• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • देह प्रकृति
    • अग्नि
    • साम-निराम
    • रस (षट्रस)
    • मल, स्वेद, मूत्र एवं पुरीष
    • आयुर्वेद का व्यापक क्षेत्र
    • आयुर्वेद का लक्षण एवं आयु
    • आयुर्वेद का प्रयोजन
    • आयुर्वेद का इतिहास
    • सृष्टि का विकास क्रम
    • पंचमहाभूत
    • त्रिदोष
    • वात
    • पित्त
    • कफ
    • मानस दोष
    • सप्तधातु
    • धातु समवृद्धि के लक्षण
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • देह प्रकृति
    • अग्नि
    • साम-निराम
    • रस (षट्रस)
    • मल, स्वेद, मूत्र एवं पुरीष
    • आयुर्वेद का व्यापक क्षेत्र
    • आयुर्वेद का लक्षण एवं आयु
    • आयुर्वेद का प्रयोजन
    • आयुर्वेद का इतिहास
    • सृष्टि का विकास क्रम
    • पंचमहाभूत
    • त्रिदोष
    • वात
    • पित्त
    • कफ
    • मानस दोष
    • सप्तधातु
    • धातु समवृद्धि के लक्षण
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - आयुर्वेद का व्यापक क्षेत्र

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


आयुर्वेद का इतिहास

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last

पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार संसार की प्राचीनतम पुस्तक ऋग्वेद है ।। विभिन्न विद्वानों ने इसका निर्माण काल ईसा के 3 हजार से 50 हजार वर्ष पूर्व तक का माना है ।। इस संहिता में भी आयुर्वेद के अति महत्त्व के सिद्धान्त यत्र- तत्र विकीर्ण हैं ।। अनेक ऐसे विषयों का उल्लेख है, जिसके संबंध में आज के वैज्ञानिक भी सफल नहीं हो पाये हैं ।। इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है ।। अतः हम कह सकते हैं कि आयुर्वेद की रचनाकाल ईसा पूर्व 3 से पहले यानि सृष्टि की उत्पत्ति के आसपास या साथ का ही है ।।
2- आयुर्वेद का इतिहास
पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संचार की प्राचीनतम पुस्तक ऋग्वेद है ।। विभिन्न विद्वानों ने इसका निर्माण काल ईसा के 3 हजार से 50 हजार वर्ष पूर्व तक का माना है ।। इस संहिता में भी आयुर्वेद के अतिमहत्त्वपूर्ण  सिद्धान्त यत्र- तत्र विकीर्ण है । अनेक ऐसे विषयों का उल्लेख है जिसके संबंध में आज के वैज्ञानिक भी सफल नहीं हो पाये है ।।

इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है ।। अतः हम कह सकते हैं कि आयुर्वेद की रचनाकाल ईसा पूर्व 3 हजार से 50 वर्ष पहले यानि सृष्टि की उत्पत्ति के आस- पास या साथ का ही है ।।

आयुर्वेद के ऐतिहासिक ज्ञान के संदर्भ में सर्वप्रथम ज्ञान का उल्लेख, चरक मत के अनुसार मृत्युलोक में आयुर्वेद के अवतरण के साथ- अग्निवेश का नामोल्लेख है ।। सर्वप्रथम ब्रह्मा से प्रजापति ने, प्रजापति से अश्विनी कुमारों ने, उनसे इन्द्र ने और इन्द्र से भारद्वाज ने आयुर्वेद का अध्ययन किया ।।

फिर भारद्वाज ने आयुर्वेद के प्रभाव से दीर्घ सुखी और आरोग्य जीवन प्राप्त कर अन्य ऋषियों में उसका प्रचार किया ।। तदनतर पुनर्वसु आत्रेय ने अग्निवेश, भेल, जतू, पाराशर, हारीत और क्षारपाणि नामक छः शिष्यों को आयुर्वेद का उपदेश दिया ।। इन छः शिष्यों में सबसे अधिक बुद्धिमान अग्निवेश ने सर्वप्रथम एक संहिता का निर्माण किया- अग्निवेश तंत्र का, जिसका प्रति संस्कार बाद में चरक ने किया और उसका नाम चरक संहिता पड़ा, जो आयुर्वेद का आधार स्तंभ है ।।

सुश्रुत के अनुसार काशीराज देवीदास के रूप में अवतरित भगवान धन्वन्तरि के पास अन्य महर्षियों के साथ सुश्रुत जब आयुर्वेद का अध्ययन करने हेतु गये और उनसे आवेदन किया ।। उस समय भगवान धन्वन्तरि ने उन लोगों को उपदेश करते हुए कहा कि सर्वप्रथम स्वयं ब्रह्मा ने सृष्टि उत्पादन पूर्व ही अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद को एक सहस्र अध्याय- शत सहस्र श्लोकों में प्रकाशित किया और पुनः मनुष्य को अल्पमेधावी समझकर इसे आठ अंगों में विभक्त कर दिया ।।

इस प्रकार धन्वन्तरि ने भी आयुर्वेद का प्रकाशन बह्मदेव द्वारा ही प्रतिपादित किया हुआ माना है ।। पुनः भगवान धन्वन्तरि ने कहा कि ब्रह्मा से दक्ष प्रजापति, उनसे अश्विनीकुमार तथा उनसे इन्द्र ने आयुर्वेद का अध्ययन किया ।।

चरक संहिता तथा सुश्रुत संहिता में वर्णित इतिहास एवं आयुर्वेद के अवतरण के क्रम में क्रमशः आत्रेय सम्प्रदाय तथा धन्वन्तरि सम्प्रदाय ही मान्य है ।।
चरक मतानुसार-आत्रेय सम्प्रदाय ।।
       सुश्रुत मतानुसार- धन्वन्तरि सम्प्रदाय ।।

आयुर्वेद अर्थात जीवन रक्षा संबंधी ज्ञान है जो अनादि एवं परम्परागत है ।। और इसी परम्परागत प्राप्त ज्ञान को ही समय- समय आचार्यों ने लिपिबद्ध कर संहिताओं एवं अन्य ग्रन्थों की रचना कर आयुर्वेद को जनहित में प्रतिपादित किया ।।

क्योंकि इतिहास परम्परागत अस्तित्व एवं ज्ञान का द्योतक है तथा परम्परागत ज्ञान का बोध कराता है, इसलिए 'ऐतिह्य' शब्द मात्र ही ज्ञान एवं ऐतिहासिक शब्द का बोध करा देता है ।। क्योंकि परम्परागत प्राप्त ज्ञान मौलिक प्रमाण माना जाता है जिसके कारण ही इसको आप्तोपदेश की संज्ञा दी गई है ।।

जिस प्रकार गंगा प्रारंभ में स्वल्प धारा के रूप में प्रकट होकर क्रमशः अन्य स्रोतों के मिलने से उपबृंहित हो जाती है, उसी प्रकार ज्ञान गंगा का उपबृंहण भी होता रहता है ।।

इसीलिए मौलिक ज्ञान अर्थात वेद को इतिहास और पुराण से उपबन्ध करने का उपदेश है यथा-
''ऐतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपब्रंहयेत् ।''

इस उपबृंहण की स्वाभाविक प्रक्रिया से ही आयुर्वेद सदैव विकसित एवं फलित होता रहा है ।। क्योंकि आयुर्वेद का संबंध वेदों से है और वेद ज्ञान है इसलिए समय- समय पर आयुर्वेद को सार्थक एवं प्रभावी बनाया जाता रहा, जिसके कारण यह विशाल आयुर्वेद वाङ्मय आज हमारे समक्ष है और इसीलिए आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद कहा जाता है ।।
चरक, सुश्रुत, कश्यप आदि मान्य ग्रन्थ आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं जिनका ऐतिहासिक क्रम इस प्रकार है-

वेदों में आयुर्वेद
वेदों में रुद्र, अग्नि, वरुण, इन्द्र, मरुत् आदि दैव भीषण कहे गये हैं, किन्तु इनमें सर्वाधिक प्रसिद्धि अश्विनी कुमारों की है जो ''देवानां भिषजौ'' के रूप में स्वीकृत हैं ।।

ऋग्वेद में इनके जो चमत्कार वर्णित हैं उनसे अनुमान किया जा सकता है कि उस काल में आयुर्विज्ञान की स्थिति उन्नत थी ।।
अश्विनीकुमार आरोग्य, दीर्घायु शक्ति प्रजा वनस्पति तथा समृद्धि शक्ति के प्रदाता कहे गये हैं ।। वे सभी प्रकार की औषधियों के ज्ञाता थे ।। आथर्वण, दधीचि से उन्होंने मधुविद्या और प्रग्वयविद्या की शिक्षा प्राप्त की थी, जिससे वे मधुविद्या विशारद हुए ।। उनके चिकित्सा चमत्कारों का वर्णन ऋग्वेद में विस्तार से किया गया है ।।

अश्विनौ अंग प्रत्यारोपण तथा संजीवनी विद्या में कुशल थे, इनके अतिरिक्त वे पशु चिकित्सा में भी दक्ष थे ।। गौ के बन्ध्यात्व को दूर कर उसे संतान तथा प्रभूत स्तन्य दिया ।। अश्विनौ के प्रतीक की व्याख्या अनेक प्रकार से की गई है ।।

आयुर्वेदीय दृष्टि से ये आदर्शजनक के प्रतीक हैं जिनका युग्म रूप शल्य एवं चिकित्सा के उभय सम्प्रदायों का अथवा विज्ञान के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पक्षों का प्रतिनिधित्व करता है ।। अश्विनौ पक्षी के दो पंखों के समान कहे गये हैं- ज्ञान (सिद्धांत) एवं कर्म (व्यवहार) भी आयुर्वेद के दो पक्ष कहे गये हैं जिनमें एक भी त्रुटिपूर्ण हो तो गति नहीं हो सकती अतएव भीषण को उभय होने का उपदेश किया है-

''उभयज्ञो हि भिषक् राजाहोर् भवति ।''   - (सु०सू०३/४५)

अश्विन्नौ के अतिरिक्त इन्द्र के भी चिकित्सा चमत्कार के प्रसंग ऋग्वेद में दृष्टिगोचर होते हैं ।। यथा- अपाला के चर्मरोग तथा उसके पिता के खालित्य रोग का निवारण, अंधपरावृज को दृष्टिदान तथा पंगु श्रोणि को गतिदान देने आदि का चमत्कारिक वर्णन मिलता है ।।

औषधियों के संबंध में ऋग्वेद का ओषधिसूक्त (१०- ४७) महत्त्वपूर्ण है, इसमें औषधियों के स्वरूप, स्थान, वर्गीकरण तथा उनके कर्मों एवं प्रयोगों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है ।। यह उल्लेख है कि औषधियाँ लेने के बाद अंग- अंग, पर्व- पर्व में फैलकर वे अपना कर्म करती है ।। आभ्यन्तर प्रयोग के साथ- साथ औषधियों का मणि धारण (हाथ में बाँधना) भी किया जाता था ।। औषधियों के प्रयोग में युक्तिव्यपा श्रय तथा दैवयपाश्रय दोनों तथ्य सन्निहित थे ।। भीषण औषधियों का ज्ञाता होता था ।। जिनके द्वारा वह राक्षसों का नाश तथा रोगों का निवारण करता था, वह रक्षोहा तथा अमीबचातन दोनों था-

यत्रौषधीः समग्मत राजानः समिताविव ।।
                          विप्र स उच्यते भिषग् रक्षोहामीबचातन॥    - ( ऋ०- १०/१७/६)

रोगों के समवायिकारण (दोष) तथा निमित्त कारण (क्रिमि) औरी दोष प्रयत्नपूर्वक चिकित्सा का स्पष्ट संकेत है-

साकं यक्ष्म प्रपत चाषेण किकिदीविना ।।
                साकं वातस्य साकं नश्य निहाकया॥ - (ऋ० १०- १७)

त्रिदोषवाद का भी संकेत-
''त्रिधातुवहतं शुभस्पती - (१/३/४/६)'' 

तथा
''इन्द्रं त्रिधातु शरणं'' - (४/७/२८)

इन मंत्रों में है ।।
इस प्रकार सिद्ध होता है कि आयुर्वेद की उपयोगिता एवं महत्ता वेदों में भी सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादित की गई थी।।

First 3 5 Last


Other Version of this book



आयुर्वेद का व्यापक क्षेत्र
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

Real Joy of Entertainment -
Type: SCAN
Language: EN
...

Real Joy of Entertainment -
Type: SCAN
Language: EN
...

Real Joy of Entertainment -
Type: SCAN
Language: EN
...

Real Joy of Entertainment -
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • देह प्रकृति
  • अग्नि
  • साम-निराम
  • रस (षट्रस)
  • मल, स्वेद, मूत्र एवं पुरीष
  • आयुर्वेद का व्यापक क्षेत्र
  • आयुर्वेद का लक्षण एवं आयु
  • आयुर्वेद का प्रयोजन
  • आयुर्वेद का इतिहास
  • सृष्टि का विकास क्रम
  • पंचमहाभूत
  • त्रिदोष
  • वात
  • पित्त
  • कफ
  • मानस दोष
  • सप्तधातु
  • धातु समवृद्धि के लक्षण
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj