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Magazine - Year 1980 - Version 2

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सुगन्ध की रंग (kahani)

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भगवान फूल से उसे दी हुई सुगन्ध की रंग की माँग करता है । कोकिल से कुहू-कुहू की ही अपेक्षा रखता है । वृक्ष से उसके फल की ही आशा रखता है ।

लेकिन मनुष्य के सम्बन्ध में उसकी अपेक्षा निराली है । उसकी इच्छा है कि मनुष्य दुःख में से सुख प्राप्त करें ! अन्धकार में से प्रकाश उत्पन्न करें । मरण में से अमृतत्व प्राप्त करे । आस-पास चारों ओर गन्दगी फैली है, असत् फैला है । ईश्वर चाहता है, मनुष्य इस असत् से सत् प्राप्त करें । इस विष में से सुधा का सर्जन करें । इस अमंगल में से मंगल का निर्माण करें ।

मनुष्य के साथ ही यह पक्षपात क्यों ? उसी के ऊपर यह महान उत्तरदायित्व क्यों ?

भगवान कठोर नहीं है,दुष्ट नहीं है । वे तो न्यायशील समदर्शी है । उन्होनें सारी सृष्टि में मानव को ही सबसे समग्र बनाया है । तब उससे ये अपेक्षाएँ न करें तो किससे करें ।

वस्तुतः मनुष्य के लिए तो यह गौरव की बात है कि उससे इतनी बड़ी अपेक्षाएँ की गई है । किसी वीर से छोटे-छोटे कीड़े मारने को कहना उसका अपमान करना है । उसी प्रकार क्षुद्र कार्यों या उपलब्धियों की ही मनुष्य से भी अपेक्षा की जाये, यह उसकी शक्ति का अपमान होगा ।

भगवान को आशा है कि मेरा लाड़ला बेटा मनुष्य सब कुछ कर सकेगा, जो उससे अपेक्षित है ।

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