• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जीवन सम्पदा का दुरुपयोग
    • शिक्षा ही नहीं विद्या भी
    • सद्ज्ञान सम्पदा का अभाव
    • अतीत की गरिमा में धर्मतंत्र का योगदान
    • प्रतिभा परिष्कार की महती आवश्यकता
    • पृथ्वी के देवता—भूसुर-पुरोहित
    • सरल किन्तु अति प्रभावी कार्य पद्धति
    • अनुकरणीय आदर्श हमें ही प्रस्तुत करना है
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जीवन सम्पदा का दुरुपयोग
    • शिक्षा ही नहीं विद्या भी
    • सद्ज्ञान सम्पदा का अभाव
    • अतीत की गरिमा में धर्मतंत्र का योगदान
    • प्रतिभा परिष्कार की महती आवश्यकता
    • पृथ्वी के देवता—भूसुर-पुरोहित
    • सरल किन्तु अति प्रभावी कार्य पद्धति
    • अनुकरणीय आदर्श हमें ही प्रस्तुत करना है
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - देव संस्कृति का मेरुदण्ड वानप्रस्थ

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


अनुकरणीय आदर्श हमें ही प्रस्तुत करना है

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 7 9 Last
सतयुग की वापसी इसी एक विधि व्यवस्था पर अवलम्बित है कि लोग आस्था में यह विश्वास उभारें कि मनुष्य जीवन मात्र पेट प्रजनन तक सीमित रहकर पशुओं की तरह श्वासों को ढोने के लिए नहीं है, वरन् उससे आत्म-कल्याण और लोक निर्माण के आदर्शों की पूर्ति भी किसी न किसी रूप में की ही जाती रहनी चाहिए।

इसके लिए आवश्यक है कि भारतीय संस्कृति की रीढ़ कही जाने वाली वानप्रस्थ परम्परा को पुनर्जीवित किया जाय। लोग यह रीति-नीति अपनायें कि पूरा न सही आधा जीवन तो उस निमित्त लगना ही चाहिए, जिसके लिए मनुष्य जन्म की धरोहर स्रष्टा ने सौंपी है। यह उद्देश्य पूजा-पाठ भर से पूरा हो सकता है, इस भ्रम में किसी को भी नहीं रहना चाहिए। शारीरिक स्वच्छता के लिए जिस प्रकार स्नानादि नित्य कर्म आवश्यक हैं, उसी प्रकार मानसिक शुद्धि के लिए उपासना, साधना, आराधना की आवश्यकता है। इतने पर भी आत्म परिष्कार और

प्रचलन के अनुसार व्यक्ति संकीर्ण स्वार्थपरता के भव-बन्धनों में जकड़े हुए ही अपना आयुष्य बिता देता है। युग क्रान्ति ऐसी होनी चाहिए, जिसमें हर विचारशील को परमार्थ का भी ध्यान रहे और उसके समय एवं साधनों का एक बड़ा अंश उपयुक्त वातावरण बनाने में नियोजित रहे। यह प्रवाह चल पड़े तो समझना चाहिए कि उलटे को उलट कर सीधा कर दिया गया और उज्ज्वल भविष्य की संभावना का स्वरूप बन गया, सरंजाम जुट गया।

वानप्रस्थ-जन पुरोहित शब्द पुराने हैं। इन दोनों के साथ पाखण्ड की मात्रा इतनी अधिक जुड़ गयी है कि इस तत्वदर्शन को नया नाम देने की आवश्यकता पड़ी। ‘गुरु’ कभी देवोपम स्तर का परिचायक था, पर अब वह धूर्तता के अर्थ में व्यंग-उपहास के साथ लिया जाता है। इसलिए उस पुराने शब्द के स्थान पर ‘मार्गदर्शक’ शब्द का उपयोग किया जाता है। इसी प्रकार पुरोहित को अब व्रतधारी कहा जाय, यही उचित जंचा। प्रज्ञा परिवार के लोग अपने आपको प्रज्ञा पुत्र कहते हैं, इसलिए यदि लम्बा नाम अभीष्ट हो तो व्रतधारी प्रज्ञा पुत्र भी कहा जा सकता है। संक्षिप्त करना हो तो ‘व्रतधारी’ शब्द भी पर्याप्त है।

शांतिकुंज ने विश्व के हर कोने में अपना आह्वान गुंजाया कि प्राणवान जीवन्त भावनाशीलों में से जिन्हें भी विषमता का आभास हो, वे समय की पुकार को सुनें, युगधर्म को समझें और नव सृजन के क्षेत्र में श्रद्धा और साहस पूर्वक उतरें। जिन्हें इस दिशा में चल पड़ने की उमंग उठे, उन्हें न्यूनतम नौ दिन के और अधिकतम एक महीने के सत्र में शांतिकुंज हरिद्वार आने की तैयारी करनी चाहिए। यों अध्ययन और परामर्श से भी तत्वज्ञान का एक बड़ा अंश प्राप्त हो सकता है। चिन्तन और मनन का अध्यवसाय भी दिशा निर्धारण कर सकता है पर उपयुक्त वातावरण में अभीष्ट ऊर्जा उपलब्ध करने का महत्व भी कम नहीं है। इसलिए समय के अनुरूप अपनी गतिविधियों को उत्कृष्टता की दिशा में अग्रसर करने के लिए इन सत्रों में सम्मिलित होने के लिए कहा गया है। व्रतधारी को अपनी परिस्थिति के अनुरूप भावी कार्यक्रम बनाने में अधिक सुविधा रह सकती है। वैसे कुछ विचार विमर्श तो पत्र व्यवहार से भी सम्पन्न हो जाता है।

अच्छा होता आंशिक समयदान करने वाले वानप्रस्थियों में से एक ऊंची श्रेणी परिव्राजकों की, जीवन दानियों की उभरती। उन्हें प्राचीन काल के संन्यासियों का आधुनिक संस्करण कहा जा सकता है। कुछ तो आंशिक रूप से सेवा कार्य करते रहने पर भी बन ही पड़ता है पर यदि पूरा मन, पूरा समय और पूरा जीवन लक्ष्य ही इसके लिए नियोजित किया जा सके, तो उसे सोने में सुहागे की उपमा दी जा सकती है।

यह श्रम मन में से निकाल ही देना चाहिए कि जो मात्र खुदगर्जी को ही सोचते, समझते और अपनाते हैं, वे नफे में रहते हैं, मजे में रहते और मजे उड़ाते हैं। जो परमार्थ में समय और साधन लगाते हैं वे घाटे में रहते हैं। वास्तविकता इससे ठीक उलटी है। स्वार्थी भले ही कुछ संचय कर लेते और सुविधा साधनों की दृष्टि से भारी पड़ते हों पर संकीर्णता के साथ और जो अनेक दुर्गुण जुड़े होते हैं, उनके कारण व्यक्ति अपनी ओर दूसरों की आंखों में गया-गुजरा ही सिद्ध होता रहता है। निष्ठुरता, अनुदारता को सघन बनाये रहने पर कोई आज तक व्यक्तित्व की दृष्टि से न तो ऊंचा उठ सका है न आगे बढ़ सका। सड़ी कीचड़ में उपजने और कुलबुलाते रहने वाले घिनौने कीड़ों से अधिक भारी वे बन ही नहीं पाते। अपने परायों की श्रद्धा सहानुभूति से उन्हें वंचित ही रहना पड़ता है और सुनसान में रहने वाले भूत-पलीतों जैसी जिन्दगी जीता है। ऐसों के पास कुछ सुविधा साधन रहते भी हों तो वे साथी सहयोगियों के अभाव में निरानन्द एवं भारभूत बनकर ही रहते हैं।

सुख बांटने की वस्तु है और दुःख बंटा लेने की। इसी आधार पर आन्तरिक उल्लास और अन्यान्यों को सद्भाव प्राप्त होता है। महानता इसी आधार पर उपलब्ध होती है। प्रगतिशील स्तर के श्रेष्ठजन सहज ही अपने अन्दर ऐसे सद्गुण विकसित कर लेते हैं, जिनके आधार पर वे जन-जन का सद्भाव अर्जित करते हैं। सराहना के पात्र बनते हैं। लोक-परलोक सुधारते और महामानवों की पंक्ति में अपना प्रतिष्ठित स्थान बनाते हैं। ऐसे लोग भूखे-नंगे भी नहीं रहते। खुशहाली के लिए जिस जन सहयोग की अनिवार्य आवश्यकता पड़ती है, वह उन्हें अनायास ही प्राप्त होता रहता है। उदारता के बदले अन्यायों की उदारता भी मिलकर रहती है। प्रसन्नता और प्रफुल्लता इसी पर अवलम्बित है।

पुरोहित वर्ग को इसीलिए समाज का मूर्धन्य माना जाता रहा है कि वे मात्र पदार्थ जन्य सेवा ही नहीं करते, वरन् पिछड़ों को ऊंचा उठाने, आगे बढ़ाने वाली प्रेरणायें भी बरसाते हैं। आर्थिक सहायता कुछ समय ही किसी का काम चलाती है। कुपात्रों द्वारा दुरुपयोग बन पड़ने पर तो वह अनर्थकारी भी बन जाती है। ऐसी दशा में ग्रहीता ही नहीं, दाता भी नरक जैसे अपयश का भाजन बनता है, किन्तु आदर्शवादी प्रेरणायें ऐसी हैं जिन्हें पाकर कोई भी भौतिक एवं आत्मिक क्षेत्र में निश्चित रूप से प्रगति ही करता है। इस अनुदान का बदला प्रतिदान न सही कृतज्ञता तो मिलती ही है। भले ही वह वाणी से व्यक्त न भी की गई हो। ऐसे उदारमना लोग ही देश, धर्म, समाज, संस्कृति की कुछ कहने योग्य सेवा कर पाते हैं। बदले में वे वह उच्चस्तरीय प्रतिफल प्राप्त करते हैं, जिससे नर-वानरों को वंचित ही रहना पड़ता है।
आधी आयु परमार्थ में लगाने की प्राचीन देव परम्परा का ही सत्परिणाम था कि सतयुगी वातावरण में जन्मे लोग देवमानव कहलाते रहे और धरती को स्वर्गोपम बनाने की भूमिका निभाते रहे। अब उज्ज्वल भविष्य की संरचना होने की पुण्य वेला है, इसमें ऐसे ही देव मानवों के प्रयासों की आवश्यकता पड़ेगी। इसकी पूर्ति के लिए जिनमें भी भाव संवेदना विद्यमान हो, उन्हें उसी राजमार्ग पर चलने का साहस जुटाना चाहिए जिस पर कि अपने पूज्य पूर्वज चलते रहे हैं। उच्चस्तरीय लोक सेवियों की कमी न रहने पर जन-जन की भौतिक और आत्मिक प्रगति प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होने लगेगी। युग की इस मांग को पूरा करने के लिए हमें स्वयं ही सोचना और बिना साथियों की अग्रगामियों की प्रतीक्षा किये स्वयं ही बढ़ चलने का आदर्श उपस्थित करना चाहिए। व्रतधारी प्रज्ञा पुत्रों द्वारा यही अनुकरणीय आदर्श उपस्थित किया भी जा रहा है।
First 7 9 Last


Other Version of this book



देव संस्कृति का मेरुदण्ड वानप्रस्थ
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

त्योहार और व्रत
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है
Type: TEXT
Language: EN
...

गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है
Type: TEXT
Language: EN
...

आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
Type: TEXT
Language: HINDI
...

ऋगवेद भाग 2-A
Type: SCAN
Language: EN
...

ऋगवेद भाग 2-A
Type: SCAN
Language: EN
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • जीवन सम्पदा का दुरुपयोग
  • शिक्षा ही नहीं विद्या भी
  • सद्ज्ञान सम्पदा का अभाव
  • अतीत की गरिमा में धर्मतंत्र का योगदान
  • प्रतिभा परिष्कार की महती आवश्यकता
  • पृथ्वी के देवता—भूसुर-पुरोहित
  • सरल किन्तु अति प्रभावी कार्य पद्धति
  • अनुकरणीय आदर्श हमें ही प्रस्तुत करना है
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj