• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जीना जिसे आ गया, वही है सच्चा कलाकार
    • आत्मा की प्यास बुझेगी, श्रेष्ठता के निर्भर से
    • कौतुक से भरा-पूरा अपना आपा
    • समत्वं योग उच्यते
    • Quotation
    • एक माला के मनके हम सब
    • भविष्य कथन : एक मृतात्मा द्वारा
    • Quotation
    • बुरा पाप होता है, पापी नहीं (Kahani)
    • निष्ठ की विजय
    • उपासना सफल और सार्थक कैसे बने?
    • विज्ञान आत्म जगत की शोध करे
    • मछुआरे की कहानी
    • तनाव मुक्ति समय साध्य है, किन्तु संभव है।
    • आगामी नौ वर्ष अति महत्वपूर्ण
    • दैनिक जीवन का व्यावहारिक अध्यात्म
    • Quotation
    • पूजा से कार्य बड़ा होता (Kahani)
    • सच्ची सिद्धि
    • शब्द ब्रह्म की साधना के दो प्रमुख आधार
    • गायत्री प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष
    • समर्थता का आधार-यौन शुचिता
    • ध्यान करें, तो किसका व कैसे?
    • अब्दुल गफफारखाँ (Kahani)
    • विस्फोट की स्थिति आने ही क्यों दे?
    • Quotation
    • नदी में रीछ (Kahani)
    • धर्म धारण के चार चरण
    • Quotation
    • संसारः प्रतिभा परिष्कार की प्रयोगशाला
    • Quotation
    • उपासना ही नहीं, साधना भी
    • ब्रह्मचर्यं परं तपः
    • प्राणशक्ति संवर्धन के तीन प्रयोग उपचार
    • Quotation
    • अन्तर्मुखी हूजिए
    • ईर्ष्यास्पद से अधिक हानि (Kahani)
    • मनःस्थिति तो सही ही बनी रहे
    • व्यक्तित्व की प्रखरता में चार चाँद (Kahani)
    • व्यक्तित्व विकास का शुभारंभ आचरण से
    • मधु-संचय - देव दुर्लभ काया -खोज प्राणवानों की
    • भूमि (Kavita)
    • Kavita
    • व्यक्तित्व रूपी सिक्के के दो पहलू
    • Quotation
    • मन जड़ है व शरीर कलेवर
    • कीड़ों का दृष्टिकोण (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव : लीला प्रसंग
    • ब्रह्मवर्चस् की शोध प्रक्रिया
    • ठग कर लाभ उठा लिया (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी।
    • अपनों से अपनी बात - प्रस्तुत वसंत से शक्ति-संचार उपक्रम का शुभारंभ!
    • अपनी कमाई पर गुजारा (Kahani)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जीना जिसे आ गया, वही है सच्चा कलाकार
    • आत्मा की प्यास बुझेगी, श्रेष्ठता के निर्भर से
    • कौतुक से भरा-पूरा अपना आपा
    • समत्वं योग उच्यते
    • Quotation
    • एक माला के मनके हम सब
    • भविष्य कथन : एक मृतात्मा द्वारा
    • Quotation
    • बुरा पाप होता है, पापी नहीं (Kahani)
    • निष्ठ की विजय
    • उपासना सफल और सार्थक कैसे बने?
    • विज्ञान आत्म जगत की शोध करे
    • मछुआरे की कहानी
    • तनाव मुक्ति समय साध्य है, किन्तु संभव है।
    • आगामी नौ वर्ष अति महत्वपूर्ण
    • दैनिक जीवन का व्यावहारिक अध्यात्म
    • Quotation
    • पूजा से कार्य बड़ा होता (Kahani)
    • सच्ची सिद्धि
    • शब्द ब्रह्म की साधना के दो प्रमुख आधार
    • गायत्री प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष
    • समर्थता का आधार-यौन शुचिता
    • ध्यान करें, तो किसका व कैसे?
    • अब्दुल गफफारखाँ (Kahani)
    • विस्फोट की स्थिति आने ही क्यों दे?
    • Quotation
    • नदी में रीछ (Kahani)
    • धर्म धारण के चार चरण
    • Quotation
    • संसारः प्रतिभा परिष्कार की प्रयोगशाला
    • Quotation
    • उपासना ही नहीं, साधना भी
    • ब्रह्मचर्यं परं तपः
    • प्राणशक्ति संवर्धन के तीन प्रयोग उपचार
    • Quotation
    • अन्तर्मुखी हूजिए
    • ईर्ष्यास्पद से अधिक हानि (Kahani)
    • मनःस्थिति तो सही ही बनी रहे
    • व्यक्तित्व की प्रखरता में चार चाँद (Kahani)
    • व्यक्तित्व विकास का शुभारंभ आचरण से
    • मधु-संचय - देव दुर्लभ काया -खोज प्राणवानों की
    • भूमि (Kavita)
    • Kavita
    • व्यक्तित्व रूपी सिक्के के दो पहलू
    • Quotation
    • मन जड़ है व शरीर कलेवर
    • कीड़ों का दृष्टिकोण (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव : लीला प्रसंग
    • ब्रह्मवर्चस् की शोध प्रक्रिया
    • ठग कर लाभ उठा लिया (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी।
    • अपनों से अपनी बात - प्रस्तुत वसंत से शक्ति-संचार उपक्रम का शुभारंभ!
    • अपनी कमाई पर गुजारा (Kahani)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1992 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


एक माला के मनके हम सब

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 5 7 Last
साधारण अर्थों में एकता को अपनेपन का पर्याय माना जा सकता है। शरीर एक है इस एकता में हाथ, पैर, आँख, नाक, कान आदि विभिन्न अंग अवयव सम्मिलित हैं। पाचन संस्थान, रक्तवाही संस्थान, श्वसन संस्थान जैसे अनेक तंत्र हैं। शारीरिक चेतना इनमें से हर एक में एक सही समायी है। वह सभी को जीवन दे रही है। इनमें से प्रत्येक का दुःख-कष्ट उसकी अपने तकलीफ है। किसी के प्रति तनिक भी उपेक्षा का भाव नहीं है।

इतने पर भी हर अंग अपने आप में पूर्ण है। पैर, हाथ आदि बाहरी अंग हों अथवा श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र जैसे भीतरी संस्थान, सभी अपने आप में सक्षम हैं। पैर के लिए हाथ की जरूरत नहीं । वह अपना काम हाथ की सहायता के बगैर कर लेगा। दृष्टि संकीर्ण हो तो किसी एक को देखने-सुनने, उसके बारे में पढ़ने-लिखने से उसे दूसरे से भिन्न समझा जा सकता है। किसी अंग विशेष में रहने वाले परजीवी ऐसा समझते हों तो कोई आश्चर्य नहीं। परन्तु इस दृष्टि की संकीर्णता से असलियत बदलने से तो रही, वास्तविकता यही है कि शरीर एक है, सभी अंक अवयवों की भलाई एक दूसरे के साथ अपनापन बनाए रखने में है। जहाँ कहीं जिस किसी अंग में परायापन अथवा अलगाव आया वहीं सड़न शुरू हो जाती है। सही कहा जाय तो अपनापन या एकता स्वभाव है-प्रकृति है। परायापन अथवा अलगाव विकृति है।

यह सत्य न केवल शरीर पर, वरन् समूचे संसार पर लागू होता है। इसके सभी सदस्य परिवार के हितों में अपना भला मानते हैं। परिवार न तो कोई वस्तु है न व्यक्ति। यह कुछ लोगों के बीच पनपे अपनेपन का दूसरा रूप है। धीरे-धीरे पता चलता है कि सिर्फ परिवार अपने आप में सक्षम नहीं है, तो यह दायरा गाँव शहर से बढ़ते हुए देश तक जा पहुँचता है। इस स्तर पर आकर पता चलता है कि एक देश दूसरे से बिल्कुल कट कर अपना अस्तित्व बनाये रखने में मुश्किल महसूस करता है, तो विश्व एकता की बात चलने लगती है। ‘वसुधा ही कुटुम्ब है, इस बात को सत्य स्वीकारा जाने लगता है।

बात न केवल मनुष्य जाति की है वरन् यही तथ्य प्रकृति के अन्य घटकों के सम्बन्ध में भी है। प्रत्यक्ष में तो बड़ा विचित्र लगता है कि चलने फिरने बोलने वाला मनुष्य पेड़-पौधों अथवा किन्हीं जड़ वस्तुओं से अपनापन स्थापित करे। एकता अथवा अपनापन अपने जैसी ही किन्हीं चीजों में होना चाहिए। जब बाहर से सभी चीजें अपने जैसी न नजर होती हों तो फिर अपनापन क्यों?

आधुनिक समय में एकता के इस तथ्य की ढूंढ़-खोज की गई है। खोजने के दो मार्ग रहे हैं एक मनोवैज्ञानिक दूसरा भौतिक-शास्त्रीय। दोनों के नतीजे आश्चर्यजनक रूप से एकता को वैज्ञानिक कसौटी पर खरा साबित करने वाले सिद्ध हुए हैं।

मनोविज्ञान ने एकता को “कलेक्टिव अनकाँशस” अर्थात् सामूहिक अचेतन के आधार पर साबित किया है। यद्यपि दर्शन के क्षेत्र में यह बात लाइबिनित्ज, काण्ट आदि ने भी कही थी, पर बाद में मूर्धन्य मनीषी सी जी कारस ने अपने प्रयोगों की कसौटी पर इसे खरा साबित किया। इसके अनुसार हमारा मन उतना ही नहीं है। जितना हमें समझ में आता है। मन की गहराइयों में हम एक दूसरे से जुड़े हैं। सपनों में कभी-कभी दूसरे के जीवन की घटनाएं देखना इस का प्रमाण है। इसी के आधार पर दुनिया के अलग-अलग भागों में रहने वाले लोग एक सी बातें सोच लेते हैं। एक दूसरे के मन में प्रवेश सम्भव, हो जाता है। एडवर्ड वान हर्टमान आदि

मनोवेत्ताओं ने इस एकता के क्षेत्र को असीम माना है। n श्रोडिंकर बेल आदि प्रख्यात भौतिक शास्त्रियों ने इसी एकता की खोज दूसरे ढंग से की है। उनके अनुसार संसार की हर चीज चाहे वह सजीव हो या निर्जीव बाहरी तौर पर अणु-परमाणुओं से बनी है। मनुष्य का शरीर इसका अपवाद नहीं है। इनके स्वरूप में दिखाई पड़ने वाला अन्तर सिर्फ आणविक संरचना भर का है। वैज्ञानिक ने परमाणु के लगभग बीस हिस्से किए हैं। इस क्रम में आगे एक ऐसी दशा आती है, जिसमें उन्होंने स्वीकारा कि सही माने में कणों का अस्तित्व न होकर वैद्युत चुम्बकीय तरंगें ही इनकी मूलसत्ता है। एक कदम और आगे बढ़ने पर पता चलता है कि ये तरंगें न होकर सिर्फ ऊर्जा के प्रचंड प्रवाह हैं, जो यहाँ-वहाँ सभी जगह एक से हैं। बिना किसी भेद-भाव के सभी में समाए हुए हैं।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रिटजोफ काप्रा ने अपनी पुस्तक “ताओ ऑफ फिजिक्स” में इस एक से ऊर्जा-प्रवाह की बात की संगति गीतकार के कथन “मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मिणगणाइव” से बिठायी है। वैज्ञानिक अनुसंधानों की बहुत गहराई में न जाया जाय तो भी एक बात तो साबित हो ही जाती है कि बाहर और भीतर सभी कुछ एक-सा है। हम सभी एक बड़ी माला के मनके भर हैं, ऐसे मनके जिनके सभी जगह फैली एक चेतना ऊर्जा ने पिरो रखा है।

मनके की शोभा माला के कारण है। इसी में उसकी गरिमा है। सम्भव है यह बात ठीक-ठीक न संकुचित संकीर्ण होना है। यह संकीर्णता कुछ अपने को पूरी तरह से स्वतन्त्र मान ले और उससे टूटने का प्रयास करे। पर यह प्रयास पेड़ से मिलने वाले जीवन प्रवाह को अवरुद्ध कर देता है। इसे एक मानने के कारण जीवन को जो हरा-भरापन फूल-फलों की जो सम्पदा मिली हुई थी, टूटने के प्रयास में इस सभी से वंचित होना पड़ता है।

हमारे अपने जीवन के व्यवहारिक धरातल में बिल्कुल यही सत्य लागू होता है। जरूरत इसे अनुभव करने और व्यवहार में लाने की है। जैसे-जैसे अपनेपन का दायरा बढ़ता जायेगा सुख और शान्ति बढ़ती जाएगी। इसको बढ़ाने के लिए जरूरी है कि इस दायरे को समेटा न जाय। पारिवारिक एकता हमें सुविधा प्रदान करती है, तो सामाजिक एकता सुरक्षा और शान्ति।

बढ़ता हुआ अपनापन,डर-भय, अशान्ति सभी का नामों-निशान मिटा देता है, क्योंकि इसका एक मात्र कारण है अलगाव और परायापन। सामान्यतया घर में हमारी अनुभूति अपनेपन की रहती है। यही कारण है कि इसके सदस्य के बीच स्वयं को कहीं अधिक सुरक्षित और शाँत महसूस किया जाता है। जैसे ही इस अनुभूति में कमी आती है, अलगाव की दरार पनपती है, तो भाई को भाई से डर लगने लगता है, बाप-बेटे से भय खाता है, अड़ोसी-पड़ोसी एवं गाँव शहर अपने लगते हैं।

इससे हमें सुविधा, सहायता सहानुभूति सभी कुछ मिलती है। एकता अथवा अपनेपन के बारे में मनोवैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण तथ्य और जोड़ा है। उनके अनुसार इसकी लगातार बढ़ती अनुभूति भाव सम्वेदनाओं को, विशाल,चिन्तन चेतना को व्यापक और प्रखर बनाती है। इसके प्रमाण देश-विदेश के विभिन्न महापुरुषों के जीवन में देखे जा सकते हैं। महान दार्शनिक जान डेविड थोरो को विभिन्न जंगली जानवरों के बीच अपनापन दिखाई देता था। इसी कारण उन्हें सर्वत्र निर्भयता थी। स्वामी रामतीर्थ समूचे भारत को अपना शरीर और संसार को अपना घर कहा करते थे। स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि जब मैं “मैं” का उच्चारण करता हूँ तो इसमें मुझे समूचे विश्व का बोध होता है। विभिन्न महापुरुषों के ये भाव और कुछ नहीं सिर्फ बढ़ी हुई एकता अथवा अपनेपन की व्यापकता थी। हमारे अपने जीवन में एकत्व की भावना विकसित हो सके, इसके लिए शुरुआत घर, परिवार से करनी होगी। परिवार के हित में अपना हित और उसके अनहित में अपना अनहित समझा जाय। आज कल टूटते परिवार की समस्या के मूल में इसी का अभाव है। किन्तु ध्यान रखा जाय कि यह सिर्फ पहला कदम है जिसकी पूर्णता दूसरे के बिना किसी कीमत पर नहीं। दूसरा कदम होगा कि समाज के हितों में परिवार का हित समझा जाय। एक के बिना दूसरा अधूरा है।

इसका व्यावहारिक नीति-निर्धारण अपनी स्वयं की स्थिति तथा स्थान परिवेश को ध्यान में रख कर किया जा सकता है। इस ओर बढ़ाए गए कदम, क्रियाकलापों एवं व्यावहारिक गतिविधियों के रूप में एक ही होगा-एकता अपनत्व को क्रमशः बढ़ाते चलना, उसकी व्यापकता की ओर गतिशील होना। इस ओर बढ़ते प्रगतिक्रम के अनुरूप धीरे-धीरे समाज के प्रति वही भाव आने लगेगा जो अभी अपने दुःख सुख लगने लगेंगे। वस्तुतः यही जीवन की प्रकृति है। अलगाव के अलावा और कुछ नहीं। इसे हर कीमत पर दूर किया जाना चाहिए। इसी में अपनी गरिमा है और गतिशील भी।

First 5 7 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • जीना जिसे आ गया, वही है सच्चा कलाकार
  • आत्मा की प्यास बुझेगी, श्रेष्ठता के निर्भर से
  • कौतुक से भरा-पूरा अपना आपा
  • समत्वं योग उच्यते
  • Quotation
  • एक माला के मनके हम सब
  • भविष्य कथन : एक मृतात्मा द्वारा
  • Quotation
  • बुरा पाप होता है, पापी नहीं (Kahani)
  • निष्ठ की विजय
  • उपासना सफल और सार्थक कैसे बने?
  • विज्ञान आत्म जगत की शोध करे
  • मछुआरे की कहानी
  • तनाव मुक्ति समय साध्य है, किन्तु संभव है।
  • आगामी नौ वर्ष अति महत्वपूर्ण
  • दैनिक जीवन का व्यावहारिक अध्यात्म
  • Quotation
  • पूजा से कार्य बड़ा होता (Kahani)
  • सच्ची सिद्धि
  • शब्द ब्रह्म की साधना के दो प्रमुख आधार
  • गायत्री प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष
  • समर्थता का आधार-यौन शुचिता
  • ध्यान करें, तो किसका व कैसे?
  • अब्दुल गफफारखाँ (Kahani)
  • विस्फोट की स्थिति आने ही क्यों दे?
  • Quotation
  • नदी में रीछ (Kahani)
  • धर्म धारण के चार चरण
  • Quotation
  • संसारः प्रतिभा परिष्कार की प्रयोगशाला
  • Quotation
  • उपासना ही नहीं, साधना भी
  • ब्रह्मचर्यं परं तपः
  • प्राणशक्ति संवर्धन के तीन प्रयोग उपचार
  • Quotation
  • अन्तर्मुखी हूजिए
  • ईर्ष्यास्पद से अधिक हानि (Kahani)
  • मनःस्थिति तो सही ही बनी रहे
  • व्यक्तित्व की प्रखरता में चार चाँद (Kahani)
  • व्यक्तित्व विकास का शुभारंभ आचरण से
  • मधु-संचय - देव दुर्लभ काया -खोज प्राणवानों की
  • भूमि (Kavita)
  • Kavita
  • व्यक्तित्व रूपी सिक्के के दो पहलू
  • Quotation
  • मन जड़ है व शरीर कलेवर
  • कीड़ों का दृष्टिकोण (Kahani)
  • परमपूज्य गुरुदेव : लीला प्रसंग
  • ब्रह्मवर्चस् की शोध प्रक्रिया
  • ठग कर लाभ उठा लिया (Kahani)
  • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी।
  • अपनों से अपनी बात - प्रस्तुत वसंत से शक्ति-संचार उपक्रम का शुभारंभ!
  • अपनी कमाई पर गुजारा (Kahani)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj