गन्ध साधना
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नासिका के अग्र भाग पर त्राटक करना इस साधना में आवश्यक है। दोनों नेत्रों से एक साथ नासिका के अग्रभाग पर त्राटक नहीं हो सकता, इसलिए एक मिनट दाहिनी ओर तथा एक मिनट बांई ओर करना उचित है। दाहिने को प्रधानता देकर उससे नाक के दाहिने हिस्से को और फिर बांए नेत्र को प्रधानता देकर बांए हिस्से को गम्भीर दृष्टि से देखना चाहिए। आरम्भ एक एक मिनट से करके अन्त में पांच पांच मिनट तक बढ़ाया जा सकता है। इस त्राटक से नासिका की सूक्ष्म शक्तियां जाग्रत होती हैं।
इस त्राटक के बाद कोई सुगन्धित तथा सुन्दर पुष्प लीजिए। उसे नासिका के समीप ले जाकर एक मिनट तक धीरे धीरे सूंघिए और उसकी गन्ध का भली प्रकार स्मरण कीजिए। इसके बाद फूल को फेंक दीजिए और बिना फूल के ही उस गन्ध को दो मिनट तक स्मरण कीजिए। इसके बाद दूसरा फूल लेकर फिर इसी क्रम की पुनरावृत्ति कीजिए। पांच फूलों को पंद्रह मिनट प्रयोग करना चाहिए। स्मरण रहे कम से कम एक सप्ताह तक एक ही फूल प्रयोग होना चाहिए। इसी प्रकार रस साधना में एक फल एक सप्ताह तक प्रयोग होना चाहिए।
कोई भी सुन्दर पुष्प गन्ध साधना के लिए लिया जा सकता है। भिन्न पुष्पों के भिन्न गुण हैं -
गुलाब का—प्रेमोत्पादक
चमेली—बुद्धि वर्धक,
गेंदा—उत्साह बढ़ाने वाला,
चम्पा—सौन्दर्य दायक,
मोगरा—सन्तान वर्धक,
केतकी—रोग नाशक,
कदम—शान्ति दायक,
कन्नेर—उष्ण,
सूर्यमुखी—ओज वर्धक है।
प्रत्येक पुष्प में कुछ सूक्ष्म गुण होते हैं। जिस पुष्प को सामने रखकर उसका ध्यान किया जायगा उसी के सूक्ष्म गुण अपने में बढ़ेंगे।
हवन, गंध योग से संबंधित है। किन्हीं पदार्थों की सूक्ष्म प्राण शक्ति को प्राप्त करने के लिए उससे विधि पूर्वक हवन किया जाता है। जिससे उसका स्थूल रूप तो जल जाता है पर सूक्ष्म रूप वायु के साथ चारों ओर फैलकर निकटस्थ लोगों की प्राण शक्ति में अभिवृद्धि करता है। सुगंधित वातावरण में अनुकूल प्राण की मात्रा अधिक होती है। इसी से उसे नासिका द्वारा प्राप्त करते हुए अन्तःकरण प्रसन्न होता है।
गंध साधना से मन की एकाग्रता के अतिरिक्त भविष्य का आभास प्राप्त करने की शक्ति बढ़ती है। सूर्य स्वर दांया और चन्द्र स्वर बांया सिद्ध हो जाने पर साधक अच्छा भविष्य ज्ञाता हो सकता है। हमारी ‘‘स्वर योग से दिव्य ज्ञान’’ पुस्तक में स्वर विद्या की विस्तृत चर्चा की गई है। नासिका द्वारा साधा जाने वाला स्वर योग भी गंध साधना की एक शाखा है।