
शरीर के भीतरी अंगों की सफाई
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
जिस प्रकार हम स्नान करके साबुन लगाकर, तौलिए से घिस कर
शरीर के बाहरी भाग की सफाई कर डालते हैं उसी प्रकार भीतरी
अंगों की सफाई रहना भी परमावश्यक है । सच पूछा जाय तो गन्दगी
हमारे शरीर के भीतर ही इकट्ठी रहती है और उसी का एक अंश
पसीने तथा मैल के रूप में बाहर निकलता है पर भीतर की सफाई कैसे
हो यह सब लोग नहीं जानते । यों तो कहने के लिए हमारे प्राचीन
ऋषि-मुनियों ने उद्देश्य की प्रति के लिए नेति, द्यौति, वस्ति आदि
हठयोग के षट्कर्मों का आविष्कार किया था जिससे प्रत्येक भीतरी अंश
को धोकर उसी प्रकार स्वच्छ कर लिया जाता है जैसे हम शरीर के
ऊपरी भाग को धोते हैं । पर ये विधियों योगियों द्वारा की जाती हैं
साधारण मनुष्यों के लिए सुविधाजनक नहीं मानी जाती ।
यह भी संभव है कि अधिकांश व्यक्ति उनको ठीक ढंग से न कर सकें और लाभ के स्थान पर कुछ हानि उठा लें । इसलिए साधारण मनुष्यों के लिए भीतरी अंगों की सफाई का दूसरा तरीका निकाला गया है और वह हैं-उपवास । वास्तव में हमारे शारीरिक यंत्र का निर्माण परमात्मा ने ऐसे ढंग से किया है कि अगर उसे स्वाभाविक ढंग से रखा जाय और प्रकृति के अनुकूल आचरण करने दिया जाय तो वह स्वयं अपनी भीतरी अंगों की सफाई कर सकता है । पर वर्तमान समय में मनुष्य ने प्रकृति के आदेश को मानना छोड़कर कृत्रिम ढंगों से रहना आरम्भ कर दिया है । उसका आहार-विहार अधिकांश में अस्वाभाविक हो गया है । इसलिए शरीरों में दूषित विकारों का अंश बढ़ जाता है । हमारी प्राण शक्ति इस विकार को हानिकारक समझकर बाहर निकालना चाहती है पर हम नित्य प्रति दो-दो चार-चार बार भोजन करके उस पर बोझा पर बोझा लादते चले जाते हैं । इससे विवश होकर वह निष्क्रिय हो जाती है ।
उपवास करने से जब पेट खाली हो जाता है और पचाने के लिए शक्ति की आवश्यकता नहीं होती, तब वही शक्ति शारीरिक विकारों को बाहर निकाल कर भीतरी अंगों की सफाई का कार्य करने लगती है । इसीलिए शरीर शास्त्र वेत्ताओं ने कहा है कि यदि आप स्वास्थ्य, यौवन जीवन का आनन्द स्वतंत्रता या शक्ति चाहते हैं तो उपवास कीजिए । आपको सौन्दर्य विश्वास हिम्मत गौरव सरीखी निधियाँ प्राप्त करने के लिए भी उपवास करना चाहिए । उपवास से मनुष्य की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति होती है उसकी नैसर्गिक बुद्धि जगती है और वह प्रेम की विशालता का अनुभव कर पाता है ।
यह भी संभव है कि अधिकांश व्यक्ति उनको ठीक ढंग से न कर सकें और लाभ के स्थान पर कुछ हानि उठा लें । इसलिए साधारण मनुष्यों के लिए भीतरी अंगों की सफाई का दूसरा तरीका निकाला गया है और वह हैं-उपवास । वास्तव में हमारे शारीरिक यंत्र का निर्माण परमात्मा ने ऐसे ढंग से किया है कि अगर उसे स्वाभाविक ढंग से रखा जाय और प्रकृति के अनुकूल आचरण करने दिया जाय तो वह स्वयं अपनी भीतरी अंगों की सफाई कर सकता है । पर वर्तमान समय में मनुष्य ने प्रकृति के आदेश को मानना छोड़कर कृत्रिम ढंगों से रहना आरम्भ कर दिया है । उसका आहार-विहार अधिकांश में अस्वाभाविक हो गया है । इसलिए शरीरों में दूषित विकारों का अंश बढ़ जाता है । हमारी प्राण शक्ति इस विकार को हानिकारक समझकर बाहर निकालना चाहती है पर हम नित्य प्रति दो-दो चार-चार बार भोजन करके उस पर बोझा पर बोझा लादते चले जाते हैं । इससे विवश होकर वह निष्क्रिय हो जाती है ।
उपवास करने से जब पेट खाली हो जाता है और पचाने के लिए शक्ति की आवश्यकता नहीं होती, तब वही शक्ति शारीरिक विकारों को बाहर निकाल कर भीतरी अंगों की सफाई का कार्य करने लगती है । इसीलिए शरीर शास्त्र वेत्ताओं ने कहा है कि यदि आप स्वास्थ्य, यौवन जीवन का आनन्द स्वतंत्रता या शक्ति चाहते हैं तो उपवास कीजिए । आपको सौन्दर्य विश्वास हिम्मत गौरव सरीखी निधियाँ प्राप्त करने के लिए भी उपवास करना चाहिए । उपवास से मनुष्य की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति होती है उसकी नैसर्गिक बुद्धि जगती है और वह प्रेम की विशालता का अनुभव कर पाता है ।