• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जड़े गहरी जानी चाहिए
    • आस्तिकता की आवश्यकता
    • Quotation
    • प्रेम और उसकी शक्ति
    • अनधिकार चेष्टा
    • भारतीय संस्कृति का स्वरूप
    • Quotation
    • कठिनाइयाँ क्या हैं?
    • दूसरों का दुख
    • कर्मयोग की अनिवार्य आवश्यकता
    • Quotation
    • दंड व्यवस्था
    • पाप मूल- अभिमान
    • जीवित मृत्यु देने वाला - आलस्य
    • Quotation
    • नारी जाति के उद्धारक -ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
    • भाग्यवाद से हमारा अहित ही होगा
    • सितारे की चमक
    • श्रद्धा और विद्या
    • अनन्त वत्सला नारी और उसकी महत्ता
    • बुढ़ापे में हीनता न आने दें
    • मन और उसका निग्रह
    • पारिवारिक जीवन व सामाजिक जीवन
    • साधनहीन सत्य का शक्तिशाली असत्य से संघर्ष
    • हम दीर्घजीवी क्यों नहीं बन पाते ?
    • दो शिष्य
    • बच्चों में अच्छी आदतें पैदा कीजिए
    • मधु-संचय
    • पंचकोशी साधना
    • अन्नमय कोश का अनावरण
    • मनोमय कोश का परिष्कार
    • VigyapanSuchana
    • युग निर्माण आन्दोलन
    • पथिक को उद्बोधन!
    • पथिक को उद्बोधन (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जड़े गहरी जानी चाहिए
    • आस्तिकता की आवश्यकता
    • Quotation
    • प्रेम और उसकी शक्ति
    • अनधिकार चेष्टा
    • भारतीय संस्कृति का स्वरूप
    • Quotation
    • कठिनाइयाँ क्या हैं?
    • दूसरों का दुख
    • कर्मयोग की अनिवार्य आवश्यकता
    • Quotation
    • दंड व्यवस्था
    • पाप मूल- अभिमान
    • जीवित मृत्यु देने वाला - आलस्य
    • Quotation
    • नारी जाति के उद्धारक -ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
    • भाग्यवाद से हमारा अहित ही होगा
    • सितारे की चमक
    • श्रद्धा और विद्या
    • अनन्त वत्सला नारी और उसकी महत्ता
    • बुढ़ापे में हीनता न आने दें
    • मन और उसका निग्रह
    • पारिवारिक जीवन व सामाजिक जीवन
    • साधनहीन सत्य का शक्तिशाली असत्य से संघर्ष
    • हम दीर्घजीवी क्यों नहीं बन पाते ?
    • दो शिष्य
    • बच्चों में अच्छी आदतें पैदा कीजिए
    • मधु-संचय
    • पंचकोशी साधना
    • अन्नमय कोश का अनावरण
    • मनोमय कोश का परिष्कार
    • VigyapanSuchana
    • युग निर्माण आन्दोलन
    • पथिक को उद्बोधन!
    • पथिक को उद्बोधन (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1963 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


पाप मूल- अभिमान

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 12 14 Last
जब मनुष्य अपने आपको सामान्य स्तर पर न समझकर असाधारण, विशेष बड़ा, महत्वपूर्ण समझने लगता है तभी अभिमान का अंकुर फूट निकलता है जो दिनों दिन बढ़ता हुआ विशाल रूप धारण कर लेता है। झूँठी प्रशंसा, उद्दंडता, स्वेच्छाचार, शेखीखोरी से भी मनुष्य अपनी वस्तुस्थिति को न समझकर अभिमान के परों से उड़ने लगता है। ऐसे लोगों के दिमाग की बागडोर अभिमान और इसे पोषण करने वाले तत्वों के हाथों में होती है। अविवेकी, अज्ञानी, अदूरदर्शी, मोटी बुद्धि के लोग ही अभिमान से ग्रस्त होते देखे जाते हैं। कुछ भी हो अभिमान वह विष बेल है जो जीवन की हरियाली, सौंदर्य, वृद्धि विस्तार, विकास को रोककर उसे सुखा देती है। यह ऐसी विष-बुझी दुधारी तलवार है जो अपने तथा दूसरों के जीवन में विनाश का सूत्रपात कर देती है। अभिमान का स्वभाव ही दमन, शोषण, पतन, क्रूरता आदि है, जिससे स्वयं व्यक्ति और उससे सम्बन्धित समाज प्रभावित हुए बिना नहीं रहता ।

किसी भी विषय, क्षेत्र में अभिमान हो जाने पर मनुष्य की प्रगति, विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। विद्या का अभिमान हो जाने पर विद्या नहीं बढ़ती वरन् वह घटती ही जाती है। प्रशंसा, प्रसिद्धि जिससे अभिमान को पोषण मिलता है, विकास उन्नति का पथ भुला देती है। न्यूटन महोदय ने अपने गणित की महत्वपूर्ण खोज काफी समय तक प्रकाशित ही नहीं की। किन्तु बहुत समय बीत जाने के बाद उन्होंने उस खोज को एक पत्र में प्रकाशित कर दिया तो अनेकों लोगों के धन्यवाद, अभिवादन, प्रशंसापत्र उनके पास आने लगे। इस पर उन्होंने दुखी होकर कहा था “ अब मेरी प्रसिद्धि तो खूब बढ़ेगी किन्तु विद्या जिसके लिए मैंने जीवन भर लगा दिया उसका विकास रुक जायगा।” प्रसिद्ध दार्शनिक कान्ट ने अपनी बड़ी उम्र तक अपने ज्ञान और सिद्धांतों को प्रकाश में नहीं आने दिया। उनकी जगत प्रसिद्ध पहली पुस्तक 12 वर्ष की उम्र में प्रकाशित हुई। 40-45 वर्ष तक एक ही समस्या पर वे सोचते विचारते रहे। और जब उसके सभी पहलुओं पर उनका गम्भीर चिन्तन मनन पूर्ण होकर सही सही निष्कर्ष निकला तभी उस विचार को लोक कल्याणार्थ रखा। एक बार न्यूटन से किसी ने कहा था “आपने तो पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है।” इस पर उस निरभिमानी वैज्ञानिक ने कहा “मेरे सामने ज्ञान का अथाह समुद्र फैला पड़ा है जिसके किनारे के कुछ ही रज कण मैं उठा पाया हूँ।” एक ओर ऐसे व्यक्तियों की स्थिति पर तरस आता है जो बेचारे कही से कुछ पढ़ सुनकर, थोड़ा बहुत अध्ययन कर अभिमानवश अपने आपको विद्या का धनी, पण्डित विद्वान मान बैठते हैं। अपनी विद्वता, पाण्डित्य की दुहाई देने वालों की स्थिति एक खोखले पोले ढोल की तरह ही होती है। अपनी होशियारी, अध्ययनशीलता का अभिमान रखने वाले विद्यार्थी दूसरों से पिछड़ जाते हैं। कला, विद्या, शक्ति, सामर्थ्य सभी क्षेत्रों में अभिमान सफलता और प्रगति का मार्ग बन्द कर देता है।

अभिमान की वृद्धि के साथ ही मनुष्य का पतन प्रारम्भ हो जाता है और अभिमान की पराकाष्ठा सर्वनाश करके ही छोड़ती है। रावण जब अभिमान से बुरी तरह ग्रस्त हो गया और उसने अमानवीय, अमर्यादित कृत्य शुरू कर दिए तो वह अपने कुटुम्ब के साथ विनाश को प्राप्त हुआ। अभिमानी दक्ष प्रजापति ने महादेव-शिवजी, जो उसके दामाद भी थे, के साथ विरोध ठान लिया। उन्हें अपमानित करने के लिए विशाल यज्ञ रचा और निमन्त्रण नहीं भेजा। सती के पितृ गृह में बिना बुलाये चले जाने पर उसका भी अपमान किया गया और सती विरुद्ध हो योगाग्नि में जल मरी। अन्ततः शिवजी ने यज्ञ सहित दक्ष को नष्ट -भ्रष्ट कर दिया। शृंगी ऋषि, नारदजी को जब अपने तप और काम विजय पर अभिमान हुआ तो वे पतित हुए और कामासक्त होकर उन्होंने निम्न कृत्य किए। दान का अभिमान करने वाला वलि पतित हुआ। तप के अभिमानी दुर्वासा ने निर्दोष अम्बरीष को श्राप दे दिया किन्तु उसका मूल्य उन्हें ही चुकाना पड़ा और क्षमा माँगनी पड़ी। अभिमानी कंस, दुर्योधन को वह दिन देखना पड़ा जिसकी उन्हें स्वप्न में भी सम्भावना नहीं थी। हिटलर, सिकन्दर, मुसोलिनी, नेपोलियन आदि को भी अपने बढ़ते हुए सामर्थ्य के अभिमान में पराभव और पतन का सामना करना पड़ा।

अपने रंग रूप, सामर्थ्य, शक्ति किन्हीं भी विशेषताओं का अभिमान मनुष्य के पतन का कारण बन जाता है। मनुष्य की विभिन्न क्रियायें, चेष्टायें अभिमान का नशा चढ़ने पर असन्तुलित और अव्यवस्थित हो जाती हैं वह कुछ का कुछ करने लगता है। उसकी विवेकशीलता, विचार, बुद्धि दूरदर्शिता मारी जाती है जिससे जीवन के सही पथ से भटककर दुष्प्रवृत्तियों, दुष्कर्मों के भयंकर बीहड़ों में भटक जाता है और अन्ततः विनाश को प्राप्त होता है।

अभिमान की वृद्धि के साथ ही मनुष्य में आत्म निरीक्षण, स्वदोष दर्शन की शक्ति और क्षमतायें नष्ट होने लगती हैं, जिससे वह अपना बुनियादी सुधार नहीं कर पाता। उसके व्यक्तित्व में अनेकों दोष रह जाते हैं, जो मनुष्य की असफलता और पतन का कारण बन जाते हैं।

अभिमानी व्यक्ति को सदैव अपनी प्रशंसा प्रिय लगती है। अतः उसे अपनी प्रशंसा करने वाले भी प्रिय लगते हैं और वह उनसे सामीप्य और निकटता रखना अच्छा समझता है। फलतः ऐसे अभिमानी व्यक्तियों के वातावरण में चापलूस, खुशामदी लोगों का गिरोह इकठ्ठा हो जाता है।

प्रशंसालोलुप अभिमानी व्यक्ति जब किसी से अपनी निन्दा सुन लेता है तो उससे व्यर्थ ही शत्रुता ठानकर उसे नेस्तनाबूद करने के प्रयत्न करने लगता है। उसका दम्भ इस कदर बढ़ जाता है कि अपनी इच्छा के विरुद्ध तनिक भी सुनना उसे अप्रिय लगता है। परिणाम यह होता है कि सच्ची राय देने वाले, स्पष्टवक्ता, अनुभवी, विचारशील लोगों का उसे साथ नहीं मिलता और चापलूस चालाक व्यक्ति ही उसके इर्द गिर्द रहते हैं जो अपना उल्लू सीधा करके उसे पतन और विनाश के मार्ग पर बढ़ावा देते रहते हैं।

अभिमानी व्यक्ति को अपने सामने दूसरे प्रगतिशील, उन्नति करने वाले, बढ़ने वाले व्यक्ति तनिक भी अच्छे नहीं लगते। वह नहीं चाहता कि कोई और भी दुनिया में ऊँचा उठे। अपनी उन्नति, अपनी बढ़ोत्तरी, अपनी अहं तुष्टि में ही उसे आनन्द आता है और अकारण ही वह प्रगतिशील तत्वों से ईर्ष्या द्वेष रखकर उन्हें हानि पहुँचाने के षड़यन्त्र रचता है। दूसरों को दुःख पहुँचाता है।

अभिमान ग्रस्त व्यक्ति अपने आपसे अच्छा किसी दूसरे को तो समझता ही नहीं। उसे दुनिया में सब बुरे और स्वयं अच्छा दिखाई देता है, एक बड़ी भारी सभा में कंस से पूछा गया “ उसे यहाँ कितने भले आदमी नजर आते हैं।” उसने कहा “ मुझे यहाँ एक भी भला आदमी नजर नहीं आता।”

अभिमान की वृद्धि के साथ-साथ मनुष्य के संघर्ष का क्षेत्र भी विस्तृत हो जाता है। अपने कार्य क्षेत्र में काम कर रहे अन्य लोगों से बड़ा बनने, अपने व्यक्तित्व को विशेष महत्व देने, अपनी विशेषता बड़प्पन का रौब दिखाने के प्रयत्न में अभिमानी व्यक्ति उनकी आलोचना निन्दा करता है। उन्हें हानि पहुँचाने, असफल बनाने के लिए तरह-तरह के षड़यन्त्र रचता है। इससे अनायास ही दूसरे लोग शत्रु बन जाते हैं। अपने उक्त व्यवहार के कारण दिनोंदिन उसके विरोधियों शत्रुओं की संख्या बढ़ जाती है और यही पतन, असफलता, विनाश का मार्ग है। उसकी सारी शक्ति विरोध, द्वेष, षड़यन्त्रों में नष्ट हो जाती है। रचनात्मक दृष्टि से वह कुछ भी नहीं कर पाता।

First 12 14 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • जड़े गहरी जानी चाहिए
  • आस्तिकता की आवश्यकता
  • Quotation
  • प्रेम और उसकी शक्ति
  • अनधिकार चेष्टा
  • भारतीय संस्कृति का स्वरूप
  • Quotation
  • कठिनाइयाँ क्या हैं?
  • दूसरों का दुख
  • कर्मयोग की अनिवार्य आवश्यकता
  • Quotation
  • दंड व्यवस्था
  • पाप मूल- अभिमान
  • जीवित मृत्यु देने वाला - आलस्य
  • Quotation
  • नारी जाति के उद्धारक -ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
  • भाग्यवाद से हमारा अहित ही होगा
  • सितारे की चमक
  • श्रद्धा और विद्या
  • अनन्त वत्सला नारी और उसकी महत्ता
  • बुढ़ापे में हीनता न आने दें
  • मन और उसका निग्रह
  • पारिवारिक जीवन व सामाजिक जीवन
  • साधनहीन सत्य का शक्तिशाली असत्य से संघर्ष
  • हम दीर्घजीवी क्यों नहीं बन पाते ?
  • दो शिष्य
  • बच्चों में अच्छी आदतें पैदा कीजिए
  • मधु-संचय
  • पंचकोशी साधना
  • अन्नमय कोश का अनावरण
  • मनोमय कोश का परिष्कार
  • VigyapanSuchana
  • युग निर्माण आन्दोलन
  • पथिक को उद्बोधन!
  • पथिक को उद्बोधन (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj