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Magazine - Year 1993 - Version 2

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प्रमाणित तो होता है, सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व

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मनुष्य के नहीं तीन शरीर होते हैं-स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर। दृश्यमान स्थूल शरीर ऊपर का होता है। इसके भीतर ‘सूक्ष्म शरीर है जो अदृश्य प्रवृत्तियों और शक्तियों के साथ जुड़ा रहता है अन्तराल का गहरा स्तर वह है जिसे ‘कारण शरीर’ कहते हैं। इसका संबंध परब्रह्म और उसकी सत्ता से है। इसके लिए योग साधना एवं तपश्चर्या की एक-एक करके सभी सीढ़ियाँ पार करनी पड़ती हैं। स्थूल से आगे सूक्ष्म और सूक्ष्म से आगे बढ़ कर कारण शरीर में प्रवेश करना पड़ता हैं,तब कहीं योगशास्त्रों में वर्णित ऋद्धि-सिद्धियों के दर्शन होते है। प्राचीनकाल का समूचा इतिहास इन्हीं आध्यात्मिक उपलब्धियों से भरा पड़ा है जिसे ऋषियों, तत्वदर्शियों योगियों और सन्तों का इतिहास कहा जा सकता है, वे अपने संकल्पबद्ध से या सूक्ष्म शरीर से परकाया प्रवेश से लेकर सुदूर ग्रह- नक्षत्रों तक कि यात्रा पलक झपकते ही कर लेते थे।

सूक्ष्म शरीर की सत्ता और सामर्थ्य स्थूल काया की तुलना में असंख्य गुना अधिक है। आध्यात्म क्षेत्र में इसके पग-पग पर प्रमाण उपलब्ध हैं। आध्यात्मिक जगत की प्रसिद्ध घटना है कि मंडन मिश्र के जगत गुरु आद्यशंकराचार्य से शास्त्रार्थ में पराजित हो जाने के बाद उनकी धर्मपत्नी विदुषी भारती ने मोर्चा संभाला। उसने शंकराचार्य से कामविद्या पर ऐसे जटिल प्रश्न पूछे जो इन जैसे ब्रह्मचारी संन्यासी की कल्पना से भी परे थे। किन्तु वे योगी थे उन्हें मण्डन मिश्र जैसे महान पंडित कि सेवाओं की उपेक्षा थी सो उन्होंने महिष्मती नरेश के मृतक शरीर में ‘प्रवेश किया और कामशास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। तत्पश्चात वापस अपने शरीर में आकर उन्होंने भारती के प्रश्नों का उत्तर दिया। परकाया प्रवेश की यह घटना पिण्ड की सामर्थ्य के उस सूक्ष्म चेतन पक्ष का परिचय देती है जिसे रहस्यमय विभूतियों से संपन्न माना गया है।

सूक्ष्म शरीर द्वारा परकाया प्रवेश की एक दूसरी इतिहास प्रसिद्ध घटना महर्षि उपवर्ष के शिष्य देवदत्त की है जिन्होंने पाटलिपुत्र के राजा महापद्मनन्द के मृत शरीर में प्रवेश तो पा लिया था, फिर बाहर निकल नहीं सके थे।

महर्षि उपवर्ष के तीन शिष्य थे प्रथम वरुचि या कात्यायन जो पीछे सम्राट चन्द्रगुप्त के महामंत्री बने थे। इन्होंने पाणिनि व्याकरण के सूत्रों की टीका की थी। दूसरे थे-’व्याडी’-जिन्होंने एक विशाल व्याकरण ग्रंथ लिखा था और तीसरे थे-देवदत्त जो योग विद्या में निष्णात् थे और परकाया प्रवेश तक कि विद्या जानते थे। गुरु दक्षिणा-की एक लाख स्वर्ण मुद्रायें प्राप्त करने के लालच में इन्होंने तुरन्त मृत्यु को प्राप्त महापद्मनन्द के शरीर को माध्यम बनाया और दोनों साथियों पर अपने शरीर की रक्षा भार सौंपकर उसमें सूक्ष्म शरीर से जा घुसे। सारे राज्य में छाई दुख की लहर एकाएक खुशी में बदल गयी। चारों ओर उत्सव मनाये जान लगे। कुशाग्र बुद्धि महामंत्री शकटार ने जब पुनर्जीवित महापद्मनन्द के गुण, कर्म, स्वभाव, व्यवहार एवं पाण्डित्य में परिवर्तन पाया तो उन्हें वस्तु स्थिति समझते देर न लगी कि यह सारा खेल योग विद्या के ज्ञाता देवदत्त का है। उन्होंने निश्चय किया कि जैसे भी हो देवदत्त का है। उन्होंने निश्चय किया कि जैसे भी हो देवदत्त के पूर्ववर्ती शरीर को ढूंढ़ कर शवदाह करा दिया जाय ताकि महापद्मनन्द को इस रूप में जीवित रखा जा सके। यह वह समय था जब सिकन्दर सम्राट पुरु पाटलिपुत्र से ही होने वाली थी। ऐसी स्थिति में अपने सिपाहियों का मनोबल बढ़ाये रखना आवश्यक था। अतएव शकटार ने अपने विश्वासपात्र सैनिकों को भेजकर व्याधि के विरोध के बावजूद भी देवदत्त के शरीर का अग्नि संस्कार करा दिया। देवदत्त को जब इस बात का पता चला तो माथा पीटते रह गये। बाद की कथा तो सब जानते ही हैं।

विश्व-विख्यात चित्रकार गोया की आत्मा अमेरिका की एक विधवा हैनरोट के शरीर में प्रविष्ट हो गयी थी। यह घटना अमेरिका में प्रसिद्ध। नये शरीर में गोया ने ‘ग्वालन’ नामक सुन्दर कलाकृति का निर्माण किया। विधवा हैनरेट ने अपने जीवनकाल में कभी कोई चित्र नहीं बनाया था। अमेरिकी विशेषज्ञों को विधवा के व्यवहार में गोया की आत्मचेतना झाँकता दिखाई देती थी। वे इसे परकाया प्रवेश की घटना मानते थे।

योग सूक्ष्मता का विज्ञान है। यह परमसत्ता से संबंध जोड़ने, आत्मानुभूति कराने का सुनिश्चित साधन है। यह राह भले ही कठिनाइयों की आत्म नियंत्रण, आत्म-सुधार की हो पर एक वैज्ञानिक पद्धति जिसके परिमाण सुनिश्चित होते हैं। उस कठिन मार्ग पर चलने वाली आस्था को उक्त चमत्कारी सिद्धियाँ निःसंदेह परिपुष्ट करती है मानवीकाया की सूक्ष्म संरचना ही कुछ ऐसी होती है कि अन्तराल में प्रसुप्त उस बीज को भण्डार को विकसित का जा सके तो वह उसे अनंत गुना सामर्थ्यवान बना देती है। स्थूल से सूक्ष्म और सूक्ष्म से कारण शरीर इस सत्ता इसी स्तर की है। विज्ञान जगत के अनुसंधान कर्ताओं ने भी अब भारतीय दर्शन के इस तथ्य की पुष्टि कर दी है और कहा है कि मनुष्य की ‘ईथरिक बॉडी’ अर्थात् सूक्ष्म शरीर की सामर्थ्य स्थूल की तुलना में कई गुना अधिक है। वह शरीर के अन्दर और बाहर भी कार्य करता रह सकता है। अत्यन्त अल्प समय में दूरवर्ती स्थानों की यात्रा कर सकता है और जरूरतमंदों की सहायता कर सकता है।

आक्सफोर्ड स्थिति ‘साइकोलॉजिकल रिसर्च सेन्टर’के मूर्धन्य परामनोविज्ञानियों ने- ‘एस्ट्रल ट्रैवल’ अर्थात् ‘सूक्ष्म शरीर की यात्रा ‘पर गहन अध्ययन एवं अनुसंधान किया है। संस्थान के प्रमुख अनुसंधान अधिकारी डॉ.चार्ल्स एम.क्रीरी का कहना है कि जन सामान्य में लगभग दस प्रतिशत व्यक्तियों को अपने जीवन में सूक्ष्म शरीर से दूसरे स्थानों की यात्रा के अनुभव अवश्य होते हैं। इनमें से अधिकांश घटनाएं दुर्घटना या शल्य क्रिया के समय घटित होती है। इनके अनुसार इस तरह के अनुभव प्रायः शान्त एवं विश्रान्तिपूर्ण मनःस्थिति में होते हैं। गहन निद्रा में भी स्थूल शरीर से बाहर निकल कर सूक्ष्म शरीर की यात्रा की घटनायें प्रकाश में आती रहती हैं।

विश्व प्रख्यात लेखक अर्नेस्ट हैमिग्वे ने अपनी कृति ‘फेअरवैल टू आर्म्स’ में ऐसे अनेकों रहस्यमय संस्मरणों का वर्णन किया है जिनमें व्यक्तियों ने अपने स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर को अलग कर स्वयं की शल्य क्रिया होते या दुर्घटना में शरीर को आशक्त पड़े देखा है। इसी तर सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक रेमण्ड मुडी ने इस तरह के कितने ही उदाहरण ढूंढ़ निकाले हैं जिनमें रोगियों ने अपनी मृत्यु को बहुत पास से देखा है कि किस तरह कष्ट कर परिस्थितियों में भौतिक शरीर से सूक्ष्म शरीर अलग होकर उन सारे दृश्यों को देखता रहा जिसमें उसे स्वस्थ करने के चिकित्सकों के प्रयत्न भी सम्मिलित थे।इस संदर्भ में तांत्रिक विशेषज्ञों का कहना है कि सामान्य अवस्था में स्थूल शरीर एवं सूक्ष्म शरीर दोनों संपूर्ण ऐक्य की स्थिति में रहते हैं, किन्तु कई बार बहुत-सी ऐसी परिस्थितियों भी आती हैं जब दोनों शरीर एक दूसरे अलग हो जाते हैं। तब सूक्ष्म शरीर के लिए कहीं भी गमन कर सकना संभव हो जाता है। इतने पर भी वह भौतिक शरीर से एक सूक्ष्म सूत्र द्वारा संबंध बनाये रखा जाता है। मृत्यु हो जाने पर यह संपर्क सूत्र समाप्त हो जाता है और सूक्ष्म शरीर पूरी तरह स्वतंत्र हो जाता है।

यह तथ्य है कि साँसारिक कष्ट कठिनाईयाँ स्थूल शरीर के साथ ही जुड़ी रहती हैं, सूक्ष्म शरीर को इस प्रकार की कोई आधि–व्याधि नहीं व्यापती। ‘ट्वेन्टी फिथमैन’नामक पुस्तक में ऐड मोरेल ने एक ऐसे ही व्यक्ति की घटना प्रकाशित की है जिसे जेल के भीतर भीषण यंत्रणायें सहनी पड़ती थीं। अभ्यास द्वारा उसने अपने सूक्ष्म शरीर को स्थूल काया से अलग करने की विद्या सीख ली थी और यंत्रणा के उन क्षणों में सूक्ष्म शरीर से जेल से बाहर विचरण करने चला जाया करता था।

पोलैण्ड का एक प्रतिभाशाली इंजीनियर अपनी अतीन्द्रिय क्षमता के लिए विख्यात था। अपने एक चिकित्सक मित्र के परामर्श पर उसने सूक्ष्म शरीर से सुदूर प्रान्तों कि यात्रायें की। स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर अलग हो जाने पर परीक्षणकर्ता वैज्ञानिकों ने पाया कि उस समय भौतिक शरीर जीवन नाम का कोई लक्षण विद्यमान नहीं होता था। हृदय कि धड़कन, नाड़ी गति, श्वास-प्रश्वास आदि बंद हो जाते थे। अन्यान्य वैज्ञानिक परीक्षणों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है। कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के ख्याति प्राप्त मनोविज्ञानी डॉ.चार्ल्स टी. स्टार्ट ने वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से शारीरिक क्रिया–कलापों की मोनीटरिंग करने पर पाया कि स्थूलकाया से सूक्ष्म सत्ता के निकल जाने पर समस्त कायिक गतिविधियों ठप्प पड़ जाती है और जैसे ही सूक्ष्म शरीर पुनः अपनी पंच भौतिक काया में लौटा आता है वे फिर सक्रिय हो उठती हैं। उनके इस अनुसंधान की प्रमाणिकता को अमेरिकन सोसाइटी फॉर साइकिल रिसर्च ने भी स्वीकृति प्रदान की है।

अभ्यास द्वारा भौतिक शरीर से सूक्ष्म शरीर को अलग करने के अतिरिक्त भी कितनी ही बार ऐसी घटनायें घटित होती है। जो सूक्ष्म शरीर की सत्ता में परिचय कराती हैं जिन्हें चिकित्सालयों के रिकार्ड में देखा जा सकता है। घटना फाकलैण्ड की है जहाँ पिछले दिनों ब्रिटेन और अर्जेन्टीना के बीच युद्ध हुआ था। एक सैनिक अचेतावस्था में अस्पताल में भर्ती किया गया था। गहन उपचार के बाद जब मूर्छा जगी तो उसने डॉक्टरों को बताया कि अमुक गाँव में अमुक परिवार में उसका उसने अपने पोते के शरीर पा लिया था। जाँच–कर्ताओं को उसने बताया कि उस परिवार का वह एक मात्र पुरुष सदस्य था जिसका जीवित रहना आवश्यक था। उसका प्राणांत हो जाने पर इस शरीर में मुझे सूक्ष्म शरीर से प्रवेश करना पड़ा। इसी तरह की न्यूयार्क के लेनोक्स हिल हास्पिटल के चिकित्सा विज्ञानी डॉ. रसल मैक रॉबट ने एक पादरी का वर्णन किया है जिसने अपने सूक्ष्म शरीर द्वारा यात्रा करके चिकित्सकों को यह सोचने के लिए विवश कर दिया था कि भौतिक शरीर के अन्दर कोई सूक्ष्म सत्ता भी विद्यमान है जिसकी सामर्थ्य उसकी तुलना में असंख्य अधिक है।

मूर्धन्य परामनोविज्ञानी सिल्वान मुल्डून का कहना है कि वस्तुतः सूक्ष्मशरीर ब्रह्मांडीय ऊर्जा का सघनीकृत रूप मात्र है। योगसाधना एवं तपश्चर्या से ब्रह्मांडीय चेतन ऊर्जा सूक्ष्म शरीर में जैसे-जैसे साधन होती जाती है वह सशक्त एवं परिपुष्ट बनता जाता है उसकी क्षमता भौतिक काया से कई गुनी बढ़ी चढ़ी होती है जिसके लिए समय, स्थान दूरी आदि जैसे कारक काई अर्थ नहीं रखते उनके अनुसार सूक्ष्म शरीर से यात्रा करने के पश्चात् जितनी ताजगी और स्फूर्ति की अनुभूति होती है। उतना स्थूल शरीर से कभी भी संभव नहीं हो पाती। इसे उन्होंने मन की यात्रा कहा है जो प्रबल संकल्प बल के सहारे संपन्न होती है।

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