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Magazine - Year 1974 - Version 2

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कितना विशाल विश्व, कितना तुच्छ अपना अस्तित्व

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विश्व ब्रह्माण्ड की विशालता और अपनी क्षुद्रता की तुलना करते हैं तो अपना अहम् सहज ही गल जाता है। हम क्या हैं—वे सम्पदाएँ क्या हैं जिन पर इतराते हैं और वह जीवन क्या है जिसे हम अमर समझते हैं, इसे ठीक तरह समझने के लिए उस ब्रह्माण्ड का स्वरूप भी जानना पड़ेगा जिसके हम एक नगण्य से अंग अवयव हैं।

ब्रह्माण्ड कितना विशाल और उसकी तुलना में अपनी पृथ्वी कितनी क्षुद्र। अपनी पृथ्वी पर रहने वाले कोटि−कोटि प्राणियों के बीच बेचारे मनुष्य के बीच हमारी नगण्य सी एक सत्ता। इन सबको तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो प्रतीत होगा कि शरीर में रहने वाली खरबों कोशिकाओं में एक की सत्ता जितनी स्वल्प है उससे भी असंख्य गुनी न्यून अपनी सत्ता हे। ब्रह्माण्ड की तुलना में पिण्ड और पिण्ड की तुलना में अणु कितना क्षुद्र है। विशाल की तुलना में हम कितने तुच्छ हैं इस पर एक क्षण के लिए भी विचार कर सकें तो प्रतीत होगा कि अपने उपहासास्पद कलेवर में इतराने जैसी—अहंकार में इठने जैसी कोई बात नहीं है।

भगवान् कितना विशाल है। विशाल ब्रह्माण्ड जैसा। भगवान् कितना लघु है। अणु−परमाणु जैसा। मनुष्य भी यदि अपनी आत्म सत्ता को समझने और आत्म विस्तार की भूमिका में उतरे तो वह भी विभु है− महान् है, पर यदि संकीर्ण स्वार्थपरता की—व्यक्ति वादी अहंता की तुच्छता में सीमाबद्ध होकर रह जाय तो वह वस्तुतः इतना क्षुद्र है जिसे महत्वहीन नगण्य एवं उपहासास्पद ही कहा जा सकता है।

अपने सूर्य को ही लें। उसका व्यास 865380 मील है। उसकी कुल परिधि 2700000 मील है।

अनुमानित भार 19 करोड़ 98 लाख महाशंख टन। वह अपनी धुरी र 25 दिन 7 घण्टे 48 मिनट में एक चक्कर लगाता है। उसकी सतह पर 600 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान है और मध्य गर्भ में 15000000 डिग्री सेन्टीग्रेड। वह दो सौ मील प्रति सेकेंड की उड़ान उड़ता हुआ महा ध्रुव की परिक्रमा में निरत है यह परिक्रमा 25 करोड़ वर्ष में पूरी होती है। इस परिक्रमा में उसके साथी और भी कई सूर्य होते हैं जिनके अपने−अपने सौरमंडल भी हैं।

पृथ्वी से सूर्य 109 गुना बड़ा है। दोनों के बीच की दूरी 93000000 मील है। यदि हम 600 मील प्रति घण्टे की गति स उड़ने वाले अपने तीव्रतम वायुयानों में बैठकर लगातार उड़ें तो उस दूरी को पार करने में 18 वर्ष लगेंगे।

सूर्य से पृथ्वी पर जो शक्ति बरसती है वह इतनी है कि एक वर्ग इञ्च की शक्ति से 60 हार्स पावर का इंजन चल सके। पूरी पृथ्वी पर सूर्य जो ताप फेंकता है वह प्रति सेकेंड इतना होता है जितना 12 हजार अरब टन कोयला जलाने पर ही पैदा किया जा सकता है। सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर प्रति वर्ग इञ्च इतना होता है जितना तीन लाख मोमबत्तियाँ जलाने से पैदा किया जा सके। सूर्य की शक्ति का 220 करोड़ वाँ भाग ही पृथ्वी पर पहुँच पाता है।

वैज्ञानिकों की नवीनतम गणना के अनुसार ब्रह्माण्ड में लगभग 10 करोड़ सौरमण्डल और 10 अरब तारे हैं। इन तारों में कोई−कोई कल्पनातीत विस्तार के हैं। अकेला जेष्टा ही इतना बड़ा है कि उसके पेट में अपने तीन करोड़ सूर्य घुस कर बैठ सकें। प्रख्यात ‘एन्ड्रोमीडा’ निहारिका हमसे 8 लाख प्रकाश वर्ष दूर है। जबकि एक प्रकाश वर्ष को 58 खरब 80 अरब मील माना जाता है।

अपनी धरती का व्यास 12700 किलो मीटर है। वह 30 किलो मीटर प्रति सेकेंड की उड़ान भरती हुई 365 दिन में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करती है। सूर्य और पृथ्वी के बीच की औसत दूरी 9 करोड़ 30 लाख मील रहती है। धरती का जन्म अब से 5 अरब वर्ष पूर्व हुआ। 3 अरब वर्ष पूर्व उस पर जीवन प्रारम्भ हुआ। इनसे मनुष्य का अस्तित्व 10 लाख वर्ष पहले ही हुआ है। इससे पूर्व अन्य जलचर, थलचर, नभचर प्राणी उत्पन्न हो चुके थे। इनमें से 20 लाख जातियों के प्राणी अभी भी पाये जाते हैं। पुराणों में बताई गई 84 लाख योनियों में से अब सिर्फ 4 लाख जीव जातियाँ ढूँढ़नी शेष रह गई हैं।

यह अपना सौर मण्डल भी कितना विचित्र है। उपग्रहों की सदस्यता के बारे में हममें से बहुतों को यह भी नहीं मालूम है कि मंगल पर 2, बृहस्पति पर 12, शनि पर 9, यूरेनस पर 5 और नेपच्यून पर 2 चन्द्रमा भ्रमण करते हैं। मात्र हमारा एक चन्द्रमा ही सौरमण्डल का एक उपग्रह नहीं है। कुल मिलाकर उनकी संख्या 31 है।

हमारा वर्ष 365 दिन का और दिन 24 घण्टे का होता है। किन्तु अन्य ग्रहों की स्थिति भिन्न है। धरती पर जितना बड़ा दिन होता है उसके हिसाब से लखा−जोखा लिया जाय तो सूर्य का एक दिन हमारे 176 दिनों के बराबर होता है।

बुध का दिन 243 दिन का वर्ष 225 दिन का है। मंगल का दिन पृथ्वी के लगभग बराबर है। उसका दिन 24.6 घण्टे का और वर्ष 1.9 वर्ष का है। बृहस्पति का दिन 10 घण्टे का और वर्ष 12 का—शनि का दिन 10 घण्टे और वर्ष 29 वर्ष का—यूरेनस का दिन 11 घण्टे का और वर्ष 84 वर्ष का—नेपच्यून का दिन 16 घण्टे का और वर्ष 165 वर्षों का, प्लूटो का एक दिन हमारे 6 दिन 9 घण्टों की बराबर है। उनके आकार में भी भारी भिन्नता है। अपने मीलों के हिसाब से सौरमण्डल का व्यास नापा जाय तो सूर्य का व्यास 8,64,000 बुध का 3100 शुक्र का 7500, पृथ्वी का 7920 मंगल का 4150, बृहस्पति का 87,000, शनि का 71500, यूरेनस का 32000 नेपच्यून का 31000, प्लूटो का 4500 मील है। सूर्य से किस ग्रह की दूरी कितनी है इसका हिसाब लगाने के लिए अपने मील बहुत झंझट भरा विस्तार करेंगे इसलिए अपने 10 लाख मील का एक सौरमण्डलीय मील मानकर चला जाय यह ठीक रहेगा। तब उस अन्तरिक्ष मील के अनुसार सूर्य से उसके सौर परिवार की दूरी इस प्रकार नापी जा सकती है। बुध की 36,2 शुक्र की 66,9 पृथ्वी की 92,9 मंगल की 141,2 बृहस्पति की 483 शनि की 882,6 यूरेनस की 178307 नेपच्यून की 2787 प्लूटो की 3621,1।

अपने सौरमण्डल का एक आनुमानिक नक्शा धरती पर बनाना हो तो पृथ्वी को एक इञ्च की गोली जितनी बनाना चाहिए। तब सूर्य उससे 322 गज दूर 9 फुट व्यास का बड़ा गोला होगा सूर्य के 124 गल दूर बुध—232 गज दूर शुक्र होंगे तब 322 गज दूर पृथ्वी बनानी पड़ेगी। इसके बाद मंगल 488 बृहस्पति 1672 शनि 3067 अरुण 6159 डडडड 9656 और यम 13300 गज दूर अंकित करने पड़ेंगे। बेचारा अपना चन्द्रमा तो पृथ्वी से 30 इञ्च दूर एक बने के दाने जितना होगा।

प्रा. फ्रेड होयल डा. रुडोल्फ मिन्केवस्की आदि खगोल विद्या के मूर्धन्य विशेषज्ञों का कथन है कि अपना ब्रह्माण्ड बूढ़ा होता जाता है ज्यों−त्यों उसकी सिकुड़न बढ़ रही है। गर्मी के कारण फैली ली हुई गैसों का तापमान घट रहा है। फलतः सिकुड़न उत्पन्न होने से ग्रह नक्षत्र उत्पन्न होने की चाल तेज हो गई है। हमारी अपनी आकाश गंग ही लगभग एक नये सूर्य को हर वर्ष जन्म दे देती है। यह गति आरम्भिक काल की अपेक्षा आठ गुनी अधिक तेज है। ब्रह्माण्ड में सबसे अधिक मात्रा में हाइड्रोजन गैस से बना हुआ पदार्थ भरा पड़ा है।

वाशिंगटन की नौ सेना अनुसंधान प्रयोगशाला ने आकाशीय पिण्डों में सबसे रहस्यमय तारे ‘क्वासर’ बताये है। वे बहुत बूढ़े और बहुत दूर होते हुए भी बहुत चमकीले हैं और सबसे खतरनाक एक्सकिरणें प्रचण्ड मात्रा में समस्त ब्रह्माण्ड में बखेरते हैं। वही अनुदान पृथ्वी को भी विपुल मात्रा में मिलता है। राकेट विज्ञानी डा हर्बट फ्रीडमेन का कथन है कि इन क्वासरे ने समस्त ब्रह्माण्ड को एक्स किरणों का एक प्रकार से महानगर ही बनाया हुआ है। क्वासरों में से एक निकटवर्ती 3सी 147 को 600 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर माना गया है एक प्रकाश वर्ष अर्थात् 1000000 करोड़ किलो मीटर दूरी। किलो मीटरों के हिसाब से इन क्यासरों की दूरी कितनी अकल्पनीय है।

अपनी निहारिका बीस हजार प्रकाश वर्ष मोटी और एक लाख प्रकाश वर्ष लम्बी है। यह गोल आकार की होने से चौड़ाई भी लगभग इतनी ही है। उसके परिवार में लगभग सौ अरब ग्रह नक्षत्र हैं।

अपनी मंदाकिनी निहारिका जैसी इस ब्रह्माँड में करोड़ों है। उनमें से हमें अधिक समीप एन्ड्रोमेडा (देवयानी) है हमें उसी के बारे में कुछ अधिक जानकारी है। इसकी दूरी सब से निकट होते हुए भी अपनी आकाश गंगा से बीस लाख प्रकाश वर्ष दूर है। उसे हम मृगसिर नक्षत्र में खुली आँखों से भी देख सकते है। पर वह प्रकाश जो दिखाई देगा बीस लाख वर्ष पुराना होगा, जबकि हमारी पृथ्वी का जन्म अथवा विकास का आरम्भ भी नहीं हुआ था। आज वहाँ क्या स्थिति है इसे जानना हो तो इतने ही समय प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। समस्त ब्रह्माण्ड कितना विस्तृत है, उसका ठीक विवरण प्राप्त नहीं पर संसार की सबसे बड़ी रेडियो, दुर्बीन जो अमेरिका के पालोमर पर्वत पर लगी है उससे पाँच अरब प्रकाश वर्ष दूरी की निहारिकाओं को देख लिया गया है।

यह निहारिकाएं अपने स्थान विद्यमान नहीं है वे एक दूसरे से उसी तरह दूर भागती जा रही हैं जैसे दागने के बाद बन्दूक से उसकी गोली दूर भागती है। इस भगदड़ की चाल साठ हजार किलो मीटर प्रति सेकेंड है। समस्त विश्व ब्रह्माण्ड का फुलाव विस्तार कितना गुना हो चुका होगा इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता हे कि पिछले दो वर्ष में ही उसका पेट दूना फूल चुका है यह माप करली गई है। प्रगति के पथ पर सभी ग्रह नक्षत्र तेजी से भाग रहे हैं जिस दिन यह विकास स्पर्धा बन्द होगी उसे दिन ब्रह्माण्ड के सामने महाप्रलय आ उपस्थित होगी।

प्राण चेतना अपनी सम्बन्धित वस्तुओं के साथ चिरकाल तक जुड़ी रहती है और उसका मोह उन पर छाया रहता है इसका प्रमाण मिश्र के पिरामिडों एवं कब्रों की उखाड़−पछाड़ करने वालों पर बीती घटनाओं से मिलती है। अध्यात्म विज्ञान के अनुसार प्राणी के अन्यत्र जन्म लेने या अन्य लोक के चले जाने पर भी उसकी विद्युत शक्ति उन वस्तुओं पर घेरा डालकर चिरकाल तक अपना आधिपत्य जमायें रहती है जिनके साथ उसका मोह अहंकार जुड़ा हो। भूत,प्रेतों का अस्तित्व प्रायः इसी स्तर का होता है। जीव के जन्म ले लेने के बाद भी लम्बे समय उनकी छाया का प्रेत रूप में बने रहना सम्भव है।

अठारहवीं शताब्दी में अफ्रीका के बहुत बड़े भाग पर यूरोपियन लोगों का अधिकार था। उन देशों के पुरातत्व

शरीर के साथ ही आत्मा मर नहीं जाती− वेत्ता इस बात के बहुत उत्सुक थे कि मिश्र के पिरामिडों तथा दूसरे मृतक स्मारकों के पीछे छिपे रहस्यों पर ये पर्दा उठाया जाय। इसलिए उन्होंने इस संदर्भ में काफी ढूंढ़ कुरेद की—खुदाई की और कितनी ही पुरानी कब्रों को उखाड़ा।

इस कार्य में शोध कर्ताओं का एक उत्साही दल डा. व्रेस्टेड के नेतृत्व में काम कर रहा था उनके सहायक हार्वड कार्टर—आर्थर वीगल लार्ड कारन वर्ग आदि कितने ही मूर्धन्य पुरातत्व वेत्ता अपने−अपने ढंग से काम कर रहे थे। इन लोगों ने बहुत धन खर्च करके प्राचीन काल के अवशेषों को प्राप्त किया था और उस आधार पर प्राचीन काल की परिस्थितियों तथा मान्यताओं का पता लगाया था।

इसी संदर्भ में सन् 1922 में ‘तूतन खामेन’ नामक स्थान से एक ऐसे वृद्ध फकीर कब्र खोदी गई जिसके सम्बन्ध में कितनी ही चमत्कारी दन्त क थाएँ प्रचलित थी। खुदाई का एक उद्देश्य उस क्षेत्र में फैले हुए अन्धविश्वासों का निरस्त करना भी था।

कब्र खोद ली गई और उसके अवशेष भी प्राप्त कर लिये गये। अब उनका रासायनिक विश्लेषण होना आरम्भ हुआ। इस बीच एक से एक बढ़कर आश्चर्यजनक और भयानक घटनाएँ घटित होना आरम्भ हो गया। डा. वे्रस्टेड अपनी प्रयोगशाला में अवशेषों के लकड़ी के टुकड़े का विश्लेषण करने के लिए एक बर्तन में कुछ रासायनिक पदार्थों के साथ उबाल रहे थे कि इतना भयंकर विस्फोट हुआ कि प्रयोगशाला की छत उड़ गई और दीवारें हिल गई। इसी एक काला सर्प शोधकर्ता कार्टर के घर जा धमका वे स्वयं तो किसी प्रकार बच गये पर उनकी पत्नी को उसने डस लिया और वह देखते−देखते मर गई। एक महीना बीता होगा कि लार्डकारन वर्ग को नन्हें से मच्छर ने काटा और दो दिन के भीतर ही वे मर गये। मच्छर काटने का स्थान बिल्कुल साँप के काटने जैसी स्थिति का बन गया था। इतना ही नहीं कारन वर्ग महोदय का हट्टा−कट्टा भाई भी उन्हीं दिनों दो दिन की मामूली बीमारी में चल बसा।

दल के प्रमुख व्रेस्टेड कब्र खुदाने के दो सप्ताह के भीतर ही मर गये। अपनी पत्नी को गँवा कर भी कार्टर साहस पूर्वक अन्ध−विश्वासों का खण्डन करते रहते थे और शोध कार्य को शिथिल नहीं पड़ने दिया था, पर न जाने क्या कुयोग उत्पन्न हुआ कि वे एक छोटी सी तलैया में जा फँसे और उस कीचड़ में ही फँसे हुए असहाय स्थिति में मरे पाये गये इस प्रकार वह पूरा शोधकर्ता दल ही समाप्त हो गया।

यह घटनाएँ मरणोत्तर जीवन के ठोस प्रमाण प्रस्तुत करती हैं और उनके लिए एक चुनौती देती हैं जो शरीर के साथ ही जीवन का अन्त होने की बात कहते रहते हैं।

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