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Magazine - Year 1958 - Version 2

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यज्ञ का महत्व

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अग्नि होत्रिणे प्रणुदे सपत्नश्र।

-अथर्व वेद 9/2/6

यज्ञ करने से शत्रु नष्ट हो जाते हैं। शत्रुता को मित्रता में बदल देने का सर्वोत्तम उपाय यज्ञ है।

सम्यंजोऽग्नि सपर्यत।

-अथर्व वेद 3/30/6

सबको मिलकर यज्ञानुष्ठान करना चाहिए। सामूहिक उपासना का महत्व असंख्य गुना अधिक है।

यज्ञं जनयुन्तु सूरयः

-ऋग्वेद 10/66/2

हे विद्वानों, संसार में यज्ञ का प्रचार करो। विश्व-कल्याण करने वाले साधकों में यज्ञ सर्वश्रेष्ठ है।

ईजानाः स्वर्गं यान्ति लोकम्।

-अथर्व वेद 18/4/2

यज्ञ करने वाले को स्वर्ग का सुख प्राप्त होता है। जिन्हें स्वर्गीय सुख प्राप्त करना अभीष्ट हो, वे यज्ञ किया करें।

प्राचं यज्ञं प्रणतया स्वसाय।

-ऋग्वेद 10/101/2

प्रत्येक शुभ कार्य यज्ञ के साथ आरंभ करो। यज्ञ के साथ आरम्भ किये हुए कार्य सफल और सुखदायक होते हैं।

सर्वेषाँ देवानाँ आत्मा यद् यज्ञः।

-शतपथ 12/3/2/1

सब देवताओं की आत्मा यह यज्ञ है। यज्ञ करने वाले देवताओं की आत्मा तक पहुँचते हैं।

अयज्ञियो हत वर्चो भवति।

-अथर्व वेद

यज्ञ रहित मनुष्य का तेज नष्ट हो जाता है। यदि तेजस्वी रहना है तो यज्ञ करते रहना चाहिए।

भद्रो नो अग्नि राहुतः।

-यजुर्वेद 15/32

यज्ञ में दी हुई आहुतियाँ कल्याणकारक होती है। जो अपना कल्याण चाहते हैं वे यज्ञ किया करें।

मा सुनोतेति सोमम्।

-ऋग्वेद 2/30/7

यज्ञानुष्ठान की महान उपासना बन्द न करो। जहाँ यज्ञ बन्द हो जाते हैं वहाँ से सुख-शाँति चली जाती है।

कस्मैत्व विमुँचति तस्मैत्वं विमुँचति।

-यजुर्वेद

जो यज्ञ को त्यागता है उसे परमात्मा त्याग देता है। जिन्हें परमात्मा का अनुग्रह अभीष्ट हो, वे यज्ञ करना त्यागें।

अस्य सूनृता विरप्शी गोमती मही

-ऋग्वेद 1/3/8/8

ऐसी वाणी बोलो जिससे सबका हित हो।

किसी को गलत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो।

वर्ष-19 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक-12

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