
भविष्य कथन : एक मृतात्मा द्वारा
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भविष्यवाणियों की चर्चा जब की जाती है तो प्रायः लोगों की उत्कण्ठा यह सुनने, समझने और जानने की होने लगती है कि वर्तमान परिस्थितियों में जटिल समस्याओं से घिरा मनुष्य का भावी भविष्य कैसा होगा? क्या इन दिनों की सर्वग्राही विभीषिकाएँ पृथ्वी को अगले दिनों जनहीन बना देंगी? यदि नहीं तो यह क्यों व किस प्रकार सुरक्षित, आबाद बनी रह पायेगी? इस प्रकार के अगणित प्रश्न मानवी मन में ज्वार भाटे की तरह प्रस्तुत समय में उगते-डूबते रहते हैं, जिनका समाधान समय-समय पर अपने-अपने क्षेत्र के मूर्धन्य कहे जाने वाले अर्थशास्त्री, पर्यावरणविद्, वैज्ञानिक, ज्योतिर्विद् एवं भविष्य द्रष्टा अपने-अपने प्रकार से करते आये हैं। इन सभी ने अपने निष्कर्षों के आधार पर एक ही बात कही है कि प्रस्तुत समय में दिखाई पड़ने वाला भयावह घटाटोप देखते-देखते अगले ही दिनों छँट जायेगा और एक ऐसे उज्ज्वल भविष्य की संरचना होते लोग अपनी आंखों से देख सकेंगे, जैसा न कभी पूर्व में घटित हुआ है और न भविष्य में लम्बे समय तक इसकी पुनरावृत्ति होने की संभावना है।
इसी शृंखला में अमेरिका (मियामी)के महान परामनोविज्ञानी आर्थर फोर्ड की एक कड़ी और जुड़ जाती है। उन्होंने भी ठीक इसी प्रकार की भविष्यवाणी आगामी समय के संबंध में की है। अन्तर सिर्फ इतना है कि उनने अपनी बात मरणोपरान्त किसी अन्य माध्यम के सहारे कही है, जब कि उपरोक्त सभी ने अपने जीवन काल में ही परिस्थितियों के अध्ययन और परोक्ष-दर्शन की सामर्थ्य के आधार पर प्रस्तुति की थी। अमेरिकी परामनोविज्ञानी और प्रख्यात लेखिका रुथ मोण्टगोमरी ने एक पुस्तक लिखी है-”ए वर्ल्ड बियोण्ड”। पुस्तक का अधिकाँश भाग ऑटोमेटिक राइटिंग द्वारा आर्थर फोर्ड ने लिखवाया है, जिसमें कुछ ऐसी भविष्यवाणियों का उल्लेख है, जिन्हें हम इन्हीं दिनों अक्षरशः घटित होते हुए देख रहे हैं। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण समझा जाने वाला भविष्यकथन रूस से संबंध रखता है। आर्थर फोर्ड अपनी मूक वाणी में इस संदर्भ में कहते हैं कि बीसवीं सदी का अंत आते-आते रूस बड़ी द्रुत गति ये एक स्वतंत्र और लोकताँत्रिक समाज की ओर अग्रसर होता चला जायेगा। वर्षों का मजबूत साम्यवादी गढ़ वहाँ देखते-देखते इस प्रकार ध्वस्त हो जायेगा, जिसके भग्नावशेष के भी दर्शन बाद में किसी को नहीं हो पायेंगे, वहाँ के वैज्ञानिकों और प्रकृतिविदों में ईश्वर-विश्वास की भावना इतनी प्रगाढ़ होती चली जायेगी कि एक समय का नास्तिक समझा जाने वाला देश आस्तिकों की श्रेणी में अग्रणी माना जाने लगेगा। समस्त समाजवादी देशों की यही गति होगी। वे शनैः-शनैः भोगवादी समाज से योगवादी समाज की ओर रूपांतरित होते चले जायेंगे। यूरोप में साम्यवाद का अन्त हो जायेगा और एक ऐसे अभिनव समाज की उसके स्थान पर स्थापना होगी, जो आने वाले लम्बे काल तक सहअस्तित्व, प्रेम सौहार्द एवं एकता-समता की भावना से ओत-प्रोत होगा। उक्त देशों में बढ़ती आस्तिकता के कारण वहाँ के लोगों के मन-मस्तिष्क भी पूर्वाग्रही मान्यताओं से मुक्त होते चले जायेंगे, फलतः उनका आध्यात्मिक अभ्युदय निरन्तर प्रगति पथ पर बढ़ता रहेगा। चीन भी इन परिवर्तनों से अछूता न रह सकेगा, पर इससे पूर्व रूस और चीन में वैमनस्य पैदा होगा, किन्तु विश्वव्यापी आध्यात्मिक लहर के आगे देर तक वह टिक न सकेगा और स्वल्प काल में ही धराशायी हो अपनी मौत मरेगा। पश्चिम जर्मनी को कुछ आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, किन्तु फिर भी वह शक्तिशाली राष्ट्र की पंक्ति में यथावत बना रहेगा। दोनों जर्मनियों में निकटता और घनिष्ठता बढ़ती चली जायेगी और अन्ततः उनका परस्पर विलय हो जायेगा। जापान औद्योगिक क्षेत्र में सर्वोपरि सिद्ध होगा, किन्तु वह कोई ऐसा अस्त्र शस्त्र विकसित न करेगा, जिससे युद्ध जैसी संभावना बलवती हो। अरब-इज़राइल समस्या का समझौता-वार्ताओं द्वारा हल हो जायेगा। लम्बे काल के विवाद के बाद इस सदी के अन्त तक इजरायलियों में यह सोच विकसित होगा कि इज़राइल सदा सही है और दूसरे हमेशा गलत, यह ठीक नहीं। यही चिन्तन उसे शान्ति की ओर प्रवृत्त करेगा। प्रत्यक्ष में उक्त विवाद के कारण युद्ध जैसी संभावना कई बार बन पड़ेगी पर युद्ध होगा नहीं।
इस सदी के अन्त तक मौसम में विलक्षण परिवर्तन आयेगा। अक्षों में भारी खिसकाव के परिणाम स्वरूप मौसम में इतना अद्भुत बदलाव दृष्टिगोचर होगा कि विभिन्न स्थानों पर वनस्पतियों की पहचान कठिन हो जायेगी। इस आकस्मिक और विस्मयकारी परिवर्तन को अधिकांश लोग झेल नहीं पायेंगे और कालकवलित हो जायेंगे, फिर भी पृथ्वी पूर्णतः जनशून्य नहीं हो पायेगी, क्योंकि मौसम में आया यह महापरिवर्तन थोड़े ही समय में रुक जायेगा, जिससे जनहानि बन्द हो जायेगी। यह सब कुछ सन् 2000 के आते आते घटित हो जायेगा।
इसी मध्य महान भौगोलिक परिवर्तन भी परिलक्षित होंगे। समुद्र के गर्भ में समाये एटलांटिक महाद्वीप का पुनः उदय होगा, जबकि विश्व के कई महत्वपूर्ण शहर जलमग्न हो जायेंगे। कैलीफोर्निया, मैनहट्टन जैसे तटवर्ती अमेरिकी नगरों का अस्तित्व संकट में पड़ जायेगा, जबकि मैक्सिको समुद्र का तटवर्ती क्षेत्र बन कर रह जायेगा।
आज के घृणा-द्वेष, संकीर्णता-स्वार्थपरता, अशान्ति-अराजकता का अन्त इस शताब्दी के अवसान के साथ ही साथ हो जायेगा। इसके उपरान्त शाश्वत शान्ति का एकछत्र राज्य इस पृथ्वी पर लम्बे काल तक कायम रहेगा। यह शान्तियुग मानवी आचार-विचार की दृष्टि से इतना उदात्त होगा, जिसे पूर्व के सभी युगों से हर प्रकार से श्रेष्ठ व उत्कृष्ट कहा जा सके। इस शान्ति साम्राज्य के अवतरण के साथ ही हर तरह के युद्ध की परिसमाप्ति हो जायेगी। इस सर्वश्रेष्ठ अहिंसक राज्य की संस्थापना किसी एक व्यक्ति के कारण संभव न हो सकेगी, वरन् एक ऐसी शक्ति और अहिंसावादी जाति का अभ्युदय होगा, जो देखते-देखते समस्त विश्व में मत्स्यावतार की तरह फैल कर सम्पूर्ण तंत्रों को अपने नियंत्रण में इस प्रकार कर लेगी कि तत्कालीन लोग “जियो और जीने दो” की नीतिमत्ता अपना कर ही चैन से रह सकेंगे। तब न आज जैसी “जिसकी लाठी तिसकी भैंस” वाली उक्ति चरितार्थ होती देखी जा सकेगी, न मत्स्यन्याय वाला जंगली कानून ही देखने को मिलेगा। सबल-निर्बल दोनों साथ-साथ एक-दूसरे के पूरक बन कर जीवन बितायेंगे। ऊँच-नीच का वर्तमान जातिवाद विलुप्त हो जायेगा। सभी ‘मानवमात्र एक समान’ की सिद्धान्तनिष्ठ को मूर्तिमान करेंगे और परस्पर सद्भावपूर्वक रहेंगे, यह युगान्तरकारी परिवर्तन उन देवात्माओं के अवतरण से और अधिक गतिशील व अग्रगामी बन सकेगा, जिन्हें अशान्ति, अन्याय, अत्याचार एवं शोषण उत्पीड़न अप्रिय हैं। ऐसी सदात्माएँ शरीर धारण कर धर्म संस्थापन के भगवद् कार्य में सहयोग करने के लिए कृतसंकल्प हैं और इन्हीं दिनों अपने अवतरण की तैयारी में जुटी हुई हैं।
इसके अतिरिक्त और भी बहुत सारी भविष्यवाणियाँ आर्थर फोर्ड की मृतात्मा ने की, जो प्रासंगिक न होने के कारण उनका उल्लेख यहाँ नहीं किया जा रहा है। आर्थर फोर्ड का उपरोक्त भविष्यकथन भी उन्हीं अनेकानेक भविष्यद्रष्टाओं के आशावादी कथनों की पुष्टि करता है, जिनने वर्तमान विपन्न परिस्थितियों के बावजूद भी 21 वीं सदी को मानवी उज्ज्वल भविष्य के रूप में देखा और संशयग्रस्त दुखी अन्तःकरण में उत्साह का संचार किया है।