• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अद्भुत स्रष्टा के अद्भुत रहस्य
    • प्राण सत्ता का उदय और विकास श्रोत
    • गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु?
    • ‘अमीबा’ से नहीं मनुष्य ईश्वर की इच्छा से बना है
    • मान भी ले कि विकासक्रम सही है पर
    • प्रत्यक्ष से भी विचित्र अदृश्य संसार
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अद्भुत स्रष्टा के अद्भुत रहस्य
    • प्राण सत्ता का उदय और विकास श्रोत
    • गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु?
    • ‘अमीबा’ से नहीं मनुष्य ईश्वर की इच्छा से बना है
    • मान भी ले कि विकासक्रम सही है पर
    • प्रत्यक्ष से भी विचित्र अदृश्य संसार
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - मनुष्य गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु ?

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


प्रत्यक्ष से भी विचित्र अदृश्य संसार

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 5 7 Last
पुनर्जन्म के सम्बन्ध में यों तो अनेकों घटनायें सामने आती हैं। अखबारों में छपती रहती हैं। पूर्वजन्म की स्मृति आना और बोलना सीखते ही पिछले जन्म के घर, पत्नी-बच्चों, रिश्तेदारों के सम्बन्ध में बताने, उन्हें पहचानने और कोई राज की बात जिसे अकेला वही व्यक्ति या एकाध अन्य सदस्य और जानते थे बताने की घटनायें इतनी आम हो चुकी हैं कि कोई नई चर्चा उठते ही उसी जैसी दो चार और घटनाओं की भी चर्चा होने लगती है।

इन घटनाओं के सम्बन्ध में जो विवरण प्राप्त हुए उनके आधार पर जांच पड़ताल से जो तथ्य सामने आये उन्होंने पुनर्जन्म और परलोक के भारतीय सिद्धान्त की पुष्टि करते हुए यह भी प्रमाणित कर दिया है कि मरने के बाद शरीर तो छूट जाता है पर मनुष्य की चेतना जीवित ही रहती है। लेकिन अभी कुछ समय पूर्व विश्व-विख्यात ब्रिटिश परा मनोवैज्ञानिक जे. बर्नार्ड हटन ने कुछ ऐसी घटनाओं पर शोध किया जो यह सिद्ध करती हैं कि व्यक्ति ही नहीं घटनाओं का भी पुनर्जन्म होता है। इस विषय को इन्होंने अपनी पुस्तक ‘द अदर साइड आफ रियेलिटी’ (यथार्थ का दूसरा पक्ष) में प्रमाणों और तथ्यों के आधार पर प्रतिपादित किया है।

जे. बर्नार्ड हटन द्वारा उल्लिखित जो घटना सर्वाधिक चर्चित है उसके कई साक्षी आज भी जीवित हैं जिन्होंने उसे देखा है हटन की भांति। हटन ने इस घटना का साक्षात् किया था सन् 1923 में। उस समय वे बच्चे ही थे। उनके पिता किसी सरकारी विभाग में अच्छे पद पर थे और समय-समय पर पूरा परिवार छुट्टियों का आनन्द लेने के लिए किसी एकान्त स्थल पर जाया करता था। उस वर्ष हटन परिवार सिल्ट द्वीप पर अपनी छुट्टियां मना रहा था। यह द्वीप चारों ओर से समुद्र से घिरा तथा सुन्दर रम्य प्रकृति की गोदी में बना हुआ है।

हटन के साथ उनके एक मित्र जो सेना में कैप्टन थे—शुलकौझ भी द्वीप पर छुट्टियां मनाने के लिए सपरिवार आये हुए थे। दोनों मित्रों ने पास-पास रहने का फैसला किया और एक ही स्थान पर बंगले किराये पर लिये। अभी छुट्टियां बीत भी न पाई थीं कि हटन को किसी आवश्यक कार्य से बाहर जाना पड़ा। श्रीमती हटन और उनके बच्चों के साथ कैप्टिन-शुलकौझ का परिवार भी श्री हटन को विदा करने स्टेशन तक गया। विदा कर लौटते हुए सबने पूरे द्वीप को घूमते हुए चक्कर लगा कर अपने बंगलों पर वापस लौटने का निश्चय किया। इस प्रकार उन्हें छोटे से सिल्ट द्वीप की चार मील परिधि भर का चक्कर लगाना पड़ता। अतएव वे स्टेशन से बंगलों के लिए पैदल ही रवाना हुए। सब घूमते हुए चले जा रहे थे। घूमते-घूमते वे एक ऐसे स्थान पर जा रुके जहां खाड़ी सी बन गयी थी। रुकने का कारण था खाड़ी में उठने वाला एक तेज ज्वार और उसमें फंसी मल्लाहों की एक नाव, जिसमें करीब 15-20 मछुए बैठे थे। और सबके चेहरों पर मौत का भय छाया हुआ था। इस समय देख कर आश्चर्य इस बात पर अधिक होता था कि जिस क्षेत्र में ज्वार के बीच नाव फंसी हुई थी वहां तो प्रचण्ड लहरें उठ रही थीं जैसे सागर किश्ती पर ही अपना सारा क्रोध उतारने के लिए बेताब हो रहा हो। पर उस क्षेत्र के आस-पास का समुद्र बिल्कुल शांत था।

थोड़ी देर में कुछ मछुए पास के गांव से आ गये और उन्होंने तोप द्वारा लाइफलाइन फैंकी ताकि उसे पकड़ कर फंसे हुए मछुए अपनी जीवन रक्षा कर लें। लेकिन वह लाइफ नाव तक ही नहीं पहुंची। दुबारा लाइफ लाइन फेंकी गयी। इस बार पूरी सतर्कता रखी गयी थी। इसलिए लाइफ लाइन ठीक नाव तक पहुंच गयी। नाव में बैठे मछुए उसे पकड़े-पकड़े इतने में ही एक लहर ऊंची उठी और उसने लाइफ लाइन को लपक लिया।

तोप की आवाज सुनकर पास की बस्ती से बहुत सारे लोग जिनमें स्त्रियां और बच्चे भी थे समुद्र के तट पर आ गये। अच्छी खासी भीड़ इकट्ठी हो गयी। कुछ स्त्रियां विलाप भी करने लगतीं। सम्भवतः उस नाव में उनके पति, पुत्र या सम्बन्धी होंगे। दो बार लाइफ लाइन फेंकने की कोशिश बेकार गयी तो तोप दागने वाले मछेरों ने किनारे से एक नाव उतारी। जिसमें चार-पांच हृष्ट-पुष्ट और ताकतवर व्यक्ति बैठे थे वे सफलतापूर्वक नाव को खेते हुए उस ओर ले गये जहां कि उनके साथी फंसे हुए थे। लहरों से संघर्ष करते हुए वे अपने साथियों की ओर बढ़ने लगे। किनारे से रवाना हुई नाव उन तक पहुंच ही गयी थी। तट पर खड़े कुछ मछुआरों ने फिर लाइफ लाइन फेंकी पर वह भी लहरों की चपेट में आ गयी। जीवन और मृत्यु के इस संघर्ष को देख कर किनारे पर खड़े व्यक्ति परमात्मा से दया की प्रार्थना कर रहे थे। लाइफ बोट को सहारा देकर दुर्घटना में फंसे मछेरों को किनारे पर लाने की कोशिश की ही जा रही थी कि एक तेज लहर आयी जिसने आकाश की ऊंचाइयों को छूते हुए दोनों नावों और उनके सवार मछुआरों को सागर की तलहटी में पहुंचा दिया।

इस दृश्य के समय बड़ा कारुणिक वातावरण बन गया था। स्वयं शुलकोझ, उनके साथी बच्चों व अपनी तथा अपने मित्र की पत्नियों को कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक दूसरे से आश्चर्य व्यक्त करते हुए उन्होंने आस-पास देखा तो न कोई भीड़ थी और न ही सागर में तूफान आया हुआ था। एकदम शान्त समुद्र भी जैसे उस घटना को झुठला रहा था।

घटना अविश्वसनीय लगती है। परन्तु है सच। यह बात तब प्रमाणित हुई जब कैप्टेन ने अपने घर जाकर द्वीप के पादरी से इसकी चर्चा की। पादरी ने और भी आश्चर्य में डाल दिया कि अब से पचास वर्ष पूर्व जब वह बच्चा ही था सचमुच ही ऐसी घटना घट चुकी है। दिन यही था जिस दिन शुलकौझ ने यह दृश्य देखा था यही नहीं पादरी ने उन लोगों के बयान भी दिखाये जो पहले इस घटना की पुनरावृत्ति को दुख चुके थे। कैप्टेन शुलकौझ ने उन बयानों को पढ़ा तो अनुभव हुआ कि जैसे अभी-अभी कोई व्यक्ति यह घटना देखकर आया है और अपने संस्मरण लिख रहा है।

उस समय बच्चे रहे बर्नार्ड—हटन इस अविश्वसनीय सचाई से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसी दिशा में खोज करना अपना लक्ष्य बना लिया और परा मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक से एक अद्भुत प्रयोग किये तथा उनके निष्कर्षों से लोगों को अचम्भित कर दिया। क्योंकि आज का बुद्धिजीवी वर्ग इस प्रकार की बातों को बिना कुछ समझने का प्रयत्न किये तत्काल कपोल कल्पना या गप्प करार दे देता है।

पश्चिमी देशों में मरणोत्तर जीवन की स्थिति पर शोध और प्रयोग के बड़े कार्य होने लगे हैं। सर ओलीवर लाज, सर विलियम वारेट, एफ.डब्ल्यू.एच. मारेस, रिचार्ड होडसन, मिसेज सिडपिक, सर आर्थरकानन डायल आदि परा मनोवैज्ञानिकों ने इस दिशा में गम्भीर खोजे की हैं और प्रामाणिक तथा तथ्यपूर्ण जानकारियां संगृहीत कर अध्यात्म को भी विज्ञान की कसौटी पर कसा है।

उक्त प्रकार की घटना के ही समान प्रख्यात परा मनोवैज्ञानिक ए.पी. सीनेट ने भी ऐसा ही एक चौंका देने वाला अनुभव लिखा है। सीनेट एक बार झील के किनारे चहलकदमी कर रहे थे यकायक उन्हें लगा कि कोई युवती आत्मघात के उद्देश्य से झील में कूदने जा रही है। उन्होंने युवती को देखा और उसे पकड़ने के लिए दौड़े ताकि उसे आत्मघात से बचाया जा सके, पर इसके पहले ही लड़की पानी में कूद चुकी थी। छपाक की आवाज हुई और सीनेट लोगों को उसे निकालने के लिए पुकारने लगे। लोग आये, उन्होंने झील में लड़की का मूर्छित शरीर या शव निकालने के लिए काफी देर तक डुबकियां लगायीं। बाद में पुलिस को रिपोर्ट की गई, पर यह जानकर आश्चर्य हुआ कि प्रति वर्ष इसी दिन और इसी समय आत्म-हत्या की रिर्पोट दर्ज करायी जाती है। पिछली पन्द्रह-सोलह साल की फाइलों में एक-सी रिपोर्ट, आत्म-हन्ता लड़की का एक-सा हुलिया और एक से कपड़े बताए जाते हैं।

सीनेट ने यह क्रम कब से शुरू होता है—यह बताने का आग्रह किया तो पता चला कि सोलह साल पहले इसी हुलिया की लड़की ने आत्म-हत्या की थी। उसके परिवार वालों ने इसके शव को ढूंढ़ा और निकाला था। इस प्रकार घटनाओं की पुनरावृत्ति का कारण बताते हुए, ‘टेकनीक्स आफ एस्ट्रल प्रोजैक्शन’ ‘सुप्रीम ऐडवेंचर’ तथा ‘मोरल एस्ट्रल प्रोजक्शन’ जैसी विश्व विख्यात पुस्तकों के लेखक राबर्ट कूकल ने लिखा है कि—मृत्यु चाहे दुर्घटना में हुई हो या आत्मघात द्वारा। मरने वालों का सूक्ष्म शरीर (एस्ट्रल-बाडी) तुरन्त अनुभव करने में असमर्थ होता है कि वह मर रहा है। किसी तालाब में ढेला फेंकने के बाद जिस प्रकार बहुत देर तक तरंगें उठती रहती हैं उसी प्रकार मृतक व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर भी उन घटनाओं की मूर्च्छा की दशा में पुनरावृत्ति करता है। ए.पी. सीनेट द्वारा उल्लिखित इस घटना का यही कारण है।

राबर्ट कूकल ने अपनी पुस्तकों में ऐसे बहुत से तथ्य संग्रहीत किये हैं जो उन्होंने मृतात्माओं से प्रत्यक्ष वार्तालाप, सम्पर्क, खोज-बीन ओर प्रयोगों के आधार पर खोजे हैं। उनके निष्कर्ष भारतीय तत्वज्ञान को ही पुष्ट करते हैं जो यह मानता है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की होती है। प्राणी के साथ उसका सूक्ष्म शरीर, इच्छाएं, वासनाएं, आकांक्षाएं साथ ही जुड़ी रहती हैं जो उसे पारलौकिक जीवन में ही नहीं दूसरे जन्मों में भी नियंत्रित और प्रभावित करती हैं। मोह और अतृप्त वासनाओं के सम्बन्ध में कूकल ने लिखा है—‘‘जो लोग मोह के वशीभूत होते हैं तथा जिनके जीवन में अतृप्त वासनाएं घर किए रहती हैं उनकी एस्ट्रल बाडी पूर्णरूप से ईथर से मुक्त नहीं होती। उनके लिए सारा वातावरण धूमिल अन्धकार पूर्ण और भयावह रहता है।’’ इसे ही भारतीय धर्मशास्त्रों ने अपनी अलंकारिक भाषा में नरक कहा है।

अन्त में जे. बर्नार्ड हटन द्वारा देखी गई एक अनोखी घटना के पुनर्जन्म का भी स्पष्टीकरण किया है जिसका कारण बताते हुए उन्होंने लिखा है—‘‘भय और आसक्ति समान रूप से मनुष्य के सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करते हैं। आकस्मिक दुर्घटनाओं में तो इसलिए और भी ज्यादा कि बहुत काल तक मृत्यु का ही भान नहीं होता और अपने शरीर से बंधा हुआ उसका लगाव उसे पुनः पुनः संघर्षों की ओर धकेलता है।’’

इस प्रकार की घटनाओं के पुनर्जन्म का पूर्ण स्पष्टीकरण तो गहन प्रवेश की क्षमता या इस दिशा में की जाने वाली खोजों द्वारा ही हो सकता है। बहरहाल वैज्ञानिकों के लिए यह गुत्थी आज भी उलझी हुई है कि उस घटना की प्रतिवर्ष उसी दिन किस प्रकार पुनरावृत्ति होती रही है।

रोती हुई प्रतिमा—

29 अगस्त 1953 को अभी बहुत दिन नहीं हुये, जबकि सराक्यूज अमेरिका में एक पत्थर की मूर्ति (प्लास्टर आफ पेरिस) की आंखों से आंसू निकल पड़े और कई दिन तक आंसुओं का प्रवाह रुका नहीं। वैज्ञानिक आधार पर इन आंसुओं का विश्लेषण किया गया तो यह पाया गया कि मूर्ति की आंखों से स्रवित आंसुओं और मनुष्य के आंसुओं में कोई अन्तर नहीं है, इस घटना का आंखों देख सत्य विवरण और उसके अद्भुत प्रभावों का प्रमाण सहित वर्णन डच विद्वान् फादर ए. सोमर्स एस.एम.एम. ने अच्छी प्रकार स्वयं मूर्ति का परीक्षण करके लिखा। फादर एच. जोंगेन ने उसका अनुवाद कर विश्व के शेष भागों तक पहुंचाया पर इस घटना से एक बार सारे अमेरिका में हलचल मच गई। सैकड़ों आदमियों ने मूर्ति के आंसुओं का परीक्षण किया। हजारों ने उसके दर्शन किये, लाखों नास्तिकों को भी अपना विश्वास परिवर्तित करने को विवश होना पड़ा। घटना का पूर्वारम्भ 21 मार्च 1953 हुआ। उस दिन सराक्यूज में कुमारी एण्टोनियेटा और श्री एग्लो जेन्यूसो का पाणिग्रहण संस्कार था। उस पुण्य तिथि पर मित्रों, अभ्यागतों ने अनेक उपहार दिये। उन सामग्रियों में जो एण्टोनियेटा को उपहार में मिली, मीरा के गिरधर गोपाल की मूर्ति की तरह, एक छोटी-सी प्रतिमा भी थी जो जेन्यूसी के भाई और भाभी ने भेंट दी थी। 2 इंच की यह छोटी-सी मूर्ति प्लास्टर की बनी हुई थी, अन्दर से खोखली और ऊपर पालिस (एनामेल) की हुई थी। एण्टोनियेटा को वह मूर्ति बड़ी प्यारी लगी। भावना ही तो है, जिस वस्तु पर आरोपित हो जाती है, खराब से खराब मिट्टी की वस्तु भी हीरे जैसी बन जाती है। भावनाओं की शक्ति का कोई वारापार नहीं। भावनायें ही खींचकर लाती थीं और निर्जन एकान्त में मीरा का भगवान् साकार रूप में उनके साथ नृत्य करने लगता था। एन्टोनियेटा की भावनाओं के कारण वह मूर्ति साधारण प्रतिमा न होकर उसकी इष्ट देवी (मेडेना) बन गई। उसने उसे पलंग के सिरहाने लगा लिया। जिस तरह बालक किसी कष्ट या पीड़ा में मां को भावनाओं का बल देकर पुकारता है और मां हजार काम छोड़कर भागी हुई चली आती है। उसी प्रकार एण्डोनियेटा जब भी कभी दुःखी होती, अपनी साथिन मूर्ति से भावनात्मक वार्तालाप करती उससे उसे बड़ा सन्तोष मिलता।

धीरे-धीरे एण्टोनियेटा गर्भवती हुई। गर्भ जैसे-जैसे बढ़ता गया वैसे-वैसे एण्टोनियेटा का शारीरिक कष्ट जाने क्यों बढ़ने लगा। वह सूख कर कांटा हो गई, आंखें धंस गई और एक दिन दिखाई देना भी बन्द हो गया। जुबान ने बोलने से भी इनकार कर दिया। मिरगी के से दौरे आते और वह एण्टोनियेटा मृत तुल्य हो जाती।

डाक्टरी जांच की गई। डाक्टरों ने बताया भ्रूण में जहर बढ़ रहा है। डॉक्टर कोई निदान न ढूंढ़ पा रहे थे। एण्टोनियेटा पीड़ित दशा में अपलक उसी मैडेना की मूर्ति को निहारे जा रही थीं, मानों उसे कोई शिकायत हो—हे प्रभु! यदि तेरी सृष्टि मंगलमय है, तूने प्यार से मनुष्य को बनाया है तो क्या तेरे लिए यह उचित है कि अपने ही बंदों को इतना कष्ट दे?

29 अगस्त 1953 को तीव्र दौरा एण्टोनियेटा का कष्ट असह्य हो उठा। 7 बजे जेन्यूसो को अपनी ड्यूटी पर विवश होकर जाना पड़ा पलंग पर पड़ी एण्टोनियेटा अकेले तड़फड़ाकर उसी मूर्ति से अपनी भावना भरी वही प्रश्न मूलक दृष्टि डाले थी, उसी क्षण मूर्ति की आंखों से आंसू ढलके, एण्टोनियेटा को विश्वास नहीं हुआ—क्या यह सचमुच आंसू हैं या वह कोई स्वप्न देख रही है। उसने अपना सब कुछ निरीक्षण किया और पाया कि वह कोई स्वप्नावस्था में नहीं देख रही वरन् सचमुच ही मूर्ति की आंखों से आंसू ढुलक रहे हैं।

कई दिन बाद आज पहली चीख सुनी गई। एण्टोनियेटा चिल्लाई—मेडेना रो रही है। तब पड़ौस की दो और स्त्रियां आईं और उनने भी सचमुच मेडेना को रोते हुए पाया। दोनों महिलाओं ने मूर्ति के सामने घुटने टेक कर प्रार्थना की और फिर बाहर निकल गईं। देखते-देखते सारे मुहल्ले में खबर दौड़ गई। जिसने सुना वही, भागा, मूर्ति उपहार में देने वाली जेन्यूसो की भाभी ने भी आकर देखा, तब तक मूर्ति के इतने आंसू निकल चुके थे, जिससे सिरहाने का बिस्तर काफी भीग चुका था।

प्रारम्भ में लड़कियां और स्त्रियां ही यह दृश्य देखने दौड़ी। कुछ लड़के भी आये, पड़ौस में एक सिपाही की धर्मपत्नी ने यह दृश्य देखा और अपने पति को बताया कि वाया डेगली ओरटी में एण्टोनियेटा की मेडेना की आंखों से आंसू झर रहे हैं। सिपाही ने जाकर सारी घटना पुलिस को सुनाई, इस बीच घर स्त्रियों से भर गया था। गई स्त्रियां प्रार्थनायें कर रही थीं और मूर्ति थी कि उसकी आंखों से बरसने वाले अश्रु-कण कम न होते थे।

उसी दिन दोपहर को डा. मारियो मेसीना, जो वाइआ कारसो में रहते थे, स्वयं घटना का निरीक्षण करने पहुंचे। उन्होंने जाकर मूर्ति को उठा लिया। दीवार जहां वह टंगी थी, उसे अच्छी तरह देखा कहीं कुछ भी गीला या पानी की बूंदें वहां नहीं थीं। मूर्ति की छाती, पेट भी सूखा था। वह तो ताज पहने थी, उसे भी हटाकर साफ कर दिया। अच्छी तरह जब झाड़-पोंछ कर मूर्ति को पुनः रखा गया तो आंसुओं का वही प्रवाह अविरल गति से पुनः बह निकला।

डा. मारियो उस समय भावातिरेक से चिल्ला उठे मेडेना सचमुच रो रही है। उन्होंने बाहर आकर सैकड़ों लोगों को बताया—‘‘यह एक अलौकिक प्रसंग है, जबकि न तो आंखें धोखा दे रही हैं और न बुद्धि साथ। विज्ञान उसका कोई उत्तर नहीं दे सकता है, हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। यही कह सकते हैं कि भगवान् की माया सचमुच विलक्षण है।’’

अब तक जेन्यूसो भी घर आ गया था, मूर्ति के रुदन को देख कर अपनी पत्नी के प्रति दर्द की सहानुभूति कुछ ऐसी उमड़ी कि वह भी दहाड़ मार कर रो पड़ा। उस दिन सैकड़ों, हजारों आंखें मूर्ति के साथ रोई और भगवान् की प्रतिमा मानो इसलिये और रोये जा रही थी कि मुझ पर विश्वास करने से अच्छा होता, आप लोग संसार के दुःख और दुःखों के कारण ढूंढ़ते और उन्हें मिटाते।

अब तक पुलिस स्टेशन में भी इस घटना पर क्रम से विचार हो चुका था। उच्च-पदाधिकारियों की मीटिंग में यह निश्चित किया गया कि लगता है यह बहुत सुनियोजित प्रपंच है, इसलिये मूर्ति को यहीं थाने लाया जाये और उसका डाक्टरी और वैज्ञानिक परीक्षण भी यहीं किया जाये।

रात 10 बजे पुलि स जेन्यूसो के मकान पर पहुंची। जेन्यूसो सहित उसने मूर्ति को अपने अधिकार में ले लिया और थाने के लिए चल पड़ी। रास्ते में मूर्ति के आंसुओं का प्रवाह इतना बढ़ा कि सिपाही जिसके हाथ में मूर्ति थी उसकी सारी बर्दी ही भीग गई। थाने पर मूर्ति का पक्का निरीक्षण किया गया। जहां से भी सम्भव था खोलकर उसे देखा और साफ किया गया पर आंखों से मनुष्य जैसे आंसू कहां से आ रहे हैं, इस बात का कोई अन्तिम निर्णय न निकल सका। पुलिस अधिकारियों की भी आंखें गीली हो चलीं, उन्होंने भी प्रार्थनायें की और मूर्ति जहां लगी थी सादर वहीं पहुंचा दी। ‘‘यह ऐसी विलक्षण घटना है, जिसका कोई उत्तर पुलिस के पास नहीं है।’’ ऐसा कहकर पुलिस ने जेन्यूसो को भी मुक्त कर दिया।

30 अगस्त को सारे प्रान्त में यह खबर तेजी से फैल गई। लोग अखबारों ओर पत्रकारों से पूंछ-ताछ करने लगे ‘ला सिसीलिया’ दैनिक पत्र के सम्पादक ने भी इस घटना का विस्तृत निरीक्षण किया और अपने रविवासरीय अंग में बड़े विश्वास के साथ लिखा—‘‘हम स्वयं मेडेना के बहते आंसू देख चुके हैं। सायरेक्यूस स्टेशन आगन्तुक दर्शनार्थियों के लिये छोटा पड़ रहा है।

इसी प्रकार का एक बयान मिस्टर मासूमेकी ने भी प्रकाशित कराया बाद में वे इस मूर्ति के दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा के लिए जो एक कमेटी बनाई गई, वह उसके अध्यक्ष भी नियुक्त किये गये। इस तरह सैकड़ों प्रामाणिक व्यक्तियों ने रोती हुई मूर्ति का आंखों देखा हाल छापा। इसी दिन ‘ला सिसीलिया डल लुनेडी’ अखबार के एक रिपोर्टर ने अखबार को टेलीफोन में बताया कि—‘‘मेडेना के आंसू बन्द नहीं हो रहे। यह एक महान् आश्चर्य है जिसके रहस्य का पता लगाया ही जाना चाहिए। यदि यह सच है कि मूर्ति के आंसुओं का कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है तो हमें उस सत्ता की खोज के लिए भी प्रयत्न करना चाहिए, जो पदार्थ विज्ञान को भी नियन्त्रण में रख सकती है, उस पर स्वतन्त्र आधिपत्य स्थिर कर सकती है।’’ इसी तरह के अनेक सुझाव और परामर्श भिन्न-भिन्न पेशों के अनेक लोगों ने व्यक्त किये। इधर मूर्ति के दर्शनों के लिए हजारों लोग खिंचे चले आ रहे थे।

मूर्ति-रुदन के चौथे और अन्तिम दिन ‘ला सिसीलिया’ के इस कथन—‘‘मेडेना के दर्शनार्थियों की भीड़ जिस तेजी से बढ़ रही है, यह रहस्य उतना ही उलझता जा रहा है। यह निर्विवाद है कि वहां कोई मनगढ़न्त कहानी हिप्नोटिज्म अथवा जादूगरी की कोई सम्भावना नहीं है तो फिर आंसुओं के बहने का वैज्ञानिक कारण क्या है, उसका पता लगाया ही जाना चाहिए’’—पर सरकारी तौर पर तीव्र प्रतिक्रिया अभिव्यक्त की गई।

उसी दिन 10 पुरोहितों (प्रीस्ट्स) के एक दल (डेलीगेशन) ने भी यह घटना देखी। फादर वेन्सेन्जो ने रोती हुई प्रतिमा के कैमरा फोटो लिये। बाद में और भी बहुत से लोगों ने फोटो लिये। उसी दिन इटालियन क्रिश्चियन लेबर यूनियन के अध्यक्ष प्रो. पावलो अलबानी ने भी यह घटना अपनी आंखों से देखी। उसी दिन पुलिस अधिकारियों ने सारी घटना की दुबारा ब्योरेवार जांच की पर फिर भी उन्होंने यही पाया कि यह आंसू किसी कृत्रिम उपकरण की देन नहीं, वास्तविक मूर्ति के ही आंसू हैं। आंखों के अतिरिक्त मूर्ति का कोई अंग गीला नहीं मिला। उसी दिन सरकारी तौर पर एक न्यायाधिकरण (ट्रिव्यूनल) का संगठन किया गया। उसमें पुलिस के अधिकारी, विशेषज्ञ और वैज्ञानिक भी थे और उनसे घटना का निश्चित उत्तर देने को पूछा गया।

1 सितम्बर 1953 का दिन था। फादर ब्रूनो, जांच विशेषज्ञ और पुलिस अधिकारी उस मकान में पहुंचे, जहां वह आंसू बहाने वाली प्रतिमा रखी थी। बड़ी मुश्किल से पुलिस की सहायता से सब लोग मूर्ति तक पहुंच सके। भीड़ का कोई आदि था न अन्त। जिन चार व्यक्तियों की देख देख में परीक्षण प्रारम्भ हुआ वह—(1) जोसेफ ब्रूनो पी.पी., (2) डा. माइकेल केसैला डाइरेक्टर आफ माइक्रोग्रोफिक डिपार्टमेन्ट, (3) डा. फ्रैंक कोटजिया असि. डाइरेक्टर, (4) डा. लूड डी. उर्सो थे। इनके अतिरिक्त निस सैम्परिसी, चीफ कान्स्टेबुल, प्रो. जी. पास्क्विलीनो डी. फ्लोरिडा, डा. ब्रिटिनी (केमिस्ट) फैरिगो उम्बर्टो (स्टेट पुलिस के ब्रिगेडियर) तथा प्रेसीडेन्ट आफिस के प्रथम लेफ्टिनेन्ट कारमेलो रमानो भी थे।

जब चारों वैज्ञानिक और विशेषज्ञों ने आवश्यक जांच के कागज तैयार कर लिये, तब उन्होंने मूर्ति देने के लिए एण्टोनियेटा से प्रार्थना की। मूर्ति अलमारी में एक कागज में लिपटी हुई बन्द थी। एण्टोनियेटा के शारीरिक लक्षण तेजी से बदल रहे थे। डॉक्टर का उपचार भी काम कर रहा था, अब तक उसकी आंखों में प्रकाश भी आ चुका था और जुबान का लड़खड़ाना भी बन्द हो चुका था। डॉक्टर उसे भगवान् की कृपा ही मान रहे थे, क्योंकि चार दिन पूर्व तक उस पर किसी दवा का प्रभाव नहीं हो रहा था। उसने मूर्ति का द्वार खोल दिया। उक्त विशेषज्ञों ने दाईं और बाईं दोनों आंखों से पिपेट की सहायता से एक एक सी.सी. आंसू इकट्ठा किये। उन्होंने सब तरफ से परीक्षण किया पर आंसू कहां से आ रहे हैं, यह कुछ न जान सके पर अब इधर एण्टोनियेटा भी चंगी हो चुकी थी और आंसुओं की भी वह अन्तिम किश्त थी, जिसे जांच कमेटी एकत्रित कर सकी थी, बस तभी अचानक मूर्ति की आंखों से आंसू आने बन्द हो गये।

अगले दिन आंसुओं का विश्लेषण (एनालिसिस) किया गया। प्रो. ला रोजा ने लिखा—

श्रू पूज्य एम.डी. कास्ट्रो, प्रीस्ट आफ सेन्टिगो डी. सूडाड रिकाल स्पेन,

आपकी प्रार्थना पर वह सब कुछ लिख रहा हूं—कमीशन ने आंसू इकट्ठे किये हैं, मूर्ति दो पेचों के द्वारा जुड़ी हुई थी।मूर्ति का प्लास्टर बिल्कुल सूखा हुआ था, आंसुओं का निरीक्षण आर्कविशप क्यूरियो द्वारा नियुक्त कमीशन ने किया है माइक्रो किरणों से देखने पर इन आंसुओं में वह सभी तत्व पाये गये हैं, जो तीन वर्ष के बच्चे के आंसुओं में होते हैं, यहां तक कि क्लोरेटियम के पानी का घोल, प्रोटीन व क्वाटरनरी साफ झलक दे रहा था। मेरी पूर्ण जानकारी में मेरे हस्ताक्षर साक्षी हैं—

हत्साक्षर प्रो. एल. रोजा,

बाद में मूर्ति बनाने वाला कारीगर भी आया, उसने अपने हाथ से बनाई हुई ऐसी अनेक मूर्तियों के बारे में बताया, जो बाजार में बिकीं पर उनमें से किसी के साथ भी ऐसी कोई घटना नहीं हुई।

अन्ततः वैज्ञानिक हैरान ही रहे कि जब तक एन्टोनियेटा को अत्यधिक पीड़ा रही, मूर्ति क्यों रोती रही और डाक्टरी सहायता के बावजूद भी जो अच्छी न हुई थी वह कैसे अच्छी हुई और उस अपहाय का कष्ट दूर होते ही मूर्ति के आंसू क्यों बन्द हो गये, इसका कोई निश्चित निष्कर्ष वे न निकाल सके पर उन्होंने यह अवश्य स्वीकार किया कि इस विज्ञान से भी बढ़कर कोई भावनाओं का विज्ञान अवश्य है।

सराक्यूज की रोने वाली मूर्ति का रहस्य अभी तक अमरीकी वैज्ञानिक खोज नहीं पाये यहां प्रस्तुत है यूरेक्थम के प्रसिद्ध मंदिर का ऐतिहासिक वर्णन जो सराक्यूज की रोने वाली मूर्ति से भी बढ़कर आश्चर्य जनक है। यह मंदिर ग्रीक की राजधानी एक्रोपोलिस में स्थित है। बात उस समय की है जब थामस ब्रूस एल्गिन के अल सन् 1799 में तुर्की में ब्रिटिश राजदूत थे। तुर्की के अधिकारियों से उनने इस मंदिर को तोड़ कर उसकी मूर्तियां इंग्लैंड ले जाने की आज्ञा प्राप्त कर ली। मंदिर गिराने के लिये मजदूरों का एक जत्था रात में कार्य पर लगाया गया। एक्रो पोलिश निवासियों को इस बात का पता चला तो वे अपने सारे काम छोड़ कर भगवान से प्रार्थना करने के लिए बैठ गये। इसी समय एक यह अविस्मरणीय घटना घटित हुई। अभी बाहर की चहारदीवारी ही हट पाई थी जैसे ही मजदूरों ने मूर्ति को तोड़ कर हटाया एक भयंकर चीख सुनाई दी उसके अन्दर से। कई मजदूर भयभीत होकर गिर पड़े और उनका रक्त तक जम गया।

कहते हैं एक भारी हथौड़े से पिस्टन में पूरी शक्ति लगा कर चोट मारी जाए और पिस्टन को स्वेच्छा पूर्वक पीछे उछलने दिया जाए तो सिलेण्डर में रखा हुआ सारा पानी जम कर बर्फ हो जायेगा। यदि उस बर्फ पर एक जलता हुआ लोहे का टुकड़ा रख कर उस पर उसी हथौड़े की पूरी शक्ति लगा कर चोट की जाए तो वही बर्फ पानी हो जाएगा और फिर पानी ही न रहेगा वरन् उबल कर हाइड्रोजन व ऑक्सीजन गैसों में बदल कर इतना भयंकर विस्फोट करेगा कि वह लोहा भी पिघल कर गैस बनकर उड़ जायेगा। मजदूरों के शरीर का खून जम जाना इस सिद्धान्त की याद दिलाता है और यह बताता है कि वह चीख भारी हथौड़े की मार से भयंकर रही होगी। फिर मजदूर उस मूर्ति के अतिरिक्त दूसरी मूर्ति नहीं तोड़ सके। कहते हैं जिस खम्भे पर मूर्ति रखी थी वह इस प्रकार बना था कि मूर्ति हटते ही चारों ओर से हवा एक दम खिंची उसी से विस्फोट हुआ पर वैज्ञानिक इस बात को मानते नहीं। यदि ऐसा होता तो गर्मियों में उठने वाले बवंडर (साइक्लोन) से भी भयंकर ध्वनियां होती जबकि ऐसा कहीं सुना नहीं गया। यह मूर्ति आज भी ब्रिटिश—म्यूजियम में रखी है और ‘यूरेक्थम के रहस्य’ के नाम से यह आवाज भी रहस्यमय बनी हुई है। उसका कोई वैज्ञानिक विश्लेषण नहीं हो पाया।

इन चमत्कारिक घटनाओं के पहले कौन से कारण विद्यमान हैं, विज्ञान अभी तक इसका पता नहीं लगा सका है। वस्तुतः विज्ञान प्रकृति के नियम को समझाकर उनसे लाभ उठा ही नहीं पा रहा है। अब तक जितने भी उपकरण, यंत्र ओर साधन बने विकसित हुए हैं, वे सभी प्रकृति की ही नकल हैं। एक कुतुबनुमा जैसी छोटी सी मशीन भी भगवान की उंगलियों से बने, कुतुबनुमा पौध की नकल किये बिना मनुष्य बना नहीं सका। इस वृक्ष को कुतुबनुमा इसलिए कहते हैं कि इसकी पत्तियां हमेशा उत्तर दक्षिण की ओर घूमती रहती हैं। दुनिया भर की सारी मशीनें शरीर रचना का आधार हैं, अथवा प्रकृति के किसी भाग का अनुकरण फिर विज्ञान को किस आधार पर है सर्वोपरि और सर्व प्रधान समझा जाय। सृष्टि में श्रेष्ठतम बुद्धि की अधिष्ठात्री तो कोई और भी शक्ति है जिसका नियंत्रण सारे विश्व ब्रह्माण्ड में है।
First 5 7 Last


Other Version of this book



मनुष्य गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु ?
Type: TEXT
Language: HINDI
...

मनुष्य गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु ?
Type: SCAN
Language: EN
...


Releted Books



21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
Type: TEXT
Language: HINDI
...

आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भक्ति- एक दर्शन, एक विज्ञान
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भक्ति- एक दर्शन, एक विज्ञान
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भक्ति- एक दर्शन, एक विज्ञान
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भक्ति- एक दर्शन, एक विज्ञान
Type: TEXT
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Articles of Books

  • अद्भुत स्रष्टा के अद्भुत रहस्य
  • प्राण सत्ता का उदय और विकास श्रोत
  • गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु?
  • ‘अमीबा’ से नहीं मनुष्य ईश्वर की इच्छा से बना है
  • मान भी ले कि विकासक्रम सही है पर
  • प्रत्यक्ष से भी विचित्र अदृश्य संसार
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj