
पवित्रता में ही जीवन की सार्थकता है
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
पवित्रता मानव-जीवन की सार्थकता के लिए अनिवार्य है । मनुष्य
का विकास और उत्थान केवल ज्ञान अथवा भक्ति की बातों से ही नहीं
हो सकता, उसे व्यावहारिक रूप से भी अपनी उच्चता और श्रेष्ठता का
प्रमाण देना आवश्यक है और इसका प्रधान साधन पवित्रता ही है । जो
व्यक्ति गन्दे वातावरण में रहता है अथवा गन्दे विचार प्रकट करता है,
उसके पास जाने या ठहरने की किसी को रुचि ही नहीं होती । ऐसे
व्यक्ति से सभी घृणा करते हैं और किसी अनिवार्य कारणवश उसके
निकट जाना भी पड़े तो जल्दी से जल्दी वहाँ से हट जाना चाहते हैं ।
मनुष्य के लिए शरीर मन चरित्र आचार-विचार आदि सब प्रकार की पवित्रता आवश्यक है । यदि शारीरिक पवित्रता का ध्यान रखा जायगा तो स्वास्थ्य कभी अच्छा नहीं रह सकता और अस्वस्थ व्यक्ति कोई अच्छा काम नहीं कर सकता । इसी प्रकार मानसिक पवित्रता के बिना मनुष्य में सज्जनता, प्रेम सद्व्यवहार के भाव उत्पन्न नहीं हो सकते और वह संसार में किसी की भलाई नहीं कर सकता । जिस व्यक्ति में चरित्र की पवित्रता नहीं है, वह कभी संसार में प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता । यदि मुँह पर नहीं तो परोक्ष में सब लोग उसकी निन्दा और बुराई ही करेंगे ।
आचार-विचार की पवित्रता ने यद्यपि आजकल ढोंग का रूप धारण कर लिया है और इस कारण अनेक आधुनिक विचारों के व्यक्ति उसे अनावश्यक समझने लगे हैं , पर वास्तव में मनुष्य की अध्यात्मिक उन्नति का सम्बन्ध आचार-विचार की पवित्रता से है । खान-पान में शुद्धता और पवित्रता का ध्यान न रखने से केवल हमारा स्वास्थ्य ही खराब नहीं होता वरन् हमारा मानसिक संयम भी नष्ट हो जाता है और हमको चटोरपन की हानिकारक आदत लग जाती है । इसी प्रकार विचारों में शुद्धता का ख्याल न रखने से काम क्रोध लोभ आदि की हानिकारक भावनाएँ बढ़ती हैं ।
इसलिए यदि आप वास्तव में अपने कल्याण की अभिलाषा रखते हैं तो अपने भोजन वस्त्र निवास स्थान देह मन आत्मा आदि सबकी स्वच्छता और पवित्रता का ध्यान रखना आवश्यक है । इन सबकी सम्मिलित पवित्रता से ही जीवन में उस निर्मलता और प्रकाश के भाव का विकास हो सकेगा जिसके द्वारा आप वास्तविक मनुष्य कहलाने के अधिकारी बन सकते हैं । आपको केवल अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखना ही पर्याप्त नहीं है वरन् आपके आस- पास भी कहीं गन्दगी अस्वच्छता दिखलाई नहीं पड़नी चाहिए क्योंकि मनुष्य सामाजिक जीव है और उसके जीवन का एक क्षण भी बिना दूसरों के सहयोग के व्यतीत नहीं हो सकता । इसलिए उसकी पवित्रता तभी कायम रह सकती है जब कि समस्त समाज में पवित्र-जीवन की भावना समाविष्ट हो जाय ।
मनुष्य के लिए शरीर मन चरित्र आचार-विचार आदि सब प्रकार की पवित्रता आवश्यक है । यदि शारीरिक पवित्रता का ध्यान रखा जायगा तो स्वास्थ्य कभी अच्छा नहीं रह सकता और अस्वस्थ व्यक्ति कोई अच्छा काम नहीं कर सकता । इसी प्रकार मानसिक पवित्रता के बिना मनुष्य में सज्जनता, प्रेम सद्व्यवहार के भाव उत्पन्न नहीं हो सकते और वह संसार में किसी की भलाई नहीं कर सकता । जिस व्यक्ति में चरित्र की पवित्रता नहीं है, वह कभी संसार में प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता । यदि मुँह पर नहीं तो परोक्ष में सब लोग उसकी निन्दा और बुराई ही करेंगे ।
आचार-विचार की पवित्रता ने यद्यपि आजकल ढोंग का रूप धारण कर लिया है और इस कारण अनेक आधुनिक विचारों के व्यक्ति उसे अनावश्यक समझने लगे हैं , पर वास्तव में मनुष्य की अध्यात्मिक उन्नति का सम्बन्ध आचार-विचार की पवित्रता से है । खान-पान में शुद्धता और पवित्रता का ध्यान न रखने से केवल हमारा स्वास्थ्य ही खराब नहीं होता वरन् हमारा मानसिक संयम भी नष्ट हो जाता है और हमको चटोरपन की हानिकारक आदत लग जाती है । इसी प्रकार विचारों में शुद्धता का ख्याल न रखने से काम क्रोध लोभ आदि की हानिकारक भावनाएँ बढ़ती हैं ।
इसलिए यदि आप वास्तव में अपने कल्याण की अभिलाषा रखते हैं तो अपने भोजन वस्त्र निवास स्थान देह मन आत्मा आदि सबकी स्वच्छता और पवित्रता का ध्यान रखना आवश्यक है । इन सबकी सम्मिलित पवित्रता से ही जीवन में उस निर्मलता और प्रकाश के भाव का विकास हो सकेगा जिसके द्वारा आप वास्तविक मनुष्य कहलाने के अधिकारी बन सकते हैं । आपको केवल अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखना ही पर्याप्त नहीं है वरन् आपके आस- पास भी कहीं गन्दगी अस्वच्छता दिखलाई नहीं पड़नी चाहिए क्योंकि मनुष्य सामाजिक जीव है और उसके जीवन का एक क्षण भी बिना दूसरों के सहयोग के व्यतीत नहीं हो सकता । इसलिए उसकी पवित्रता तभी कायम रह सकती है जब कि समस्त समाज में पवित्र-जीवन की भावना समाविष्ट हो जाय ।