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Magazine - Year 1969 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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आत्मा के रहस्य के खुलते पन्ने

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‘दि ह्यूमन परसनैलिटी एण्ड आर्टस सरबाइवल आफ बाडीली डेथ के लेखक सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक श्री एफ॰ डब्लू॰ एच॰ मेयर्स ने एक घटना दी है-यह घटना अमरीका के वर्जीनिया प्रान्त में प्रकाशित होने वाली मेडिको लीगल पत्रिका के जून 1896 अंक में छपी थी और श्री ड्यूरी उसके लेखक थे। घटना इस प्रकार है-

“एक हृष्ट-पुष्ट व्यापारी जिसकी आयु लगभग 50 वर्ष रही होगी, व्यापार के लिये सामान लेने की दृष्टि से एक दूसरे शहर गया। उसे श्री के. कहते थे। बड़ा ही नेक ईमानदार सच्चरित्र आर शान्ति प्रिय। काफी दिन शहर में रहकर उसने तिजारत की, मित्रों से मिला और सामान इकट्ठा किया। अन्त में सामान जहाज की एक कोठरी में बन्द कराया। टिकट भी बुक करा ली, किन्तु जब जहाज चलने लगा तो बहुत खोज-बीन करने पर भी उस व्यापारी का कोई पता न चला।”

“6 माह बाद वह घर आया तो अत्यन्त दुर्बल और अशान्त-सा हो गया था। वस्त्र वही पहले वाले थे। जेब में जहाज की कोठरी की चाभी भी पड़ी थी। जब उसे होश आया तो उसने अपने आपको एक फलों वाली गाड़ी हाँकते हुए पाया। उसे यह जरा भी याद न था कि वह वहाँ कब, क्यों और कैसे आया उसे जहाज के कमरे में प्रवेश तक स्मरण था, उसके बाद 6 माह तक उसने क्या किया, कहाँ रहा, इसका उसे कुछ भी याद नहीं रहा।”

इसी पुस्तक के पैरा 225 में मेयर्स ने एक और घटना दी है- एल्या जेड नाम की कन्या बड़ी सुशील और बुद्धिमान थी। काफी परिश्रम करने के कारण उसका स्वास्थ्य कुछ बिगड़ गया। इस अवस्था में 2 वर्ष रहने के बाद एकाएक बालिका का व्यक्तित्व बदल गया। उसने कहा-मेरा नाम ‘टुआई’ है वह अमरीका के आदिवासियों की भाषा बोलने लगी, जिसका पहले उसे जरा भी ज्ञान नहीं था। इस अवस्था में उसकी फुर्ती और प्रसन्नता देखते बनती थी। वह अनोखी और मनोरंजक बातें करती थी। जब उस शरीर में फिर एल्या जेड आ जाती थी तो वही पहले की सी रुग्ण हो जाती थी।”

यह दो उदाहरण लिखने के बाद मेयर्स ने लिखा है-भौतिक मस्तिष्क से एक ही परिस्थिति में दो भिन्न-भिन्न व्यक्ति कैसे उत्पन्न हो सकते हैं, शरीर की बनावट में कोई अन्तर आये बिना स्मृति का बदल जाना और कोई नया व्यक्तित्व व्यक्त होना आत्मा के अस्तित्व का ही प्रमाण है। यह अनुसन्धान बताते हैं कि मनुष्य में आत्मा है और यह आत्मा मृत्यु के पश्चात् भी जीवित रहती है। यह बात चाहे साइन्स पढ़े-लिखे हों, चाहे साइन्स को मानने वाले हों स्वीकार किये बिना कल्याण नहीं।

आत्मा की हमारे शास्त्रों में त्रिकालदर्शी कहा गया है। यों भविष्य की कुछ बातें यंत्रों की सहायता से भी मालूम हो जाती हैं पर वे बहुत मोटी है। मौसम सम्बन्धी थोड़ी जानकारी के अतिरिक्त विज्ञान कुछ नहीं जान पाता पर कई बार ऐसी विलक्षण घटनायें घटती हैं, जिन्हें देख कर यह मानना पड़ता है कि भौतिक मन से भी बहुत प्रचण्ड क्षमता वाली कोई शक्ति मनुष्य शरीर में है और वह अतीत की ही नहीं अनागत भविष्य की भी अनेक बातें काफी पहले जान लेती हैं, ऐसा क्यों होता है, यह कभी बाद में लिखेंगे, यहाँ एक घटना का उल्लेख करेंगे, जिससे समदर्शी आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण मिलेगा। यह घटना हिन्दुस्तान टाइम्स के 19 मई 1981 के अंक में प्रकाशित हुई थी और स्टाक होम के ‘डेजन्स नेहटर’ पत्र से उद्धृत की गई थी-

“स्वीडन देश के स्टाक होम की जुलाई 1940 की की बात है। हन्स क्रेजर नामक एक क्लर्क अपनी चौथी मंजिल वाले कमरे में बैठा हुआ, दूर तक फैले हुए बल्कि सागर को छूकर आ रही शीतल वायु का सेवन कर रहा था। एकाएक उसकी दृष्टि सामने वाले मकान के चौथी मंजिल वाले कमरे में दौड़ गई। उसने देखा एक युवती कमरे में बैठी कोई पुस्तक पढ़ रही है। अपनी और आकृष्ट करने के लिये हम क्रेजर काफी देर तक उधर ताकता रहा। सहसा उसने एक अल्पवयस्क व्यक्ति को कमरे में प्रवेश करते देखा। उसके हाथ में एक लम्बा खुला हुआ चाकू था और उसकी मुद्रा बहुत डरावनी हो रही थी। उस मनुष्य ने वहाँ पहुँचते ही उस युवती के पेट में चाकू भोंक कर हत्या कर दी, वह महिला चिल्लाकर धराशायी हो गई। यह सब इतनी शीघ्र हुआ की क्रेजर सहायता के लिये भी नहीं पहुँच सका। वह खड़ा होकर चिल्लाया भी पर नीचे उसकी आवाज नहीं पहुँच सकी। वह काफी घबरा गया था।

क्रेजर शीघ्रता से नीचे उतरा और उस मकान के स्वामी के पास जाकर उक्त घटना का विवरण घबराते हुए सुनाया और शीघ्रता से ऊपर के कमरे में चलने का आग्रह किया। मकान का स्वामी हँसा और बोला-क्रेजर तुम्हारा मस्तिष्क शराब हो गया है, चौथी मंजिल पर तो कोई किरायेदार रहता ही नहीं, वह कमरे खाली पड़े हैं, वहाँ किसकी हत्या होगी।” पर क्रेजर माना नहीं उसने पुलिस को सूचना दी। पुलिस आई और क्रेजर के बताये कमरे में गई पर वहाँ न कोई आदमी, न कोई लाश। फिर भी क्रेजर बराबर हठ करता रहा कि उसने सच-सच हत्या होते देखा है। अन्त में उसे पागल समझ कर पागल खाने भेज दिया गया।

एक सप्ताह बाद एक स्त्री और एक पुरुष उस मकान के स्वामी के पास किराये के मकान के लिये आये। पहले तो मकान का स्वामी चौंका, क्योंकि वह स्त्री और वह पुरुष ठीक जैसे ही कपड़े पहने थे, जैसा कि क्रेजर बता रहा था, किन्तु फिर वह सँभल गया, क्योंकि हत्या की घटना से इसकी कोई संगति नहीं बैठती थी। उस दम्पत्ति ने वह कमरा किराये पर ले लिया। तीन महीने बाद ऊपर के किरायेदार नीचे भागे आये और उन्होंने बताया कि उस कमरे में जोर की चीखने की आवाज आई है। पुलिस बुलाई गई और सब लोग ऊपर पहुँचे लोग यह देख कर आश्चर्यचकित रह गये कि हत्या की जो परिस्थितियाँ क्रेजर ने तीन महीने पहले बताई थी, ठीक उसी अवस्था में यह हत्या की गई थी। पति ने स्वीकार किया कि उसने ईर्ष्यावश यह हत्या की है। बाद में डाक्टरों की एक समिति ने क्रेजर को पागलखाने से छुड़ाया ताकि उसके इस भविष्य-दर्शन का अध्ययन किया जा सके।

तीन महीने बाद की घटना का हूबहू चित्रण-क्या विज्ञान इस सम्बन्ध में कोई निश्चित निराकरण प्रस्तुत कर सकता है। अमेरिका जो विज्ञान में इतना बढ़ा-चढ़ा है कि चन्द्रमा और मंगल की यात्रा की तैयारी कर रहा है, वह अपने ही तीन यात्रियों की मृत्यु का पूर्वाभास न कर सका। बेचारे चन्द्रयान में ही सबके देखते-देखते घुटकर जल मरे। यांत्रिक मस्तिष्क और कम्प्यूटर गणित के थोड़े समीकरण हल कर सकते हैं, भविष्य-दर्शन जैसी विलक्षण बातें आत्मा के गुण हैं, आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण है, उसकी अपेक्षा नहीं की जा सकती।

स्वप्न में विचार, ज्ञान और स्मृति भी आत्मा के अस्तित्व को ही प्रमाणित करते हैं। फ्रायड लिखते हैं कि स्वप्न ‘इच्छा पूरक’ होते हैं और भूतकालीन समस्याओं के लिये नाटक की तरह है, अर्थात् मनुष्य दिन में जो कुछ सोचता और कहता है, उनमें से कई बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें वह बहुत चाहता है पर कर नहीं पाता पर चूँकि वह उन पर विचार कर चुका होता है। इसलिये उस दमित विचार की फोटो अचेतन मस्तिष्क में जम जाती है और रात में जब मनुष्य सोता है, तब वही दृश्य उसे स्वप्न की तरह दिखाई देने लगते हैं।

आज स्वप्नों के बारे में लोगों की ऐसी ही या इसी से मिलती-जुलती मान्यतायें हैं पर आत्म-विज्ञान की दृष्टि में स्वप्न मनुष्य जीवन की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। उसका सम्बन्ध भले ही अचेतन मन से हो पर वह होता सनातन अर्थात् जब से जीव का प्रादुर्भाव हुआ है, तब से और आगे होने वाली घटनाओं से भी सम्बन्ध रखता है। इसलिये स्वप्न को भी आत्मा के अस्तित्व के प्रमाण के रूप में लिया जा सकता है। ऐसे स्वप्न जो उपरोक्त घटना की तरह काफी समय बाद होने वाली घटनाओं का भी पूर्वाभास करा देते हैं, उसके प्रमाण माने जा सकते हैं।

ब्वायल शिमला में अफसर थे। उन्होंने एक रात स्वप्न में देखा कि उनके श्वसुर की मृत्यु इंग्लैंड के ब्राइटन नगर में अमुक मकान में इस समय हुई। जबकि कुछ दिन पूर्व ही उनके स्वास्थ्य की कुशल-मंगल आई थी, इसलिये उन्हें इस तरह की कोई आशंका या चिन्ता भी नहीं थी, किन्तु बाद में उन्हें पत्र मिला जिसमें उनका स्वप्न बिलकुल सत्य निकला।

अमेरिका के पेनसिलबेनिया के प्रोफेसर लेम्बरटन की एक समस्या का हल मौखिक रूप से करना चाहते थे पर बहुत प्रयत्न करने पर भी वैसा न कर सके। एक सप्ताह बाद उन्होंने दीवाल पर हल लिखा हुआ पढ़ा। स्वप्न टूटने पर उन्होंने उसको पेन्सिल से लिख लिया और बाद में पाया कि समस्या का ठीक वही हल था, जो स्वप्न में दीवाल पर लिखा देखा था।

इन तथ्यों का विज्ञान के पास कोई समाधान नहीं है। यदि होता तो उसे प्रस्तुत किया जाता। विज्ञान का क्षेत्र सीमित है, आत्मा का अनन्त। विज्ञान मनुष्य की समस्यायें जितना सुलझाता है उससे अधिक उलझा देता है, जबकि आत्मा का ज्ञान हमारी मूल समस्या और प्रश्न है। उसका समाधान आत्मानुभूति होने पर ही हो सकता है। आत्मा के तथ्यों की खोज और उसे प्राप्त किये बिना चैन नहीं, सुख और शान्ति नहीं।

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