• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • भारतीय संस्कृति—देवसंस्कृति
    • प्रवासी भारतीय इतना तो करें
    • अनेकता में एकता – देव संस्कृति की विशेषता
    • भावी संभावनायें
    • विशेष उत्तरदायित्व
    • विश्व को देवमानवों के अजस्र अनुदान
    • संस्कृति का पराभव-काल
    • उज्ज्वल भविष्य, एक सुनिश्चित सत्य
    • संस्कृति के पुनरोत्थान का संकल्प
    • युगांतर चेतना के तीन कार्यक्रम
    • प्रवासी भारतियों के लिये एक सुनिश्चित कार्यक्रम
    • कुछ व्यावहारिक समस्यायें और उनका समाधान
    • स्वावलम्बी प्रकाशन तंत्र
    • संस्कार युक्त शिक्षा की व्यवस्था
    • सशक्त सुव्यवस्थित धर्मतंत्र
    • शांति कुंज : हरिद्वार सांस्कृतिक पुनरुत्थान का केन्द्र
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • भारतीय संस्कृति—देवसंस्कृति
    • प्रवासी भारतीय इतना तो करें
    • अनेकता में एकता – देव संस्कृति की विशेषता
    • भावी संभावनायें
    • विशेष उत्तरदायित्व
    • विश्व को देवमानवों के अजस्र अनुदान
    • संस्कृति का पराभव-काल
    • उज्ज्वल भविष्य, एक सुनिश्चित सत्य
    • संस्कृति के पुनरोत्थान का संकल्प
    • युगांतर चेतना के तीन कार्यक्रम
    • प्रवासी भारतियों के लिये एक सुनिश्चित कार्यक्रम
    • कुछ व्यावहारिक समस्यायें और उनका समाधान
    • स्वावलम्बी प्रकाशन तंत्र
    • संस्कार युक्त शिक्षा की व्यवस्था
    • सशक्त सुव्यवस्थित धर्मतंत्र
    • शांति कुंज : हरिद्वार सांस्कृतिक पुनरुत्थान का केन्द्र
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - देव संस्कृति व्यापक बनेगी सीमित न रहेगी

Media: TEXT
Language: MARATHI
TEXT


भारतीय संस्कृति—देवसंस्कृति

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


1 Last
भारत एक देश नहीं, मानवी उत्कृष्टता एवं संस्कृति का उद्गम केन्द्र है। हिमालय के शिखरों पर जमी बर्फ जल धारा बनकर बहती है और सुविस्तृत धरातल को सरसता एवं हरीतिमा से भरता है। भारत धर्म और अध्यात्म का उदयाचल है, जहां से सूर्य उगता और समस्त भूमण्डल को आलोक से भरता है। एक तरह से यह आलोक प्रकाश ही जीवन है, जिसके सहारे वनस्पतियां उगतीं, घटाएं बरसतीं और प्राणियों में सजीव हलचलें होती हैं।

बीज में वृक्ष की समस्त विशेषताएं सूक्ष्म रूप में छिपी पड़ी होती हैं। परन्तु ये स्वतः विकसित नहीं हो पातीं। उन्हें अंकुरित विकसित करके विशाल बनाने के लिये प्रयास करने पड़ते हैं। ठीक यही बात मनुष्य के सम्बन्ध में है। सृष्टा ने उसे सृजा तो अपने हाथों से है और उसे असीम संवेदनाओं से परिपूर्ण भी बनाया है पर साथ ही इतनी कमी भी छोड़ी है कि विकास के प्रयत्न बन पड़ें तो ही उसे ऊंचा उठने का अवसर मिलेगा। स्पष्ट है कि जिन्हें सुसंस्कारिता का वातावरण मिला, वे प्रगति पथ पर अग्रसर होते चले गये। जिन्हें उससे वंचित रहना पड़ा वे अभी भी वन्य प्राणियों की तरह रहते और गयी-बीती परिस्थितियों में समय गुजारते हैं। इस प्रगति शीलता के युग में भी ऐसे वनमानुषों की कमी नहीं, जिन्हें बन्दर की औलाद ही नहीं, उसकी प्रत्यक्ष प्रतिकृति भी कहा जा सकता है। यह पिछड़ापन और कुछ नहीं, प्रकारान्तर से संस्कृति का प्रकाश न पहुंच सकने के कारण उत्पन्न हुआ अभिशाप भर है।

यह न तो आत्म प्रशंसा है, न ही अतिशयोक्ति कि देव संस्कृति भारत भूमि से ही प्रभातकालीन सूर्य की तरह उगी और समस्त धरातल को प्रगति, समृद्धि, शक्ति एवं सभ्यता जैसे दिव्य अनुदानों से सराबोर करती चली गई। विश्व इतिहास के पृष्ठ इन प्रमाणों से भरे पड़े हैं कि मानवी गरिमा को उच्चस्तरीय बनाने और सर्वांगीण प्रगति का द्वार खोलने में उस तत्वदर्शन (फिलॉसफी) का असाधारण योगदान रहा है, जिसे धर्म, अध्यात्म या आदर्श निर्धारण कहा जा सकता है। इस भूमि पर जन्मे दिव्यदर्शी, तपस्वी, महामनीषियों ने मानव समुदाय को जिस चिन्तन, चरित्र, रुझान, निर्धारण एवं प्रयास पुरुषार्थ की ओर अग्रसर किया, वह स्वर्गीय वरदान सिद्ध हुआ। प्रगति की दिशा में चल रही क्रमिक गतिशीलता के पीछे जिस दिव्य अनुदान की झांकी मिलती है उसे पर्यवेक्षक एके स्वर से भारत को देवसंस्कृति का अनुदान मानते और कृतज्ञता पूर्वक शतशत नमन करते हैं।
भारत में जन्मने के कारण उसे भारतीय संस्कृति का नाम अनायास ही मिल गया। उसमें किसी क्षेत्र विशेष के प्रति आग्रह या पक्षपात नहीं है, यदि वह सर्वप्रथम कहीं और उगी, उपजी होती तो संभवतः उसे उस क्षेत्र के नाम से पुकारा जाने लगता। उत्पादन वर्ती भूमि के साथ उसके उपार्जनों का नाम भी जुड़ जाता है। इसे प्रचलन ही कहेंगे। नागपुरी सन्तरे, लखनवी आम, असमी चाय, अरबी घोड़े, काश्मीरी सेब, नागौरी बैल, कच्छी गाय, मैसूरी चन्दन का अर्थ यह नहीं कि वे उस क्षेत्र तक ही सीमित रहेंगे। भारतीय संस्कृति को विश्व संस्कृति एवं मानवी संस्कृति के रूप में ही जाना माना गया है। संसार के महामनीषियों ने इसका मूल्यांकन इसी दृष्टि से किया है। इतिहास के पृष्ठों पर इन तथ्यों का विस्तार से उल्लेख है कि देव संस्कृति का प्रवाह मलयज पवन की तरह समस्त संसार में बिखरा और उसने बिना किसी भेदभाव के हर क्षेत्र को समुन्नत एवं सुसंस्कृत बनाने में भारी योगदान दिया। किसी समय इस तत्व-दर्शन को सर्वत्र जगद्गुरु, चक्रवर्ती, धरती का स्वर्ग जैसे नामों से कृतज्ञता पूर्वक स्मरण किया जाता था। इसे श्रेष्ठता के प्रति सहज श्रद्धा की स्वतः स्फुरणा ही कहा जा सकता है।
1 Last


Other Version of this book



देव संस्कृति व्यापक बनेगी सीमित न रहेगी
Type: TEXT
Language: MARATHI
...


Releted Books



21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

त्योहार और व्रत
Type: SCAN
Language: HINDI
...

त्योहार और व्रत
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

ऋगवेद भाग 2-A
Type: SCAN
Language: EN
...

ऋगवेद भाग 2-A
Type: SCAN
Language: EN
...

प्रेरणाप्रद भरे पावन प्रसंग
Type: TEXT
Language: HINDI
...

प्रेरणाप्रद भरे पावन प्रसंग
Type: TEXT
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • भारतीय संस्कृति—देवसंस्कृति
  • प्रवासी भारतीय इतना तो करें
  • अनेकता में एकता – देव संस्कृति की विशेषता
  • भावी संभावनायें
  • विशेष उत्तरदायित्व
  • विश्व को देवमानवों के अजस्र अनुदान
  • संस्कृति का पराभव-काल
  • उज्ज्वल भविष्य, एक सुनिश्चित सत्य
  • संस्कृति के पुनरोत्थान का संकल्प
  • युगांतर चेतना के तीन कार्यक्रम
  • प्रवासी भारतियों के लिये एक सुनिश्चित कार्यक्रम
  • कुछ व्यावहारिक समस्यायें और उनका समाधान
  • स्वावलम्बी प्रकाशन तंत्र
  • संस्कार युक्त शिक्षा की व्यवस्था
  • सशक्त सुव्यवस्थित धर्मतंत्र
  • शांति कुंज : हरिद्वार सांस्कृतिक पुनरुत्थान का केन्द्र
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj