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दे सकें जो संतुलन युग-संधि में ,
खोज ऐसे प्राणवानों की करें ।
संतुलन बिगड़ा हुआ है होड़ में ,
ध्वंस हो अथवा नया निर्माण हो,
सामने आएँ प्रखर प्रतिभा वही ,
राह की जिनको कुशल पहचान हो
हो सँभलने का जिन्हें अभ्यास भी,
जो नहीं चिन्ता ढलानों की करें ।
यह समय बंजर घरा-सा है, यहाँ
कल्पना अमराइयों की व्यर्थ है ,
जबकि नीवों में दरारें पड़ रही,
कामना ऊँचाइयों की व्यर्थ है ,
वे बढ़ें, जो भूमि को उर्वर करें ,
ठीक जो नीवें मकानों की करें ।
हो न जिसमें धैर्य तपने का बहुत ,
काल को ऐसा न कुन्दन चाहिये,
जो नहीं प्रतिपल समर्पित हो सके ,
एक भी ऐसा नहीं प्रण चाहिये ,
जो तराशे जा सकें युग के लिये ,
खोज हीरों की खदानों की करें ।
मात्र सुविधाएँ जुटाने के लिये ,
हम सभी ने श्रेष्ठ गुण सब खो दिये ,
और शोषण, लोभ, लिप्सा, द्वेष के ,
बीज हमने ही विषैले बो दिये ,
काल ने माँगे व्रती ऐसे कि जो ,
कोशिशें इनके निदानों की करें ?
-शचीन्द्र भटनागर