
साथ-साथ चले (kahani)
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एक ही मेले में दस जुलाहे साथ-साथ चले। कोई खो न जाय। इसलिये गिनती गिन ली। पूरे दस थे। लौटते समय सोचा गिन लें। कोई घट-बढ़ तो नहीं हुई। गिने तो नौ। एक-एक करके सभी ने गिने पर निकले नौ ही। एक कहीं खो गया। सोचकर सभी दुःख मनाने लगे। एक समझदार उधर से निकला। रोने वालों से कारण पूछा। उसने कहा- हम दसवें को बुलाये देते हैं। रोओ मत। सभी बहुत प्रसन्न हुए। समझदार ने उन्हें पंक्तिबद्ध खड़ा किया, एक-एक के सिर में एक-एक चपत लगाई और गिनता गया- एक, दो, तीन, चार। पूरे दस हो गये। सभी बुद्धिमान की अनुकम्पा को सराहते हुए घर लोटे। अपने को न जानने के कारण ही यह भूल हो रही थी। उसे सुधार लें तो रोना न पड़े।