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Magazine - Year 1992 - Version 2

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First 42 44 Last
दे सकें जो संतुलन युग-संधि में , खोज ऐसे प्राणवानों की करें ।

संतुलन बिगड़ा हुआ है होड़ में , ध्वंस हो अथवा नया निर्माण हो, सामने आएँ प्रखर प्रतिभा वही , राह की जिनको कुशल पहचान हो

हो सँभलने का जिन्हें अभ्यास भी, जो नहीं चिन्ता ढलानों की करें ।

यह समय बंजर घरा-सा है, यहाँ कल्पना अमराइयों की व्यर्थ है , जबकि नीवों में दरारें पड़ रही, कामना ऊँचाइयों की व्यर्थ है ,

वे बढ़ें, जो भूमि को उर्वर करें , ठीक जो नीवें मकानों की करें ।

हो न जिसमें धैर्य तपने का बहुत , काल को ऐसा न कुन्दन चाहिये, जो नहीं प्रतिपल समर्पित हो सके , एक भी ऐसा नहीं प्रण चाहिये ,

जो तराशे जा सकें युग के लिये , खोज हीरों की खदानों की करें ।

मात्र सुविधाएँ जुटाने के लिये , हम सभी ने श्रेष्ठ गुण सब खो दिये , और शोषण, लोभ, लिप्सा, द्वेष के , बीज हमने ही विषैले बो दिये ,

काल ने माँगे व्रती ऐसे कि जो , कोशिशें इनके निदानों की करें ?

-शचीन्द्र भटनागर

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