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Books - मनुष्य एक भटका हुआ देवता

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मनुष्य एक भटका हुआ देवता

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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ-

        ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

क्स्मै देवाय हविषा विधेम

    देवियो, भाइयो। ऋषि के मन में एक सवाल उत्पन्न हुआ- क्स्मै देवाय हविषा विधेम। हम किस देवता की प्रार्थना करें और किस देवता के लिए हवन करें, यजन करें, प्रार्थना करें?   कोन सा देव है,जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर सके। हमको शांति प्रदान कर सके , हमें ऊँचा उठाने में मदद दे सके। किस देवता को प्रणाम करें! मित्रो ! बहुत से देवताओं का पूजन करते-करते हम बाज आ गए। हमने शंकर जी की पूजा की, हनुमान जी की पूजा की, गणेश जी की पूजा की और न जाने क्या - क्या चाहा? लेकिन कोई कामना पूरी न हो सकी। हम एक को छोङकर के दूसरे पर गए। दूसरे को छोङकर के तीसरे पर गए। क्या कोई ऐसा देव होना संभव भी है, जो हमारी मनोकामना को पूर्ण करने में समर्थ हो सके? जो हमको प्रत्यक्ष फल निश्चित रूप से देने में समर्थ हो सके- निश्चित फल, प्रत्यक्ष फल, तत्काल फल। क्या कोई ऐसा भी देवता है, जिसके बारे में यह कहा जा सके की इनकी पूजा निरर्थक नहीं जा सकती? कस्मै देवाय हविषा विधेम। ऐसा देव कोन है?

    मित्रो। एक देव मेरी समझ में आ गया। यह देवता ऐसा है कि अगर आप इसकी पूजा कर सकते हों, इसका यजन कर सकते हों, हवन कर सकते हों तो यह देवता आपको जीवन में समुचित परिणाम देने में समर्थ है। कोन सा, वह देव? उस देवता का नाम है-‘आत्मदेव’। अपने आप की पूजा अगर हम कर पाएँ, अपने आप को हम अगर सँभाल पाएँ, सुधार पाएँ। अपने आप को अगर हम सभ्य और सुसंस्कृत  बना पाएँ तो मित्रो। हमारी प्रत्येक आवश्यकता, प्रत्येक कामना को पूरी करने में समर्थ है, हमारी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति के द्वार खोलने में समर्थ है, हमारा यह- आत्मदेव।  आत्मदेव की पूजा, आत्मदेव का भजन, आत्मदेव का यजन, आत्मदेव का हवन- इसी का नाम है साधना। साधना किस की? गणेश जी की। नहीं बेटे। गणेश जी को तो तरीका मालूम है कि उनको क्या करना और कैसे रहना चाहिए? उनके पास तो सब इंतजाम हैं। दो- दो बीबियाँ हैं- ऋद्धि- सिद्धि। एक् खाना पका देती है, एक कपड़े साफ कर देती है। आपको कोई जरूरत नहीं है गणेश जी की साधना करने की।   

आत्मदेवरूपी कल्पवृक्ष की साधना   

        मित्रो। साधना अपने आप की कीजिए। हमारा जीवन कल्पवृक्ष है। अगर इस कल्पवृक्ष की साधना हम कर पाएँ तो ये हमारी सारी की सारी मनोकामना पूर्ण करने में समर्थ हैं। मैंने सुना है कि एक कल्पवृक्ष होता है। कहाँ होता है? स्वर्गलोक में होता है। इसकी क्या विशेषता होती है? इसकी विशेषता मैंने यह सुनी है कि जो कोई उस पेड़ के नीचे जा बैठता है, उसकी इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। जो कुछ चाहता है, तुरंत सब मिल जाता है। क्या ऐसा कोई कल्पवृक्ष होना संभव है? हाँ, एक कल्पवृक्ष है और वह है- हमारा जीवन। हम अपने जीवन की महिमा को, गरिमा को समझ पाएँ। जीवन के महत्त्व और मूल्य को समझ पाएँ, उसका ठीक तरीके से उपयोग करने में समर्थ हो पाएँ तो हमारे जीवन में मजा आ जाए तो फिर क्या हो सकता है? फिर, हम मनुष्य से आगे बढ़कर देव बन सकते हैं। देव? हाँ बेटे। देव! देवता तो वहाँ स्वर्ग में रहते हैं। नहीं बेटे! देवता स्वर्ग में नहीं रहते।

      मित्रो! देवता एक प्रकृति का नाम है और राक्षस भी एक प्रकृति का नाम है। आकृति नहीं प्रकृति। राक्षसों की शक्ल कैसी होती है? काली होती है। क्यों साहब दक्षिण भारत के लोग तो काले होते हैं, फिर ये सब राक्षस हैं? नहीं बेटे! ये राक्षस नहीं हो सकते। राक्षस कैसे होते हैं? जिनके दाँत बड़े- बड़े होते हैं। हमारे पिताजी के दाँत बड़े- बड़े हैं तो क्या वे राक्षस हैं? नहीं बेटे! वे राक्षस नहीं हो सकते तो फिर बड़े दाँत वालों को और काले चेहरे वालों को आपने कैसे राक्षस बता दिया? राक्षस सींग वाले होते हैं। सींग तो साहब गाय के होते हैं,तो गाय हो गई राक्षस? अरे महाराज जी! आप क्या उलटी-पुलटी बात कह रहे हैं। हाँ बेटे! मैं उलटी बात कहकर यह समझा रहा हूँ कि यह तो आलंकारिक वर्णन किया गया है,यह प्रकृति का वर्णन है आकृति का नहीं। जिनके चेहरे दुष्कर्मों और दुर्बुद्धि की वजह से कलंक लगे,काले-कलूटे हो गए हैं, वे आदमी राक्षस हैं।

आकृति नही, प्रकृति देखिए

    जिनके दाँत बड़े हैं अर्थात जो पेटू हैं। जो किसी भी कीमत पर सबका खाना चाहते हैं,जमा करना चाहते हैं। उनके बड़े-बड़े दाँत सियार जैसे, सिंह जैसे, कोए जैसे और कुत्ते जैसे हैं। जो हर किसी का खून पी जाएँ, इन आदमियों का नाम राक्षस हैं। राक्षसों के सींग बड़े होते हैं। मनुष्यों के तो मैंने सींग नहीं देखे हैं। नहीं साहब! मनुष्यों के भी होते हैं। हाँ बेटे! होते तो हैं। बिना कारण से इसको भी चोट मार दी, उसको भी चोट पहुँचा दी। इसको भी नुकसान पहुँचा दिया, उसको भी नुकसान पहुँचा दिया, ऐसे आदमी राक्षस होते हैं। तो महाराज जी! राक्षस की कोई आकृति नहीं होती? नहीं बेटे! आकृति कोई नहीं हैं, प्रकृति होती हैं। राक्षस वैसे ही होने संभव हैं, जैसे आप और हम।

          देवता र्स्वग में रहते हैं। हाँ बेटे! रहते होंगे, मैं कह नहीं सकता । देवता कोई मनुष्य बन सकता है? हाँ, देवता कोई आकृति नहीं है, देवता भी एक प्रकृति है। हम और आप जैसे मनुष्यों के बीच में बहुत से देवता भी हो सकते हैं। देवता कैसे होते हैं? देवता बेटे! गोरे रंग के होते हैं। साहब यूरोप में तो सब गोरे रंग के  रहते हैं, तो क्या ये सब देवता हैं? नहीं बेटे! गोरी शक्ल से मेरा मतलब नहीं है। मेरा मतलब यह है की जिनके विचार, जिनका व्यवहार, जिनके आचरण, जिनका दृष्टिकोण स्वच्छ है, बोरा है, शुद्ध है, निर्मल है, उज्ज्वल है उनका नाम देव है।

          क्यों साहब! देवता कभी तो बुड्ढे होते होंगे? नहीं बेटे! देवता कभी बुड्ढे नहीं होते। हमेशा जवान रहते हैं तो साहब जब प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु होती है तो देवताओ की भी मृत्यु होती होगी हाँ बेटे! मृत्यु तो जरूर होती होगी, लेकिन बुड्ढे नहीं होते। बुड्ढा किसे कहते हैं? बुड्ढा उसे कहते हैं, जो आदमी थक गया हो, हार गया, निराश हो गया, टूट गया, जिसने परिस्थितियों के सामने सिर झुका दिया। जिसने यह कह दिया कि परिस्थिति बड़ी है और उससे लड़ने से इनकार कर दिया, वह आदमी बुड्ढा। जिस आदमी की जवानी टिटहरी के तरीके से बनी रहती है। कैसे? समुद्र बड़ा था, वह टिटहरी के अंडे बहा ले गया। टिटहरी ने कहा- समुद्र आप बड़े हैं तो ठीक है, लेकिन हम तो आपसे लड़ेंगे और लड़ते-लड़ते मर भी जाएँगे तो कोई हर्ज की बात नहीं है। मर ही तो जाएँगे, पर आपसे लड़ेंगे। जिनमें ये हिम्मत है, जुर्रत है, वे आदमी कोन हैं? वे आदमी देवता हैं।

          मित्रो! देवता कभी बुड्ढे नहीं होते, हमेशा जवान रहते हैं। क्यों साहब! ८० वर्ष के हो जाएँ तो भी जवान? गाँधी जी ८० वर्ष के हो गए थे और ये कहते थे कि मैं तो १२० वर्ष वे जिऊँगा । ४० वर्ष वे और जीना चाहते थे। विरोधियों ने उन्हें मार डाला, वे जी भी सकते थे। पंडित नेहरू लगभग ७५ वर्ष के करीब जा पहँचे थे, लेकिन सीढ़ियों पर चढ़ते हमने उनको बुढ़ापे में भी देखा। वे इस तरीके से चढ़ते थे, जिस तरीसे से कोई बच्चा चढ़ता है। जिनके भीतर उमंग है, आशा है, उत्साह है, जीवन और जीवट है, वे आदमी देवता हैं। देवता उन्हें कहते हैं, जो दिया करते हैं। जिनकी वृत्ति हमेशा यह रहती है कि हम देंगे। क्या चीज देंगे? देने को तो हमारे पास कुछ है ही नहीं। अच्छा तो आपका मतलब है आपके पास पैसा नहीं है, आपको पैसा चाहिए। पैसे को ही आप सबसे बड़ी चीज मानते है। पैसा चौथे नंबर की शक्ति है और इस जमाने में तो मैं कहता हूँ कि विनाशकारी शक्ति है। पैसा भी कोई शक्ति होती है। पैसा कोई शक्ति नहीं होती। आदमी की शक्तियों में मूलभूत शक्ति वह है, जो आपके पास पूरी मात्रा में विद्यवान है और वह है-श्रम। पैसा उसी से आता है। उसे आप देना चाहें तो दानी बन  सकते सकते ।    

श्रम का दान हजारी किसान       
    
मित्रो! श्रम हमारे पास है। मैंने कितनी बार हजारी किसान का किस्सा कहा है। जो बेचारा पढ़ा- लिखा भी नहीं था, मालदार भी नहीं था। केवल अपनी मशक्कत को लेकर खड़ा हो गया और बिहार के गाँव- गाँव में जाकर आम के बगीचे लगाता फिरा। हजार गाँवों में आम के हजार बगीचे अपनी जिंदगी में लगा दिए। हजारी किसान की वजह से जिले का नाम हजारीबाग पड़ा। चूँकि हजारी किसान ने हजार बाग लगाए थे, इसलिए भी हजारीबाग एक जिला है। क्यों साहब! आदमी के पास केवल परिश्रम हो तो? हाँ बेटे! तो भी काफी है। अन्य लोगों के पास, महापुरुषों के पास केवल परिश्रम था और क्या बताना? कुछ भी नहीं था, शरीर था उनके पास। पैसा था? पैसा भी नहीं था। मकान था? नहीं साहब! मकान भी नहीं था। कोई चीज नहीं थी, उनके पास, केवल श्रम था। श्रम के आधार पर भी हम समाज को बहुत कुछ देने में समर्थ हो सकते हैं।

          मित्रो! हमारे पास देने के लिए बहुत सारी चीजें हैं। अक्ल हमारे पास इतनी जबरदस्त है कि हम चाहें तो अक्ल के माध्यम से व्यास के तरीके  से, वसिष्ठ के तरीके से, कबीर के तरीके से, दादू के तरीके से, कितने अन्य लोगों के तरीके से इस दुनिया को ऐसी चीजें देकर जा सकते हैं, जिससे कि दुनिया हमारी अक्ल का लोहा मानती रहे। अक्ल हमारे पास है, श्रम हमारे पास है, समय हमारे पास है, बुद्धि हमारे पास है, भावना हमारे पास है, प्रतिभा हमारे पास है। हमारे पास इतने जखीरे भरे हुए पड़े हैं। इतने बड़े जखीरे को लेकर हम दुनिया में न जाने क्या से क्या कर सकते हैं। देने की वृत्ति अगर आपके पास हो और आपके पास धन नहीं है तो कोई हर्ज की बात नहीं हैं। फिर भी आप कुछ न कुछ देने में पूरी तरह से समर्थ हो सकते हैं। दुनिया की सेवा कर सकते हैं। देवता उन्हें कहते हैं, जिनमें देने की वृत्ति होती है, मैं चाहता हूँ कि आपको देवता बनाकर के जाऊँ। मैं चाहता हूँ कि यहाँ से जब आप विदा हों तो एक नए किस्म के आदमी बनकर देवता बन करके विदा हों।

आत्मदेवता ही जीवनदेवता

देवता बनने के लिए क्या करना पड़ेगा? साधना करनी पड़ेगी। साधना किसकी करनी पड़ेगी? बेटे! अपने जीवन की साधना करनी पड़ेगी। शंकर जी की कर लूँ साधना? नहीं बेटे! शंकर जी के पास तो भूत-पलीत, साँप, पार्वती जी, कार्तिकेय जी, गणेश जी और उनक शेर, बैल, उनक चूहा और मोर आदि बहुत सारे सेवा करने वाले तैयार हैं। तू सेवा साधना नहीं करेगा शंकर जी की तो कोई हर्ज नहीं है। तो किसकी सेवा करूँ? क्स्मै देवाय हविषा विधेम। बेटे! अपनी सेवा कर और किसकी सेवा करेगा? देवता की सेवा करूँगा! नहीं, देवता को तेरी सेवा की जरूरत नही है,उनके पास सब इंतजाम हैं। देवता अपना गुजारा कर लेते हैं तो गुरूजी! आपके पैर दबा दूँ।बेटे! हमको तो मरने की भी फुरसत नहीं है। गुरू जी पंखा झलेंगें। तब तो हमारा दिमाग और भी खराब करेगा, भाग.....। नहीं महाराज जी! आपकी सेवा करेंगे। क्या सेवा करेगा? आपके सिर में तेल लगाऊँगा। बेटे! जितने समय में सिर में तेल लगाएगा, उतने में तो हम बीस काम करेंगे, क्यों हमारा समय खराब करेगा? नहीं महाराज जी! विष्णु भगवान की सेवा करूँगा। बेटा! कोई जरूरत नहीं है, विष्णु भगवान को अपना कम करने दे और तू अपना काम कर।    

          मित्रो! जिस देवता की साधना मैं जीवन भर करता हूँ, वह साधना मैं आपको भी सिखाना चाहता हूँ। मुझे एक संत का एक वाक्य याद आता है-‘‘मुझे नरक में भेज दो, मैं वहीं अपने लिए सवर्ग बना लूँगा।’’ क्या ऐसा होना संभव है? हाँ, ऐसा संभव है। आदमी अपने श्रेष्ठ गुण, श्रेष्ठ विचार, श्रेष्ठ आचरण लेकर के जहाँ कहीं भी रहेगा, वहाँ परिस्थितियाँ बदलती चली जाएँगी। यदि नरक में वह रहेगा तो स्वर्ग वहीं बनता चला जाएगा। युधिष्ठिर एक बार नरक भेज दिए गए थे। अपने अच्छे व्यवहार की वजह से उनने सारे वातावरण को, परिस्थितियों को बदल दिया था और स्वर्ग बनाने में सफल हो गए थे। क्या ऐसा हो सकता है? हाँ बेटे! हो सकता है। जहाँ कहीं भी ऐसा श्रेष्ठ मनः स्थिति रहेगी, वहाँ की सारी परिस्थितियाँ, वातावरण को बदल सकती हैं और अपने लिए स्वर्ग बना सकती हैं। मैं चाहता हूँ कि आप स्वर्ग में रहें और नरक में से निकल जाएँ। आप नर- पशु के कलेवर में से निकल जाएँ, नर-कीट के कलेवर में से निकल जाएँ और ऐसे कलेवर में रहें, जिसको देवता कहते हैं। आप देवता के तरीके से जिएँ।

देवों की विशेषताएँ

  मित्रो! देवता की कुछ विशेषताएँ होती हैं और वे विशेषताएँ मैं चाहता हूँ कि आपके भीतर पैदा हो जाएँ। देवता की पाँच विशेषताएँ मैंने पढ़ी हैं। उन पाँच विशेषताओं की अगर आप जीवन में साधना शुरू करें तो आप देवता के स्तर पर प्रवेश कर सकते हैं और पाँचों वस्तुएँ पा सकते हैं। देवता के गुणों में, देवता के पास जो सिद्धि होती है, उनमें एक होती है-‘आप्तकाम’। आप्तकाम किसे कहते हैं? आप्तकाम उसे कहते हैं, बेटे! जिसकी सब मनोकामनाएँ पूरी हो जाएँ। क्यों साहब! फिर हमारी भी मनोकामना पूरी हो जाएँगी? बेशक, आपकी मनोकामना पूरी हो जाएगी, अगर आप देवता बनने के लिए खड़े हो जाएँ तब। कैसे हो जाएँगी? आप्तकाम क्या होता है? कामना का स्तर बदल देता है। स्तर बदल देने की वजह से सारी की सारी समस्याओं का समाधान होना संभव है। दुनिया में से काँटे नहीं बीने जा सकते, पर हम जूते पहन सकते हैं। जूते पहनकर हम काँटों की कठिनाई से छुट्टी पा सकते हैं।   
      
  साहब! हमारी बड़ी- बड़ी कामनाएँ हैं। क्या कामना है आपकी? हमारी कामना है कि यह सारी दुनिया हरे रंग की हो जाए और रेल, सड़क, खेत, आदमी सब रंगीन हो जाएँ। अच्छा तो बेटे! ला हमको ठेका दे दे, हम सारी दुनिया को हरे रंग की बना देंगे। सारी दुनिया की हरा बनाने के लिए कितना रुपय चाहिए?

फिलहाल बेटे! तू मुझको सौ करोड़ रुपय दे दे, जिससे हम पेंट मँगा लें और सारी सड़को और दीवारों की रँगाई करना शुरू कर दें। महाराज जी! सौ करोड़ तो मेरे पास नहीं हैं, फिर भी मैं आपको दे ही दूँ पेंट के लिए। फिर तो आप नहीं माँगेंगे? बेटे! फिर मैं सौ करोड़ लेबर के लिए माँगूँगा। तो महाराज! आप इसमें कितना समय लगाएँगे? बेटे! सौ करोड़ बर्ष में कर दूँगा। महाराज जी! फिर यह कैसे पूरा होगा? बेटे! तू सूरज को रँगवान चाहता है, चंद्रमा को रँगवाना चाहता है, जमीन को रँगवाना चाहता है, आसमान को रँगवाना चाहता है, पेड़ों को रँगवाना चाहता है, समुद्र को रँगवाना चाहता है। फिर कैसे ये कम समय में रँगा जाएगा। समय तो लगेगा ना? हाँ महाराज जी! टाइम तो लगेगा। अच्छा तो सौ करोड़ पेंट के लिए और सौ करोड़ लेबर के लिए जमा कर। तो महाराज जी! हो जाएगा? बेटे मैं कह नहीं सकता कोशिश करूँगा तेरे लिए।

          महाराज जी! तो फिर हमारी मनोकामना पूरी नहीं हो सकती क्या? बेटे! तेरी मनोकामना कभी पूरी नहीं हो सकती। महाराज जी! कोई ऐसा शॉर्ट तरीके बता दीजिए, जिससे कि हमारी मनोकामना पूरी हो जाए। हाँ बेटे! मैं एक तरीका बता सकता हूँ कि जिससे तेरी दुनिया सेकेंडों में हरी हो सकती है। बताइए महाराज जी! देख ये ले सवा दो रुयए का चश्मा और आँखों पर लगा ले। इससे सूरज भी हरा, चंद्रमा भी हरा, बादल भी हरे, जमीन भी हरी, आसमान भी हरा दीखेगा। इसमें न तेरे सौ करोड़ रुपय ही लगेंगे और न सौ करोड़ वर्ष ही लगेंगे।

आप्तकाम हों    
                              
          मित्रो! आप्तकाल होने के लिए कामना का स्तर बदलना पड़ता है। आप जिन कामनाओं को पूरी करना चाहते हैं, वो पूरा नहीं हो सकतीं। रावण की कामनाएँ पूरी नहीं हो सकीं, कंस की पूरी नहीं हो सकीं, हिरण्यकशिपु की पूरी नहीं हो सकीं। नेपालियन की पूरी नहीं हो सकीं, सिकंदर  पूरी नहीं हो सकीं। फिर आपकी कैसी पूरी हो जाएँगी? हाँ, एक शर्त पर आपकी कामनाएँ पूरी हो सकती हैं। कैसे? आप कामनाओं का स्तर बदल दीजिए। स्तर कैसे बदला जाएगा, मैं आपको यह थोड़ी देरी में बतलाऊँगा।

          साथियो! देवता होने के लिए यह जरूरी है कि आपकी इच्छाएँ, आपकी कामनाएँ, जिस प्वाइंट पर लगी हुई हैं, उस प्वाइंट को आप बदल दीजिए। रेडियो किस नंबर पर लगा हुआ है? कहाँ से बोल रहा है? साहब! सीलोन से बोल रहा है। महाराज जी! सीलोन वाला तो बड़े गंदे गाने सुनाता है। हाँ बेटे! वह बड़े गंदे गाने सुनाता है। अच्छे गाने वाले स्टेशनों को आप सुन सकते है, बस जरा सी सुई मोड़ दें कहाँ मोड़ दूँ? विविध भारती पर लगा दें। आहा! ये तो बहुत अच्छा आ रहा है। फिर बेटे! सुई मोड़-सुई मोड़। अगर हम अपने विचारों की सुई मोड़ पाएँ-बदल पाएँ, अपने दृष्टिकोण की अगर बदल पाएँ तो जो जलन और खीझ अभी हमको खाए जा रही है, वह सब शांत हो सकती है।        
           
           तो क्या महाराज जी! ये कामनाएँ कभी पूरी नहीं हो सकतीं? हाँ बेटे! ये कभी पूरी नहीं हो सकतीं। जितनी तेरी कामनाएँ पूरी होती चली जाएँगी, उतनी ही उसी हिसाब से तेरी खीझ कम नहीं, वरन बढ़ती चली जाएगी। संपत्ति बढ़ेगी तो तेरी खीझ बढ़ेगी। संतान बढ़ेगी तो तेरी खीझ बढ़ेगी। पद बढ़ेगा तो तेरी खीझ बढ़ेगी। हर चीज खीझ बढ़ाने वाली है। इच्छा या कामना दूर से इतनी खूबसूरत मालूम पड़ती हैं, लेकिन जब वह हमारे नजदीक आती है तो वह इतनी बेचैनी लेकर के आती है कि क्या कहने का है? जब तक ब्याह नहीं हुआ था, तब तक, हाँ, बेटा! तेरा ब्याह हो जाएगा। ब्याह हो जाएगा तो बहुत सुख पाएगा। अच्छा चल तेरा ब्याह कराता हूँ। यह आ गई बीबी। लाइए नायलॉन की साड़ी,  लाइए जेवर, लाइए अँगूठी। अरे साहब! दो सौ रूपए महीने मिलते थे और मौज करते थे, लेकिन यह कहाँ से आ गई? दो सौ रूपया तो कपड़े-लत्ते के लिए भी  नहीं होगा। नहीं साहब! आप जाइए, चोरी कीजिए,कुछ भी कीजिए,पर पैसा कमाकर लाइए। फिर क्या हो गया ? बीबी आ गई, फिर बच्चे पर बच्चा आ गया। अरे महाराज जी।! ये क्या हुआ? ये तो बच्चों की परेशानी आ गई। बेटे तू तो यही कह रहा था न कि ब्याह होने से सुख मिलता है। ले ले, सुख कहाँ से मिलेगा?

सुख बाहर नहीं,अंदर है

        मित्रो! ये जो इच्छाएँ हैं, ये केवल हमको खुशी भर दिखाती हैं, दे नहीं सकती। अगर आप सुख पाना चाहते हैं, शांति पाना चाहते हैं, संतोष पाना चाहते हैं तो आपको नया दृष्टिकोण ग्रहण करना पड़ेगा। अपने चिंतन का तरीका, सोचने का तरीका, मान्यताएँ, आस्थाएँ, निष्ठाएँ इन सबमें हेर-फेर करना पड़ेगा। अगर आप यह कर पाएँ तो आप पाएँगे कि आप कितने चैन से रह रहे हैं? कितनी शांति से रह रहे हैं? कितने उन्नतिशील, कितने अपने आप को संपन्न अनुभव कर रहे हैं? पहले दृष्टिकोण को तो बदलिए।

    मित्रो! देवता बनने के लिए दृष्टिकोण का बदलना आवश्यक है। देवता की बहुत सारी विशेषताएँ हैं। देवता के पास धन बहुत होता है। कितना धन होता है? बेटे! बहुत ही धन होता है तो महाराज जी! मुझे भी देवता बना दीजिए। मैं तुझे बना सकता हूँ, लेकिन पैसा देकर के नहीं। पैसा दे करके तुझे बना भी दूँ तो तू सिकंदर के तरीके से अपने सारे धन को आँखों के सामने देखकर रोता हुआ जाएगा,जैसे कि सिकंदर रोया था। उसने कहा कि यह धन मेरे साथ नहीं जा सकता, जिसके लिए उसने अपनी सारी जिंदगी खरच कर डाली। यह सारा धन साले के लिए रह गया, बहनोई के लिए रह गया, जमाई के लिए रह गया, बेटे के लिए रह गया। हमारे लिए किस काम आया? हमने क्यों कमाया? सिकंदर ने अपने दोनों हाथ ताबूत से बाहर निकलवा दिए। वह इसलिए निकलवा दिए कि देखने वाले यह देखें कि सिकंदर जो आया था, खाली हाथ आया था और खाली हाथ चला गया। जो कमाया था, वह जहाँ का तहाँ धरा रह गया।

अपनापन जुड़े तो खुशी

     साथियो! फिर देवता धनी कैसे हो सकता है? बेटे! देवता धनी ऐसे होता है, जिसके धन की मैं तुझे फिलॉसफी समझाना चाहता हूँ। धन क्या होता है? धन मित्रो! उसे कहते हैं,जिसको हम अपना समझ लें कि वह हमारा धन है और वह खुशी देता है। कैसे? मतलब यह घड़ी हमारी है। कोन ले गया घड़ी? कैसे बिगाड़ दी आपने घड़ी? घड़ी हमारी है और हमारे कमरे में रखी है तो हो गई न हमारी संपत्ति? अगर इसको बेच दें तब? तब आपकी हो गई। क्यों साहब! आपसे घड़ी ले गये थे, वह खराब हो गई। हाँ बहुत पुरानी थी जो चीज हमारी है, जिसको हम अपना मान लेते हैं, वही हमारी संपत्ति है, वही हमारी खुशी का माध्यम है। कोई भी चीज जिसको आप अपना मानते हैं, मकान को अपना मानते हैं, मोटर को अपनी मानते हैं,जमाई को अपना मानते हैं, वही तो आपकी है।

          क्यों साहब! अगर जमाई से लड़ाई हो जाए और हमारी लड़की से तलाक ले ले तब? तब वह हमारा जमाई नहीं है। तब कोन है? हमारा बैरी है और दुश्मन है। क्यों साहब! दो महीने पहले तो वह आपका जमाई था? हाँ दो महीने पहले था, लेकिन उसने तलाक दे दिया है, इसलिए हमारा बैरी है और विरोधी है। अच्छा साहब! क्या हो गया ? व्यक्ति तो वही है। अरे व्यक्ति तो वही, लेकिन हमने क्या बदल दिया? हमने अपना विचार बदल दिया। जिसका हम विचार करते हैं, जिसको हम अपना मान लेते हैं, वह चीज अपनी हो जाती है। वही अपनी संपत्ति हो जाती है, लेकिन यह भी सच कहाँ है? जिस जमीन पर हम बैठे हुए हैं, वह किसकी है? हमारी है। नहीं बेटे! यह हमारी नहीं है, यह ब्रम्हाजी ने बनाई थी, कब बनाई थी? करोड़ों वर्ष पहले बनाई थी, जहाँ हम बैठे हुए हैं, उसे पटवारी के खाते में देख करके आ। लाखों आदमियों के नाम काटे जा चुके हैं, और इससे आगे जब तक यह जमीन खतम होगी, तब तक हमारे जैसे लाखों आदमियों के नाम दरज होते जाएँगे और लाखों के  नाम काटे जाएँगे।

अक्ल ठीक कर लें, सब ठीक हो जाएगा

    महाराज जी! अभी तो आप कह रहे थे कि ये सब हमारी है। हाँ बेटे! है तो हमारी, लेकिन कैसे है? इसलिए कि हम मानते हैं कि ये हमारी है। जिसके ऊपर हम अपनी मान्यता डाल देते हैं, वह हमारी हो जाती है। अच्छा तो मान्यता के ऊपर है? हाँ बेटे! मान्यता के ऊपर है। जिसके ऊपर हम अपनेपन का टॉर्च डालते हैं, वही चीज अपनी दिखाई पड़ती है। जिसके प्रति हम अपना टॉर्च बंद कर देते हैं, वह दिखाई नहीं पड़ती। अपनापन जिसके ऊपर फैला देते हैं, वही हमारी हो जाती है। देख मैं तुझे संपत्ति दिला सकता हूँ। मैंने तेरे नाम गंगा जी का पट्टा लिख दिया अब तू गंगा जी का मालिक है। नहीं महाराज जी! मैं कैसे मालिक हूँ? अरे बेटे! तू जा, गंगा जी में पानी पी और भरकर ले आ, कोई तुझे रोके तो मुझसे कहना। अगर तू अपने को गंगा जी का मालिक मान लेगा तो फिर तू उसका मालिक है। और देख तू हिमालय का मालिक है हरिद्धार से लेकर ऋषिकेश तक तुम्हारा है, तू चाहे जहाँ घूम। तुझे कोई रोकता हो तो मेरे पास आना। मैं कहूँगा कि ये सब इसका है। और क्या क्या है आपका? सूरज तेरा है, चाँद तेरा है, हिमालय तेरा है, जमीन तेरी है, आसमान तेरा है। हवा तेरी है आज से।

          बेटे! स्वामी राम, अपने को राम बादशाह कहते थे और कहते थे कि मैं दुनिया का बादशाह हूँ। बादशाहत मिल सकती है? हाँ बेटे! मिल सकती है, अगर अपनी अक्ल ठीक कर ले तब। तेरी अक्ल जितनी संकीर्ण, जितनी छोटी होगी, उतना ही तू गरीब होगा, दरिद्र होगा और उतना ही पिछड़ा हुआ होगा। अपनी अक्ल को चौड़ा कर, समझ को चौड़ा कर और फिर देख सारी दुनिया तेरी होती है कि नहीं।

हमारा वंश

    महाराज जी! आपके कितने बेटे हैं? हमारे बहुत बेटे हैं। पिछले वर्ष स्वर्ण जयंती साधना वर्ष (१९७५) में हमने अपील की थी कि आप हमारे साथ-साथ ४५ मिनट जप करना और जप करने वालों में अपना नाम लिखा देना। हमारे रजिस्टरों में अब तक एक लाख आदमियों के नाम लिखे हुए हैं। इस तरह एक लाख आदमियों ने हमारे साथ ४५ मिनट उपासना की। महाराज जी! तो ये आपके बेटे हुए? हाँ बेटे! हमारी ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका हिंदी में और दूसरी भाषाओं में निकलती है, उसके मेंबर एक लाख से ज्यादा हो जाते हैं। ये सभी १२ रूपया साल पत्रिका की फीस जमा करते हैं, इसलिए हमारे बेटे हैं। नाती कितने हैं?

एक-एक आदमी दस-दस आदमियों को अखबार, पत्रिका पढ़ाता है। इन सबको कह दिया है कि अखण्ड ज्योति जहाँ भी जाए, दस-दस आदमियों को पढ़ानी चाहिए तो हमारे पोते हैं १० लाख और परपोते? अभी ठहर जा बेटे! हमारे कुटुंबी बहुत हैं। अभी तो ७० साल की उम्र हुई है। अभी तो हमारे बेटे, पोते हो पाए हैं, अभी तो हमारे परपोते होंगे, तब तुझे गिनाएँगे कि कितने हैं?

          महाराज जी! ये कहाँ हैं आपके? इनमें से तो कोई कायस्थ है, कोई बनिया है। अरे बेटे! इसलिए कि इन्हें हम अपना मानते हैं, ये हमारे और हम इनके हैं। बेटे! अगर हम बूढ़े हो जाएँ, थक जाएँ और आपके घर में रहना चाहें और ये कहें कि आप हमको एक चारपाई की जगह और दो रोटी दे दिया करना तो आप में से कोई ऐसा है, जो मना करेगा कि मैं तो नहीं देता। आज के जमाने में जब बेटे बाप को निकाल देते हैं बाप के लिए तो रोज दुआ करते हैं कि कब मरेगा या कब चला जाएगा! चार भाई होते हैं तो बाप से कहते हैं, अरे साहब! आप यहीं बैठे रहते हैं, बड़े भाई के पास भी जाया कीजिए, वहाँ भी तो रहा कीजिए। दूसरे भाई के पास जाते हैं, तो वह कहता है कि आप उस भाई के पास क्यों नहीं जाते, आप यहाँ ही बैठे रहते हैं? एक भाई चाहता है कि दूसरे के यहाँ चले जाएँ और दूसरा चाहता है कि तीसरे के यहाँ चले जाएँ। हमारे बारे में भी क्या यही बात है, हर आदमी चाहेगा कि हम किसके घर जाएँ? जो पहले हाथ उठाएँगा उसी के यहाँ जाएँगे। अरे साहब! पहला नंबर हमारा है, पर उसके यहाँ भी चलिए। आप लोगों में से कोई यह तो नहीं कहेगा कि आप हमें नहीं चाहिए। आप हमारे हैं और हम आपके हैं।

मुहब्बत से बँधी जमा पूँजी

मित्रो! हमने आपको मुहब्बत की जंजीरों से बाँध लिया है, इसलिए आप हमारे बेटे और हम आपके पिता हैं। मुहब्बत की जंजीरों से आप दुनिया को बाँध लें, जीव-जंतुओं को, प्राणियों को बाँध लें तो सारी दुनिया आपकी है, उसके आप मालिक हैं। देवता हैं, देवता के पास असीम संपत्ति होती है। बाल-बच्चे हमनें कमाए, पैसा हमने कमाया। कहाँ है साहब पैसा? हमारी बैंक में जमा है। कोन सी बैंक में रखा हुआ है? ये सब लोग जो बैठे हैं, इनका नाम बैंक है। हमको अगर आवश्यकता पड़े और कहें कि दस-दस रूपए का मनीऑर्डर भेजो। यह कोन सा महीना है? जनवरी। अगले महीने फरवरी में दस-दस रूपए के हिसाब से एक लाख आदमियों के दस लाख रूपए जमा हो जाएँगे। आपका जमा क्या है? हाँ जमा है, तो हमारा जमा कर लेते? नहीं बेटे! कोई चोर छीन ले जाएगा, इसलिए हम पैसे अपने पास नहीं रखते। क्यों साहब! बैंक में जमा नहीं किया ? बैंक में हमारा विश्वास नहीं है। बैंक से ज्यादा ईमानदार आदमी हमको अपने बच्चे मालूम पड़ते हैं, बेटे-पोते मालूम पड़ते हैं। इसलिए हमने अपना धन लाखों-करोड़ों की तादाद में जमा करके रखा है और जब भी आवश्यकता पड़ती है, खट्ट से खरच करा लेते हैं, मँगा लेते हैं।

           बेटे! हमने बहुत धन कमाया है। हमारी बहुत सारी संतानें हैं और हम देवता हैं। और माता जी की बेटियाँ? माता जी की बेटियों की कुछ कहो ही नहीं, ये तो रानी मक्खी हैं। पिछले साल बेटियाँ थीं सौ, अब की बार हो गई दो सौ। छोटी-छोटी बेटियाँ चिल्लाती और रोती होंगी? नहीं बेटे! कोई मैट्रिक, कोई इण्टर, कोई बी.ए. तक पढ़ी हुई हैं। अभी ४५ लड़कियाँ तो ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हैं। ये कब पैदा हुई? ये बेटे! अभी जुलाई में पैदा हुई थीं। जुलाई में पैदा हुई और जनवरी में एम.ए. हो गई? नहीं साहब! माता जी कि नहीं हैं। अच्छा ये माता जी की नहीं हैं तो फिर हम आपसे ये पूछते हैं कि लड़कियाँ जब विदा होती हैं तो ऐसे क्यों रोती हैं? फूट- फूटकर, बिलख-बिलखकर ऐसे रोती हैं, जैसे सास के घर जाने में लड़की रोती है। उससे भी ज्यादा दुखी होकर, फफक- फफककर, पल्ला पकड़कर, छाती से चिपटकर रोती हैं। माता जी हम यहाँ से जा रहे हैं। बेटी तेरे बाप ले जा रहे हैं तो हम क्या कर सकते हैं? तू यहाँ रहना चाहे तो जिंदगी भर रह सकती है। मुहब्बत बाप- बेटी की माँ- बेटी से कम नहीं ज्यादा है। कहाँ से आ गईं ये बेटियाँ? तो माता जी क् कष्ट उठाना पड़ा होगा? नहीं बेटे! ये तो बिना कष्ट के पैदा हो गईं। मुहब्बत की जंजीरें अगर हमारे पास हों तो सारी दुनिया हमारी हो सकती है और हम सबके हो सकते हैं।

देवत्व का अर्थ  

          मित्रो! यही है देवत्व। देवत्व का अर्थ है, हमारे भीतर अगर मुहब्बत हो तो व्यक्ति एक, ढंग दो, संपदा तीन, शांति चार और हम अजातशत्रु। देवता अजातशत्रु होते हैं। देवता का बैरी होता है? नहीं बेटे! देवता का कोई बैरी नहीं होता। क्यों साहब! उससे तो आप की लड़ाई है और वह तो आपसे बैर करता है। हाँ बेटे उसे करने दे, हम बैर नहीं करते। वह तो आपको गाली देता है। हाँ बेटे! उसे देने दे, उससे क्या बनता है? हम तो नहीं देते, हम तो नहीं करते बैर। इसलिए जलन-दाह हमारे भीतर तो नहीं है। ईर्ष्या, क्रोध हमारे भीतर तो नहीं है। नहीं साहब! वह विरोध करता है। तो बेटा! उसे करने दे, हमें क्या नुकसान है? उसी का नुकसान होगा। देवता अजातशत्रु होते हैं। शत्रु कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकते। नहीं साहब! शत्रु तो नुकसान कर सकते हैं और मारकाट सकते हैं?

          बेटे! मारकाट तो बुखार भी कर सकता है। नहीं साहब! वह तो आपको मार डालेगा। अरे बेटे वह तो बड़ा आदमी है। मार भी सकता है, लेकिन मैं तो यह कहता हूँ कि एक मच्छर,एक बिच्छू आदमी को मार सकता है। एक सुई भी आदमी को मार सकती है। मारना भी कोई आफत है। एक दीयासलाई आदमी को मार सकती है। आठ आने का मिट्टी का तेल सिर पर डाल ले और एक छदाम की दीयासलाई लगा ले, मार डालेगी सवा आठ आने में। मनुष्य को मार डालना भी कोई बड़ी बात है? देवता अजातशत्रु होते हैं। मैं चाहता हूँ कि आपको देवता बना दूँ तो मेरा शिविर पूरा हो जाए और हमारा आपको यहाँ बुलाना सार्थक हो जाए। आज की बात समाप्त।

।। ऊँ शांतिः ।।

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