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Wednesday 27, August 2025

शुक्ल पक्ष चतुर्थी, भाद्रपद 2025




पंचांग 27/08/2025 • August 27, 2025

भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), भाद्रपद | चतुर्थी तिथि 03:44 PM तक उपरांत पंचमी | नक्षत्र हस्त 06:04 AM तक उपरांत चित्रा | शुभ योग 12:34 PM तक, उसके बाद शुक्ल योग | करण विष्टि 03:44 PM तक, बाद बव 04:48 AM तक, बाद बालव |

अगस्त 27 बुधवार को राहु 12:18 PM से 01:54 PM तक है | 07:21 PM तक चन्द्रमा कन्या उपरांत तुला राशि पर संचार करेगा |

 

सूर्योदय 5:55 AM सूर्यास्त 6:41 PM चन्द्रोदय 9:25 AM चन्द्रास्त 8:50 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शरद 

 

  1. विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
  2. शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
  3. पूर्णिमांत - भाद्रपद
  4. अमांत - भाद्रपद

तिथि

  1. शुक्ल पक्ष चतुर्थी   - Aug 26 01:54 PM – Aug 27 03:44 PM
  2. शुक्ल पक्ष पंचमी   - Aug 27 03:44 PM – Aug 28 05:57 PM

नक्षत्र

  1. हस्त - Aug 26 03:49 AM – Aug 27 06:04 AM
  2. चित्रा - Aug 27 06:04 AM – Aug 28 08:43 AM


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घलीन लोटांगण वंदिन चरन |

घलीन लोटांगण वंदिन चरन |

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आत्मविश्वासी पर दूसरे भी विश्वास करते हैं | Aatmaviswasi Par Dusare Bhi Viswas krte Hai

आत्मविश्वासी पर दूसरे भी विश्वास करते हैं | Aatmaviswasi Par Dusare Bhi Viswas krte Hai

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गायत्री साधना के कुछ विशेष प्रयोग भाग 02 | Gayatri Sadhna Ke Kuch Vishesh Prayog Part 02

गायत्री साधना के कुछ विशेष प्रयोग भाग 02 | Gayatri Sadhna Ke Kuch Vishesh Prayog Part 02

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आकाश तत्व का उपयोग | Akash Tatva Ka Upyog

आकाश तत्व का उपयोग | Akash Tatva Ka Upyog

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अमृतवाणी:- आप हमारे कुटुम्बी हैं | Aap Hamare Kutumbi Hain | Pt Shriram Sharma Acharya

अमृतवाणी:- आप हमारे कुटुम्बी हैं | Aap Hamare Kutumbi Hain | Pt Shriram Sharma Acharya

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अमृतवाणी:- समस्याओं के समाधान | Samsyaon Ke Samadhan पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

अमृतवाणी:- समस्याओं के समाधान | Samsyaon Ke Samadhan पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन

गायत्री माता
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गायत्री माता - अखंड दीपक
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चरण पादुका
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चरण पादुका
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सजल श्रद्धा - प्रखर प्रज्ञा (समाधि स्थल)
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प्रज्ञेश्वर महादेव - देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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शिव मंदिर - शांतिकुंज
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हनुमान मंदिर - शांतिकुंज
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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)

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आज का सद्वाक्य

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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन


!! शांतिकुंज दर्शन 27 August 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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अमृतवाणी: ज्ञान और दंड धर्म स्थापना के दो स्तम्भ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश



बेटे, हमको अपनी जिंदगी में दो काम लेकर चलना पड़ेगा। आप ध्यान रखें। दो काम अगर आप लेकर के चलेंगे नहीं, तो बड़ी भारी आफत आ जाएगी। दो काम लेकर नहीं चलेंगे, तो बेटे हमारा उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता।
हमारे जिम्मे माली का काम है। माली को पौधों में पानी लगाना पड़ता है। एक — पौधों में सिंचाई करनी पड़ती है। और माली को एक और भी काम करना पड़ता है। उसका नाम है — निराई।
"ये क्या कर रहे हो साहब?"
"बाबूजी, ये क्या कर रहे हो?"
"उखाड़ रहे हैं।"
"किसको उखाड़ रहे हो?"
"इसके अंदर जो जमीन में खरपतवार इकट्ठा हो गया है, इसको हम उखाड़ भी रहे हैं।"
"और ये क्या कर रहे हैं?"
"इसको काट रहे हैं।"
"क्यों काट काहे को रहे हैं?"
"इसलिए काट रहे हैं कि हमारा पेड़ जो है, इसकी खूबसूरती लाने के लिए इसकी काट-छांट जरूरी है।"
"और ये क्या कर रहे हैं? डंडा ले के क्यों घूम रहे हैं?"
"देखो, इसलिए हम डंडा लेके घूम रहे हैं कि चिड़ियां आएंगी और उस बाग को खत्म कर देंगी। और देखो, जंगली जानवर आएंगे, खत्म कर देंगे। सूअर आएंगे, जंगली जानवर खत्म कर देंगे।"
तो आपको क्या करना पड़ेगा? खाद-पानी? हाँ बेटे, खाद-पानी। लेकिन रखवाली और गुड़ाई — ये भी जरूरी है। नहीं तो आपका बगीचा नहीं हो सकता। बगीचा नहीं हो सकता।
आज सब जगह इस तरीके से दुष्टताएं, दुष्टताएं, दुष्टताएं — चारों ओर जो फैलती चली आ रही हैं — इनको शिक्षा देकर के, और अखंड कीर्तन करा कर के, और आप रामायण की कथा सुना कर के, आप ठीक करना चाहते हैं।
अच्छा करना चाहते हैं तो आप वहाँ चले जाइए — जंगली सूअर आपके खेत में आ जाते हैं, वहाँ खड़े हो जाना और अखंड कीर्तन करना शुरू करना। और रामायण पढ़ना शुरू करना। और यह कहना — "सूअर जी भगवान हाँ, वराह जी भगवान हाँ, क्या देखिए हम आपको भगवत की कथा सुनाते हैं।"
तो सुनाइए, लेकिन आप चले जाइए। गन्ने का खेत खाइए मत। अगर गन्ने का खेत बिना खाए सूअर चला जाए, तो मैं समझता हूँ आपकी कथा कहने से सब काम हो सकते हैं। और कथा कहने से धर्म का उद्धार हो सकता है, धर्म की सेवा हो सकती है।
अगर आपको यह मालूम पड़े कि इससे काम चला नहीं, और हमको नए-नए हथियार काम में लाना पड़ा, डंडा लेकर होना पड़ा, तो समझना कि डंडा लेकर के आपको प्रत्येक क्षेत्र में खड़ा होना पड़ेगा।
अन्यथा — अन्यथा — आप जो धर्म के बीज बोना चाहते हैं, जो आप धर्म की स्थापना करना चाहते हैं, वो फल नहीं पाएंगे और फूल नहीं पाएंगे।
आपको दोनों काम करने पड़ेंगे, जैसे कि ऐसे आज जैसे समय में दूसरे ऋषियों ने किए थे। एक ऋषि का नाम था — द्रोणाचार्य।
द्रोणाचार्य थे, उनके पास दो हथियार थे। दो हथियारों को लेकर लड़ने जाते थे। आपको भी मैं दो हथियार लेकर लड़ने के लिए कहता हूँ — द्रोणाचार्य के तरीके से।
एक हाथ में वे वेद लेकर चलते थे —
"अग्रत: शत्रो वेद: पृष्ठत: शस्त्रं धनुः"
आगे-आगे वह वेदों को लेकर चलते थे, ज्ञान को लेकर चलते थे, शिक्षा को लेकर चलते थे, उपदेश को लेकर चलते थे, कथा को लेकर चलते थे, अखंड कीर्तन को लेकर चलते थे, अच्छी बातों को लेकर चलते थे।
एक चीज ये भी बड़ा हथियार है। ये किसके लिए है? यह भले आदमियों के लिए है, शरीफों के लिए है, सज्जनों के लिए है, भावनाशीलों के लिए है, हृदयवानों के लिए है। जिनके पास हृदय है, भलमनसाहत हो — उनके लिए ये हथियार बिल्कुल ठीक है। 

पं श्रीराम शर्मा आचार्य

 

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अखण्ड-ज्योति से



जिनकी आस्था दुर्बल है, उनके लिए तिल भर बोझ भी पर्वत जैसा भारी पड़ेगा। ऐसे लोगों से किस प्रकार आशा करें कि वे हमारे प्रयोजन में दो-चार कदम चलने का साथ देंगे जो हमारे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। व्यक्ति और समाज की उत्कृष्टता—साँस्कृतिक एवं भौतिक पुनरुत्थान-भावनात्मक नव निर्माण आज के युग की महानतम माँग है। प्रबुद्ध व्यक्तियों के लिए इन उत्तरदायित्वों से विमुख होना या इनकार कर सकना अशक्य है।

हमें स्वयं इसी दिशा में जिस सत्ता ने बलपूर्वक लगाया है, वह अन्यान्य भावनाशील लोगों के अन्तःकरण में भी वैसी ही प्रेरणा कर रही है और वे सच्चे आध्यात्मिक व्यक्तियों की तरह इसके लिए कटिबद्ध हो रहे हैं। पर जिन्हें यह सब कुछ व्यर्थ दीखता है, जिन्हें इतने महत्वपूर्ण कार्य में कोई आकर्षण, कोई उत्साह, कोई साहस उत्पन्न नहीं हो रहा है, उनके सम्बन्ध में हमें निराशा हो सकती है।            

अपनी तपश्चरण और ईमानदारी में कहीं कोई कमी ही होगी जिसके कारण जिन व्यक्तियों के साथ पिछले ढेरों वर्षों से सम्बन्ध बनाया, उनमें कोई आध्यात्मिक साहस उत्पन्न न हो सका। वह भजन किस काम का, जिसके फलस्वरूप आत्मनिर्माण एवं परमार्थ के लिए उत्साह उत्पन्न न हो । किन्हीं को हमने भजन में लगा भी दिया है पर उनमें भजन का प्रभाव बताने वाले उपरोक्त दो लक्षण उत्पन्न न हुए हों तो हम कैसे माने कि उन्हें सार्थक भजन करने की प्रक्रिया समझाई जा सकी? हमारा परिवार संगठन तभी सफल कहा जा सकता था जब उसमें ये सम्मिलित व्यक्ति उत्कृष्टता और आदर्शवादिता की कसौटी पर खरे सिद्ध होते चलते। अन्यथा संख्या वृद्धि की विडम्बना से झूँठा मन बहलाव करने से क्या कुछ बनेगा?

 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति अगस्त 1966 पृष्ठ 47

 

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