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Magazine - Year 1942 - Version 2

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असतो मा सद्गमय

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वेद भगवान आदेश करते हैं कि हे मनुष्यों! असत्य की ओर नहीं, सत्य की ओर चलो। असत्य के अन्धकार में मत भटको, सत्य के प्रकाश में आओ ओर वास्तविकता का निरीक्षण करो। तुच्छ विषय वासना इंद्रिय लिप्सा और तृषा तृष्णा की ओस चाटने से तृप्ति नहीं मिल सकेगी। दुख दुर्भाग्य की ज्वाला जलती रहेगी और तिलतिल करके आपको जलाती रहेगी। उस जलन में झुलसते हुए हर घड़ी रोना पछताना क्रुद्ध होना झुँझलाना और सिर धुनना होगा । भवसागर में अनेक दुखों का भंडार भरा हुआ दिखाई देता है, उसका कारण यह है कि हम सत्य की शीतल सरिता का किनारा छोड़ कर असत्य के रेगिस्तान में जा पहुँचे हैं और उस तवे सी जलती हुई बालू में पाँव डालने से जो कष्ट होता है। उसे सहते समय ऐसा ख्याल करते हैं कि सारे संसार में ऐसी ही जलती हुई रेत भरी हुई है।

परमात्मा की पुण्य कृति को असत्य, वासना माया, पाप भवसागर कहना अनुचित है। परम पिता ने अपने प्राण प्रिय पुत्रों के लिए सुख सौभाग्य की ही रचना की है उसने संसार को ऐसी सुन्दर कारीगरी के साथ बनाया है कि इसके अणु-अणु में सत्य प्रेम और न्याय की त्रिवेणी बह रही है। ईश्वर सत् चित आनन्द स्वरूप है, इसलिए उसने सत्य शिव और सुन्दर सृष्टि की रचना की है। भूमंडल पर मानव प्राणी को इतनी सुन्दर सामग्री प्रदान की गई है, कि कई बार देवता भी इस शरीर को प्राप्त करने के लिए ललचाते हैं और स्वयं भगवान को जब आनन्द का उफान आता है तो मानव शरीर में ही अवतार के रूप में निराकार से साकार होते हुए इस भूलोक में प्रकट होते हैं।

दुख क्या है, असत्य का परिपाक ही दुख है। दूध कढ़ाई में पकते-पकते खोया बन जाता है। जीवन की कढ़ाई का बड़ा हुआ असत्य धीरे धीरे दुख बनता रहता है। जब जिसे जहाँ दुख दारिद्र दिखाई पड़े तब तिसे तहाँ असत्य के छिपे हुए दानव को ढूँढ़ निकालने का प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि सत्य के साथ दुख एक पल भी ठहर नहीं सकता। जीवन को आनन्दमय बनाने का एकमात्र साधन सत्य है। सत्य को पहचान हृदयंगम करना और आचरण में लाना एक कला है, जो मृत को सजीव करती है। और बीहड़ बन में हरियाली उत्पन्न करती है। जो व्यक्ति असली अर्थ में मानव जीवन का स्वर्गीय आनन्द भोगना चाहता है। उसे सत्य की शोध करनी चाहिए सत्य को प्राप्त करना चाहिए ।

आप निकृष्ट पतित और अतृप्त जिन्दगी जीना स्वीकार मत कीजिए आप अज्ञान और असत्य की अंधेरी कोठरी में कैद होने से इन्कार कर दीजिए इन्द्रिय लिप्सा, स्वार्थ भावना, तृष्णा अनीति के बन्धनों में बँधने के लिए तैयार मत होइए क्योंकि यह सब आपके लिए बड़े ही शर्म और अपमान की बात होगी सम्राटों के सम्राट परमात्मा का महान राजकुमार मनुष्य असत्य पदार्थों की अस्पृश्य नालियों में स्नान करे, यह कैसी लज्जा और लानत की बात है। आप अपने गौरव को ऊँचा रखिए, अपने और अपने पिता के सम्मान को उन्नत रखिए ।

आत्मा सत्य है, जीवन सत्य है, जगत सत्य है, आप इन सब में से सत्य अंश को ग्रहण करके हंस की तरह असत्य रूप पानी को छाँट कर अलग कर दीजिए । असत्य के मायावी जंजाल से दूर रहिए सत्य के आनंदित लोक में शान्तिपूर्वक विचरण कीजिए और जीवन का सच्चा फल प्राप्त कीजिए। वेद भगवान आपका युगों से पथ प्रदर्शन कर रहे हैं वे आदेश करते हैं। असली मा सद्गमय’ हे मनुष्य! असत्य की ओर नहीं सत्य की ओर चलो। पाठकों! अन्धकार की ओर नहीं प्रकाश की ओर चलो।

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