• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • साधना का रहस्य
    • सृष्टि का ज्ञान-विज्ञान - वेद का विज्ञान : प्रतिकात्मक ज्ञान
    • कठोर अनुबंधों के सहारे (Kahani)
    • है कोई अदृश्य शक्ति, जो जड़ को प्रभावित करती हैं
    • महाकाल का संदेश (Kahani)
    • अंधों में मात्र एक नेत्रवान्
    • जहाँ विवेक रहता हैं, चिंतन में श्रेष्ठता रहती है(Kahani)
    • प्रेम साधना और उसकी परिणति
    • Quotation
    • सभी स्वीकार करते है पुनर्जन्म के सत्य को
    • बच्चे की प्राण रक्षा (Kahani)
    • कैसे हो साक्षी भाव की सिद्धि
    • अपने ही विनाश पर तुले हुए हम
    • Quotation
    • विश्व पटल पर छाती जा रही हैं नारी शक्ति
    • सत्य का विस्मरण (Kahani)
    • झपकी लें, स्वस्थ रहें
    • सारी स्त्रियाँ मेरी माँ के समान (Kahani)
    • प्रतिध्वनि का दर्शन
    • प्रगति में अवरोध (Kahani)
    • नीर-क्षीर विवेक की अनिवार्यता
    • प्रवासी पक्षियों की ये नैसर्गिक यात्राएँ
    • स्वर्ग और नरक की परिभाषा (Kahani)
    • आलौकिक चेतना में रमा-बसा दिव्य तीर्थ धाम
    • ऋषियों की मूर्ति में प्रतिष्ठित हैं गुरुचेतना का अंश
    • सही विभूतियों को महत्व (Kahani)
    • गुरुगीता- 5 - गुरु चरण व रज का माहात्म्य
    • यश, सम्मान और जीवन से भी हाथ धोना पड़ा(Kahani)
    • अंतर्जगत की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान - योग फलित होता है सम्यक् ज्ञान से
    • स्वर्णिम अक्षरों में (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - ध्यान क्यों करें? कैसे करें? - 2
    • युग गीता - 38 - कर्त्ताभाव से मुक्त द्रष्टा स्तर का दिव्यकर्मी
    • रावण का सपरिवार विनाश (Kahani)
    • जा पर कृपा तुम्हारी होई, ता पर कृपा करें सब कोई -
    • सौ प्रतिशत छूट का लाभ लें, दैवी अनुदानों के अधिकारी बनें
    • अब कमर कस ही लें व ज्ञानयज्ञ में भावभरी भागीदारी करें
    • अपनों से अपनी बात - मथुरा में आयोजित हुआ साधकों का महाकुँभ
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • साधना का रहस्य
    • सृष्टि का ज्ञान-विज्ञान - वेद का विज्ञान : प्रतिकात्मक ज्ञान
    • कठोर अनुबंधों के सहारे (Kahani)
    • है कोई अदृश्य शक्ति, जो जड़ को प्रभावित करती हैं
    • महाकाल का संदेश (Kahani)
    • अंधों में मात्र एक नेत्रवान्
    • जहाँ विवेक रहता हैं, चिंतन में श्रेष्ठता रहती है(Kahani)
    • प्रेम साधना और उसकी परिणति
    • Quotation
    • सभी स्वीकार करते है पुनर्जन्म के सत्य को
    • बच्चे की प्राण रक्षा (Kahani)
    • कैसे हो साक्षी भाव की सिद्धि
    • अपने ही विनाश पर तुले हुए हम
    • Quotation
    • विश्व पटल पर छाती जा रही हैं नारी शक्ति
    • सत्य का विस्मरण (Kahani)
    • झपकी लें, स्वस्थ रहें
    • सारी स्त्रियाँ मेरी माँ के समान (Kahani)
    • प्रतिध्वनि का दर्शन
    • प्रगति में अवरोध (Kahani)
    • नीर-क्षीर विवेक की अनिवार्यता
    • प्रवासी पक्षियों की ये नैसर्गिक यात्राएँ
    • स्वर्ग और नरक की परिभाषा (Kahani)
    • आलौकिक चेतना में रमा-बसा दिव्य तीर्थ धाम
    • ऋषियों की मूर्ति में प्रतिष्ठित हैं गुरुचेतना का अंश
    • सही विभूतियों को महत्व (Kahani)
    • गुरुगीता- 5 - गुरु चरण व रज का माहात्म्य
    • यश, सम्मान और जीवन से भी हाथ धोना पड़ा(Kahani)
    • अंतर्जगत की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान - योग फलित होता है सम्यक् ज्ञान से
    • स्वर्णिम अक्षरों में (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - ध्यान क्यों करें? कैसे करें? - 2
    • युग गीता - 38 - कर्त्ताभाव से मुक्त द्रष्टा स्तर का दिव्यकर्मी
    • रावण का सपरिवार विनाश (Kahani)
    • जा पर कृपा तुम्हारी होई, ता पर कृपा करें सब कोई -
    • सौ प्रतिशत छूट का लाभ लें, दैवी अनुदानों के अधिकारी बनें
    • अब कमर कस ही लें व ज्ञानयज्ञ में भावभरी भागीदारी करें
    • अपनों से अपनी बात - मथुरा में आयोजित हुआ साधकों का महाकुँभ
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 2002 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


ऋषियों की मूर्ति में प्रतिष्ठित हैं गुरुचेतना का अंश

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 24 26 Last
फागुन का उल्लास प्रकृति के कण-कण में थिरक रहा था। रसाल के बौर की सुगन्ध, नवकिसलयों की चमक, कोयल का मधुरगान इसे मुखर अभिव्यक्ति दे रहे थे। वर्ष 1986 ई. के ये दिन सब भाँति अनूठे थे। प्राकृतिक उल्लास की यह छटा पूर्ण महाकुम्भ पर्व के आध्यात्मिक उल्लास के रंगों से भीगकर और भी अधिक सम्मोहक हो गयी थी। हरिद्वार में इन दिनों पूर्ण महाकुम्भ के अमृतकणों की वृष्टि हो रही थी। आध्यात्मिक कथा-कीर्तन-सत्संग की मधुर ध्वनियाँ हर ओर सुनी जाती थी। गंगा की धाराओं पर लकड़ी के पुल बन जाने से श्रद्धालुजनों का आवागमन सहज हो गया था। सप्तऋषि क्षेत्र में संव्याप्त युग-युगीन ऋषियों की तपश्चेतना इधर आने वालों के मस्तिष्क में बरबस स्पन्दित हो उठती थी।

युगऋषि गुरुदेव के प्रभाव से ये स्पन्दन शान्तिकुञ्ज में कुछ अधिक ही घनीभूत थे। महाकुम्भ का स्वाभाविक उल्लास भी यहाँ अपेक्षाकृत शत-सहस्रगुणित था। इसका प्रधान कारण परम पूज्य गुरुदेव की चुम्बकीय उपस्थिति थी। अभी वह कुछ ही दिनों पहले बसन्त पंचमी के दिन अपनी सूक्ष्मीकरण साधना से बाहर आए थे। भक्तों और शिष्यों के आतुर उत्कंठित प्राण उन महाप्राण से मिलकर एक अनोखी-आध्यात्मिक संतृप्ति का अनुभव कर रहे थे। सूक्ष्मीकरण साधना के वर्षों में प्रायः सभी से मिलना बन्द था। वन्दनीया माताजी के अलावा एक-आध निकटस्थ जन ही ऐसे थे, जो इन दिनों भी उनसे मिलते रहे थे। इसका कारण उनकी कई महत्त्वपूर्ण एवं अनिवार्य कार्यों में सहभागिता थी। अन्यथा समदर्शी एवं शिष्य वत्सल गुरुदेव की भावनाएँ तो सभी के प्रति समान थी।

अब जब उन्होंने मिलना प्रारम्भ किया तो सभी से अति उदारतापूर्वक मिल रहे थे। देश के कोने-कोने से, यहाँ तक कि सुदूर देशों से भक्तजन अपने परम आराध्य सद्गुरु का दर्शन करने के लिए दौड़े-भागे चले आ रहे थे। महाकुम्भ की व्यापकता में सद्गुरु के प्रेम का अनोखा कुम्भ बरबस ही आयोजित हो गया था। इसमें भक्तजन अपने सद्गुरु के प्रेम-अमृत से अभिसिंचित होने के लिए, सद्गुरु के प्रेम-सरोवर में डुबकियाँ लगाने के लिए भागे आ रहे थे। शान्तिकुञ्ज-ब्रह्मवर्चस के निवासियों का तो खैर कहना ही क्या था? उनके सौभाग्य से तो देवता और सिद्धजन भी ईर्ष्या कर रहे थे। आने वाले शिष्यों-भक्तों एवं कार्यकर्त्ताओं से गुरुदेव मिलते थे। उन्हें मिशन की भावी योजनाएँ समझाते थे। गोष्ठियाँ उनकी भी होती थी, जो शान्तिकुञ्ज में रह रहे थे। जिन्हें काम का अनुभव थोड़ा अधिक था। ऐसे वरिष्ठजनों से गुरुदेव इन दिनों प्रायः रोज ही मिल रहे थे।

उस दिन भी ऐसी ही गोष्ठी चल रही थी। शान्तिकुञ्ज एवं ब्रह्मवर्चस के प्रायः सभी वरिष्ठ कार्यकर्त्ता बैठे हुए थे। इन्हीं दिनों शान्तिकुञ्ज में गायत्री माता के मन्दिर के पास के क्षेत्र में ऋषियों की मूर्तियों की स्थापना की जा रही थी। यह स्थापना प्रायः हो चुकी थी, बस प्राण प्रतिष्ठ का कार्य बाकी था। ये ऋषियों की वही मूर्तियाँ हैं, जिनके दर्शन इन दिनों लोग शान्तिकुञ्ज के ऋषिक्षेत्र में करते हैं। पहले यहाँ ये मूर्तियाँ नहीं थी। जो लोग वर्ष 1986 ई. के पहले शान्तिकुञ्ज आते रहे हैं, उन्हें ध्यान होगा कि इन स्थानों पर पहले विभिन्न तीर्थों के चित्र लगे हुए थे। ऋषियों की ये मूर्तियाँ सन् 1986 के कुम्भपर्व में ही स्थापित की गयी थी।

हाँ तो ये मूर्तियाँ अपने-अपने उपयुक्त स्थानों पर स्थापित हो चुकी थी। इनमें प्राण प्रतिष्ठ होनी बाकी थी। उस दिन परम पूज्य गुरुदेव की गोष्ठी की चर्चा का मुख्य बिन्दु भी यही था। पूज्य गुरुदेव उपस्थित कार्यकर्त्ताओं को समझा रहे थे- बेटा, यह हमारा मिशन ऋषियों का मिशन है। हम तो बस उनके प्रतिनिधि हैं। ऋषियों की दिव्य सत्ताएँ देवात्मा हिमालय के ध्रुव केन्द्र में अभी भी सूक्ष्म रूप से निवास करती हैं। सृष्टि संचालन की समस्त सूक्ष्म व्यवस्था का दायित्व उन्हीं पर है। वे ही अपनी तपशक्ति से सृष्टि में सामञ्जस्य बनाए रहते हैं। यह अपना मिशन भी उन्हीं की तपशक्ति से कार्य कर रहा है। यहाँ जो भी कार्यक्रम, गतिविधियाँ एवं योजनाएँ चलायी जाती हैं, सबके पीछे उन्हीं की प्रेरणा व इच्छा शक्ति क्रियाशील है।

गुरुदेव की वाणी का प्रत्येक शब्द जैसे कि नए रहस्य को अनावृत कर रहा था। सुनने वाले चकित और हतप्रभ थे। उन्हें लग रहा था कि जैसे दोनों जगत् पूज्य गुरुदेव के रूप में मूर्तिमान हो अपना परिचय दे रहे हों। गुरुदेव के रूप में स्थूल और सूक्ष्म जगत् की विधि-व्यवस्था का अद्भुत परिचय मिल रहा था। सभी यह जान पा रहे थे कि स्थूल की भाँति सूक्ष्म की भी एक विधि व्यवस्था है। इस क्रम में उन्होंने कतिपय अन्य रहस्यमयी बातें भी बतायी। बाद में उन्होंने अपनी बातों को बीच में ही अचानक खत्म करते हुए कहा, अच्छा अब तुम सब लोग जाओ, हमसे मिलने के लिए कुछ विशेष वी.आई.पी. आने वाले हैं।

उपस्थित जनों में से कुछ ने सोचा कि हरिद्वार में महाकुम्भ चल रहा है। प्रायः रोज ही राज्य एवं केन्द्र के मंत्री व वरिष्ठ अधिकारी आते रहते हैं। हो सकता है कि इन्हीं में से कोई आज गुरुजी से मिलने के लिए आ रहा हो। अन्तर्यामी गुरुदेव के लिए दूसरे के मनों की बात जान लेना बड़ा ही आसान था। वह अपने बच्चों के मनों में चल रहे ऊहापोह को पलभर में समझ गए और हँस पड़े। उनके मुक्त हास्य की निर्मल छटा बड़ी ही सुमनोरम थी। इस निर्मल हास्य को बिखराते हुए वह बोले- अरे भाई! तुम लोग जिन्हें वी.आई.पी. समझते हो, वे हमारे लिए कभी भी वी.आई.पी. नहीं हो सकते। फिर हमारे वी.आई.पी. लखनऊ या दिल्ली से नहीं आते। वे तो दिव्य लोकों से या फिर देवात्मा हिमालय के आध्यात्मिक ध्रुव केन्द्र से आते हैं।

वह दिन जैसे विभिन्न आध्यात्मिक रहस्यों के अनावृत होने का दिन था। पल भर की चुप्पी के बाद गुरुदेव बोले- बेटा, तुम सबको मालूम है कि ऋषियों की प्राण-प्रतिष्ठ होनी है। तो जिन ऋषियों की प्राण प्रतिष्ठ होनी है, वे ऋषि स्वयं ही सूक्ष्म शरीर से आज हमारे पास आ रहे हैं। अभी-अभी हमें अपने अन्तःकरण में उनका सन्देश प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा है कि वे स्वयं यहाँ आकर पहले मुझसे मिलेंगे, फिर अपने एक अंश की प्रतिष्ठ उन मूर्तियों में करेंगे, जिन्हें तुम लोगों ने स्थापित किया है।

बड़ी ही अद्भुत थी गुरुदेव की बातें। इन्हें सुनकर सबको अचरज के साथ भारी खुशी हुई। प्रायः सभी अपने मन में यह सोच रहे थे कि भले ही हम उन दिव्य महर्षियों को न देख पाएँ, पर वे तो हमें देखेंगे ही। हम पर उनके अनुग्रह की कृपा वर्षा होगी ही। और यह सब होगा केवल परम पूज्य गुरुदेव की कृपापूर्ण उपस्थिति के कारण। यही सोचते हुए सब लोग गुरुदेव के कमरे से वापस आ गए। उस दिन क्या हुआ यह किसी ने कुछ भी प्रत्यक्ष नहीं देखा। हाँ इतना अवश्य देखा गया कि उस दिन वन्दनीया माताजी समय से पहले दोपहर में ही गुरुदेव के कमरे में पहुँच गयीं। गुरुदेव एवं माताजी दोनों ही उस दिन किसी से नहीं मिले। रात्रि में भी उनके सेवक-सहचर उनसे दूर ही रहे। सुबह बस इतना भर पता चला ऋषियों की मूर्तियों में प्राण-प्रतिष्ठ हो गयी है। कर्मकाण्ड की औपचारिक प्रक्रियाएँ बाद में सम्पन्न हुई। आज यह तथ्य कितना भी आश्चर्यजनक क्यों न लगे पर यह पूर्णतया सत्य है कि जिन ऋषियों को हम आप शान्तिकुञ्ज में प्रतिष्ठित देखते हैं, उनकी प्राण-प्रतिष्ठ स्वयं उन्हीं महर्षियों ने ही अपनी चेतना के एक अंश को प्रतिष्ठित करके की है। ये ऋषि मूर्तियाँ केवल मूर्तियाँ भर नहीं हैं। इनमें उन महर्षियों की जीवन्त प्राण चेतना विद्यमान है। यह सब पूज्य गुरुदेव की कृपा का ही सुफल है। जिसकी अनुभूति अभी भी होती है।

First 24 26 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • साधना का रहस्य
  • सृष्टि का ज्ञान-विज्ञान - वेद का विज्ञान : प्रतिकात्मक ज्ञान
  • कठोर अनुबंधों के सहारे (Kahani)
  • है कोई अदृश्य शक्ति, जो जड़ को प्रभावित करती हैं
  • महाकाल का संदेश (Kahani)
  • अंधों में मात्र एक नेत्रवान्
  • जहाँ विवेक रहता हैं, चिंतन में श्रेष्ठता रहती है(Kahani)
  • प्रेम साधना और उसकी परिणति
  • Quotation
  • सभी स्वीकार करते है पुनर्जन्म के सत्य को
  • बच्चे की प्राण रक्षा (Kahani)
  • कैसे हो साक्षी भाव की सिद्धि
  • अपने ही विनाश पर तुले हुए हम
  • Quotation
  • विश्व पटल पर छाती जा रही हैं नारी शक्ति
  • सत्य का विस्मरण (Kahani)
  • झपकी लें, स्वस्थ रहें
  • सारी स्त्रियाँ मेरी माँ के समान (Kahani)
  • प्रतिध्वनि का दर्शन
  • प्रगति में अवरोध (Kahani)
  • नीर-क्षीर विवेक की अनिवार्यता
  • प्रवासी पक्षियों की ये नैसर्गिक यात्राएँ
  • स्वर्ग और नरक की परिभाषा (Kahani)
  • आलौकिक चेतना में रमा-बसा दिव्य तीर्थ धाम
  • ऋषियों की मूर्ति में प्रतिष्ठित हैं गुरुचेतना का अंश
  • सही विभूतियों को महत्व (Kahani)
  • गुरुगीता- 5 - गुरु चरण व रज का माहात्म्य
  • यश, सम्मान और जीवन से भी हाथ धोना पड़ा(Kahani)
  • अंतर्जगत की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान - योग फलित होता है सम्यक् ज्ञान से
  • स्वर्णिम अक्षरों में (Kahani)
  • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - ध्यान क्यों करें? कैसे करें? - 2
  • युग गीता - 38 - कर्त्ताभाव से मुक्त द्रष्टा स्तर का दिव्यकर्मी
  • रावण का सपरिवार विनाश (Kahani)
  • जा पर कृपा तुम्हारी होई, ता पर कृपा करें सब कोई -
  • सौ प्रतिशत छूट का लाभ लें, दैवी अनुदानों के अधिकारी बनें
  • अब कमर कस ही लें व ज्ञानयज्ञ में भावभरी भागीदारी करें
  • अपनों से अपनी बात - मथुरा में आयोजित हुआ साधकों का महाकुँभ
  • VigyapanSuchana
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj