Magazine - Year 1945 - Version 2
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Language: HINDI
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स्वयं विचार करना सीखिए।
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(डॉक्टर दुर्गाशंकर जी नागर सम्पादक ‘कल्पवृक्ष’)
जब तक तुम दूसरों के बल पर खड़े रहोगे, दूसरों की सम्मति से कार्य करते रहोगे, अपने मस्तिष्क को दूसरों के आधीन कर दोगे, अपने को महत्वहीन समझोगे और अपने आप विचार करना नहीं सीखोगे तो तुम्हारा मस्तिष्क जड़ हो जायगा, बुद्धि मंद हो जायगी। जब तक मनुष्य दूसरों पर निर्भर रहता है, तब तक वह अपनी शक्तियों को नहीं पहचानता। जिस शक्ति से मनुष्य नई-नई बातें निकालता है, आविष्कार करता है, उसका विकास स्वयं विचार करने से होता है।
अपना विचार कार्य स्वयं अपने आप करना, दूसरों पर आश्रित न रहना, अपने पैरों आप खड़े होना अपनी विचार शक्ति को विकसित करना और शरीर तथा मन को सशक्त और पुष्ट बनाना जीवन तत्व की वृद्धि करना है।
जो अपने मस्तिष्क के काम को बंद कर देता है, वह अपना नाश आप करने लगता है। मस्तिष्क की वृद्धि, ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा जो भिन्न-भिन्न अनुभव मन में प्रवेश करते हैं उनको एकत्रित कर नवीन भावना, नवीन विचार, नवीन मानसिक स्थिति, नवीन अभिप्राय प्रकट करने से ही होती है।
प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व वायु सेवन के लिए बाहर जंगल में चले जाना चाहिए। सिर खोलकर सिर तथा छाती को सीधी तथा समान करके घूमना चाहिए। प्रातःकाल की ठंडी हवा से तुम्हारा दिमाग ताजा हो जायगा। फिर किसी ऊँचे स्थान पर बैठकर दीर्घ श्वास-प्रश्वास की क्रिया करनी चाहिए। ऐसा करने से विचारने तथा सोचने की शक्ति अधिक प्राप्त होगी। इस प्रकार श्वास प्रश्वास की क्रिया करने से तुममें प्राण-तत्व का अधिक प्रवेश होगा। मस्तिष्क के भूरे रंग के द्रव्य को पुष्कल शुद्ध रक्त पोषण के लिए प्राप्त होगा।