
अन्य लोकों में बुद्धि विकास के प्रमाण
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आकाश अब वैज्ञानिकों की दृष्टि में सबसे अधिक आश्चर्यजनक वस्तु है। ऐसा समझा जाता है कि जो स्थान इन स्थूल आँखों से भी नहीं दिखाई देते, वहाँ भी मानवीय सभ्यता विद्यमान् है। पार्थिव जीव का यदि उन ग्रहों-उपग्रहों और नक्षत्रों में आदान-प्रदान होता हो तो कुछ आश्चर्य नहीं।
परलोक दर्शन का आधार भी यही है कि ऊपर के कुछ लोक अत्यन्त सुखदायक और प्रत्येक इच्छा की पूर्ति करने वाले हैं। यदि आत्म-चेतना का विस्तार उन परिस्थितियों के अनुरूप किया जा सके तो मरणोपरान्त भी मनुष्य स्वर्गीय सुखों का आस्वादन कर सकता है। पहले इन शास्त्रीय मान्यताओं को अतिरंजित कहा जाता था पर अब इन तथ्यों के लिए पर्याप्त प्रमाण मिल रहे हैं कि आकाश के गर्भ में अति विकसित सभ्यताएँ सचमुच विद्यमान् हैं और उनसे यांत्रिक रूप से भी सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है।
लगता है पहले भी पृथ्वी के निवासी अन्य लोकों में जाने का अभ्यास करते रहे हैं। योग दर्शन में बताया
काया काशयोस्सम्बन्ध संयमाल्लघुतूलसामापत्तेश्चाकाश नमनम्।॥42॥
शरीर व आकाश के मध्य सम्बन्ध स्थापित कर और ड़ड़ड़ड़ से लेकर परमाणु तक में समाधि सिद्ध करने से योगी लघु और हल्का हो जाता है। लघु होने और हल्कापन प्रथम तो वह जल पर चलता है, फिर सूर्य की किरणों में विहार करता है, इसके पश्चात् इच्छापूर्वक आकाश में रहता है।
योग की यह सिद्धियाँ पूर्णकाल में आकाश यात्रा में ही सहायक रही होंगी उन्हें आज की स्थिति में तापीय (एयर टेम्परेचर) और दबाव (एयर प्रेशर) की वह कठिनाइयाँ न होती होंगी, जो आज वैज्ञानिक अनुभव कर रहे हैं। योग क्या ‘आकाश की खोज’ में सहायक हो सकता है, इस सम्बन्ध में रूस व्यापक खोज भी कर रहा है।
अन्य ग्रहों में जीवन की सम्भावना और उनसे संपर्क स्थापित करने की पुष्टि आज उन उड़ती हुई वस्तुओं से हो रही हैं, जिन्हें उड़न-तश्तरी (फ्लाइंग साइसर्स) या अनजान उड़ती वस्तु (अनआइडेंटीफाइड आब्जेक्ट) के नाम से जाना जाता है और 1954 के बाद से जिन पर व्यापक छानबीन हो रही है। यह समझ में न आने वाली अन्तरिक्ष से प्रेषित अनुसंधानिकायें अण्डाकार, सिगार की तरह लम्बी, बिलकुल गोल और तिकोनी भी होती हैं। वह ऊपर से उड़ती हुई सी भी आती हैं, हैलिकाप्टर की तरह कहीं भी ठहर जाती हैं, उनसे कैप्सूल की तरह उपखण्ड भी बाहर निकलती हैं, विभिन्न प्रकार की किरणें और रंग भी दिखाई देते हैं, समुद्र में वे गोता भी लगाती देखी गई हैं और कई बार तो उनकी गतिविधियाँ और भी विचित्र और कौतूहल वर्धक पाई गई हैं।
23 अगस्त, 1954 में पेरिस से कोई 50 मील दूर वरनान में एक विचित्र घटना हुई। पुलिस स्टेशन में एक साथ कई नागरिक पहुँचे और उन सबने एक ऐसी घटना की रिपोर्ट लिखाई जो कई लोगों के द्वारा लिखाये जाने पर भी एक थी केवल दिशाओं आदि में थोड़ा अन्तर था, जैसे कि शहर के पूर्व भाग वाले ने तो यह बताया कि वह वस्तु पश्चिम को झपटी और पश्चिम वाले ने कहा हमारी ओर आई बस यही सामान्य अन्तर था, बाकी सबकी रिपोर्ट बिलकुल एक थीं।
वर्नार्ड माइसरे नामक एक व्यापारी का बयान सबसे दिलचस्प था। उसने बताया कि - “आधी रात जब वह अपनी गैरेज से कार निकालने गया तो वहाँ पूरी तरह अँधेरा था। कार लेकर बाहर आया तब सारा शहर एक विचित्र हरे रंग की किरणों के प्रकाश से छा रहा था। ऊपर आँख उठाकर देखा तो कोई डेढ़ फलाँग दूर नदी के ऊपर एक 100 गज लम्बी कोई वस्तु लटक रही थी, उसी में से एक प्रकाश निकलकर फैल रहा था। वर्नार्ड बड़े असमंजस में उसे देख ही रहा था कि उसके पेंदे से एक गोल तश्तरी की तरह की कोई वस्तु जो किसी धातु की बनी मालूम पड़ती थी, निकली हवा में झूलती हुई थोड़ी देर ठहरी रही, फिर बर्नार्ड की ओर झपटी और तब तक बर्नार्ड अपने को सम्भाले तब तक वह कहीं अदृश्य हो गई। अब उस गोलाकार नक्षत्र यान से दूसरी तश्तरी निकली वह पानी के ऊपर इस तरह हिलती-डोलती रही, जैसे पानी में उसे कोई वस्तु ढूँढ़नी हो। फिर तीसरी, चौथी और पाँचवीं तश्तरी- इस तरह पाँच तश्तरियाँ उसमें से निकलीं और विभिन्न दिशाओं में जा-जाकर लौटती हुई उसी पेन्सिलाकार ट्यूब में समाती गईं। इसके बाद उस वस्तु का प्रकाश धूमिल पड़ने लगा और वह अदृश्य हो गई।”
इस प्रकार की रिपोर्ट लिखाने वाला बर्नार्ड माइसरे अकेला ही नहीं था, मिलिटरी का एक इंजीनियर, दो सिपाही, स्त्रियाँ और कुछ और लोग भी थे, उन सबका एक ही कहना था कि उन्होंने जो कुछ देखा वह केवल दृष्टि भ्रम न था।
एक और घटना 1 मई 1917 में फातिमा नगर (लिस्बन (पुर्तगाल) से कोई 62 मील दूर) में घटित हुई, जिसमें अन्तरिक्ष-वासियों ने पृथ्वी में उतर कर बाकायदा बच्चों को अपने विचार भी दिये। यह सब कुछ ऐसा हुआ कि वैज्ञानिकों को भी उसकी सम्भावना से सहमत होना पड़ा। लूसिया, फ्रैंकिस्कोमार्तो और जेसिन्तो मार्तो नामक उक्त तीन बच्चे ‘कारवा द इरिया’ नामक झरने के समीप अपने जानवर चरा रहे थे। 13 मई का दिन था एक यान उतरा और उसमें से एक सफेद वस्त्र-सी धारण किये हुये अत्यन्त सुन्दर युवती उतरी बच्चों पर उसने कुछ सम्मोहन किरणें सी फेंकी उससे वे बहुत प्रसन्न हुए। उनका डर जाता रहा। बच्चों ने बताया कि उस समय उन्हें ऐसा लग रहा था, जैसे उसने हमसे कहा हो- “तुम हमें बहुत अच्छे लगते हो।” पर बच्चों की इस बात पर किसी ने विश्वास न किया।
ठीक वैसी ही घटना 13 जून को हुई फिर 13 जुलाई को भी बच्चों ने उस युवती के दर्शन किये तब तक बच्चों की बात सारे नगर में फैल चुकी थी, किन्तु कोई भी उस बात को मानने के लिए तैयार न हुआ। पुलिस ने भ्रामक अफवाह फैलाने के आरोप में बच्चों को गिरफ्तार कर लिया पर जब उनके बयान लिये गये और भेंट की प्रत्येक तारीख 13 ही बताई गई तो लोगों ने कहा कि क्या अगली 13 अक्टूबर को भी वह वस्तु आयेगी। बच्चों ने कहा हो सकता है आये। इसी बात पर उन्हें छोड़ दिया गया।
13 अक्टूबर 1917 को उस आकाश यान और अज्ञात यात्रियों के दर्शनों के लिए झरने के पास 70000 हजार नगरवासियों की भीड़ जमा हुई। रेबरेन्ड जनरल भी ‘विर्कर आफ लीरिया’ भी उन दर्शकों में से एक थे। अनेक नास्तिक पत्रकार साहित्यकार और पदाधिकारी भी घटनास्थल पर पहुँचे कोइम्ब्रा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रो. अलमीदा गैरेन भी उन विशिष्ट व्यक्तियों में से एक थे
इसके बाद जो हुआ उसका वर्णन स्वयं प्रोफेसर अलमीदा गैरेन ने इस प्रकार किया है- ‘‘थोड़ी ही देर में घने बादलों के बीच से चमकते हुए सूर्य की तरह कोई वस्तु आकाश से पृथ्वी की ओर आती दिखाई दी उसे देख कर आंखें चौंधिया जाती थी। वेग से घूमने में उसका रंग बदल रहा था। पृथ्वी के समीप आकर तश्तरी रुक गई। उसमें से सफेद सी कोई वस्तु निकल कर उसकी छत पर दिखाई दी पर आज वह ठहरी नहीं, थोड़ी ही देर में वह सूर्य की ओर कुछ दूर जाकर विलुप्त हो गई। उसकी गति प्रकाश की गति से भी तेज थी।”
यह दो घटनायें यह सोचने को विवश करती हैं कि हमें केवल ‘पृथ्वी में ही जीवन’ के संकुचित दृष्टिकोण को परित्याग कर देना चाहिये और यह देखना चाहिये कि ब्रह्माण्ड से दूर भी कुछ है और उससे पार्थिव जीवन का घनिष्ठ सम्बन्ध भी है।
काल्पनिक गाथायें जान पड़ने वाली इन घटनाओं की पुष्टि अब पुरातत्व-संग्रह (आकोलॉजिकल्स) से भी होने लगी हैं। दुनियाँ के कुछ संग्रहालयों में ऐसी अनेक वस्तुएँ हैं जो यह प्रमाणित करती हैं कि अब की अपेक्षा प्राचीनकाल में लोगों में ब्रह्माण्ड का कहीं अधिक स्पष्ट अध्ययन किया था। उस समय अन्य लोकों से निःसन्देह प्राणी आते रहे हैं।
सात्यवर्ग म्यूजियम (आस्ट्रिया) में 785 ग्राम और 7.75 आपेक्षिक घनत्व का एक अवशेष 1877 में लोअर आस्ट्रिया की एक कोयला खान में खुदाई करते हुए मिला था। रेडियो सक्रियता से सम्बन्धित परीक्षण करने के बाद वैज्ञानिकों ने बताया कि इस कठोर टुकड़े का निर्माण तीन लाख वर्ष पूर्व हुआ था जबकि पाश्चात्य वैज्ञानिक आधुनिक सभ्यता का सर्वाधिक ऋग्वेदीय काल कुल सात हजार वर्ष मानते हैं। इतने वर्ष पूर्व यदि पृथ्वी पर मानवीय सभ्यता न रही होगी तो यह टुकड़ा निःसन्देह किसी अन्तरिक्ष से आये हुए यान का ही होगा और इससे बनाने वाले कुशल कलाकार ही नहीं बौद्धिक कारीगर भी रहे होंगे, क्योंकि उसकी लम्बाई, चौड़ाई में एक सूत का भी अन्तर नहीं है। गहराई की दोनों करवटें उन्नतोतर (कानवेक्स) हैं और उभारो में इतनी समानता है, मानों उसे किसी मशीन से खरादकर बनाया गया हो। बीच में छोटा सा छेद भी है, जो आमने सामने की समतल दीवारों से पार निकल गया है, वह छेद भी किसी यन्त्र से ही बनाया गया है।
वैज्ञानिक अब उसे किसी ग्रह द्वारा निक्षेपित (सूटेड) किसी यन्त्र का ही टुकड़ा मानते हैं। कारनेल विश्वविद्यालय में खगोल शास्त्र के प्राध्यापक डा. थामस गोल्ड की तो यहाँ तक मान्यता है कि - “ऊपर से आने वाले अज्ञात यात्री पृथ्वी के ही प्राणी होंगे और दूर नक्षत्रों से यह देखने आते होंगे कि हम जिस पृथ्वी पर रहते थे, अब उसकी क्या स्थिति है। भाषा और ध्वनि में अन्तर होने के कारण भले ही हम उनके सन्देश ग्रहण करने की स्थिति में न हों पर वहाँ भी तिथि, नक्षत्र, काल-विभाजन आदि नियमों की जानकारी और व्यवस्था है, क्योंकि उनका आना, सन्देश भेजना आदि सब निश्चित समय और अन्तर (इन्टरवल) में होता है।”
22 जून 1844 में इसी प्रकार आठ फुट गहराई में रदरफोर्ड मिल्स (लन्दन) में एक तार निकला था, वह भी ऐसी सभ्यता की पुष्टि करता है। 1908 में साइबेरिया में जो विस्फोट हुआ था, उसकी शक्ति तीन करोड़ टन टी० एन॰ टी० थी, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वह किसी उल्कापात के कारण नहीं वरन् किसी नियमित रूप से प्रेषित अज्ञात यान में रखे किसी अणु-अस्त्र का विस्फोट थी।
इन प्रमाणों के बावजूद भी पृथ्वी में किसी के आने या यहाँ से किसी के जाने की बात प्रमाणित करने की सबसे बड़ी कठिनाई गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त है। उसके रहते प्रकाश की गति से भी अधिक तीव्र गति देना किसी यान के लिए सम्भव नहीं और जब तक यह स्थिति न बने दूरवर्ती नक्षत्रों में पहुँचना और समय की सीमा में ही लौट आना कठिन है पर अब वैज्ञानिक यह मानने लगे हैं कि किसी वस्तु और उसके अन्दर के वायुमण्डल को गुरुत्वाकर्षण से मुक्त किया जा सकता है।
हमारी मान्यता उससे भिन्न और यह है कि शून्य अन्तरिक्ष में शक्तियों के कुछ ऐसे सूक्ष्म प्रवाह हैं, जहाँ यदि कोई वस्तु पहुँच जाये तो फिर वह किसी नक्षत्र में स्वयं खींचकर जा सकती है, ऐसी विचित्र शक्ति गंगाओं का पृथ्वी के समीप ही पता भी चला है, उसका वर्णन किसी अगले लेख में करेंगे