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जो व्यक्ति अपनी रोजी ईमानदारी से कमाना चाहता है, उसके लिए किसी भी प्रकार का श्रम करना अपमानजनक नहीं है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि परमात्मा ने हमें जो हाथ पैर दिये हैं, उनका इस्तेमाल करने को हम तैयार रहें। परमात्मा ने मनुष्य को पैदा ही इसलिए किया कि हम अपनी रोटी के लिए स्वयं परिश्रम करे। प्रकृति को भी हमसे यही अपेक्षा है कि हम पसीना बहा कर अपनी रोटी कमाएँ। इस प्रकार हर व्यक्ति जो एक मिनट भी फालतू खोता है, अपने पड़ोसियों पर उतनी ही मात्रा में बोझ बन जाता है और ऐसा करना अहिंसा के बुनियादी सिद्धान्त की अवहेलना है। अहिंसा का कोई महत्व ही नहीं रह जाता, यदि व्यक्ति अपने पड़ोसी का सन्तुलित तरीके से ख्याल नहीं रखता। आलसी और कमजोर आदमी में इस गुण का सर्वथा अभाव रहता है।
हमारा अधिकांश समय रोटी कमाने के लिए परिश्रम करते हुए बीत जाता है अतः हमारे बच्चों को बचपन से ही श्रम की प्रतिष्ठा का मूल्य सिखाया जाना चाहिए। बच्चों को हमें ऐसी शिक्षा कदापि नहीं देनी चाहिए, जिससे वे श्रम से घृणा करें।
दिन में एक घन्टा हमें मजदूरों के समान श्रम करना चाहिए, ताकि हम दरिद्र नारायण के साथ और इस प्रकार सम्पूर्ण मानवता के साथ अपना तारतम्य स्थापित कर सकें। मैं और किसी चीज को न इससे अधिक उदार समझता हूँ न राष्ट्रीय ही। मैं यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि परमात्मा के नाम पर गरीबों के लिए श्रम करने से अधिक बढ़िया ईश्वर की और कोई पूजा हो सकती है।
प्रतिभा को जागृत करने के लिए, बुद्धिपूर्वक लाभकारी श्रम करने से अच्छा और कोई साधन नहीं हो सकता। सन्तुलित बुद्धि के विकास में तन-मन और आत्मा का सामंजस्यपूर्ण विकास अनिवार्य रूप से निहित है।
-मो. क. गांधी
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