
नव- निर्माण में भागीदारी
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नए विश्व के निर्माण में नर- नारी दोनों की समान भूमिका होनी चाहिए। आज की पुरुष- प्रधान सभ्यता, व्यग्रता और असन्तुलन को दूर कर सकने में समर्थ है। नारी का सृजन जिन तत्वों से हुआ है, उनमें करुणा, स्नेह, सौजन्य, आत्मीयता, आध्यात्मिकता का बाहुल्य है। एक ओर सेवा और समर्पण जैसे उसके अनूठे गुण हैं, तो दूसरी ओर साहस और शौर्य जैसे अनूठे गुणों की भी कमी नहीं। शांति, सुकुमारता, सृजनात्मकता, भावनात्मक ही विशेष विभूतियों से सम्पन्न नारी शक्ति का योगदान प्रत्येक क्षेत्र के लिए मंगलमय होगा।
शिक्षा के क्षेत्र के नारी का प्रवेश नया नहीं होगा। घर में और बाहर सभी जगह उसकी सृजनात्मक शक्ति काम करेगी और बालक- बालिकाओं को सही ढंग से शिक्षा मिलेगी। चिकित्सा और समाज कल्याण के क्षेत्र नारी के सहृदयता और स्नेह- सिक्तता के गुणों से लाभान्वित हों हम देश की सच्ची सेवा में तत्पर होंगे।
धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र का नेतृत्व तो नारी को करना ही चाहिए। उसकी आरम्भिक संरचना ही दिव्यता की विशेष मात्रा के साथ की गई है। प्रेम, भक्ति और विशालता से उसका अन्तःकरण अनवरत छलकता रहता है।
नारी का नेतृत्व प्रत्येक क्षेत्र में सहकार, सहयोग, सद्भाव, समर्पण और सेवा के उद्देश्यों का पूरक बनकर आगे आवेग।
शिक्षा के क्षेत्र के नारी का प्रवेश नया नहीं होगा। घर में और बाहर सभी जगह उसकी सृजनात्मक शक्ति काम करेगी और बालक- बालिकाओं को सही ढंग से शिक्षा मिलेगी। चिकित्सा और समाज कल्याण के क्षेत्र नारी के सहृदयता और स्नेह- सिक्तता के गुणों से लाभान्वित हों हम देश की सच्ची सेवा में तत्पर होंगे।
धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र का नेतृत्व तो नारी को करना ही चाहिए। उसकी आरम्भिक संरचना ही दिव्यता की विशेष मात्रा के साथ की गई है। प्रेम, भक्ति और विशालता से उसका अन्तःकरण अनवरत छलकता रहता है।
नारी का नेतृत्व प्रत्येक क्षेत्र में सहकार, सहयोग, सद्भाव, समर्पण और सेवा के उद्देश्यों का पूरक बनकर आगे आवेग।