Magazine - Year 1945 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
शब्द-योग
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(योगिराज-श्री शिवकुमार जी शास्त्री)
वेद में कहा है कि उसने इच्छा किया कि मैं एक से अनेक हो जाऊं और इसी में सारा संसार उत्पन्न हो गया। ब्रह्म ने वेद के अनुसार सृष्टि के आदि में कहा था कि मैं एक हूँ अनेक हो जाऊं बस सारे संसार की उत्पत्ति हो गई। इंजील में भी कहा है कि आदि में वचन था और वचन से सब कुछ हुआ। कुरान में भी कहा है कि खुदा ने कहा कि हो जा (कुन) बस सब कुछ हो गया। तात्पर्य कहने का यह है कि सारा संसार शब्दों से उत्पन्न हुआ है। अब भी जो कुछ हो रहा है उसके कारण शब्द ही हैं। संसार की बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ शब्दों के ही कारण हुई हैं। सुलह भी शब्दों ने ही किया। प्रेम और विरोध सबका कारण शब्द हैं। बिना इच्छा के कुछ नहीं होता और इच्छा स्वयं शब्दों में हुआ करती है। इच्छा का प्रत्यक्ष रूप शब्द है। शब्द को व्यक्त करके और अपने धक्के से सारे संसार का हिलाकर इच्छा को पूर्ण कर लेता है। पानी की इच्छा हुई कि वह इच्छा शब्द के रूप में मुँह से निकल पड़ी बस निकलते ही नौकर ने पानी उपस्थित किया। मुँह में पहले पानी शब्द आया और बाद को पानी स्वयं आ पहुँचा।
सच्ची बात यह है कि इच्छा स्वयं अर्थ रूप है। जिसकी आप इच्छा करते हैं उसके मिलने में जरा भी संदेह नहीं है। जिसकी आप इच्छा करते हैं वह इच्छा स्वयं वह वस्तु है। इच्छा सफलता की वह सीढ़ी है जिसके बाद सफलता स्वयं खड़ी रहती है। इच्छित वस्तु को प्राप्त करने में देरी नहीं लग सकती। पर न मिलने का कारण यह है कि इच्छा के जो शब्द हमारे भीतर से उठते हैं उन पर हम स्वयं विश्वास नहीं करते। हमें स्वयं विश्वास नहीं होता। हमें स्वयं शंका हो जाती है। हम इच्छा करते ही कह देते हैं कि इसका मिलना कठिन है यह मिलेगा नहीं। हमारे अविश्वास के शब्द इच्छा के शब्दों की हत्या करा डालते हैं, नहीं तो मनुष्य के शब्दों में ब्रह्मा की शक्ति है।
जो शब्द भीतर दृढ़ता से उठें, विश्वास के साथ उठें या मुँह से बाहर निकलें उन शब्दों में ब्रह्मा की शक्ति है। कहिये और विश्वास के साथ कहिये कि हम निरोग हैं आप निरोग हो जायेंगे। कहिये कि हम अमर हैं-मृत्यु आपके वश में हो जावेगी। विश्वास के साथ कहिये कि हमें वह वस्तु अवश्य प्राप्त होगी उसके मिलने में देरी न लगेगी। चाहे देरी भी लगे पर मिलेगी अवश्य। आप अपना भाग्य, अपना कर्म, अपना संसार, अपनी परिस्थिति और अपने लिए संसार की सारी सामग्री, अपने शब्दों और अपनी आज्ञाओं से बुला सकते और बना सकते हैं। आपको जिस समय अपने शब्दों की शक्ति का पता लगेगा उस समय आप विधाता का मुँह नहीं ताकेंगे।
ईश्वर आपके भीतर है। आप स्वयं ईश्वर हैं। आपकी आज्ञा, आपके शब्द, ईश्वर की आज्ञा और ईश्वर के शब्द हैं। आप विश्वास के साथ आज्ञा दीजिए वह अवश्य हो जायगा। बोले हुए शब्दों से संसार के परमाणुओं में धक्का लगता है और उससे जो लहर होती है वह तब तक शान्त नहीं हो सकती जब तक कि वह अंत तक जाकर पूरी न हो जाय। पर हमारा अविश्वास इसका बहुत बड़ा विरोधी और नाशक है। हमारे शब्दों से जो लहर उत्पन्न होती है वह विराट रूप ईश्वर की आत्मा को कँपा देती है। वह निरर्थक नहीं हो सकती। एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वालों ने यह देखा कि जगह-जगह वहाँ पर बर्फ के चट्टान और बादल जमे हुए हैं। वहाँ पर एक शब्द भी जरा जोर से बोल देने पर चढ़ने वालों के ऊपर बहुत बड़ी आफत आ जाती है। बोलने पे एक-एक फर्लांग का हिमखण्ड (बर्फ की चट्टान) ऊपर से खिसक पड़ती है और सम्भव है कि उसके सब चढ़ने वाले उसी के नीचे दब जायं। बोलने से वहाँ के जमे हुए बादल भी हिल जाते हैं और बरसने लगते हैं। बोलने से आकाश में लहर उत्पन्न होती है उसी से यह सब हुआ करता है। शब्द स्वयं अपने अणुओं में वह शक्ति रखते हैं जिसमें इच्छित पदार्थ बन जायं, हम जिस वस्तु की इच्छा या कल्पना करते हैं वह इच्छा स्वयं वही वस्तु है मन इच्छा या वस्तु हमारी कल्पना से बाहर नहीं है। कल्पना से स्वप्न में सारा संसार बन जाता है। स्वप्न में मन द्वारा बिना रोड़े के सड़क पिट जाती है, बिना वृक्षों के बाग लग जाता और हजारों मकान बनकर तैयार हो जाते हैं। मन स्वयं वस्तु रूप और संसार रूप है। यह संसार की सारी चीजों को बात ही बात में बना सकता है। समाधि के समय इच्छा का अद्भुत चमत्कार क्षण-क्षण में प्रत्यक्ष देखने में आता है। योगी ने इच्छा किया नहीं कि वह बना नहीं। समाधि के समय योगी जिस वस्तु की इच्छा करता है वह वस्तु उसी समय बनकर तैयार हो जाती है।
स्थूल संसार भी स्वप्न के समान मनोमय और कल्पनामय है। स्वप्न की सृष्टि और जाग्रत अवस्था की सृष्टि में कुछ भेद अवश्य है पर मन और कल्पना का प्रभाव सर्वत्र है। इस पर हम अपने दूसरे लेखों में बहुत कुछ लिख चुके हैं। प्लेग की कल्पना होते ही प्लेग से भयभीत होते ही ज्वर और गिल्टी दिखलाई देने लगती है। यदि कल्पना से ज्वर बढ़ जाता है तो क्या कल्पना से उतर नहीं सकता? यदि हमारा यह विचार, यह भय कि ऐसा न हो कि हमें गिल्टी हो जाय, गिल्टी उत्पन्न कर सकता है तो क्या हमारी निर्भयता और हमारा यह विचार कि हमारे गिल्टी नहीं हो सकती या हमारी गिल्टी अभी अच्छी हो जायगी हमारा कल्याण नहीं कर सकता? हमारी इच्छा में हमारी कल्पना में या हमारे शब्दों में बनाने और बिगाड़ने की पूरी शक्ति है।
“यथा मनसा मनुते तथा वाचा वदति” जैसा मन में विचार करता है वैसा ही वचन से बोलता है। मनुष्य अधिकतर कुछ न कुछ मनन किया करता है। इसका मतलब यह हुआ कि मनुष्य भीतर अपने मन में, अपने मन से, बातचीत किया करता है, कुछ न कुछ बोला करता है। देखने में आया है कि इन अव्यक्त शब्दों का प्रभाव शरीर पर पड़ता जाता है। मनुष्य के मनन करते हुए चेहरे का उतार-चढ़ाव और रंग इस प्रकार से बदलता है कि बिना बोले ही योगी अभ्यासी या इस विद्या के जानने वाले बतला देते है कि यह मनुष्य अमुक बात सोच रहा है। भावनाओं के अनुसार मुख की आकृति और वर्ण बदलता जाता है। सोचते समय कभी मनुष्य का चेहरा पीला पड़ जाता है, कभी प्रसन्न हो जाता है, कभी ललाट का चर्म सिकुड़ जाता है, कभी भृकुटी तिरछी हो जाती और कभी दोनों कपोल लाल हो जाते हैं। इसके सिवाय और भी कई तरह के रूपांतर और परिवर्तन हुआ करते हैं। इन रूपाँतरों को देखकर किसी के भीतर का भाव या मन का विचार जान लेना कठिन नहीं है।
पूर्वोक्त बातों से यह सिद्ध होता है कि हमारे प्रत्येक शब्द का और प्रत्येक विचार का हमारे शरीर पर अद्भुत रूप से प्रभाव पड़ता है। अतः आपको अपने शरीर का जो अंग जिस प्रकार का बनाना हो अपनी आज्ञा से बना सकते हैं। आप नित्य उठकर अपने शरीर को आज्ञा दीजिए कि हमारे शरीर का अमुक अंग ठीक हो जाय इस आज्ञा का या आपके इस वाक्य और शब्द का प्रभाव कुछ दिनों में प्रत्यक्ष देखने में आवेगा। जिस अंग के लिए आप जो आज्ञा देंगे वह अवश्य पूरा होगा। मनुष्य के शब्दों में रचना करने की या विधाता बनने की पूरी शक्ति है।
यदि कोई मनुष्य दरिद्री है तो उसे नित्य उठकर कहना चाहिए कि हमारी दरिद्रता मिट जाय हम धनी हो जायं। यह भी सोचना चाहिए कि हम धनी हो गये और हमारे चारों तरफ रुपया और सोना-चाँदी पड़ा हुआ है। सब संदूक रुपयों से भरी हैं। इससे अवश्य दरिद्रता मिट जायगी। यदि किसी का दिमाग ठीक नहीं है तो पेट पर हाथ फेर कर नित्य पेट को आज्ञा देनी चाहिए कि ठीक हो जा पेट ठीक हो जायगा। जीवन में आपको जो अभाव है दृढ़तापूर्वक कहिए कि मुझे अमुक वस्तु चाहिए मैं उसे प्राप्त करूंगा। आपके वह शब्द अदृष्ट से टकरा कर वह वस्तु सामने उपस्थित कर देंगे जिसे आप चाहते हैं।
आपके शरीर का रचयिता कोई दूसरा नहीं है, आप स्वयं अपने शरीर के रचयिता हैं। आपके भाग्य का रचयिता कोई दूसरा नहीं है अपने भाग्य के विधाता आप स्वयं हैं। विधाता के वचन में जो शक्ति है वही आपके वचन में हैं। विश्वास के साथ जो कहियेगा अवश्य पूरा होगा।