Sunday 07, December 2025
कृष्ण पक्ष तृतीया, पौष 2025
पंचांग 07/12/2025 • December 07, 2025
पौष कृष्ण पक्ष तृतीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), मार्गशीर्ष | तृतीया तिथि 06:25 PM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र पुनर्वसु 04:11 AM तक उपरांत पुष्य | शुक्ल योग 08:07 PM तक, उसके बाद ब्रह्म योग | करण वणिज 07:51 AM तक, बाद विष्टि 06:25 PM तक, बाद बव 05:09 AM तक, बाद बालव |
दिसम्बर 07 रविवार को राहु 03:56 PM से 05:12 PM तक है | 10:38 PM तक चन्द्रमा मिथुन उपरांत कर्क राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:04 AM सूर्यास्त 5:13 PM चन्द्रोदय 7:48 PM चन्द्रास्त10:22 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष तृतीया
- Dec 06 09:25 PM – Dec 07 06:25 PM - कृष्ण पक्ष चतुर्थी
- Dec 07 06:25 PM – Dec 08 04:03 PM
नक्षत्र
- पुनर्वसु - Dec 07 06:13 AM – Dec 08 04:11 AM
- पुष्य - Dec 08 04:11 AM – Dec 09 02:52 AM
वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्त्तव्य मार्ग पर डट जावें | Vah Shakti Hame Do Dayanidhe
अमृत सन्देश:- गायत्री परिवार क्या हेँ ?। Gayatri Pariwar kya Hai ?
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! शांतिकुंज दर्शन 07 December 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! सप्त ऋषि मंदिर गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 07 December 2025 !!
!! महाकाल महादेव मंदिर शांतिकुञ्ज हरिद्वार 07 December 2025 !!
!! अखण्ड दीपक #Akhand_Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 07 December 2025 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 07 December 2025 !!
!! प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर #Prageshwar_Mahadev 07 December 2025 !!
!! #गायत्री_माता_मंदिर #Gayatri_Mata_Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 07 December 2025 !!
!! देवात्मा हिमालय मंदिर Devatma Himalaya Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 07 December 2025 !!
अमृतवाणी:- अन्त सोचोंगे तो जीवन सुधरेगा परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
सायंकाल तक के, सोते समय तक के, सारे के सारे कार्यविधि का निर्धारण आप कर लेते हैं, तो समझना चाहिए कि आपको फिर उन खुराफ़ातों से बचत हो जाएगी, जो कि आप व्यस्त जीवन के अभाव में करते रहते हैं।
जो आदमी व्यस्त है, वह आदमी एक निर्धारित लक्ष्य में रह लेगा।
जो आदमी खाली है — शरीर से खाली है, उसका दिमाग खाली है — और दिमाग खाली होना शैतान की दुकान है।
इसीलिए, शैतान की दुकान आपका दिमाग न होने पाए और आपका शरीर खाली होने की वजह से दुष्प्रवृत्तियों में न लगने पाए। इसलिए बहुत अधिक आवश्यक यह है कि आप व्यस्तता का बराबर टाइम-टेबल और कार्यक्रम सवेरे बना लें।
उस पर चलें — न केवल बना लें, बल्कि यह भी ध्यान रखें हर समय कि जो सवेरे कार्यपद्धति बनाई गई थी, वह ठीक तरीके से पूरी होती है कि नहीं।
विश्राम भी रखें। यह कोई नहीं कहता कि विश्राम नहीं रखना चाहिए।
लेकिन विश्राम भी एक समय से होना चाहिए, टाइम से होना चाहिए, विधि से होना चाहिए।
चाहे जब ज़रा सा काम किया, फिर विश्राम।
ज़रा सा काम किया, फिर विश्राम।
ऐसे काम होते हैं क्या?
काम करने की शैली — कर्मयोग।
कर्मयोग को अगर आप अपने ज्ञानयोग में मिला दें, संध्या-वंदन में मिला दें, सारे दिनचर्या को आप भगवान का सौंपा हुआ कर्म मानकर चलें — फिर बस समझिए कि आपकी प्रातःकाल की संध्या पूर्ण हो गई।
अब सायंकाल की संध्या का नंबर आ गया।
आप सायंकाल की संध्या उस समय किया करें जबकि आप रात को सोया करें।
कभी तो सोएँगे ही।
छह बजे सोएँ तो क्या, नौ बजे सोएँ तो क्या, और बारह बजे सोएँ तो क्या — कहीं सोएँ, सोना तो है ही!
जब सोएँगे, तो यह बात भी सही है कि आप नींद की गोदी में अकेले जाएँगे।
ठीक है, बच्चे बगल में सोते हैं तो क्या, और कोई और आपके बगल में सोता है तो क्या — पर नींद तो आपको अकेले को आएगी न!
दो को तो एक साथ नहीं आ सकती।
आप सवेरे उठेंगे, तो अकेले उठेंगे न?
दो तो एक साथ नहीं उठ सकते।
यह आपका एकांत जीवन है।
सायंकाल को, सोते समय, आप उस एकांत जीवन में स्थित रहकर विचार किया कीजिए कि हमारे जीवन का अब समाप्ति का समय आ गया। अंत आ गया।
अंत को लोग भूल जाते हैं।
आदि को भी भूल जाते हैं।
और अंत को भी भूल जाते हैं।
बस मध्य में ही उलझे रहते हैं।
आदि — यह था कि मनुष्य जीवन का सौभाग्य और उसके जीवन को ठीक तरीके से उपयोग करने का निर्धारण। यह था आदि।
और अंत — अंत वह है जिसमें भगवान के दरवाज़े पर जाना ही पड़ेगा।
भगवान की कचहरी में आपको पेश होना ही होगा।
उससे कोई बचत नहीं हो सकती।
आपको भी दूसरों की तरह मरना ही पड़ेगा और मरना ही चाहिए।
यह हो ही नहीं सकता कि आपके मरने का कोई दिन न आए।
ज़रूर आएगा, अब ज़रूर आएगा — निश्चित रखिए।
जब आपका मरने का दिन आएगा, तो फिर क्या होगा?
तब आपको यहाँ से जाने के बाद, सीधे भगवान के दरबार में जाना पड़ेगा।
और सिर्फ एक बात का जवाब देना पड़ेगा —
कि आपने इस जिंदगी का कैसे इस्तेमाल किया?
परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
ईश्वर ने जब सब प्रकार के जलचर, ‘नभचर’ स्थल-चर जीवों का निर्माण किया, तो उन्होंने यह सोचा कि अब किसी ऐसे जीव की सृष्टि करनी चाहिए जो मेरा स्वरूप हो, तथा इन समस्त जीवों पर नियन्त्रण रख सके। उन्होंने अपनी आकृति का एक जीव निर्माण किया, उसमें अपनी आमोघ शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों का समावेश किया, और पृथ्वी पर राज करने के निमित्त भेज दिया। यह असंख्य शक्तियों का शक्तिपिंड, जीवों का महाराजाधिराज, सृष्टि का सिर-मौर, शक्ति का अवतार, परमेश्वर का पुत्र मनुष्य ही था। ईश्वर ने मनुष्य को अपने रूप में बनाया है, उसमें अपनी समस्त शक्तियों का समावेश किया है।
ईश्वर से उत्पत्ति होने के कारण मनुष्य का संकल्प भव्य है। उत्तमोत्तम मानसिक तथा अध्यात्मिक शक्तियों की मंजूषा उसके पास है। ईश्वरत्व का प्रतिनिधि स्वरूप होकर उसने संसार पर एकछत्र राज्य किया है। बड़े से बड़े हिंसक पशुओं, भयंकर विषैले जन्तुओं पर भी मनुष्यों का राज्य है। जब आप ईश्वर के प्रतिनिधि हैं, सर्वोच्च विभूति के पुञ्ज हैं, तो आपको क्या अधिकार है कि अपने को दीन, हीन, या अभागा समझें? ईश्वर का अपमान आप नहीं कर सकते। ईश्वरत्व संसार की मृत क्रियात्मक शक्ति है। संसार में जो सबसे सत्य, सुन्दर, शिव हो सकता है, वह ईश्वरत्व के नाते आपके रग और पट्ठों में प्रवाहित है।
अपने साथ सद्व्यवहार सीखिये। आप दूसरों की भलाई चाहते हैं। अपने पुत्र की शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रसिद्ध, हितकामना के लिये आप एड़ी चोटी का पसीना एक कर देते हैं। पत्नी, पुत्री अन्य सम्बन्धियों के हितचिंता में निरन्तर निमग्न रहते उससे उत्कृष्ट हैं। दूसरों के हितचिंतन में रहना अच्छा है किन्तु मार्ग तो वह है, जिसके द्वारा आप स्वयं अपने विषय में हित चिंतन करते हैं।
दूसरों के साथ बुराई करने को आप पाप कहते हैं। इस दुर्व्यवहार को आप घृणा की दृष्टि में अवलोकित करते हैं। ठीक है। किन्तु जब आप स्वयं अपने ही विषय में निंद्य विचार रखते हैं, मेरे विचार में तो यह और भी जघन्य पाप कमाते हैं। दूसरों के साथ किये हुए पाप को संसार देखता है, पर आपको स्वयं अपने साथ किया हुआ पाप नजर नहीं आता। अंतर्दृष्टि से अन्तरात्मा उसे देखता है। वह कभी-कभी आपको धिक्कारता भी है, पर उसके निर्देशनों पर ध्यान न देने से वह क्षीण हो जाता है।
ईश्वर ने आपको उत्पन्न किया है, तो उन्होंने सम्पूर्ण विभूतियों सहित ही पृथ्वी पर भेजा है। जो कुछ कमी या निर्बलता तुम अपने अन्दर देखते हो, उसका उत्तरदायित्व स्वयं तुम्हीं पर है। उसका कारण अज्ञान और आलस्य है।
अखण्ड ज्योति 1952 जनवरी, पृष्ठ 05
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