस्कारों को ढालती है।
हमें सभ्य समाज का निर्माण करना है, अतः अच्छे व्यक्तियों का निर्माण करना होगा। बालकों की शक्ति का रचनात्मक उपयोग सुसंस्कृत नारी ही जानती है। बच्चे स्वच्छ रहें, फैशनेबिल बन जाएँ, साहसी बने पर ढीठ, धृष्ट न हों, सावधानी बरतें पर डरपोक न बनें, शिष्टाचार भी सीखें और शालीनता भी। कुण्ठित न हों, न उद्दण्ड। मनोरंजन और फूहड़पन, उदारता और भौंडापन प्रतिस्पर्द्धा का भेद बच्चों को शनैः- शनैः जीवन व्यवहार से सिखाना यह शिक्षित- सुसंस्कृत माँ के व्यक्तित्व से ही सम्भव है।
शादी- ब्याह के समय हम अच्छे कुटुम्ब की, अच्छे खानदान की लड़की- लड़का ढूँढ़ते हैं। खानदान का अर्थ है- सुसंस्कारी अच्छे गुण, कर्म, स्वभाव के लोग। हमें श्रेष्ठ व्यक्ति चाहिए, श्रेष्ठ समाज के निर्माण के लिए और वे हमें ऐसे ही श्रेष्ठ गुण, कर्म, स्वभाव के कुटुम्बों से प्राप्त हो सकेंगे। महँगी चीजें महँगे दाम की मिलती हैं, योग्यताएँ कठोर श्रम और समय लगाने से प्राप्त होती है। अच्छे आदमी बड़ी से बड़ी कीमत पर भी नहीं मिलते। हर जगह मिलते हैं, बेकार ,, निकम्मे, साहसहीन व्यक्ति, पशुवत। उनका कोई मूल्य नहीं होता। छोटे- से व्यक्ति साहस, अध्यवसाय, परिश्रम और विवेकशीलता के माध्यम से महान् बन जाते हैं। मजबूत स्टील टाटा कम्पनी में ढलती है और नेहरू, पटेल जैसे स्टीलमैन परिवारों की भट्टी में ढाले जाते हैं। कुटेम्बों में उनका निर्माण हुआ था। ये संस्कार- संस्कारवान विकसित नारी से प्राप्त होते हैं। माँ घर की पाठशाला में इन संस्कारों को ढालती है।
हमें सभ्य समाज का निर्माण करना है, अतः अच्छे व्यक्तियों का निर्माण करना होगा। बालकों की शक्ति का रचनात्मक उपयोग सुसंस्कृत नारी ही जानती है। बच्चे स्वच्छ रहें, फैशनेबिल बन जाएँ, साहसी बने पर ढीठ, धृष्ट न हों, सावधानी बरतें पर डरपोक न बनें, शिष्टाचार भी सीखें और शालीनता भी। कुण्ठित न हों, न उद्दण्ड। मनोरंजन और फूहड़पन, उदारता और भौंडापन प्रतिस्पर्द्धा का भेद बच्चों को शनैः- शनैः जीवन व्यवहार से सिखाना यह शिक्षित- सुसंस्कृत माँ के व्यक्तित्व से ही सम्भव है।
श्रम और समय लगाने से प्राप्त होती है। अच्छे आदमी बड़ी से बड़ी कीमत पर भी नहीं मिलते। हर जगह मिलते हैं, बेकार ,, निकम्मे, साहसहीन व्यक्ति, पशुवत। उनका कोई मूल्य नहीं होता। छोटे- से व्यक्ति साहस, अध्यवसाय, परिश्रम और विवेकशीलता के माध्यम से महान् बन जाते हैं।
मजबूत स्टील टाटा कम्पनी में ढलती है और नेहरू, पटेल जैसे स्टीलमैन परिवारों की भट्टी में ढाले जाते हैं। कुटेम्बों में उनका निर्माण हुआ था। ये संस्कार- संस्कारवान विकसित नारी से प्राप्त होते हैं। माँ घर की पाठशाला में इन संस्कारों को ढालती है।
हमें सभ्य समाज का निर्माण करना है, अतः अच्छे व्यक्तियों का निर्माण करना होगा। बालकों की शक्ति का रचनात्मक उपयोग सुसंस्कृत नारी ही जानती है। बच्चे स्वच्छ रहें, फैशनेबिल बन जाएँ, साहसी बने पर ढीठ, धृष्ट न हों, सावधानी बरतें पर डरपोक न बनें, शिष्टाचार भी सीखें और शालीनता भी। कुण्ठित न हों, न उद्दण्ड। मनोरंजन और फूहड़पन, उदारता और भौंडापन प्रतिस्पर्द्धा का भेद बच्चों को शनैः- शनैः जीवन व्यवहार से सिखाना यह शिक्षित- सुसंस्कृत माँ के व्यक्तित्व से ही सम्भव है।