
नारीजागरण दीपयज्ञ
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युग निर्माण कैसे होगा, व्यक्ति के निर्माण से.. यह एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है।
एक व्यक्ति जो सुधार की आवश्यकता अनुभव करेगा, उसी के माध्यम से सुधार की प्रक्रिया चल सकती है। किन्तु यह प्रक्रिया इतनी आसान भी नहीं है क्योंकि परिवार का हर सदस्य अपने पूर्व जन्म के स्वभाव और संस्कारों को लेकर पैदा होता है। ऐसे में हर किसी को संतुष्ट रखते हुए, घर में सुसंस्कारित, आध्यात्मिक और शांतिदायक वातावरण बना देना कोई आसान काम नही है... यह तो बड़ी साधना का काम है।
नारी जन्मदात्री है, वात्सल्य, कोमलता और करूणा की मूरत है। वह एक बार जिसे अपना मान लेती है, उसके लिए सब कुछ उत्सर्ग भी कर देती है। अतः उसी से यह प्रार्थना की जाती है कि वह कृपा करके परिवार के सुव्यवस्थित संचालन का दायित्व भी ग्रहण करे... लेकिन उपरोक्त सूत्र का दूसरा चरण भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है कि मां का मस्तक ऊंचा होगा, त्याग और बलिदान से.. अर्थात् माता कहकर, सुव्यवस्था बनाने की सारी जिम्मेदारी जिस पर डाली जा रही है, वह इस काम को सहर्ष और गर्व के साथ करे। इसके लिए यह जरूरी है कि अन्य लोग भी उसके समर्थन में कुछ त्याग और बलिदान करें।
अगले दिनों नारी शताब्दी का नव निर्माण संभव कर सकने में देश के पुरूषों का जहां उदार सहयोग अपेक्षित है, वहां यह भी आवश्यक है कि उस आंदोलन का नेतृत्व संभालने के लिये मनस्वी महिलाएं अग्रिम पंक्ति में आएं। आंदोलन को पुरूषों का सहयोग तो चाहिए ही कि वे नारी को समय, साधन, सहयोग और प्रोत्सिन प्रदान करें। पर साथ ही यह उससे भी अधिक आवश्यक है कि नारी जागरण का नेतृत्व समर्थ महिलाएं संभालें। आवश्यक है कि महिलाओं की अपनी छोटी- बड़ी मंडलियां बनें और घर- घर में प्रवेश करें.. संगठन खड़ा करें। वातावरण बनाए और ऐसे अनेकानेक कार्यक्रमों को चलाएं, जिससे युग संगठनों के अति महत्त्वपूर्ण नेतृत्व का श्रेय उन्हें ही हस्तांतरित हो सके...
-श्रीराम शर्मा आचार्य
बढ़ते आंसुओं का सैलाब
पूज्य गुरुदेव ने कहा है, नारी प्रगति की भारी संभावनाएं हैं। अगले दिनों उन्हें प्रत्येक महत्त्वपूर्ण प्रसंग में आरक्षण मिलने जा रहा है... नए प्रसंग बन रहे हैं। इन लाभों को उठाने के लिए आवश्यक है कि नारी सुयोग्य और समर्थ बने..
अनेक प्रतिगामिताएं विषाणुओं की तरह दुर्बल शरीर पर सफलतापूर्वक चढ़ दौड़ती हैं। इन त्रासों से भी उन्हें बचाने के उपाय करना चाहिए। विचारशीलों द्वारा उन्हें इतना सक्षम, समर्थ एवं सुयोग्य बनाया जाना चाहिए कि वे गुण दोषों की कसौटी पर कसकर ही किसी मान्यता अथवा चलन को अपनाएं..
नारी एक शक्ति है। आज यदि वह कामनाओं को उकसाने वाली अथवा रूढ़ि़वादी है तो उसे जगाकर, आत्मबोध कराना पुरूषों के भी हित में है। यदि आज वह प्रतिगामिता का कारण कहलाती है, तो कल वह पुनः प्रगति का माध्यम भी बन सकती है। नारी जागरण आन्दोलन को पुरूषों का सहयोग तो चाहिए ही.. किन्तु उससे अधिक आवश्यक है कि समर्थ महिलाएं स्वतः आगे आकर समूहबद्घ होकर इस दिशा में सक्रीय हों। इस महान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ऐसे दीपयज्ञों का आयोजन जगह- जगह पर हो। अधिक से अधिक महिला मंडल बनाकर उन्हें सक्रीय किया जाए।
प्रारंभिक व्यवस्था --
जिस क्षेत्र में नारी जागरण दीपयज्ञ रखना है, पहले उस क्षेत्र की प्रमुख महिलाओं और पुरूषों से यक्तिगत सम्पर्क बनाकर, उन्हें महिला मंडल की स्थापना की प्रेरणा दी जाए। यदि यज्ञीय आयोजनों में इसे करना है, तो अनुयाज के रूप में... महिला मंडल की स्थापना एवं सुसंचालन के लिए क्षेत्र के सक्रीय संगठित समूह को जिम्मेदारी सौंपी जाए। आयोजन की शेष तैयारी अन्य दीपयज्ञों की तरह ही की जाए। स्वयं सेवकों को उनके दायित्व समझा दिए जाएं।
प्रेरणा --
भाइयों और बहनों..., इसके पहले कि हम आज का यह यज्ञीय कार्यक्रम शुरू करें, हम इस मंच से आप सभी का स्वागत करते हैं।
मित्रों, हमारा दिन समस्याओं को लेकर ही आता है और रात सोने के पूर्व तक हम उन्हीं से जूझते रहते हैं। बीच में कभी खाना- पीना हो जाता है, कभी लोगों से भेंट मुलाकात हो जाती है, कभी कोई मनोरंजन का प्रयास कर लेता है... लेकिन हमारी समस्याएं बनी ही रहती हैं। कभी हक की और कभी चाहत की लड़ाई हम लड़ते ही रहते हैं। हमें संघर्ष के संतोषजनक परिणाम चाहिए, तो हमारे मन में यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि हम चाहते क्या हैं, क्योंकि हमारे पास समय कम है और हमारे साधन भी सीमित हैं। पैसा, प्यार, अच्छा स्वास्थ्य, मान- सम्मान... एक मिलता है तो दूसरा छूटता है.. और हम परेशान होते रहते हैं। हमारी यह परेशानी दूर होनी चाहिए...
हम अच्छा चाहते तो हैं, मगर कर नही पाते हैं। जब से भोगवाद और प्रत्यक्षवाद बढ़ा है, ईश्वरीय व्यवस्था और कर्मफल सिद्घांत पर से लोगों की आस्था कम होते गई है। इसी का यह परिणाम निकल रहा है कि हर आदमी भीतर से अपने आपको उदास, हताश, अकेला और असहाय महसूस कर रहा है।
आप सभी नारी जागरण दीपयज्ञ में आए हैं। अनेक धर्मों और पंथों में 21वीं सदी को नारी शक्ति प्रधान कहा गया है। कहा गया है कि इन दिनों नारी अपनी सम्पूर्ण सृजन शक्ति के साथ खड़ी होगी और सारे व्यवस्था तंत्र को सुधारने का महत्त्वपूर्ण कार्य भी करेगी।
एक सीधी सी बात है कि लोग सुख से रह सकें, इसके लिए पहले वह जगह ठीक होनी चाहिए जहां वे रहते हैं... यह जगह है हमारा घर- परिवार। हम अपना विरोध करने वाली भीड़ को तो रोक नही सकते.. मगर उस भीड़ के एक- एक आदमी को अलग- अलग रोका जा सकता है और हमारा एक- एक विरोधी हमारा सहयोगी भी बन सकता है। यह काम नारी शक्ति ही कर सकती है।
जिस प्रकार ईश्वर कोई पत्थर की मूरत नही है, वैसे ही नारी भी कोई औरत का शरीर मात्र नही है... यह हमें याद रखना होगा। हो सकता है ईश्वरीय शक्ति का अनुभव अब तक आपने ना किया हो, परन्तु किसी ना किसी नारी का निश्छल प्रेम कभी ना कभी तो अनुभव किया ही होगा। जरा उस प्रसंग को पुनः याद तो करें... उस क्षण को पुनः जी लेने की कितनी तमन्ना है दिल में ?? सोचो ऐसे पल जीवन में बार- बार आते रहें तब ?? पैसे से उन पलों को खरीदा नही जा सकता। आज लोगों ने बस पैसे को ही भगवान बना डाला है। पैसे से ना प्यार मिल सकता है, ना दोस्त मिल सकते हैं, ना ही परिवार।
आज जिस तरह पैसे ने ईश्वर की जगह ले ली है, वैसे ही नारी की जगह अप्सराओं या परियों ने ले ली है। जैसे पत्थर पूजने से कुछ हासिल नही होता, वैसे ही अप्सरा या परी को पा लेने से भी कुछ हासिल नही हो पाता। घर की नारी सुंदर हो यह तो ठीक है, मगर सौंदर्य क्या.. मोटे- पतले और गोरे- काले से होगा ?? आपने देखा है ना लोग बड़ा 36 गुण मिलाकर, बढ़ि़या ब्यूटी पार्लर जाने वाली को ब्याह कर लाते हैं, पर होता क्या है ?? ये घर- घर की कहानी है, आप जानते हैं। नही मित्रों, नारी याने अप्सरा नही.. नारी याने एक कोमल, सुखद, जीवनदायी स्पर्श है। कभी वह बहन के रूप में, कभी मां के रूप में कभी पत्नी या सहयोगी के रूप में, तो कभी अनजान अपरिचित देवी के रूप में भी हमें प्राप्त होती है। उसे ही हम याद करते हैं, उससे प्रेरणा प्रोत्साहन पाते हैं।
सोचकर देखें एक मां हमें इतना प्यार करती है... अगर दुनिया की हर औरत हमारी मां हो जाए तब ?? एक बार कल्पना करके तो देखिये... इतनी सारी माताएं, इतनी सारी बहनें, इतने सारे भाई हमारे हो जाएं तो ?? जो भी मिले भाई सा प्रेम व सहयोग करे। हर महिला हमारी मां और बहन के जैसे हमारा ख्याल रखे तो ?... हां, यह हकीकत हो सकती है.. इस देश में पहले भी ऐसा होता रहा था और आज तो प्रेम, सेवा, सहयोग एवं विश्वास की और भी जरूरत है।
नारी ये सब स्थितियां लाने में सक्षम है। किसी नारी द्वारा कहा गया एक शब्द आपको जिंदगी भर, हृदय में कांटे की तरह चुभ सकता है.. आपको पागल बना सकता है। लेकिन जिस नारी का व्यवहार आपको भा जाए, उसके लिए आप कभी भी कुछ भी कर देने को तैयार हो जाते हैं... इतनी ताकत है नारी में। अच्छा.. आप क्या सोचते हैं ?? जीवन में लोगों को किस चीज की जरूरत है ..? प्रायः लोग गाड़ी, बंगला और अच्छे बैंक बैलेंस के पीछे ही भागते नजर आते हैं... पर जिनके पास ये सब है, उनसे पूछ कर देखिए। उन्हें सिर्फ तीन चीजों की जरूरत है... स्वस्थ शरीर.., प्यार से बातें करने वाली, सहयोग करने वाली कोई महिला और टेंशन रहित जीवन। ये सब चीजें नारी चाहे तो वैसे ही दिला सकती है, इसके लिये करोड़पति बनना जरूरी नही होता।
भगवान जब भी धरती पर आए हैं, अनीति अनाचार को दूर करके व्यवस्थाओं को सुधारने और सत्कर्मों की प्रेरणा देने के लिए ही आए हैं। नारी में भी ये गुण पैदायशी तौर पर होते हैं। आज जितनी भी सुख शांति दुनिया में दिख रही है, उसका कारण नारी के यही सतगुण हैं और जितनी भी दुरावस्था है वह भी इसीलिये है कि नारी ने अपने इन वास्तविक गुणों को छोड़कर, लोगों की देखा- देखी अन्य तरह की सोच अपना ली है... और वैसे ही जीने लगी है।
हमें इस सच्चाई को समझना होगा और स्वीकार करना होगा कि पुरूष वर्ग जो भी कार्य करते देखा जाता है, उसके पीछे उसके भीतर निहित सोच, विशेष तरह के संस्कार और उसके पारिवारिक परिवेश की प्रेरणा ही वास्तव में कार्य करती है। इस पर गहराई से चिंतन करने पर आप पाएंगे कि पुरूषों की सोच, संस्कार और प्रेरणा के पीछे कारण, उस घर की नारी शक्ति के क्रिया कलाप ही होते हैं। यही बात महिलाओं पर भी लागू होती है। भाई, पति, पिता या गुरु के माध्यम से भी उन्हें जो मार्गदर्शन प्रेरणा मिलती है, उस पर उनकी माताओं की छाप होती है। याने व्यक्तित्व महिला का बने या पुरूष का उसको ढालने वाली शक्ति नारी की ही होती है।
माताएं तो कोख में भी बच्चों को सत्प्रेरणाएं दे सकती हैं और यदि वे ऐसा कुछ नही सिखा सकतीं तो फिर इंसान को जहां से भी, जैसी भी प्रेरणा मिलेगी, वह वैसे ही कार्य करता जाएगा। प्रेरणाएं किस प्रकार दी जाएं कि वे प्रभावी हों, ये अलग विषय है किन्तु बिना प्रेरणा के कुछ नही होता। ये तो सीधा- साधा गणित है।
मां बच्चे के साथ ही रहती है, उसे गोद में सुलाती है, सीने से लगाती है। कदम- कदम पर उसकी मदद करते रहती है तो स्वाभाविक रूप से बच्चे के हृदय में भी उसके प्रति सघन आत्मीयता और प्रेम रहता है। स्वाभाविक सादगी से युक्त ऐसा सेवा भावी व्यवहार कोई भी करे, उसके प्रति हृदय में श्रद्घा भाव जागते ही हैं। नारी अपने मूल स्वभाव में ऐसी ही सेवा भावी और कल्याणकारी होती है और यही उसकी विजयी शक्ति भी है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से कार्य करती है। उसकी इसी प्रतिभा का कम हो जाना आज हमारी चिंता का विषय है... क्योंकि उसकी यही शक्ति इंसान की सोच और उसके व्यवहार को अच्छा बना सकती है। इंसान को छल, कपट, चोरी, धोखेबाजी जैसे बुरे काम करने सेरोक सकती है। आप कल्पना करिये, यदि हमारे बच्चे कभी हमें धोखा ना दें, बहु कभी अलगाव का कारण ना बने, मित्र, सहयोगी और पड़ोसी भी हमारे लिये सुखदायी हो जाएं, लोग अपने परिवार के अलावा समाज और प्रकृति की भी चिंता करने लगें और उनकी भी सेवा करें तो फिर तो कोई समस्या ही ना रहे...
व्यक्ति जो भी काम करता है, यही सोचकर करता है कि मेरा काम ठीक है... लेकिन वह ठीक होता नही है। इसीलिये तो स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, परिवार में कलह क्लेश है, मानसिक तनाव और आर्थिक परेशानियां बढ़ती जा रही हैं। समाज में भौंडे चाल- चलन, नशाखोरी और भ्रष्टाचार बढ़ते जा रहा है, कानून व्यवस्था और पर्यावरण की स्थिति बिगड़ रही है। कुछ लोगों को उल्टा सीधा करते देख सारा समाज ही उल्टे काम करता जा रहा है। ये सब कौन रोकेगा ?? कानून से तो ये रुकने से रहा... सब देख रहे हैं परिस्थितियां और भी बिगड़ती जा रही हैं। तब एक ही तरीका बचता है, एक आखरी उपाय यही हो सकता है कि हर व्यक्ति को भीतर से ही ये प्रेरणा मिले कि वह बुरे काम ना करे। विश्वास और प्रेम से ही यह बात उसके अंदर बिठाई जा सकती है... और एक मां, एक नारी ही इस काम को स्वाभाविक रूप से कर भी सकती है। मां, भाभी, बहन, सखी या पत्नी जैसे रूपों में वही ऐसी प्रेरणा दे सकती है... अगर हम घर परिवार में इस तरह का माहौल बना सकें...
आज जिस ढंग से नारी जी रही है... जो उसकी सोच बनी हुई है, ऐसे में यह संभव नही कि वह ऐसी जिम्मेदारी उठा सके। अभी तो वह खुद ही सक्षम नही है। क्या खाना- पीना, दिनचर्या कैसे रखना, सुसंतति निर्माण, परिवार प्रबंधन तथा शरीर, मन, आत्मा जैसे विषयों का उसे ज्ञान नही है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिलाएं श्रम करके अपनी रोजी निकाल भी लेती हैं, पर शहरी क्षेत्रों में उनमे ऐसी क्षमता नही होती। आज भोगवादी प्रचार का उन पर जबरदस्त प्रभाव है, जीवन व्यवहार और आदर्शों के क्षेत्र में उसकी अनेक गलतफहमियाँ हैं... जिन्हें दूर किया जाना है। तभी इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि वह अपने पारिवारिक, सामाजिक और युग दायित्व का निर्वाह उचित ढंग से कर सकेगी।
यह नारी जागरण दीपयज्ञ कोई महिलाओं का ही कार्यक्रम नही है। जिस कार्यक्रम से परिवार, समाज और सारे राष्ट्र् का हित जुड़ा हुआ है, वह तो सब का सांझा दायित्व है। बल्कि नारी जागरण कार्यक्रम को तो पुरूषों के हित का कार्यक्रम कहना चाहिए... क्योंकि महिलाएं अगर स्वस्थ, समझदार, सहयोगी, सादगी पसंद, मितव्ययी, अच्छी माता, अच्छी पत्नी आदि नहीं बन सकेंगी, तो इससे सबसे ज्यादा नुकसान तो पुरूषों का ही है। वे कभी भी चैन से रह नही सकेंगे और उनकी स्वतः की शक्ति का भी सही सदुपयोग नही हो पाएगा।
बड़े- बड़े ज्ञानी लोग बैठे हैं.., प्रवचनकर्त्ता बैठे हैं, सरकारें भी बड़ी- बड़ी घोषणाएं करते रहती हैं, पर लोक व्यवहार बिगड़ते ही जा रहा है। होगा तो वही, जो लोग चाहेंगे। इसीलिये हमारे पूर्वज ऋषियों ने समाज को दिशा और प्रेरणा देने के उद्देश्य से स्वाध्याय सत्संग की व्यवस्था की, गुरुकुल बनाए, पर्वो और संस्कारों की व्यवस्थित परम्पराएं बनाई। साथ ही वातावरण को भी अनुकूल करने, उसमें दैवी सहयोग का आवाहन करने और व्यक्ति को भीतर से बदलने के लिये उसे संकल्पित करने की व्यवस्था भी की थी। यह पूर्ण प्रक्रिया विशिष्ट आध्यात्मिक प्रयोगों के माध्यम से पूर्ण की जाती थी जिन्हें यज्ञ कहते हैं।
आज का यह नारी जागरण दीपयज्ञ भी माता भगवती की प्रेरणा एवं पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के निर्देशानुसार ही आयोजित किया गया है। तो आइये युग शक्ति मां गायत्री की जयकार के साथ इस यज्ञ का शुभारंभ करते हैं। बोलिए युगावतार महाकाल की .... जय !
अब समवेत स्वर में गायत्री महामंत्र का उच्चारण करें।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
मंगलाचरणम् --
परिवर्तन कहने सुनने मात्र से नही हो जाते। अच्छे कार्यो के लिए भीतर से.. हृदय से संकल्प उभरना चाहिए। हृदय में श्रद्घा और विश्वास जागे तो संकल्पों को बल भी मिलता है। इसी उद्देश्य से, इस यज्ञ में पहले देव शक्तियों का आवाहन पूजन करेंगे.. और फिर उनकी साक्षी में नारी शक्ति के जागरण का, महिला मंडलों के गठन का संकल्प लिया जाएगा।
आप बहुत बड़ा कार्य करने जा रहे हैं.. इस महान ऐतिहासिक कार्य के लिए ईश्वर ने आपका चुनाव करके आपको यहां तक भेजा है, यही सच्चाई है। अतः सर्वप्रथम आपकी सहभागिता का स्वागत किया जा रहा है...
(स्वयं सेवक उपस्थित परिजनों पर अक्षत पुष्प का सिंचन करें)
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवा, भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरै रंगै स्तुष्टुवा , स्वस्तनुर्भिः व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
पवित्रीकरणम् --
यह एक सच्चाई है कि जो भीतर होता है, वही बाहर आता है। व्यक्ति वैसे ही वातावरण को पसंद भी करता है और मौका पाते ही काम भी वैसे ही कर जाता है। इसलिये व्यक्ति का अंतःकरण शुद्घ पवित्र होना जरूरी है। नारी जागरण के पुनीत कार्यो में हमें ईश्वरीय सहयोग भी चाहिए। ईश्वर को तो सादगी, पवित्रता और शुद्घता ही पसंद है तो हमें भी अंतःकरण में पवित्रता धारण करने और उसे बनाए रखने का सतत् प्रयास करना होगा।
अप्राकृतिक रहन- सहन, दुष्चिंतन, पाश्विक आहार- विहार का त्याग करके, जीवन में शुद्घता, सद्चिंतन और संयम का अभ्यास करना होगा... तभी ईश्वरीय शक्तियां हमें सहयोग करेंगी, इस तथ्य पर विश्वास करें।
अब स्वयं सेवक भाई बहन आप पर अभिमंत्रित जल का सिंचन कर रहे हैं। भावना करें कि इन जल बूंदों के रूप में पवित्रता की वर्षा हम पर हो रही है। मन ही मन ईश्वरीय शक्तियों को आश्वस्त करें कि हम अपने भीतर पवित्रता का संवर्धन करते रहेंगे। अब दोनों हाथ जोड़कर यह सूत्र दोहराते चलें --
(स्वयंसेवक पवित्र जल का सिंचन प्रारंभ करें)
ॐ पवित्रता मम मनः काय अंतः करणेषु संविशेत्।
सूर्यध्यान प्राणायामः --
प्राण एक चेतन शक्ति है। शुद्घ अंतःकरण से शुभ संकल्प की पूर्ति के लिए प्राण शक्ति का आवाहन करेंगे.. तभी वह अतिरिक्त प्राण हम प्राप्त कर सकेंगे। प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से अंतर्मन की बुराइयां भी जलकर भस्म हो जाती हैं। इसलिये प्राणायाम नित्य किया करें।
नित्य सूर्य का ध्यान करके गायत्री मंत्र का जाप करने से प्रतिभा प्रखर होती है। यज्ञ के पूर्व हम देव शक्तियों का आवाहन करने जा रहे हैं, तो सूर्य भगवान का ध्यान करके एक बार प्राणायाम भी करें।
सभी परिजन रीढ़ सीधी करके बैठें। लंबी श्वांस लेकर प्राण तत्व को अपने भीतर धारण करें और कुछ देर बाद श्वास छोड़ते हुए, भावना करें कि हमारे सारे पुराने दुराग्रह इसी के साथ हमसे दूर जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में सविता देवता हमारी मदद कर रहे हैं।
ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परासुव
यदभद्रं तन्न आसुव॥
चंदन धारणम् --
समाज में नारी जागरण कार्यक्रम को शुरू करने, इतने सारे भाई बहन एकत्र हुए हैं। सभी एक महान लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सहकर्मी बन रहे हैं, तो सभी एक दूसरे का सम्मान करेंगे। व्यक्ति के विचारों का सम्मान ही व्यक्ति का सम्मान होता है।
सभी अपनी अनामिका उंगली पर रोली लें। मन ही मन ईश्वर से कहें कि हम इतना बड़ा कार्य करने जा रहे हैं, तो हमारे मस्तिष्क को आप शांत शीतल बनाए रखना। ऐसा ना हो कि साथ- साथ काम करते हुए हम उत्तेजना और आवेश में आकर एक दूसरे का अपमान कर बैठें। हे भगवान हमें सन्मार्ग दिखाना ताकि कोई गलत काम हमसे ना हो, जिसके लिये हमें चार लोगों के बीच सिर झुकाकर रहना पड़े। इसी भाव के साथ यह सूत्र दोहराएं। कहिए --
ॐ मस्तिष्कं शान्तम् भूयात.... ॐ अनुचितः आवेशः मा भूयात.... ॐ शीर्षम् उन्नतं भूयात्।
अब गायत्री मंत्र कहते हुए एक दूसरे का तिलक करें।
संकल्प सूत्र धारणम् --
नारी जागरण कार्यक्रम से हमारी समस्त समस्याओं का समाधान संभव है। इस कार्यक्रम में अनेक रूकावटें भी हैं। इन्हें दूर करने के लिये हमें जागरूक रहकर सतत् संघर्ष भी करना पड़ेगा। इसी बात का संकल्प अभी हम लोग लेंगे। आपको संकल्प सूत्र या कलावा दिया जा रहा है, उसे अभी हाथ में ही रखिये और संकल्प के लिए पहले अपनी भावभूमि बना लीजिए... (स्वयंसेवक सूत्र बांट दें)
सच्चाई तो यही है कि केवल दीपयज्ञ का कर्मकाण्ड भर कर लेने से कुछ नही होगा। हमारी सोच, कार्यशैली और सम्पूर्ण जीवन पद्घति, जब तक हम स्वयं नही बदलेंगे.. बात नही बनेगी। हमारे साहस, आस्था, विश्वास और संकल्प की शक्ति इस परिवर्तन को सफल बनाए, इसी उद्देश्य से तो यह दीपयज्ञ किया जा रहा है। दैवी शक्तियों का सहयोग पाने के लिये हमें आज यह संकल्प लेना चाहिए कि हम नारी को गरिमामय और जन श्रद्घा का केंद्र बनाने की दिशा में कार्य करेंगे। पहले अज्ञान और पिछड़ेपन ने उसकी दुर्दशा की थी.. आज आधुनिकता के नाम पर वह ठगी जा रही है। फर्क कुछ नही पड़ रहा, ना उसकी दशा सुधरी है, ना समाज की।
इस तथाकथित प्रगतिशीलता और भोगवाद में हमारी स्वावलंबी जीवन शैली ही समाप्त हो गई है और हम आत्मीय संबंधियों के अभाव में मानसिक तनावों से ग्रस्त जैसे- तैसे दिन काटने को मजबूर हो गए हैं। मित्रों, एक- एक समस्या का अलग- अलग समाधान ढूँढ़ना पत्तों को पानी देने की तरह ही निरर्थक है। सही समाधान यही है कि हम अपनी सोच, अपनी जीवन शैली और संस्कारों को ठीक करने की व्यवस्था बनाएं। यह ठीक होगा परिवार व्यवस्था को ठीक करके, लेकिन परिवार तभी ठीक होगा, जब नारी इसकी जिम्मेदारी उठाएगी।
हमें नारी को समर्थ बनाने तथा परिवार एवं समाज की व्यवस्था सुधारने के लिये छोटे- छोटे शक्ति केन्द्र महिला मंडलों के रूप में स्थापित करने हैं। समुचित मार्गदर्शन, सहयोग व प्रेरक सम्मान मिले तो वह रुचि पूर्वक इस कार्य को संभाल भी लेगी.. क्योंकि घर परिवार तो उसका कार्य क्षेत्र है ही। विचार क्रांति अभियान के प्रेरक मार्गदर्शक सूत्र हमारे पास हैं ही, बस हमें इस युग निर्माण मिशन का एक पुर्जा बनने के लिये समर्पित होना पड़ेगा। यदि पुरूष भी इस व्यवस्था के निर्माण में सहयोग करेंगे तो काम आसान हो जाएगा... ठीक है ..?
बोलिए युगावतार महाकाल की .... जय !
अब रीढ़ सीधी करके बैठें। संकल्प सूत्र बाएं हाथ में लेकर दाहिने हाथ से उसे ढंक लें। अपने इष्ट आराध्य का ध्यान करें तथा जीवन को निश्चित मर्यादाओं के अनुसार चलाने, अनीति को त्यागने और ईश्वरीय अनुशासन को जीवन में सहज स्वीकार करने के प्रतीक रूप में सूत्र दोहराते चलें --
ॐ मर्यादाम् चरिष्यामि.... ॐ वर्ज्यम् नो चरिष्यामि...., ॐ ईशानुशासनम् स्वीकरोमि।
अब दोनों हाथ जोड़़कर श्रद्घापूर्वक यह प्रार्थना दोहराएं- हे महाकाल.. उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए, अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए, हमें उपयुक्त शक्ति -- मनोवृत्ति तथा प्रेरणा दें। हे प्रभु.. हमारे संकल्प पूरे हों, हम सुख सौभाग्य, श्रेय पुण्य तथा आपकी कृपा के अधिकारी बनें। आपसे दिव्य अनुदान पाने तथा उन्हें जन- जन तक पहुचाने की हमारी पात्रता बढ़ती रहे।
बोलिए युगावतार महाकाल की जय !
कलश पूजनम् --
सत्कर्मों और शुभेच्छाओं की सफलता का यही सूत्र है, कि कर्त्ता को अच्छी तरह से सोच समझकर, पर्याप्त अध्ययन करके कार्य का प्रारंभ करना होता है। जब कर्त्ता पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपनी सारी शक्ति लगा देता है। तब उसके निष्ठापूर्ण प्रयासों से प्रभावित होकर ईश्वरीय शक्तियां भी सहयोग के लिए आगे आती हैं।
अतः अब देव आवाहन हेतु हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करें- हे देव हमारी श्रद्घा को निखारें, सत्कार्य करने की हमारी प्रवृत्ति उभरे। हे देव भिन्न- भिन्न स्वभावों व योग्यताओं को सत्कर्मों के लिए एकजुट होना सिखाएं।
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च संहिताः सर्वे, कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति- पुष्टिकरी सदा॥
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणः प्रतिष्ठिताः।
शिवः स्वयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः॥
आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि, यतः कामफलप्रदाः॥
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं, कर्तुमीहे जलोद्भव ।।
सान्निध्यं कुरु मे देव ! प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
गुरु वंदना --
परमात्मा सर्व व्यापी, सर्व शक्तिमान सत्ता है। उसी का मार्ग दर्शन, हमें अपने जीवन में सद्गुरू के रूप में प्राप्त होता है। युग ऋषि के रूप में, हमारी गुरूसत्ता ने इस युग की त्रासदी को दूर करने के लिए ही, हमें इस युग निर्माण मिशन से जोड़ा हैै। ताकि हम इसमें सहभागी बनकर, अपना जीवन सफल कर सकें।
अब प्रतिनिधी श्रद्घापूर्वक, पूज्य गुरूदेव एवं वंदनीया माताजी का देव मंच पर आह्वान करें। सभी हाथ जोड़कर मंत्रोच्चार के साथ, यह प्रार्थना करें, हे परम- कृपालू हमें मार्ग दर्शन व सहयोग देने के लिए अपनी उपस्थिति का बोध बराबर कराते रहें, हमें भटकने ना दें, जगाते रहें, बढ़ाते रहें...
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चरा चरम्।
तत्पदं दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्ग दर्शिका।
नमोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्घा प्रज्ञा युता चया॥
ॐ श्री गुरुवे नमः आवाहयामि, स्थापयामि पूजयामि।
अक्षत् पुष्प मंच पर समर्पित कर प्रणाम करें।
पंचमोपचार पूजनम् --
प्रतिनिधी देवपूजन करें व सभी लोग हाथ जोड़कर, भाव पूर्वक प्रार्थना करें -- हे देव, जल के रूप में हमारी श्रद्घा को स्वीकार करें। हे देव, गंध- अक्षत् के रूप में हमारे सत्कर�
एक व्यक्ति जो सुधार की आवश्यकता अनुभव करेगा, उसी के माध्यम से सुधार की प्रक्रिया चल सकती है। किन्तु यह प्रक्रिया इतनी आसान भी नहीं है क्योंकि परिवार का हर सदस्य अपने पूर्व जन्म के स्वभाव और संस्कारों को लेकर पैदा होता है। ऐसे में हर किसी को संतुष्ट रखते हुए, घर में सुसंस्कारित, आध्यात्मिक और शांतिदायक वातावरण बना देना कोई आसान काम नही है... यह तो बड़ी साधना का काम है।
नारी जन्मदात्री है, वात्सल्य, कोमलता और करूणा की मूरत है। वह एक बार जिसे अपना मान लेती है, उसके लिए सब कुछ उत्सर्ग भी कर देती है। अतः उसी से यह प्रार्थना की जाती है कि वह कृपा करके परिवार के सुव्यवस्थित संचालन का दायित्व भी ग्रहण करे... लेकिन उपरोक्त सूत्र का दूसरा चरण भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है कि मां का मस्तक ऊंचा होगा, त्याग और बलिदान से.. अर्थात् माता कहकर, सुव्यवस्था बनाने की सारी जिम्मेदारी जिस पर डाली जा रही है, वह इस काम को सहर्ष और गर्व के साथ करे। इसके लिए यह जरूरी है कि अन्य लोग भी उसके समर्थन में कुछ त्याग और बलिदान करें।
अगले दिनों नारी शताब्दी का नव निर्माण संभव कर सकने में देश के पुरूषों का जहां उदार सहयोग अपेक्षित है, वहां यह भी आवश्यक है कि उस आंदोलन का नेतृत्व संभालने के लिये मनस्वी महिलाएं अग्रिम पंक्ति में आएं। आंदोलन को पुरूषों का सहयोग तो चाहिए ही कि वे नारी को समय, साधन, सहयोग और प्रोत्सिन प्रदान करें। पर साथ ही यह उससे भी अधिक आवश्यक है कि नारी जागरण का नेतृत्व समर्थ महिलाएं संभालें। आवश्यक है कि महिलाओं की अपनी छोटी- बड़ी मंडलियां बनें और घर- घर में प्रवेश करें.. संगठन खड़ा करें। वातावरण बनाए और ऐसे अनेकानेक कार्यक्रमों को चलाएं, जिससे युग संगठनों के अति महत्त्वपूर्ण नेतृत्व का श्रेय उन्हें ही हस्तांतरित हो सके...
-श्रीराम शर्मा आचार्य
बढ़ते आंसुओं का सैलाब
पूज्य गुरुदेव ने कहा है, नारी प्रगति की भारी संभावनाएं हैं। अगले दिनों उन्हें प्रत्येक महत्त्वपूर्ण प्रसंग में आरक्षण मिलने जा रहा है... नए प्रसंग बन रहे हैं। इन लाभों को उठाने के लिए आवश्यक है कि नारी सुयोग्य और समर्थ बने..
अनेक प्रतिगामिताएं विषाणुओं की तरह दुर्बल शरीर पर सफलतापूर्वक चढ़ दौड़ती हैं। इन त्रासों से भी उन्हें बचाने के उपाय करना चाहिए। विचारशीलों द्वारा उन्हें इतना सक्षम, समर्थ एवं सुयोग्य बनाया जाना चाहिए कि वे गुण दोषों की कसौटी पर कसकर ही किसी मान्यता अथवा चलन को अपनाएं..
नारी एक शक्ति है। आज यदि वह कामनाओं को उकसाने वाली अथवा रूढ़ि़वादी है तो उसे जगाकर, आत्मबोध कराना पुरूषों के भी हित में है। यदि आज वह प्रतिगामिता का कारण कहलाती है, तो कल वह पुनः प्रगति का माध्यम भी बन सकती है। नारी जागरण आन्दोलन को पुरूषों का सहयोग तो चाहिए ही.. किन्तु उससे अधिक आवश्यक है कि समर्थ महिलाएं स्वतः आगे आकर समूहबद्घ होकर इस दिशा में सक्रीय हों। इस महान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ऐसे दीपयज्ञों का आयोजन जगह- जगह पर हो। अधिक से अधिक महिला मंडल बनाकर उन्हें सक्रीय किया जाए।
प्रारंभिक व्यवस्था --
जिस क्षेत्र में नारी जागरण दीपयज्ञ रखना है, पहले उस क्षेत्र की प्रमुख महिलाओं और पुरूषों से यक्तिगत सम्पर्क बनाकर, उन्हें महिला मंडल की स्थापना की प्रेरणा दी जाए। यदि यज्ञीय आयोजनों में इसे करना है, तो अनुयाज के रूप में... महिला मंडल की स्थापना एवं सुसंचालन के लिए क्षेत्र के सक्रीय संगठित समूह को जिम्मेदारी सौंपी जाए। आयोजन की शेष तैयारी अन्य दीपयज्ञों की तरह ही की जाए। स्वयं सेवकों को उनके दायित्व समझा दिए जाएं।
प्रेरणा --
भाइयों और बहनों..., इसके पहले कि हम आज का यह यज्ञीय कार्यक्रम शुरू करें, हम इस मंच से आप सभी का स्वागत करते हैं।
मित्रों, हमारा दिन समस्याओं को लेकर ही आता है और रात सोने के पूर्व तक हम उन्हीं से जूझते रहते हैं। बीच में कभी खाना- पीना हो जाता है, कभी लोगों से भेंट मुलाकात हो जाती है, कभी कोई मनोरंजन का प्रयास कर लेता है... लेकिन हमारी समस्याएं बनी ही रहती हैं। कभी हक की और कभी चाहत की लड़ाई हम लड़ते ही रहते हैं। हमें संघर्ष के संतोषजनक परिणाम चाहिए, तो हमारे मन में यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि हम चाहते क्या हैं, क्योंकि हमारे पास समय कम है और हमारे साधन भी सीमित हैं। पैसा, प्यार, अच्छा स्वास्थ्य, मान- सम्मान... एक मिलता है तो दूसरा छूटता है.. और हम परेशान होते रहते हैं। हमारी यह परेशानी दूर होनी चाहिए...
हम अच्छा चाहते तो हैं, मगर कर नही पाते हैं। जब से भोगवाद और प्रत्यक्षवाद बढ़ा है, ईश्वरीय व्यवस्था और कर्मफल सिद्घांत पर से लोगों की आस्था कम होते गई है। इसी का यह परिणाम निकल रहा है कि हर आदमी भीतर से अपने आपको उदास, हताश, अकेला और असहाय महसूस कर रहा है।
आप सभी नारी जागरण दीपयज्ञ में आए हैं। अनेक धर्मों और पंथों में 21वीं सदी को नारी शक्ति प्रधान कहा गया है। कहा गया है कि इन दिनों नारी अपनी सम्पूर्ण सृजन शक्ति के साथ खड़ी होगी और सारे व्यवस्था तंत्र को सुधारने का महत्त्वपूर्ण कार्य भी करेगी।
एक सीधी सी बात है कि लोग सुख से रह सकें, इसके लिए पहले वह जगह ठीक होनी चाहिए जहां वे रहते हैं... यह जगह है हमारा घर- परिवार। हम अपना विरोध करने वाली भीड़ को तो रोक नही सकते.. मगर उस भीड़ के एक- एक आदमी को अलग- अलग रोका जा सकता है और हमारा एक- एक विरोधी हमारा सहयोगी भी बन सकता है। यह काम नारी शक्ति ही कर सकती है।
जिस प्रकार ईश्वर कोई पत्थर की मूरत नही है, वैसे ही नारी भी कोई औरत का शरीर मात्र नही है... यह हमें याद रखना होगा। हो सकता है ईश्वरीय शक्ति का अनुभव अब तक आपने ना किया हो, परन्तु किसी ना किसी नारी का निश्छल प्रेम कभी ना कभी तो अनुभव किया ही होगा। जरा उस प्रसंग को पुनः याद तो करें... उस क्षण को पुनः जी लेने की कितनी तमन्ना है दिल में ?? सोचो ऐसे पल जीवन में बार- बार आते रहें तब ?? पैसे से उन पलों को खरीदा नही जा सकता। आज लोगों ने बस पैसे को ही भगवान बना डाला है। पैसे से ना प्यार मिल सकता है, ना दोस्त मिल सकते हैं, ना ही परिवार।
आज जिस तरह पैसे ने ईश्वर की जगह ले ली है, वैसे ही नारी की जगह अप्सराओं या परियों ने ले ली है। जैसे पत्थर पूजने से कुछ हासिल नही होता, वैसे ही अप्सरा या परी को पा लेने से भी कुछ हासिल नही हो पाता। घर की नारी सुंदर हो यह तो ठीक है, मगर सौंदर्य क्या.. मोटे- पतले और गोरे- काले से होगा ?? आपने देखा है ना लोग बड़ा 36 गुण मिलाकर, बढ़ि़या ब्यूटी पार्लर जाने वाली को ब्याह कर लाते हैं, पर होता क्या है ?? ये घर- घर की कहानी है, आप जानते हैं। नही मित्रों, नारी याने अप्सरा नही.. नारी याने एक कोमल, सुखद, जीवनदायी स्पर्श है। कभी वह बहन के रूप में, कभी मां के रूप में कभी पत्नी या सहयोगी के रूप में, तो कभी अनजान अपरिचित देवी के रूप में भी हमें प्राप्त होती है। उसे ही हम याद करते हैं, उससे प्रेरणा प्रोत्साहन पाते हैं।
सोचकर देखें एक मां हमें इतना प्यार करती है... अगर दुनिया की हर औरत हमारी मां हो जाए तब ?? एक बार कल्पना करके तो देखिये... इतनी सारी माताएं, इतनी सारी बहनें, इतने सारे भाई हमारे हो जाएं तो ?? जो भी मिले भाई सा प्रेम व सहयोग करे। हर महिला हमारी मां और बहन के जैसे हमारा ख्याल रखे तो ?... हां, यह हकीकत हो सकती है.. इस देश में पहले भी ऐसा होता रहा था और आज तो प्रेम, सेवा, सहयोग एवं विश्वास की और भी जरूरत है।
नारी ये सब स्थितियां लाने में सक्षम है। किसी नारी द्वारा कहा गया एक शब्द आपको जिंदगी भर, हृदय में कांटे की तरह चुभ सकता है.. आपको पागल बना सकता है। लेकिन जिस नारी का व्यवहार आपको भा जाए, उसके लिए आप कभी भी कुछ भी कर देने को तैयार हो जाते हैं... इतनी ताकत है नारी में। अच्छा.. आप क्या सोचते हैं ?? जीवन में लोगों को किस चीज की जरूरत है ..? प्रायः लोग गाड़ी, बंगला और अच्छे बैंक बैलेंस के पीछे ही भागते नजर आते हैं... पर जिनके पास ये सब है, उनसे पूछ कर देखिए। उन्हें सिर्फ तीन चीजों की जरूरत है... स्वस्थ शरीर.., प्यार से बातें करने वाली, सहयोग करने वाली कोई महिला और टेंशन रहित जीवन। ये सब चीजें नारी चाहे तो वैसे ही दिला सकती है, इसके लिये करोड़पति बनना जरूरी नही होता।
भगवान जब भी धरती पर आए हैं, अनीति अनाचार को दूर करके व्यवस्थाओं को सुधारने और सत्कर्मों की प्रेरणा देने के लिए ही आए हैं। नारी में भी ये गुण पैदायशी तौर पर होते हैं। आज जितनी भी सुख शांति दुनिया में दिख रही है, उसका कारण नारी के यही सतगुण हैं और जितनी भी दुरावस्था है वह भी इसीलिये है कि नारी ने अपने इन वास्तविक गुणों को छोड़कर, लोगों की देखा- देखी अन्य तरह की सोच अपना ली है... और वैसे ही जीने लगी है।
हमें इस सच्चाई को समझना होगा और स्वीकार करना होगा कि पुरूष वर्ग जो भी कार्य करते देखा जाता है, उसके पीछे उसके भीतर निहित सोच, विशेष तरह के संस्कार और उसके पारिवारिक परिवेश की प्रेरणा ही वास्तव में कार्य करती है। इस पर गहराई से चिंतन करने पर आप पाएंगे कि पुरूषों की सोच, संस्कार और प्रेरणा के पीछे कारण, उस घर की नारी शक्ति के क्रिया कलाप ही होते हैं। यही बात महिलाओं पर भी लागू होती है। भाई, पति, पिता या गुरु के माध्यम से भी उन्हें जो मार्गदर्शन प्रेरणा मिलती है, उस पर उनकी माताओं की छाप होती है। याने व्यक्तित्व महिला का बने या पुरूष का उसको ढालने वाली शक्ति नारी की ही होती है।
माताएं तो कोख में भी बच्चों को सत्प्रेरणाएं दे सकती हैं और यदि वे ऐसा कुछ नही सिखा सकतीं तो फिर इंसान को जहां से भी, जैसी भी प्रेरणा मिलेगी, वह वैसे ही कार्य करता जाएगा। प्रेरणाएं किस प्रकार दी जाएं कि वे प्रभावी हों, ये अलग विषय है किन्तु बिना प्रेरणा के कुछ नही होता। ये तो सीधा- साधा गणित है।
मां बच्चे के साथ ही रहती है, उसे गोद में सुलाती है, सीने से लगाती है। कदम- कदम पर उसकी मदद करते रहती है तो स्वाभाविक रूप से बच्चे के हृदय में भी उसके प्रति सघन आत्मीयता और प्रेम रहता है। स्वाभाविक सादगी से युक्त ऐसा सेवा भावी व्यवहार कोई भी करे, उसके प्रति हृदय में श्रद्घा भाव जागते ही हैं। नारी अपने मूल स्वभाव में ऐसी ही सेवा भावी और कल्याणकारी होती है और यही उसकी विजयी शक्ति भी है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से कार्य करती है। उसकी इसी प्रतिभा का कम हो जाना आज हमारी चिंता का विषय है... क्योंकि उसकी यही शक्ति इंसान की सोच और उसके व्यवहार को अच्छा बना सकती है। इंसान को छल, कपट, चोरी, धोखेबाजी जैसे बुरे काम करने सेरोक सकती है। आप कल्पना करिये, यदि हमारे बच्चे कभी हमें धोखा ना दें, बहु कभी अलगाव का कारण ना बने, मित्र, सहयोगी और पड़ोसी भी हमारे लिये सुखदायी हो जाएं, लोग अपने परिवार के अलावा समाज और प्रकृति की भी चिंता करने लगें और उनकी भी सेवा करें तो फिर तो कोई समस्या ही ना रहे...
व्यक्ति जो भी काम करता है, यही सोचकर करता है कि मेरा काम ठीक है... लेकिन वह ठीक होता नही है। इसीलिये तो स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, परिवार में कलह क्लेश है, मानसिक तनाव और आर्थिक परेशानियां बढ़ती जा रही हैं। समाज में भौंडे चाल- चलन, नशाखोरी और भ्रष्टाचार बढ़ते जा रहा है, कानून व्यवस्था और पर्यावरण की स्थिति बिगड़ रही है। कुछ लोगों को उल्टा सीधा करते देख सारा समाज ही उल्टे काम करता जा रहा है। ये सब कौन रोकेगा ?? कानून से तो ये रुकने से रहा... सब देख रहे हैं परिस्थितियां और भी बिगड़ती जा रही हैं। तब एक ही तरीका बचता है, एक आखरी उपाय यही हो सकता है कि हर व्यक्ति को भीतर से ही ये प्रेरणा मिले कि वह बुरे काम ना करे। विश्वास और प्रेम से ही यह बात उसके अंदर बिठाई जा सकती है... और एक मां, एक नारी ही इस काम को स्वाभाविक रूप से कर भी सकती है। मां, भाभी, बहन, सखी या पत्नी जैसे रूपों में वही ऐसी प्रेरणा दे सकती है... अगर हम घर परिवार में इस तरह का माहौल बना सकें...
आज जिस ढंग से नारी जी रही है... जो उसकी सोच बनी हुई है, ऐसे में यह संभव नही कि वह ऐसी जिम्मेदारी उठा सके। अभी तो वह खुद ही सक्षम नही है। क्या खाना- पीना, दिनचर्या कैसे रखना, सुसंतति निर्माण, परिवार प्रबंधन तथा शरीर, मन, आत्मा जैसे विषयों का उसे ज्ञान नही है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिलाएं श्रम करके अपनी रोजी निकाल भी लेती हैं, पर शहरी क्षेत्रों में उनमे ऐसी क्षमता नही होती। आज भोगवादी प्रचार का उन पर जबरदस्त प्रभाव है, जीवन व्यवहार और आदर्शों के क्षेत्र में उसकी अनेक गलतफहमियाँ हैं... जिन्हें दूर किया जाना है। तभी इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि वह अपने पारिवारिक, सामाजिक और युग दायित्व का निर्वाह उचित ढंग से कर सकेगी।
यह नारी जागरण दीपयज्ञ कोई महिलाओं का ही कार्यक्रम नही है। जिस कार्यक्रम से परिवार, समाज और सारे राष्ट्र् का हित जुड़ा हुआ है, वह तो सब का सांझा दायित्व है। बल्कि नारी जागरण कार्यक्रम को तो पुरूषों के हित का कार्यक्रम कहना चाहिए... क्योंकि महिलाएं अगर स्वस्थ, समझदार, सहयोगी, सादगी पसंद, मितव्ययी, अच्छी माता, अच्छी पत्नी आदि नहीं बन सकेंगी, तो इससे सबसे ज्यादा नुकसान तो पुरूषों का ही है। वे कभी भी चैन से रह नही सकेंगे और उनकी स्वतः की शक्ति का भी सही सदुपयोग नही हो पाएगा।
बड़े- बड़े ज्ञानी लोग बैठे हैं.., प्रवचनकर्त्ता बैठे हैं, सरकारें भी बड़ी- बड़ी घोषणाएं करते रहती हैं, पर लोक व्यवहार बिगड़ते ही जा रहा है। होगा तो वही, जो लोग चाहेंगे। इसीलिये हमारे पूर्वज ऋषियों ने समाज को दिशा और प्रेरणा देने के उद्देश्य से स्वाध्याय सत्संग की व्यवस्था की, गुरुकुल बनाए, पर्वो और संस्कारों की व्यवस्थित परम्पराएं बनाई। साथ ही वातावरण को भी अनुकूल करने, उसमें दैवी सहयोग का आवाहन करने और व्यक्ति को भीतर से बदलने के लिये उसे संकल्पित करने की व्यवस्था भी की थी। यह पूर्ण प्रक्रिया विशिष्ट आध्यात्मिक प्रयोगों के माध्यम से पूर्ण की जाती थी जिन्हें यज्ञ कहते हैं।
आज का यह नारी जागरण दीपयज्ञ भी माता भगवती की प्रेरणा एवं पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के निर्देशानुसार ही आयोजित किया गया है। तो आइये युग शक्ति मां गायत्री की जयकार के साथ इस यज्ञ का शुभारंभ करते हैं। बोलिए युगावतार महाकाल की .... जय !
अब समवेत स्वर में गायत्री महामंत्र का उच्चारण करें।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
मंगलाचरणम् --
परिवर्तन कहने सुनने मात्र से नही हो जाते। अच्छे कार्यो के लिए भीतर से.. हृदय से संकल्प उभरना चाहिए। हृदय में श्रद्घा और विश्वास जागे तो संकल्पों को बल भी मिलता है। इसी उद्देश्य से, इस यज्ञ में पहले देव शक्तियों का आवाहन पूजन करेंगे.. और फिर उनकी साक्षी में नारी शक्ति के जागरण का, महिला मंडलों के गठन का संकल्प लिया जाएगा।
आप बहुत बड़ा कार्य करने जा रहे हैं.. इस महान ऐतिहासिक कार्य के लिए ईश्वर ने आपका चुनाव करके आपको यहां तक भेजा है, यही सच्चाई है। अतः सर्वप्रथम आपकी सहभागिता का स्वागत किया जा रहा है...
(स्वयं सेवक उपस्थित परिजनों पर अक्षत पुष्प का सिंचन करें)
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवा, भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरै रंगै स्तुष्टुवा , स्वस्तनुर्भिः व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
पवित्रीकरणम् --
यह एक सच्चाई है कि जो भीतर होता है, वही बाहर आता है। व्यक्ति वैसे ही वातावरण को पसंद भी करता है और मौका पाते ही काम भी वैसे ही कर जाता है। इसलिये व्यक्ति का अंतःकरण शुद्घ पवित्र होना जरूरी है। नारी जागरण के पुनीत कार्यो में हमें ईश्वरीय सहयोग भी चाहिए। ईश्वर को तो सादगी, पवित्रता और शुद्घता ही पसंद है तो हमें भी अंतःकरण में पवित्रता धारण करने और उसे बनाए रखने का सतत् प्रयास करना होगा।
अप्राकृतिक रहन- सहन, दुष्चिंतन, पाश्विक आहार- विहार का त्याग करके, जीवन में शुद्घता, सद्चिंतन और संयम का अभ्यास करना होगा... तभी ईश्वरीय शक्तियां हमें सहयोग करेंगी, इस तथ्य पर विश्वास करें।
अब स्वयं सेवक भाई बहन आप पर अभिमंत्रित जल का सिंचन कर रहे हैं। भावना करें कि इन जल बूंदों के रूप में पवित्रता की वर्षा हम पर हो रही है। मन ही मन ईश्वरीय शक्तियों को आश्वस्त करें कि हम अपने भीतर पवित्रता का संवर्धन करते रहेंगे। अब दोनों हाथ जोड़कर यह सूत्र दोहराते चलें --
(स्वयंसेवक पवित्र जल का सिंचन प्रारंभ करें)
ॐ पवित्रता मम मनः काय अंतः करणेषु संविशेत्।
सूर्यध्यान प्राणायामः --
प्राण एक चेतन शक्ति है। शुद्घ अंतःकरण से शुभ संकल्प की पूर्ति के लिए प्राण शक्ति का आवाहन करेंगे.. तभी वह अतिरिक्त प्राण हम प्राप्त कर सकेंगे। प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से अंतर्मन की बुराइयां भी जलकर भस्म हो जाती हैं। इसलिये प्राणायाम नित्य किया करें।
नित्य सूर्य का ध्यान करके गायत्री मंत्र का जाप करने से प्रतिभा प्रखर होती है। यज्ञ के पूर्व हम देव शक्तियों का आवाहन करने जा रहे हैं, तो सूर्य भगवान का ध्यान करके एक बार प्राणायाम भी करें।
सभी परिजन रीढ़ सीधी करके बैठें। लंबी श्वांस लेकर प्राण तत्व को अपने भीतर धारण करें और कुछ देर बाद श्वास छोड़ते हुए, भावना करें कि हमारे सारे पुराने दुराग्रह इसी के साथ हमसे दूर जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में सविता देवता हमारी मदद कर रहे हैं।
ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परासुव
यदभद्रं तन्न आसुव॥
चंदन धारणम् --
समाज में नारी जागरण कार्यक्रम को शुरू करने, इतने सारे भाई बहन एकत्र हुए हैं। सभी एक महान लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सहकर्मी बन रहे हैं, तो सभी एक दूसरे का सम्मान करेंगे। व्यक्ति के विचारों का सम्मान ही व्यक्ति का सम्मान होता है।
सभी अपनी अनामिका उंगली पर रोली लें। मन ही मन ईश्वर से कहें कि हम इतना बड़ा कार्य करने जा रहे हैं, तो हमारे मस्तिष्क को आप शांत शीतल बनाए रखना। ऐसा ना हो कि साथ- साथ काम करते हुए हम उत्तेजना और आवेश में आकर एक दूसरे का अपमान कर बैठें। हे भगवान हमें सन्मार्ग दिखाना ताकि कोई गलत काम हमसे ना हो, जिसके लिये हमें चार लोगों के बीच सिर झुकाकर रहना पड़े। इसी भाव के साथ यह सूत्र दोहराएं। कहिए --
ॐ मस्तिष्कं शान्तम् भूयात.... ॐ अनुचितः आवेशः मा भूयात.... ॐ शीर्षम् उन्नतं भूयात्।
अब गायत्री मंत्र कहते हुए एक दूसरे का तिलक करें।
संकल्प सूत्र धारणम् --
नारी जागरण कार्यक्रम से हमारी समस्त समस्याओं का समाधान संभव है। इस कार्यक्रम में अनेक रूकावटें भी हैं। इन्हें दूर करने के लिये हमें जागरूक रहकर सतत् संघर्ष भी करना पड़ेगा। इसी बात का संकल्प अभी हम लोग लेंगे। आपको संकल्प सूत्र या कलावा दिया जा रहा है, उसे अभी हाथ में ही रखिये और संकल्प के लिए पहले अपनी भावभूमि बना लीजिए... (स्वयंसेवक सूत्र बांट दें)
सच्चाई तो यही है कि केवल दीपयज्ञ का कर्मकाण्ड भर कर लेने से कुछ नही होगा। हमारी सोच, कार्यशैली और सम्पूर्ण जीवन पद्घति, जब तक हम स्वयं नही बदलेंगे.. बात नही बनेगी। हमारे साहस, आस्था, विश्वास और संकल्प की शक्ति इस परिवर्तन को सफल बनाए, इसी उद्देश्य से तो यह दीपयज्ञ किया जा रहा है। दैवी शक्तियों का सहयोग पाने के लिये हमें आज यह संकल्प लेना चाहिए कि हम नारी को गरिमामय और जन श्रद्घा का केंद्र बनाने की दिशा में कार्य करेंगे। पहले अज्ञान और पिछड़ेपन ने उसकी दुर्दशा की थी.. आज आधुनिकता के नाम पर वह ठगी जा रही है। फर्क कुछ नही पड़ रहा, ना उसकी दशा सुधरी है, ना समाज की।
इस तथाकथित प्रगतिशीलता और भोगवाद में हमारी स्वावलंबी जीवन शैली ही समाप्त हो गई है और हम आत्मीय संबंधियों के अभाव में मानसिक तनावों से ग्रस्त जैसे- तैसे दिन काटने को मजबूर हो गए हैं। मित्रों, एक- एक समस्या का अलग- अलग समाधान ढूँढ़ना पत्तों को पानी देने की तरह ही निरर्थक है। सही समाधान यही है कि हम अपनी सोच, अपनी जीवन शैली और संस्कारों को ठीक करने की व्यवस्था बनाएं। यह ठीक होगा परिवार व्यवस्था को ठीक करके, लेकिन परिवार तभी ठीक होगा, जब नारी इसकी जिम्मेदारी उठाएगी।
हमें नारी को समर्थ बनाने तथा परिवार एवं समाज की व्यवस्था सुधारने के लिये छोटे- छोटे शक्ति केन्द्र महिला मंडलों के रूप में स्थापित करने हैं। समुचित मार्गदर्शन, सहयोग व प्रेरक सम्मान मिले तो वह रुचि पूर्वक इस कार्य को संभाल भी लेगी.. क्योंकि घर परिवार तो उसका कार्य क्षेत्र है ही। विचार क्रांति अभियान के प्रेरक मार्गदर्शक सूत्र हमारे पास हैं ही, बस हमें इस युग निर्माण मिशन का एक पुर्जा बनने के लिये समर्पित होना पड़ेगा। यदि पुरूष भी इस व्यवस्था के निर्माण में सहयोग करेंगे तो काम आसान हो जाएगा... ठीक है ..?
बोलिए युगावतार महाकाल की .... जय !
अब रीढ़ सीधी करके बैठें। संकल्प सूत्र बाएं हाथ में लेकर दाहिने हाथ से उसे ढंक लें। अपने इष्ट आराध्य का ध्यान करें तथा जीवन को निश्चित मर्यादाओं के अनुसार चलाने, अनीति को त्यागने और ईश्वरीय अनुशासन को जीवन में सहज स्वीकार करने के प्रतीक रूप में सूत्र दोहराते चलें --
ॐ मर्यादाम् चरिष्यामि.... ॐ वर्ज्यम् नो चरिष्यामि...., ॐ ईशानुशासनम् स्वीकरोमि।
अब दोनों हाथ जोड़़कर श्रद्घापूर्वक यह प्रार्थना दोहराएं- हे महाकाल.. उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए, अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए, हमें उपयुक्त शक्ति -- मनोवृत्ति तथा प्रेरणा दें। हे प्रभु.. हमारे संकल्प पूरे हों, हम सुख सौभाग्य, श्रेय पुण्य तथा आपकी कृपा के अधिकारी बनें। आपसे दिव्य अनुदान पाने तथा उन्हें जन- जन तक पहुचाने की हमारी पात्रता बढ़ती रहे।
बोलिए युगावतार महाकाल की जय !
कलश पूजनम् --
सत्कर्मों और शुभेच्छाओं की सफलता का यही सूत्र है, कि कर्त्ता को अच्छी तरह से सोच समझकर, पर्याप्त अध्ययन करके कार्य का प्रारंभ करना होता है। जब कर्त्ता पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपनी सारी शक्ति लगा देता है। तब उसके निष्ठापूर्ण प्रयासों से प्रभावित होकर ईश्वरीय शक्तियां भी सहयोग के लिए आगे आती हैं।
अतः अब देव आवाहन हेतु हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करें- हे देव हमारी श्रद्घा को निखारें, सत्कार्य करने की हमारी प्रवृत्ति उभरे। हे देव भिन्न- भिन्न स्वभावों व योग्यताओं को सत्कर्मों के लिए एकजुट होना सिखाएं।
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च संहिताः सर्वे, कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति- पुष्टिकरी सदा॥
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणः प्रतिष्ठिताः।
शिवः स्वयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः॥
आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि, यतः कामफलप्रदाः॥
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं, कर्तुमीहे जलोद्भव ।।
सान्निध्यं कुरु मे देव ! प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
गुरु वंदना --
परमात्मा सर्व व्यापी, सर्व शक्तिमान सत्ता है। उसी का मार्ग दर्शन, हमें अपने जीवन में सद्गुरू के रूप में प्राप्त होता है। युग ऋषि के रूप में, हमारी गुरूसत्ता ने इस युग की त्रासदी को दूर करने के लिए ही, हमें इस युग निर्माण मिशन से जोड़ा हैै। ताकि हम इसमें सहभागी बनकर, अपना जीवन सफल कर सकें।
अब प्रतिनिधी श्रद्घापूर्वक, पूज्य गुरूदेव एवं वंदनीया माताजी का देव मंच पर आह्वान करें। सभी हाथ जोड़कर मंत्रोच्चार के साथ, यह प्रार्थना करें, हे परम- कृपालू हमें मार्ग दर्शन व सहयोग देने के लिए अपनी उपस्थिति का बोध बराबर कराते रहें, हमें भटकने ना दें, जगाते रहें, बढ़ाते रहें...
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चरा चरम्।
तत्पदं दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्ग दर्शिका।
नमोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्घा प्रज्ञा युता चया॥
ॐ श्री गुरुवे नमः आवाहयामि, स्थापयामि पूजयामि।
अक्षत् पुष्प मंच पर समर्पित कर प्रणाम करें।
पंचमोपचार पूजनम् --
प्रतिनिधी देवपूजन करें व सभी लोग हाथ जोड़कर, भाव पूर्वक प्रार्थना करें -- हे देव, जल के रूप में हमारी श्रद्घा को स्वीकार करें। हे देव, गंध- अक्षत् के रूप में हमारे सत्कर�