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Magazine - Year 1980 - Version 2

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Language: HINDI
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आसनों व्यायामों की वैज्ञानिक मान्यता

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योग मुख्यता जीव चेतना को ब्रह्मचेतना के साथ जोड़ देने वाली भावनात्मक एवं विचारणात्मक पद्धिती है। उसमें दार्शनिकता प्रधान है तथा हलचल कम। योगी अपनी हलचलों को समेटते हैं और शरीर की शिथिलता को मन की शान्ति एकाग्रता की स्थिति में ले जाने का प्रयत्न करते है। इससे अर्न्तजगत की थकान दूर हो होती है और ध्यान धारणा के सहारे समाधि स्तर को विश्रान्ति प्राप्त करने के उपरान्त वह स्थिति बन जानी है जिसमें नव जीवन का नये सिरे से निर्धारण सम्भव हो सके। ब्रह्म विद्या का तत्वदर्शन मन और चिन्तन परक है उपनिषद् में योग का प्रतिपादन इसीरुप में हुआ हैं।

योग का भौतिक पक्ष वह है जिसमें शारिरिक हलचलों पर अधिक ध्यान दिया गया है और उसके सहारे स्वास्थ्य रक्षा के लिए प्रयत्न किया गया है। इस प्रतिपादन का तर्क यह है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है। इसलिए मन को सुसंस्कृत बनाने से पूर्व शरीर को स्वस्थ बनाने की आवश्यकता हैं।

तर्कों का यह सिलसिला र्व्यथं है। शरीर प्रथम या मन इस विवाद में पडे़ बिना भी यह माना जा सकता है कि स्वास्थ्य की अपनी उपयोगिता है और प्रधान या गोण ठहराने के झंझट में पडे़ बिना भी महत्वपूर्ण समझा जाए। इसके लिए जो योग साधन उपयोगी हो सकते हैं उन्हें काम में लाया जाय।

योग साधन के शरीर पक्ष में आसन, प्राणायाम, बंध, मुद्रा जैसी क्रियापकर विधियों का समावेश है। हठयोग के अर्न्तगत नैति, धेति, वस्ति, न्यौलि, बजौली कपालमति, आदि जिन शोधन कृत्यों का विधि विधान हैं उन्हें भी इस स्तर का माना जा सकता है। व्रत उपवास एवं तितीक्षा उपचार भी लगभग इसी श्रेणी के हैं। इनका उद्देश्य षरीर को निरोग समर्थ बनाना है। फिर भी जिन सिद्धान्तों, उपायों का इस प्रकार के क्रिया-कृत्य में उपयोग किया जाता है उनका पराक्ष्ज्ञ रुप् में चेतना को परिष्कृत करने में भी कुछ न कुछ उपयोग रहता ही है। स्वास्थ्य सुधार का लाभ भी कम महत्व का नहीं है। उसके लिए जो उपचार का म में लाये जाते हैं उन्हें योग विद्या के भौतिक पक्ष की पूर्ति करने वाले माना और अपनाया जा सकता है।

विज्ञान क्षेत्र में षरीर को ही प्रधानता मिली है इस लिए योग के सर्न्दभ में उसका वही पक्ष आकर्षक लगा है जो स्वाथ्य सर्म्बधन के लिए प्रयुक्त होता है। इसलिए विदेशों में आसन प्राणायाम को ही योग माना गया है बहुत हुआ तो मानसिक एकाग्रता को भी इसमें सम्मिलित कर लिया जाता है।

आसनों के सम्बन्ध में जो शोध देश और विदेश में चला है उससे वे अंग संचालन की सामान्य व्यायाम प्रक्रिया न रह कर उससे अधिक बढे-चढे़ सिद्ध हो रहे हैं। स्पष्ट है कि जिसे प्रयोगशाला स्वीकार करती है उन्हें अन्य लोग भी अपनाने लगते है। अगता है जिन आसन अभ्यायाँ को पिछले दिनों उपहासास्प्द ठहराया जाता था उन्हें अगले दिनों ताथकथित लोगों को भी उपयोगिता देखते हुए आकर्षित होना पडे़गा।

रुस के व्यायाम-चिकित्सा के प्रोफेसर एम. सारकी सौव सैराजिनी ने “मैन मस्ट बी हेल्दी” नामक पुस्तक लिखी है। वे वहाँ अपने विषय के मर्मज्ञ एवं विशेषज्ञ मसझे जाते है। अपनी उक्त पुस्तक में उन्होंने स्व्स्थ रहने के लिए यौगिक श्वसन का परामर्श दिया है।

सेन्ट्रल क्लीनिकल हास्पीटल मास्को के बाल-रोग विशेषज्ञ एवं सर्जन डा. अनातोली मैड बैस्टकाई रोगी बालकों कमो सरल एवं साधरण योगासनों का नुस्खा बताते हैं और इस कार्य में वह विशेष सफलता प्राप्त करते हैं।

रुस के ही काँन्सटेनिटन बुटिको नामक हृदय रोग विशषज्ञ चिकित्सक ने सैकड़ों विभिन्न प्रकार के बीमारों को योगिक क्रियाओं द्वारा ठीक करने में आशातीत सफलता प्राप्त की उन्होने दमा से पीड़ित व्यक्तियों को औषधियाँ देने के बजाय यौगिक श्वसन की क्रिया का अभ्यास कराया। परिणाम स्वरुप् उनके शरीर में प्रवेश करने वाली आँक्सीजन व कार्बनडाय आक्साइड के बीच रहने वाला असन्तुलन दूर हो गया और दमा के रोगियों को बहुत लाभ हुआ। दमा के अतिरिक्त वह यौगिक क्रियाओं द्वारा मिर्गी, उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोग जैसी भयानक बीमारीयों का सफल उपचार करते है।

वर्तमान समय में विश्व में करोड़ों की सख्या में मधुमेह के रोगी है। मेडीकल साइन्स के द्वारा अभी तकइसका कोई सुनिश्चित उपचार ज्ञात नहीं हो सका है। 400 ई. पू. सुश्रुत ने इस बीमारीयों के रोगियों कें मूत्र में मिठास की उपस्थिति बताई थी। ईसा की 17वीं शताब्दी में वैस्ट विली, ने मधुमेह से पीड़ित रोगी के मूत्र में शक्कर की उपस्थिति का परीक्षण करके दिखाया। मधुमेह के रोगी की समस्त अन्तस्त्रावी ग्रन्थियाँ प्रभावित होती हैं। प्रारम्भ में रक्त में ग्लूकोज की मात्रा कम एवं पैन्कियाज से त्रावित इन्सुलिन की मात्रा में कमी पाई जाती हैं।

सेन्ट्रल कौन्सिल फार रिसच इन इण्डियन इन्डिजिनस मेडीसन एण्ड होम्योपैथी, द्वारा आयोजित-प्रथम वैज्ञानिक सम्मेलन में डा. धर्मवीर, नारायण वरन्दानी और स्वामी आनन्द में मधुमेह की चिकित्सा में ‘योग का योगदान सम्बन्धी कुछ प्रयोगों का निर्ष्कष प्रस्तुत किया।

यौगिक ट्रीटमेंट रिसर्च सेन्टर” नामक संस्था में विभिन्न आयु वर्ग के 283 मधुमेह के रोगियों पर तीन महीने के लिए प्रयोग किया गया। रोगियों को सन्तुलित भोजन के रुप में 68 ग्राम वसीय पदार्थ, 400 ग्राम कार्बोहाईड्रेट्स, 200 ग्राम प्रोटीन और कुल 2600 कैलोरी नियमित ढंग से प्रदान किये गये। समय-समय पर उनका भार, मूत्र परीक्षण, खून में शूगर ग्लूकोज की जाँच तथा हृदय का ई.सी.जी. द्वारा परीक्षण किया गया।

रोगियों को प्रतिदिन प्रातः साय दो बार सर्वांगासन, हलासन मयूरासन, पादहस्त्रासन, शवाशन आदि सरल आसन एवं कुछ अन्यान्य यौगिक क्रियाएँ करायी जाती रहीं। साथ ही उनकी दिनचर्या नियमित क्रम सेरखी गयी तथा प्रार्थंना भजन-पूजन, ध्यान-साधनाआदि का भी समावेश रखा गया।

तीन महीने के पीरक्षण के बाद देखा गया तो ज्ञात हुआ कि 52 प्रतिशत रोगी लाभान्वित हुए उनमें से अधिकाँश पूर्ण स्वस्थ हो गए। इस अवधि में भी जिन्हें बहुत अल्प लाभ पहुचा या ठीक नहीं हुए वे या तो जन्म से रुग्ण थे अथवा लम्बों अवधि से बीमार रहे थे।

‘योग लाइफ’ के 1677 के अंक में डा. लक्ष्मीकान्तन का ‘योग ऐण्ड दी हार्ट’ नामक लेख छपा था। डाँ. लक्ष्मीकान्तन् मेडीकल कालेज मद्रास के प्रोफेसर है। उन्होंने गवर्नमेंन्ट जनरल हाँस्पीटल में विभिन्न हृदय रोगियों पर आसनों का प्रभाव देखने के लिए प्रयोग किए । उन्होने ऐसे उच्च रक्तचाप वाले रोगियों के ऊपर प्रयोग किये जिन्हें मेडीकल चिकित्सा से कोई विशेष फायदसव नहीं हुआ। प्रोफेसर लक्ष्मीकान्तन जी ने दो प्रकार के योगासनों का अभ्यास रखा (1) जिनके रक्तचाप अधिक उच्च थे और हृदय कमजोर थे उनको केवल (शवासन में ही पैरों के नीचे नरम तकिया लगाना) का अभ्यास कराया इनकों करने से रोगियों को काफी आराम मिला।

(2) जिनके हृदय मजबूत थे अनके उपरोक्त अभ्यास के साथ हलासन, सर्वागासन और विपरीत करणी मुद्रा का भी अभ्यास कराया।

टासनों के अभ्यास के उपरान्त रोगियों को अधिक स्फूर्ति एवं शक्ति का अनुभव हुआ और उन्हें पहले की अपेक्षा अधिक अच्छी गहरी नींद आने लगी।

इसी प्रकार के परिणाम डाँ. के.के. दाते ने भी शवासन के प्रभाव हृदय-रोग के रोगियों पर पायें हैं।

पटना के डा. श्रीनिवास एवं अमेरिका के डा. बेनसत ने प्रयोगो के आधार पर देखा कि हृदय रोगो पर ध्यान का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता हैं।

आसन व्यायाम पूर्णतः वैज्ञानिक व्यायाम-पद्धति है। इसमें माँस-पेशियों में खिंचाव एवं फेलाव होने से रक्त प्रवाह की गति में कुछ तीव्रता आती है जब कि उन्य व्यायाम जैसे दंड-बैठक आदि से दबाव पड़ता है जिससे पेशियाँ कठोर हो जाती हैं। आसनों से पेशियों में लचीला पन आता है। शरीर में स्फूर्ति की अनुभूति होती हैं।

शीर्षासन को आसनों में सबसे उत्तम कहा जाता है। इन पर वैज्ञानिक प्रयोग परीक्षण भी किये जा रहे हैं। सर्वप्रथम पोलैण्ड के थर्ड क्लीनीक आँफ मेडीशन के डायरेक्टर एलेक्जान्ड्रो विच [जूलियन] ने शीर्षासन के द्वारा शरीर के अवयवों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से किया। उन्होंने एक शरीरिक एवं मानसिक रुप् से सन्तुलित स्वास्थ्य वाले एकाग्र चित्त वाले व्यक्ति पर शीर्षासन के प्रभाव को देखने के लिए एक्सरे एवं ई.सी.जी. आदि उपकरणों की सहायता ली।

प्रोफेसर जूलियन ने उस व्यक्ति से खाली पेट की स्थिति में 30-40 मिनट शीर्षासन कराके षवासन में विश्राम कराया। आसन के पूर्व एवं बाद में किये गए परीक्षणों से निम्न निर्ष्कष निकाले।

शीर्षासन से रक्त को जमाने वाले पदार्थ सीरम, जो रक्त में पाया जाता हैं, उसकी मात्रा में सन्तुलन आने लगता हैं। उन्होंने शीर्षासन के नियमित अभ्यास से हृदय रोग के दौरे रोके जा सकने की सम्भावना व्यक्त कि है।

रक्त में श्वेत रक्त कणों की वृद्धि पायी गयी जिससे षरीर की जीवनी शक्ति एवं रोग-निरोधक क्षमता में वृद्धि पायी गयी।

शीर्षासन की स्थिति में एक्सरे द्वारा देखे जाने पर वक्षस्थल फेला हुआ जाया एवं हृदय पूरी तरह दबाव रहित देखा गया।

फेफड़ों को भी पर्याप्त खुला स्िन मिलता है। फेफड़ो में आँक्सीजन की खपत में 33 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी तथा ष्वास की दर एवं मात्रा में कमी पाई गयी। श्वास की मात्रा तो प्रति मिनट 8 लीटर के स्िन पर 3 लीटर हो गयी परन्तु फेफड़ो की उसकों ‘कन्ज्यूम’ करने की क्षमता बढ़ गयी। निष्कासित दूषित वायु में आक्सीजन की मात्रा में 10 प्रतिशत कमी हो गयी।

भुजंगासन पर अनुसन्धान जून 1678 चेकोस्लोविया में हुआ। “फर्स्ट कान्फ्रेंस आन दि एप्लीकेशन आफ योग इन रिहेविलटेशन थेराँपी” मेंइस आसन पर विशेष प्रयोग किये गये। प्रयोग कर्त्ताओं ने पाया है इस आधार पर रक्तचाप और मानसिक तनाव को नियमित करने में सहायता मिलती है।

ल्नवाला (महाराष्ट्र) के योगाश्रम में चलने वाले प्रयोगों में सार्वांगासन, मयूरासन को सामान्य स्वास्थ्य सर्म्बधन और दुर्बलताग्रसित रोगियों के लिए अन्य आसनों की तुलना में अधिक उपयोगी पाया गया।

देश-विदेश में आसन उपचार के सम्बन्ध में चल रहे अनुसन्धान यह बताती हैं कि उन्हें सरल व्यायामों की तरह प्रयुक्त करते हुए कई ऐसे रहस्यमय लाभ उठाये जा सकते हैं जो ऐसी ही अंग संचालक की अन्य साधरण क्रिया पद्धतियों के माध्यम से सम्भव नहीं हैं।

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