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Monday 18, August 2025

कृष्ण पक्ष दशमी, भाद्रपद 2025




पंचांग 18/08/2025 • August 18, 2025

भाद्रपद कृष्ण पक्ष दशमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), श्रावण | दशमी तिथि 05:22 PM तक उपरांत एकादशी | नक्षत्र म्रृगशीर्षा 02:06 AM तक उपरांत आद्रा | हर्षण योग 10:59 PM तक, उसके बाद वज्र योग | करण वणिज 06:22 AM तक, बाद विष्टि 05:23 PM तक, बाद बव 04:26 AM तक, बाद बालव |

अगस्त 18 सोमवार को राहु 07:28 AM से 09:06 AM तक है | 02:40 PM तक चन्द्रमा वृषभ उपरांत मिथुन राशि पर संचार करेगा |

 

सूर्योदय 5:50 AM सूर्यास्त 6:51 PM चन्द्रोदय12:17 AM चन्द्रास्त 3:17 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु वर्षा 

 

  1. विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
  2. शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
  3. पूर्णिमांत - भाद्रपद
  4. अमांत - श्रावण

तिथि

  1. कृष्ण पक्ष दशमी   - Aug 17 07:24 PM – Aug 18 05:22 PM
  2. कृष्ण पक्ष एकादशी   - Aug 18 05:22 PM – Aug 19 03:32 PM

नक्षत्र

  1. म्रृगशीर्षा - Aug 18 03:17 AM – Aug 19 02:06 AM
  2. आद्रा - Aug 19 02:06 AM – Aug 20 01:07 AM


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हर ओर बेचैनी व्याधियाँ एवं उद्विग्नता | इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १ | Rishi Chintan

हर ओर बेचैनी व्याधियाँ एवं उद्विग्नता | इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १ | Rishi Chintan

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अमृत सन्देश:- क्रिया और श्रद्धा का संबंध | Kriya Aur Shraddha Ka Sambdhan

अमृत सन्देश:- क्रिया और श्रद्धा का संबंध | Kriya Aur Shraddha Ka Sambdhan

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!! शांतिकुंज दर्शन 18 August 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! शांतिकुंज दर्शन 18 August 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन

गायत्री माता
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अखंड दीपक
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चरण पादुका
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सजल श्रद्धा - प्रखर प्रज्ञा (समाधि स्थल)
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प्रज्ञेश्वर महादेव - देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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शिव मंदिर - शांतिकुंज
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हनुमान मंदिर - शांतिकुंज
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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)

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आज का सद्वाक्य

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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन


अमृत सन्देश :- आत्मा और शरीर | Atma Aur Sharir

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!! शांतिकुंज दर्शन 18 August 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश



तेरे निजी जीवन में जो बेईमानी हो रही है, इसको तू पहले ठीक कर ले। चल यहां से चल, फिर तुझे बताऊंगा। क्या करना चाहिए? बेटे, यह करना चाहिए कि हम दो आदमी हैं। अब अपनी दुकान में। लाला चुन्नू लाल, मुन्नू लाल एंड सन्स। कौन सी है हमारी दुकान? इसमें दो आदमी काम करते हैं और दो आदमियों का हिस्सा है। एक हमारा शरीर और एक हमारा जीवात्मा। दो पीस की शामिलात दुकान है। हम बेटे शरीर से काम करते हैं। ये भी एक पार्टनर है हमारा और ये पार्टनर काम करता है। और एक आता है और हमारा एक जीवात्मा है, जिसकी वजह से ये पार्टनर जिंदा है। जिसकी वजह से हम काम कर सकते हैं। जिसकी वजह से हमारी लाइफ काम करती है। हम दो आदमी हैं। दोनों आदमियों की मशक्कत से, दोनों आदमियों की मेहनत से, दोनों आदमियों के सहयोग से हमारी जिंदगी की नाव चलती है। लेकिन एक आदमी इसका फायदा उठाता है, दूसरा आदमी दिन रात मरता रहता है। दिन रात मरता रहता है। न किसी को यह फिक्र है कि यह मर गया या कोई जिंदा जिंदा है। न कोई पानी पिलाता है, न इसको रोटी खिलाता है। सूख सूख के कांटा हो गया और मरने के नजदीक आ गया। और एक आदमी मोटा होता जाता है। यह क्या हो रहा है? बेइंसाफी तेरे भीतर हो रही है। कैसे? हमारा बहिरंग, बहिरंग जो कुछ भी जिंदगी का फायदा है, हमारा बहिरंग उठाता है। बहिरंग से क्या मतलब? हमारा शरीर। हमारा शरीर फायदा उठाता है बस। और जीवात्मा जीवात्मा तो बेटे बिलखता रहता है सारा वक्त, जो हमको होता है हमारे खाने के लिए, हमारी अय्याशी के लिए, हमारे मनोरंजन के लिए, हमारी मौज मजा के लिए। और हमारे शरीर के साथ में जो आदमी उस रस्सी से बंधे हुए हैं, जो शरीर की वजह से बंधे हैं, आत्मा की वजह से नहीं बंधे हुए। हमको कामवासना की हवस होती है और हम बीवी पैदा कर लेते हैं। और बीवी बच्चे पैदा कर देती है। इसीलिए वो सब हमारे शरीर से ताल्लुक रखते हैं। वो हमारे शरीर के हिस्सेदार हैं, आत्मा के हिस्सेदार नहीं हैं। हमारे शरीर और शरीर के हिस्सेदारों का एक गिरोह जम गया है। और यह गिरोह जो है हमारी जिंदगी की सारी की सारी कमाई के ऊपर हाथ साफ करता रहता है। आत्मा के नाम पर कुछ नहीं है, बेटे। हमारे पास आत्मा के नाम पर कुछ नहीं है।

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अखण्ड-ज्योति से



कीचड़ में कमल उगना एक सुयोग है। आमतौर से उसमें गंदे कीड़े ही कुलबुलाते रहते हैं। जिन्होंने लोकप्रवाह में बहने के लिए आत्म समर्पण कर दिया, समझना चाहिए उनके लिए नर-पशु स्तर का जीवनयापन ही भाग्य विधान जैसा बन गया। वे खाते, सोते, पाप बटोरते और रोते-कलपते मौत के मुँह में चले जाते हैं। स्रष्टा ने मनुष्य जीवन का बहुमूल्य जीवन धरोहर के रूप में दिया था, होना यह चाहिए था कि इस सुयोग का लाभ उठाकर अपनी अपूर्णता पूर्णता में बदली गयी होती और विश्वमानव की सेवा-साधना में संलग्न रहकर देवमानव की भूमिका में प्रवेश करके धन्य बना जाता, असंख्यों को सन्मार्ग में चलाकर सत्प्रवृत्तियों के संवर्धन का अजस्र पुण्य कमाया गया होता। यह तो बन नहीं पड़ता, उल्टे पाप का पिटारा सिर पर लादकर लंबे भविष्य को अन्धकारमय बनाया जाता है।

सत्य परायणों और न्यायनिष्ठों को समय-समय पर दूसरों की सहायता भी मिलती रही है, इतिहास इसका साक्षी है। यदि ऐसा न हुआ होता तो बहुसंख्यक कुकर्मियों ने इस संसार की समूची शालीनता का भक्षण कर लिया होता। सत्यनिष्ठ एकाकी होने के कारण सर्वत्र पराजित-पराभूत हो गए होते किन्तु ऐसा हुआ नहीं। प्रहलाद पथ के अनुयायी कष्ट सहकर भी अपनी विजय ध्वजा फहराते हैं। ईसा मरकर भी मरे नहीं, सुकरात की काया नष्ट होने पर भी उसका यश, वर्चस्व और दर्शन अपेक्षाकृत और भी प्रखर हुआ, व्यापक बना। गोवर्धन पर्वत उठाए जाने का संकल्प आरम्भ में असंभव लगता रहा होगा, पर समय ने सदुद्देश्य का साथ दिया और सत्संकल्प ने विजय दुंदुभी बजाई।

विलासिता, सज-धज और ठाट-बाट की आड़ में बढ़ता हुआ खर्च किसी को भी कुमार्ग पर ढकेल सकता है। सीमित और आवश्यक खर्च की पूर्ति तो सही हो सकती है, पर असाधारण खर्च की पूर्ति के लिए तो गलत तरीके ही अपनाने होते हैं।
             

अपराधी प्रवृत्ति एक प्रकार की छूत वाली बीमारी है जो पहले परिवार के नवोदित सदस्यों पर आक्रमण करती है। कुकर्मी लोगों की संतानें भी अनैतिक कार्यों में ही रुचि लेती हैं और उन्हीं की अभ्यस्त बनती हैं। इसके अतिरिक्त ऐसा भी होता है कि जिनके साथ उनकी घनिष्टता है, उन्हें भी उसी पतन के गर्त में गिरने का कुयोग बने। ऐसे लोग प्रयत्नपूर्वक अपना संपर्क क्षेत्र बढ़ाते हैं और उद्धत आचरणों के फलस्वरूप तत्काल बड़े लाभ मिलने के सब्जबाग दिखाते हैं।

आरम्भ में हिचकने वालों की हिम्मत बढ़ाने के लिए कितने ही इस आधार पर बड़े-बड़े लाभ प्राप्त कर लेने के मन गढ़न्त वृतान्त सुनाते हैं। जिन्हें सच मानने और उस प्रकार का आचरण करने में अपनी भी उपयोगिता देखकर सहज ही तैयार हो जाते हैं। गिरोह बनता है और साथियों की सहायता से अपराधी लोगों का समुदाय बनता है। संगठित प्रयत्नों की सफलता सर्व विदित है। अनाचार पर उतारू लोग भी आक्रामक नीति अपनाकर आरम्भिक सफलता तो प्राप्त कर ही लेते हैं, पीछे भले ही उनके भयानक दुष्प्रिणाम भुगतने पड़ें।


पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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