
वर्तमान समय युग परिवर्तन की सन्धि-बेला
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संसार के सभी विद्वान, ज्योतिर्विद् और अतीन्द्रिय दृष्टा इस सम्बन्ध में एकमत हैं कि युग परिवर्तन का समय आ पहुंचा। उनके अनुसार यह समय युग सन्धि की बेला है और इन दिनों संसार में अधर्म, अशान्ति, अन्याय, अनीति तथा अराजकता का जो व्यापक बोलबाला दिखाई दे रहा है, उसके अनुसार परिस्थितियों की विषमता अपनी चरम सीमा पर पहुंच गयी है। ऐसे ही समय में धर्म की रक्षा और अधर्म का विध्वंस करने के लिए भगवान का अवतार लेने की शास्त्रीय मान्यता है। ‘यदा यदा हि धर्मस्य की प्रतिज्ञा के अनुसार ईश्वरीय सत्ता इस असन्तुलन को सन्तुलन में बदलने के लिए कटिबद्ध है और सन्तुलन साधने के लिए सूक्ष्म जगत में उसी की प्रेरणा से परिवर्तनकारी हलचलें चल रही हैं।युग परिवर्तन के समय ईश्वरीय शक्ति के प्राकट्य और अवतरण की प्रक्रिया सृष्टिक्रम में सम्मिलित है। असन्तुलन को सन्तुलन में बदलने के लिए अपनी प्रेरणा पुरुषार्थ प्रकट करने के लिए भगवान वचनबद्ध हैं। ऐसे ही अवसरों पर गीता में दिया गया उनका ‘तदात्मानं सृजाम्यहं’ का आश्वासन प्रत्यक्ष होता रहा है। आज की स्थितियां भी ऐसी हैं कि उनमें ईश्वरीय शक्ति के प्राकट्य की भगवान के अवतार की प्रतीक्षा की जा रही है और सूक्ष्मदर्शी ईश्वरीय सत्ता की अवतरण प्रक्रिया को सम्पन्न होते देख रहे हैं।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह समय कलियुग के अन्त तथा सतयुग के आरम्भ का है, इसलिए भी इस समय को युग सन्धि की बेला कहा जा रहा है। यद्यपि कुछ रूढ़िवादी पंडितों का कथन है कि युग 4 लाख 32 हजार वर्ष का होता है। उनके अनुसार अभी एक चरण अर्थात् एक लाख आठ हजार वर्ष ही हुए हैं। इस हिसाब से तो अभी नया युग आने में 3 लाख 24 हजार वर्ष की देरी है। वस्तुतः यह प्रतिपादन भ्रामक है। शास्त्रों में कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं मिलता कि 4 लाख 32 हजार वर्ष का एक युग होता है। सैकड़ों वर्षों तक धर्म-शास्त्रों पर पंडितों और धर्म जीवियों का ही एकाधिकार रहने से इस सम्बन्ध में जन साधारण भ्रान्त ही रहा और इतने लम्बे समय तक की युग गणना के कारण उसने न केवल मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पतन की निराशा भरी प्रेरणा दी वरन् श्रद्धालु भारतीय जनता को अच्छा हो या बुरा, भाग्यवाद से बंधे रहने के लिए विवश किया। इस मान्यता के कारण ही पुरुषार्थ और पराक्रम पर विश्वास करने वाली भारतीयों को अफीम की घूंट के समान इन अति रंजित कल्पनाओं का भय दिखाकर अब तक बौद्धिक पराधीनता में जकड़े रखा गया।इस सम्बन्ध में ज्ञातव्य है कि जिन शास्त्रीय सन्दर्भों से युग गणना का यह अति रंजित प्रतिपादन किया है, वहां अर्थ को उलट पुलट कर तोड़ा मरोड़ा ही गया है। जिन सन्दर्भों को इस प्रतिपादन की पुष्टि के लिए प्रस्तुत किया गया है, वे वास्तव में ज्योतिष के ग्रन्थ हैं। वह प्रतिपादन गलत नहीं हैं, प्रस्तुतीकरण ही गलत किया गया है अन्यथा मूल शास्त्रीय वचन अपना विशिष्ट अर्थ रखते हैं। उनमें ग्रह नक्षत्रों की भिन्न-भिन्न परिभ्रमण गति तथा ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन में सुविधा की दृष्टि से ही यह युग गणना है।जितने समय में सूर्य अपने ब्रह्माण्ड की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है उसी अवधि को चार बड़े भागों में बांट कर चार देव युगों की मान्यता बनाई गई और 4 लाख 32 हजार वर्ष का एक देव युग माना गया। प्रचलित युग गणना के साथ तालमेल बिठाने के लिए छोटे युगों को अंतर्दशा की संज्ञा दे दी गई और उसी कारण वह भ्रम उत्पन्न हुआ। अन्यथा मनुस्मृति लिंग पुराण और भागवत आदि ग्रन्थों में जो युग गणना प्रस्तुत की गई है वह सर्वथा भिन्न ही है। मनुस्मृति में कहा गया है—ब्राह्मस्यतु क्षपाहस्य यत्प्रामण समारुतः ।एकै कशो युगानान्तु क्रमशर्स्वान्नर्बाधत ।।चत्वार्याहु सहस्राणि वर्षांणांतु कृतंयुग ।तस्यतावत् शती संध्या संध्याशश्च तथाविधः ।।इतेयेरेषु स संध्येषु स संध्याशेषु च त्रिंपु ।एकोयायेन वर्तन्ते सहस्राणि शतानि च ।।(मनु. 5।67-69)अर्थात्—ब्रह्माजी के अहोरात्रि में सृष्टि के पैदा होने और नाश होने में जो युग माने गए हैं वे इस प्रकार हैं—चार हजार वर्ष और उतने ही शत अर्थात् चार सौ वर्ष की पूर्व सन्ध्या और चार सौ वर्ष की उत्तर सन्ध्या इस प्रकार कुल 4800 वर्ष का सतयुग इसी प्रकार तीन हजार छह सौ वर्ष का त्रेता, दो हजार चार सौ वर्ष का द्वापर और बारह सौ वर्ष का कलियुग।हरिवंश पुराण के भविष्य पर्व में भी युगों का हिसाब इसी प्रकार बताया गया है यथा—अहोरात्रं विभज्यनो मानव लौकिकं परं ।सामुपादाय गणानां शृणु संख्यं, मन्दिरम् ।।चत्वार्यैव सहस्राणि वर्षाणानुकृत युगं ।तावच्छसी भवेत्संघ्या संघ्याशश्च तथानृप ।।त्रीणि वर्ष सहस्राणि त्रेतास्या स्परिमाणतः ।तस्याश्च त्रिशती संध्याशश्च तथाविधः ।।तथा वर्ष सहस्रे द्वै द्वापरं परिकीर्तितः ।तस्यापि द्विशती संध्या संध्यांशश्चैवतद्वियः ।।कलिवर्ष सहस्रं व संख्यातोऽत्र मनिषिभिः ।तस्यापि शतिक संध्या सध्यांशश्च तथा विधः ।।अर्थात्—हे अरिदंम! मनुष्यलोक के दिन रात का जो विभाग बतलाया गया है उसके अनुसार युगों की गणना सुनिए, चार हजार वर्षों का एक कृतयुग होता है और उसकी संध्या चार सौ वर्ष की तथा उतना ही संध्यांश होता है। त्रेता का परिणाम तीन हजार वर्ष का है और उसकी संध्या तथा से संध्यांश भी तीन-तीन सौ वर्ष का होता है। द्वापर को दो हजार वर्ष कहा गया है। उसका संध्या तथा संध्यांश दो-दो सौ वर्ष के होते हैं। कलियुग को विद्वानों ने एक हजार वर्ष का बतलाया है और उसकी संध्या तथा संध्यांश भी सौ वर्ष के होते हैं।लिंग पुराण तथा श्रीमद् भागवत में भी इसी प्रकार की युग गणना मिलती है। भागवत के तृतीय स्कन्ध में कहा गया है—चत्वारि त्रीणि द्वै चैके कृतादिषु यथाक्रमम् ।संख्यातानि सहस्राणि द्वि गुणानि शतानि च ।।(भाग. 3।1।19)अर्थात्—चार, तीन, दो, और एक ऐसे कृतादि युगों में यथा क्रम द्विगुण सैकड़े की संख्या बढ़ती है। आशय यही है कि कृतयुग के चार हजार वर्ष में आठ सौ वर्ष और जोड़कर 4800 वर्ष माने गये। इसी प्रकार शेष तीनों युगों की कालावधि समझी जाय। कुछ स्थानों पर मनुष्यों के व्यवहार के लिए बारह वर्ष का एक युग भी माना गया है। जिसको एक हजार से गुणा कर देने पर देव युग होता है, जिसमें चारों महायुगों का समावेश हो जाता है। इस बारह वर्ष के देवयुग को फिर एक हजार से गुणा करने पर 1 करोड़ 20 लाख वर्ष का ब्रह्मा का एक दिन हो जाता है जिसमें सृष्टि की उत्पत्ति और लय हो जाता है। भगवान कृष्ण ने गीता में इसी युग की बात कही है—सहस्र युगपर्यन्त मर्ध्यद् ब्रह्मणो विदुः ।रात्रि युग सहस्रान्तां तेऽहोरात्र विदोजना ।।(8।17)अहोरात्रि को तत्वतः जानने वाले पुरुष समझते हैं कि हजार महायुगों का समय ब्रह्मदेव का एक दिन होता है और ऐसे ही एक हजार युगों की उसकी रात्रि होती है। लोक मान्य तिलक ने इसका अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है कि महाभारत, मनुस्मृति और यास्कनिरुक्त में इस युग गणना का स्पष्ट विवेचन आता है। लोकमान्य तिलक के अनुसार ‘‘हमारा उत्तरायण देवताओं का दिन है और हमारा दक्षिणायन उनकी रात है। क्योंकि स्मृति ग्रन्थों और ज्योतिष शास्त्र की संहिताओं में भी उल्लेख मिलता है कि देवता मेरु पर्वत पर अर्थात् उत्तर ध्रुव में रहते हैं। अर्थात् दो अयनों छः-छः मास का हमारा एक वर्ष देवताओं के एक दिन-रात के बराबर और हमारे 360 वर्ष देवताओं के 360 दिन-रात अथवा एक वर्ष के बराबर होते हैं। कृत, त्रेता, द्वापर और कलि ये चार युग माने गये हैं। युगों की काल गणना इस प्रकार है कि कृत युग में चार हजार वर्ष, त्रेता युग में तीन हजार, द्वापर में दो हजार और कलि में एक हजार वर्ष। परन्तु एक युग समाप्त होते ही दूसरा युग एकदम आरम्भ नहीं हो जाता, बीच में दो युगों के सन्धि काल में कुछ वर्ष बीत जाते हैं इस प्रकार कृत युग के आदि और अन्त में प्रत्येक ओर चार सौ वर्ष का, त्रेता युग के आगे और पीछे प्रत्येक ओर तीन सौ वर्ष का, द्वापर के पहले और बाद में प्रत्येक ओर दो सौ वर्ष का तथा कलियुग के पूर्व और अनन्तर प्रत्येक ओर सौ वर्ष का सन्धिकाल होता है, सब मिला कर चारों युगों का आदि अन्त सहित सन्धिकाल दो हजार वर्ष का होता है। ये दो हजार वर्ष और पहले बताये हुए सांख्य मतानुसार चारों युगों के दस हजार वर्ष मिलाकर कुल बारह हजार वर्ष होते हैं। (गीता रहस्य भूमिका, पृष्ठ 193)इन गणनाओं के अनुसार हिसाब फैलाने से पता चलता है कि वर्तमान समय संक्रमण काल है। प्राचीन ग्रन्थों में हमारे इतिहास को पांच कल्पों में बांटा गया है। (1) महत् कल्प 1 लाख 9 हजार 8 सौ वर्ष विक्रमीय पूर्व से आरम्भ होकर 8580 वर्ष पूर्व तक (2) हिरण्य गर्भ कल्प 85800 विक्रमीय पूर्व से 1800 वर्ष पूर्व तक (3) ब्राह्म कल्प 60800 विक्रमी पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक (4) पाद्म कल्प 37800 विक्रम पूर्व से 13800 वर्ष पूर्व तक और (5) वाराह कल्प 13800 विक्रम पूर्व से आरम्भ होकर अब तक चल रहा है।कलियुग संवत् की शोध के लिए राजा पुलकेशिन ने विद्वान ज्योतिषियों से गणना कराई थी। दक्षिण भारत के ‘इहोल’ नामक स्थान पर प्राप्त हुए एक शिलालेख में इसका उल्लेख मिलता है, जिससे यही सिद्ध होता है कि कल्कि का प्राकट्य इन्हीं दिनों होना चाहिए। ‘पुरातन इतिहास शोध संस्थान’ मथुरा के शोधकर्ताओं ने भी इसी तथ्य की पुष्टि की है और ज्योतिष के आधार पर यह सिद्ध किया है कि ‘इस समय ब्रह्मरात्रि का तमोमय सन्धिकाल है।’इसी सन्धिकाल में असन्तुलन उत्पन्न होता है। दैवी शक्तियों पर आसुरी प्रवृत्तियों का संघात होता है तथा अनीति मूलक अवांछनीयतायें उत्पन्न होती हैं। नव निर्माण की सृजन शक्तियां ऐसे ही अवसरों पर जन्म लिया करती हैं, क्योंकि तप साधन होने के कारण ऐसे समय विभिन्न अनयकारी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं। मनुष्य कृत संकट और प्राकृतिक आपदाओं की वृद्धि जब चरम सीमा पर पहुंचने लगती है तो उसी समय निर्माणकारी सत्ता अपने सहयोगियों के साथ अवतरित होती है और जहां एक ओर अधर्म, अन्याय, अनाचार बढ़ता है वहां ये शक्तियां धर्म, संस्कृति, सदाचार, सद्गुण तथा सद्भावों को बढ़ाकर संसार में सुख शान्ति की स्थापना के लिए प्रयत्न शील होती हैं।संक्रमण बेला में किस प्रकार की परिस्थितियां बनती और कैसे घटना क्रम घटित होते हैं इसका उल्लेख महाभारत के वन पर्व में इस प्रकार आता है—ततस्तु मुले संघाते वर्तमाने युगे क्षये ।यदा चन्द्रस्य सूर्यस्य तथा तिष्य वृहस्पति ।।एक राशौ समेष्यन्ति प्रयत्स्यति यदा कृतम् ।काल वर्षी च पर्जन्यो नक्षत्राणि शुभानि च ।।क्षेम सुभिक्षमारोग्य भविष्यति निरामयम् ।।अर्थात्—जब एक युग समाप्त होकर दूसरे युग का प्रारम्भ होने को होता है तब संसार में संघर्ष और तीव्र हलचल उत्पन्न हो जाती हैं। जब चन्द्र, सूर्य, बृहस्पति तथा पुष्य नक्षत्र एक राशि पर आयेंगे तब सतयुग का शुभारम्भ होगा। इसके बाद शुभ नक्षत्रों की कृपा वर्षा होती है। पदार्थों की वृद्धि से सुख-समृद्धि बढ़ती है। लोग स्वस्थ और प्रसन्न होने लगते हैं।इस प्रकार का ग्रह योग अभी कुछ समय पहले ही आ चुका है। अन्यान्य गणनाओं के आधार पर भी यही सिद्ध होता है कि युग परिवर्तन का ठीक यही समय है। ठीक इन्हीं दिनों युग बदलना चाहिए।मक्का के हमीदिया पुस्तकालय में रखी ‘‘अल्कश्फ बल्कस्मफी मार्फत’’ तथा अरबी की पुस्तक ‘‘मालावृद कुब्लुत कयामत’’ में भी 14 वीं सदी में व्यापक क्रान्ति संघर्ष और युग परिवर्तन का संकेत है। सूरदास जी ने अपने एक पद में अपने अतीन्द्रिय ज्ञान के आधार पर लिखा है—एक सहस्र नौ सौ के ऊपर ऐसौ योग परै ।सहस्र वर्ष लों सतयुग बीते धर्म की वेलि बढ़ै ।।अर्थात्—सम्वत् 1900 के बाद संसार में परिवर्तन के योग हैं। इस महा परिवर्तन के बाद संसार में धर्म की बेलि बढ़ेगी और हजारों वर्ष तक सतयुग फले फूलेगा।द्विजाति पूर्वका लोकः क्रमेण प्रभविष्यति ।देवः कालान्तरेऽन्यस्मित्पुनर्लोक विवृद्धये ।।—महाभारतअर्थात्—युग परिवर्तन के इस सन्धिकाल में द्विजन्म संस्कार सम्पन्न आदर्शवादी व्यक्तियों का उत्थान होगा और भगवान फिर से संसार को सुख समुन्नति की ओर अग्रसर करेंगे।बुन्देलखण्ड के यशस्वी सम्राट छत्रसाल के गुरु महात्मा प्राणनाथ जी ने अभी के लिए युग परिवर्तन और अवतार आगमन की बात प्रस्तुत छन्द में इस तरह दी है—विजयाभिनन्दन बुद्ध जी और निष्कलंक इति आय ।मुक्ति देती सबन को मेट सबै असुराय ।।एक सृष्टि धनी भजन एकै एक ज्ञान एक आहार ।छोड़ बैर मिलें सब प्यार सों भया सकल में जै जैकार ।।अक्षर के दो चश्में नहासी नूर नजर ।बीसा सो बरसें कायम होसी वराट सचराचर ।।मालिका नामक उड़िया ग्रन्थ में सतयुग आगमन की सूचना देते हुए महायोगी अच्युतानन्द ने लिखा है—बालमुकुन्दर शालियात्र शेष हवे ।से हि दिन कलियुग सम्पूर्ण होइवे ।।‘‘उड़ीसा में प्रचलित बालमुकुन्द का सम्वत् समाप्त होते ही कलियुग भी समाप्त हो जायगा। इस बात को भक्त लोग अपने आप जान लेंगे।’’ यह सभी गणनायें इस बात की प्रमाण हैं कि नये युग का आविर्भाव हो चला, अब उसे कोई भी रोक नहीं सकता।‘‘हीलिंग लाइफ’’ के सम्पादक पादरी जान मेलार्ड ने भी युग परिवर्तन का समर्थन करते हुए लिखा है—‘‘आज संसार की समस्यायें इतनी जटिल हो गई हैं कि उन्हें मानवीय बुद्धि और बल द्वारा सुलझाया नहीं जा सकता। विश्व-शान्ति अब मनुष्य की ताकत के बाहर हो गयी है। तथापि हमें निराश होने की बात नहीं, क्योंकि ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि भगवान धरती पर आ गया है और वह अपनी सहायक शक्तियों के साथ नवयुग स्थापना के प्रयत्नों में जुट गया है। उनकी बौद्धिक और आत्मिक क्षमता उसके अपने आप अवतार होने की बात स्पष्ट कर देगी। वह दुनिया का उद्धारक देर तक पर्दे में छिपा नहीं रह सकता।’’डब्लू ई. ओरचार्ड ने भी अपना मत ऐसे ही व्यक्त करते हुए लिखा है। ‘‘इजरायल के निवासी जिस प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं वह धरती पर आ गये हैं और अब उनके दुःखों के साथ सारे संसार के दुःखों का अन्त होने वाला है। भगवान अपनी सृष्टि में अमंगल, अन्याय, अत्याचार नहीं रहने देते, आज वह उस सीमा तक बढ़ गये हैं कि उन्हें व्यक्त होना ही पड़ेगा।’’स्वामी असीमानन्द का कथन है—मुझे इस समय भगवान की अनुपम सत्ता प्रसारित होती जान पड़ती है। वह दिन समीप है जब सारे संसार में प्रेम समता और भ्रातृभाव की भावनायें गूंज उठेंगी। कलियुग का अन्त होकर एक नये युग का श्री गणेश होगा और युगों की शृंखला का नया क्रम शुरू हो जायेगा।सतयुग, द्वापर, त्रेता या कलियुग का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व या स्वरूप नहीं है यह तो मानवीय वृत्तियों के बहाव मात्र है। जन मानस में धर्म अध्यात्म कर्म फल, परलोक, पुनर्जन्म, आस्तिकता, उपासना, आत्म-कल्याण, प्रेम, दया, करुणा, उदारता सहयोग आदि शाश्वत मान्यताओं एवं मानवीय सद्गुणों के प्रति आस्था प्रगाढ़ होती है, तो वही सतयुग हो जाता है। फिर क्रमशः रजोगुण बढ़ता है और लोगों की महत्वकांक्षा में साहस, संघर्ष आदि राजसी गुण सम्मिश्रित, श्रद्धा, अनुशासन, न्यायप्रियता बनी रहती है तो वह युग त्रेता हो जाता है। द्वापर रजोगुण और तामसी वृत्तियों के मिलाप का काल होता है। इसी प्रकार जब समाज और जन मानस की—विचारणायें कुत्सित हो जाती हैं क्रिया-कलाप क्षुद्र इन्द्रिय वासनाओं को भड़काने वाले, स्वेच्छाचारी हो जाते हैं, लोग पाप, अधर्म, अन्याय, अनीति को ही धर्म मान लेते हैं, तभी कलियुग हो जाता है। यह सब एक प्रकार की बाहुल्यता के परिचायक हैं, अन्यथा सतयुग में असुरों की संख्या कम नहीं रही। शुम्भ-निशुम्भ, सहस्रबाहु, वाणासुर, रावण, कंस, दुर्योधन, दुःशासन, त्रिपुरासुर आदि भयंकर-कर्मा राक्षस श्रेष्ठ युगों में ही पैदा हुए, फिर उन्हें सतयुग, द्वापर, त्रेता क्यों कहा जाये? इस युग को कलियुग क्यों कहा जाय? यदि आज लोगों की वृत्तियों में धर्म और आस्तिकता के प्रेम, सद्भाव और सद्गुणों के प्रति आस्थाएं जागृत हो जायें तो सतयुग आने में सन्देह ही क्या? ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ का कथन भी यही है—कलिः शयानो भवति सञ्जिहानस्तु द्वापरः ।उत्तिष्ठन्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यते चरन् ।।अर्थात्—व्यक्ति या समाज का सुषुप्ति अवस्था में पड़े रहना ही कलियुग है। जब वह जम्हाई लेता है, अंगड़ाई लेता है तब द्वापर की अवस्था आती है। उठकर बैठ जाने, निद्रा त्याग देने का नाम ही त्रेता और उठकर चल देने, विचारशील, क्रियाशील, अध्यवसायी उद्यमी होने का नाम ही सतयुग है।यह भाववाचक अभिव्यंजना बताती है कि युग काल से प्रतिबन्धित नहीं। कलियुग के 4 लाख 32 हजार वर्ष का होने की बात गलत है। मनुष्य की वृत्तियों में संशोधन कर उन्हें ऊर्ध्वगामी बना दिया जाय तो किसी भी युग को किसी युग में बदला जा सकता है। अवतार इसी उद्देश्य से आते रहे हैं। उन्होंने सतयुग की स्थापना जनमानस की दिशाओं को मोड़ कर ही की है।प्रसिद्ध भारतीय महायोगी और आजीवन अध्यात्म की मशाल प्रज्ज्वलित रखने वाले महर्षि अरविन्द अतीन्द्रिय द्रष्टा थे। वे लोगों की भविष्यवाणियां करने जैसे चमत्कारों को आत्म-कल्याण में बाधक बताते थे। इसलिए उन्होंने अनावश्यक भविष्यवाणियां नहीं कीं। पर लोगों को शक्ति और धैर्य दिलाने बाली भविष्यवाणियां ही उन्होंने की और वह सच निकलीं। सन् 1939 में उन्होंने कहा था कि आठ वर्ष बाद भारत स्वतन्त्र हो जायेगा पर शीघ्र ही वह टुकड़ों में बंट सकता है, दोनों बातें सच निकलीं।युग परिवर्तन के सम्बन्ध में उनकी भविष्य वाणियां बहुत महत्वपूर्ण हैं। एक बार उन्होंने श्री यज्ञशिखा मां से बड़ी आह्लादपूर्ण मुद्रा में बताया—‘मेरे अन्तःकरण में दैवी स्फुरणायें हिलोरें मार रही हैं और कह रही हैं—भारत का अभ्युदय बहुत निकट है। कुछ लोग इसे पश्चिमी सभ्यता का अनुयायी बनाने का प्रयत्न करेंगे। पर मेरा विश्वास है कि भारत वर्ष में एक अभियान प्रारम्भ होगा जो यहां की असुरता को नष्ट करके फिर से धर्म को एक नई दिशा देगा और इस देश की प्रतिष्ठा, यहां के गौरव को बढ़ायेगा। यह आन्दोलन संसार में फिर से सतयुग की सी सुख-सौम्यता लायेगा।’हरियाणा के प्रसिद्ध सन्त बांगड़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा है—सम्वत बीसा द्वौ बीसा कूं असा जोग अनौखा आवै से,नौ ग्रह मिलसी एक राशि पर गुरुदशा बिचलावै सै ।राजा प्रजा को घणा दुःखनूं सौ, कोहराम मचावै सै ।पड़सी विकट अकाल बाद सूं अनावृष्टि दिखेलावे है,धरती फटै, आकाश टूटि के महानास सपहावै है ।असा बखत नो ज्योति प्रगट्या सब को राह यह दिखावे है ।कह बांगड की बात झूठ ना कतै कणै हवै पावै हैलइसी रयाख्या गोरा तुरकां राजराजाना धणी धणीतुरक तवारा मिटसी रेखी अमरीसा छट छणीउसै जगड़ी नग चबारा धरणी कोय देखावणीदुख सर दुःख पावसी दुणिया धुंध कोणली बावै सीअकबर के समकालीन इन महान सन्त का उल्लेख ‘फरजान-ए रशीदी’ पुस्तक में भी मिलता है। उपरोक्त छन्द में जो स्थितियों बतायी गई हैं, उनकी संगति वर्तमान परिस्थितियों से बहुत मिलती-जुलती है। लोकश्रुति के रूप में प्रचलित यह पंक्तियां कई पुराने लोगों को कंठाग्र हैं और ’फरमान-ए रशीदी’’ में भी सन्त बांगड़ की इसी तरह की भविष्यवाणियां मिलती हैं। इस छन्द का अर्थ इस प्रकार है, सम्वत् 2040 (बीसा-द्वौ बीसा) को ऐसा विचित्र संयोग पड़ने वाला है, जिसके कारण दुनिया पर अगणित आपदाएं और भयंकर विपदाएं आयेंगी। इस तरह की संभावना उस समय प्रत्यक्ष होने लगेगी जब नौ ग्रह एक ही राशि में स्थिति होंगे तथा फाल्गुन मास में पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा (उल्लेखनीय है कि 16 फरवरी को पड़ा सूर्य ग्रहण फाल्गुन मास में ही था, तथा नौ ग्रह भी अगले दिनों सूर्य के एक सीध में जा रहे हैं) इस योग से शासन चलाने वालों के साथ-साथ जनता को भी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। अकाल अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकम्प, उल्कापात आदि प्राकृतिक विपदाओं के अतिरिक्त विभिन्न देशों में युद्ध की भी सम्भावना है। अंग्रेज (गोरा) और तुरका (मुस्लिम) राष्ट्रों के बीच संघर्ष की पूरी-पूरी सम्भावना संत बांगड़ ने बतायी है। मनुष्य कृत उत्पातों और प्राकृतिक विपदाओं के कारण कई देशों के तहस-नहस हो जाने तथा जन-जीवन के बुरी तरह अस्त-व्यस्त होने की बात उपरोक्त पंक्तियों में स्पष्ट की गई हैं।इस प्रकार के भविष्य कथन केवल भारत में ही मिलते हों, ऐसी बात नहीं है। विश्व की तमाम भाषाओं के प्राचीन साहित्य में वर्तमान समय को युग सन्धि का काल बताया गया है। इस तरह के भविष्य कथन वाले साहित्य का जहां भी उल्लेख आता है उसमें बाइबिल की पुरानी संहिता का उल्लेख सर्वत्र आता है। बाइबिल का यह भाग (ओल्ड टेस्टामेंन्ट) ईसा से भी पहले रचा गया था और उसमें ईसा के जन्म से लेकर अब तक की घटनाओं का सविस्तार उल्लेख आता है।बाइबिल की भविष्यवाणियां ‘सात समय’ अथवा ’सेवन टाइम्स’ के नाम से जानी जाती है। इन्हें लेकर कई पुस्तकें लिखी गयीं, इनकी विवेचनाओं के लिए सैकड़ों विद्वानों ने अपना समय और श्रम खपाया है। बाइबिल की यह भविष्यवाणियां ‘डैनियल तथा रिवेलेशन’ अध्यायों में दी गई हैं। यद्यपि इन सब की भाषा काफी गूढ़ है और इन्हें मुख्यतः रूपक शैली में ही लिखा गया है। इन भविष्यवाणियों में कहा गया है, जब यह ‘सात समय’ का जमाना आएगा और नये युग की शुरूआत होगी, उस समय तमाम दुनिया में लड़ाई-झगड़े फैल जायेंगे और प्रकृति इतनी क्रुद्ध हो उठेगी कि उसके कारण बड़ी संख्या में लोग मरने लगेंगे। बाइबिल के ‘मैथ्यू’ अध्याय 24 में इस समय की विभीषिकाओं का चित्रण इन शब्दों में किया गया हैं, ‘‘उस वक्त चारों तरफ लड़ाइयां होने लगेंगी और लड़ाई की अफवाहें सुनाई देने लगेंगी। एक मुल्क दूसरे मुल्क के खिलाफ खड़ा होगा और एक सल्तनत दूसरी सल्तनत के। उस समय अकाल पड़ेंगे, महामारी फैलेगी और जगह-जगह भूकम्प आएंगे। यह हालत तो शुरू में होगी और इसके बाद इससे कहीं ज्यादा कष्ट भोगने पड़ेंगे।’’बाइबिल के ‘रिवेलेशन’ अध्याय में महात्मा जान की निम्नलिखित भविष्यवाणियां उल्लेखनीय हैं—‘जब उसने दूसरी मुहर को तोड़ा तो उसमें से दूसरा जानवर निकला। यह लाल रंग का घोड़ा था। जो उस पर बैठा था, उसे इस बात की शक्ति दी गई थी कि संसार की शान्ति को भंग कर दे और युद्ध आरम्भ करा दे। उस सवार के हाथ में एक बहुत बड़ी तलवार दी गई थी। (रिवेलेशन क. 6)लाल रंग का आशय युद्ध से लगाया गया है। यद्यपि इन दिनों प्रकट तौर पर किन्हीं देशों में युद्ध नहीं चल रहा, परन्तु इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि विभिन्न देशों में जो आपसी तनातनी, गुटबन्दी और शीत युद्ध की सी स्थिति बनी हुई है, वह कभी भी युद्ध का विस्फोट कर सकती है। कब किस बात को लेकर कौन-सा देश युद्ध की घोषणा कर देगा? इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।बाइबिल के रिवेलेशन ‘अध्याय छह’ में कहा है—‘जब उसने तीसरी मुहर को तोड़ा तो उसमें से तीसरा जानवर निकला। वह एक काले रंग का घोड़ा था और उसके ऊपर बैठे हुए सवार के हाथ में एक तराजू दी गई थी। मैंने यह आवाज सुनी कि एक सिक्के का एक पैमाना गेहूं मिलेगा और तीन पैमाने जौ का दाम एक सिक्का होगा।यों महंगाई और वस्तुओं का अभाव तो पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है, किन्तु इन दिनों वस्तुओं के मूल्य जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, उस वृद्धि ने निश्चय ही लोगों में भय का संचार कर दिया है। मूल्य वृद्धि का एक कारण वस्तुओं का अभाव भी है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जायगी वैसे-वैसे अन्न संकट और भयंकर होता जायगा।बाइबिल की ‘लैमेनटेशन’ नामक पुस्तक में इसका वर्णन करते हुए लिखा है—लोगों के चेहरे कोयले की तरह काले हो जाएंगे। वे गलियों में मारे-मारे फिरेंगे। जो लोग तलवार से मारे जाते हैं वे उन भूख से मरने वालों की अपेक्षा सुख में रहेंगे।’’अकाल के अतिरिक्त विनाश की परिस्थितियां उत्पन्न करने वाले दूसरे कारणों की ओर संकेत करते हुए रिवेलेशन अध्याय 6 में लिखा गया है—‘‘जब उसने चौथी मुहर को तोड़ा तो उसमें से चौथा जानवर निकला। वह एक पीले रंग का घोड़ा था। उस पर मृत्यु का देवता बैठा था। इस देवता को इस बात की ताकत दी गयी थी कि वह पृथ्वी के चौथाई भाग में तलवार, प्लेग, अकाल और जंगली जानवरों आदि के द्वारा मनुष्यों का नाश करे।’’‘जब उसने छठी मोहर को तोड़ा तो मैंने एक भयंकर भूकम्प देखा। उस समय सूर्य काले कपड़े की तरह लाल पड़ गया। आसमान के तारे इस तरह टूटने लगे जिस प्रकार किसी पेड़ को हिलाने से पके फल गिरने लगते हैं। हर एक पहाड़ और टापू हटने लगा। राजा बादशाह से लेकर गरीब आदमी तक ईश्वर के इस भयंकर कोप से घबड़ाकर पहाड़ों की गुफाओं और चट्टानों में जा छुपे।’’बाइबिल में उल्लेख आता है कि यह वृत्तांत लिखते हुए वह स्वयं चौंक पड़े और अपने आप से पूछ बैठे ‘हाऊ लांग शैल इट बी टू द एण्ड आफ दीज वन्डर्स’ ‘ये आश्चर्यजनक बातें कितने समय तक दिखाई पड़ेंगी?’तब एक देवदूत प्रकट होता है और डैनियल को बताता है जब पवित्र जाति वालों का अर्थात् सदाचारी सत्कर्म परायण लोगों का ह्रास होने लगेगा तब ये सब घटनायें सही सिद्ध होंगी।’ डैनियल ने कहा—‘‘मैं आपकी बात सुन रहा हूं, पर मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। कृपा कर बताइए कि संसार का अन्तिम परिणाम क्या होगा और मनुष्य जाति को आगे चलकर क्या-क्या सहना पड़ेगा?’’उस समय डेनियल को चुप रहने के लिए कहते हुए देवदूत ने कहा—हे डैनियल! तुम अपने रास्ते पर चलते चले जाओ, क्योंकि भविष्यवाणी के शब्दों का अर्थ गुप्त रखा गया है और उस पर मुहर लगादी गई है, तब तक के लिए जबकि इस समय का अवसर आ जाय। जो बुद्धिमान होंगे वे अन्तिम दिनों तक इसका अर्थ समझ सकेंगे।सन् 1764 में डॉ. जॉन गांमीग तथा 66 में जेम्स ग्रान्ट ने इन भविष्यवाणियों का अर्थ निकाला और यहूदियों को उनके पुनर्वास का समय आखिरी समय बताया। स्मरणीय है इस शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक यहूदियों के मूल निवास स्थान पर दूसरे देशों का अधिकार था। पैलेस्टाइन पर तुर्की का राज्य था। सन् 1948 में उन्हें पैलेस्टाइन में फिर से बसाया गया तथा इजराइल संसार के नक्शे पर एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में उभरा।प्रसिद्ध पुरातत्व वेत्ता और यहूदियों की प्राचीन भाषा के विद्वान् डॉ. विलियम अलब्राइट ने इस घटना का संदर्भ बाइबिल की भविष्यवाणियों से जोड़ते हुए लिखा है कि अब तक सभी भविष्य कथन सही सिद्ध होते आते हैं। इसमें तुर्की का पतन, हिटलर का उदय, तानाशाही शासकों का वर्चस्व आदि कई भविष्यवाणियां हैं जो सात समय बीत जाने का लक्षण बताई गयी हैं।ट्रम्पेट्स या बिगुलों से आशय युद्ध के उद्घोषों का निकाला गया है। इन दिनों जिस तरह के शस्त्र और युद्ध में काम आने वाले उपकरण खोज निकाले गए हैं, उनमें से ज्ञात शस्त्रास्त्रों की संहारक क्षमता पढ़-सुनकर ही रोमांच हो उठता है। स्मरणीय है कि युद्ध विज्ञान के क्षेत्र में जितनी भी खोजें हो रही हैं उनमें से नब्बे प्रतिशत गोपनीय रखी जाती हैं। जो कुछ जानकारियां सामने आती हैं, वे भी दूसरे देशों द्वारा की गई गुप्तचरी के परिणाम स्वरूप प्रकाश में आती हैं अन्यथा अधिकांश तो गुप्त ही रहती हैं। फिर भी जितनी जानकारियां प्रकाश में आयी हैं, उनसे उपरोक्त विभीषिकाओं का शब्दशः चित्र प्रस्तुत होता है।उपरोक्त भविष्यवाणियों के समय निर्धारण के सम्बन्ध में जेम्स-ग्रांट ने लिखा है कि बाइबिल में उल्लेखित सात समय का अर्थ 2520 वर्ष बताया है अथवा एक समय को 360 वर्ष माना है। स्मरणीय है ये भविष्यवाणियां ईसा से करीब 500-600 वर्ष पूर्व की गई थीं। जेम्स ग्रांट ने हिसाब लगाकर बताया है यह भविष्य वाणियां 1980 के आस-पास वाले समय से सम्बन्ध रखती हैं। प्रख्यात ज्योतिषी काउण्ट लुईस हैमन ने भी यही वह समय बताया है, जब रोग, बीमारियों तथा युद्धों के कारण मनुष्य जाति बुरी तरह त्रस्त अर्थात विनाश की चरम सीमा पर पहुंचेगी।पटना की ‘खुदाबख्श औरियण्टल लाइब्रेरी’’ में फारसी कसीदों (कविता) की पुस्तक है, जो बुखारा के सुप्रसिद्ध सन्त शाह नियामतुल्ला वल्ली साहब की लिखी हुई है। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है, ‘जापान और रूस में युद्ध होगा (1904 में रूस और जापान में युद्ध हुआ था।) जापान में भयंकर भूकम्प आयेगा (1923 में भूकम्प आया) प्रथम विश्व युद्ध में अलफ (अंग्रेज) और जीम (जर्मन) लड़ेंगे उसमें अंग्रेज जीतेंगे पर युद्ध में एक करोड़ इकत्तीस लाख व्यक्ति मारे जायेंगे (ब्रिटिश कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार सचमुच इस युद्ध में एक करोड़ तीस लाख लोगों की मृत्यु का विवरण दिया गया है) जर्मनी दो भागों में बंटकर आपस में तनावपूर्ण स्थिति में आ जाएंगे। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर उनके द्वारा बम विस्फोट की—भविष्य वाणी भी सच निकली। इस तरह उनकी एक भी भविष्यवाणी अभी तक गलत नहीं हुई है।भारत के प्रसंग में वली साहब ने लिखा है, की मुसलमानों के हाथ से यह मुल्क विदेशियों के हाथ चला जायगा, फिर हिन्दू मुसलमान मिलकर उनके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे। विदेशी यहां से चले तो जाएंगे पर हिन्दुस्तान को दो टुकड़ों में बांट जायेंगे। दोनों ही देश बन जायेंगे और परस्पर इतनी शत्रुता बढ़ जायेगी कि दोनों में युद्ध का तनाव तब तक बना रहेगा जब तक मुसलमान भू भाग पूरी तरह पराजित नहीं हो जायेगा।तृतीय विश्व युद्ध के सम्बन्ध में बली साहब ने लिखा है, ‘यह युद्ध बड़ा भयंकर होगा। श्वेत जातियां बहुत कमजोर पड़ जायगी। भारत का अभ्युदय एक सर्वोच्च शक्ति के रूप में हो जायगा, पर उसके लिए उसे बहुत कठोर संघर्ष करने पड़ेंगे। देखने में यह स्थिति कष्टकारक होगी, पर इस देश में एक फरिश्ता आयेगा जो हजारों छोटे-छोटे लोगों को इकट्ठा करके उनमें इतनी हिम्मत पैदा कर देगा कि वही नन्हे-नन्हे लोग ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देंगे जिससे संसार में सीधे-सच्चे लोगों की प्रतिष्ठा बढ़ेगी और अमन चैन फैलता चला जायगा।मिश्र की एक बहुत प्राचीन मीनार पर एक भविष्यवाणी अंकित है जिसमें कहा गया है कि चौदहवीं सदी बीत जाने पर (हिजरी सन् के अनुसार चौदहवीं सदी अब बीत चुकी है) कयामत आयेगी अर्थात भीषण विनाश और संघर्ष उत्पन्न होगा। इसी मीनार पर जल्द ही एक नया जमाना आने की बात भी लिखी है जिसमें सत्य ही धर्म होगा, न्याय ही कानून होगा, सारी पृथ्वी के लोग एक परिवार की तरह रहेंगे तथा कोई किसी से वैर-भाव नहीं रखेगा। सब ओर सुख शान्ति रहेगा। किन्तु इससे पहले भयंकर युद्ध अकाल और प्राकृतिक प्रकोप इतने सघन होंगे कि संसार की आबादी का एक बड़ा भाग नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगा। इस नये युग का आरम्भ थोड़े से लोगों के द्वारा किये जाने की भविष्यवाणी भी उस मीनार पर अंकित है।विश्व में जहां-जहां भी युग परिवर्तन अथवा युग सन्धि से सम्बन्धित साहित्य मिलता है, उसका विवेचन करने पर यही समय युग सन्धि का ठहरता है अर्थात् प्राचीनतम ग्रन्थों और मनीषियों के अनुसार सन् 1980 से लेकर सन् 2000 तक विश्व में भारी उथल-पुथल और हलचलें भरी हैं।