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Books - ध्वंस और सृजन की सुस्पष्ट सम्भावना

Media: TEXT
Language: HINDI
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अगले दिनों की विनाशकारी सम्भावनाएं

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पिछले पृष्ठों पर कुछ विश्वविख्यात दिव्य दृष्टाओं के भविष्य कथन प्रकाशित किये गये हैं। उनके अतिरिक्त भी कई लोग ऐसे हैं जो भले ही उतने चर्चित न हों, परन्तु शतप्रतिशत सही भविष्यवाणियां करते रहे हैं। नार्वे के प्रसिद्ध योगी आनन्दाचार्य, आर्थर, चार्ल्स क्लार्क, जौन एडन तथा ह्यूम टेलर भी अपने सही भविष्य कथनों के कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो चुके हैं।योगी आनन्दाचार्य तो भारत में ही जन्मे हैं। सन् 1883 में बंगाल में उनका जन्म हुआ। तब उनका नाम सुरेन्द्रनाथ वराल था। उनका कथन है कि—तृतीय विश्वयुद्ध होगा तो अवश्य, पर वह 1995 से पहले ही होगा। इस बीच भारत विश्व की छठी महाशक्ति के रूप में उदित होकर सर्वाधिक शक्तिशाली सत्ता के रूप में प्रकट हो जायेगा। जिस तरह महाभारत युद्ध चरम वैज्ञानिक प्रगति के बाद भारतवर्ष में लड़ा गया, उसमें विश्व के सभी देश सम्मिलित हुए और अग्नेयास्त्रों से लेकर अलौकिक दिव्य अस्त्रों का प्रयोग हुआ था, उसी प्रकार अगले तृतीय विश्व युद्ध में भी भयंकर धातुओं वाले अणु आयुधों का प्रहार तो होगा ही, ऐसे अस्त्र-शस्त्रों का भी प्रयोग होगा जिनके सम्बन्ध में किसी भी व्यक्ति को जानकारी नहीं होगी। उन अस्त्रों की मारक क्षमता की विलक्षणता की तुलना धरती का कोई भी परमाणु बम तक न कर सकेगा पर प्रहार के बाद उनका चिन्ह तक पृथ्वी में ढूंढ़ने पर भी न मिलेगा। इस युद्ध में स्त्रियां भी भाग लेंगी।योगी आनन्दाचार्य को यह अद्भुत क्षमता योगसाधना के परिणामस्वरूप ही प्राप्त हुई है। कलकत्ता विश्वविद्यालय से भारतीय दर्शन-वैदिक विषयों का गहन अध्ययन करने के कारण उनके जीवन में आध्यात्मिकता के प्रति तीव्र जिज्ञासाएं तभी जागृत हो गई थीं। कुछ दिन तक कलकत्ता विश्वविद्यालय ही में वे शिक्षक का कार्य करते रहे। इस बीच उन्होंने अनुभव किया कि भौतिक आकांक्षाओं में मानवीय सुख-शांति की सम्भावनाएं यदि हैं तो उनकी सीमा पहाड़ में राई के बराबर है। जो वस्तुएं व्यक्ति, समाज और विश्व को शांत और सुखी बना सकती हैं उनका सम्बन्ध व्यक्ति के रूप में उसकी सनातन शक्ति से है। जब तक विश्व नियामक का स्वरूप, आत्मा का दर्शन, लोक-परलोक का ज्ञान और प्राणी मात्र में फैली चेतना का विज्ञान समझ में नहीं आता तब तक व्यक्ति अपूर्ण है और अपूर्णता की स्थिति में न तो मनुष्य सुखी रहा और न ही आगे रह पायेगा।इसलिए पूर्ण योग की प्राप्ति एक स्थिर लक्ष्य और सच्ची शक्ति देने वाली है, यह विचार कर उन्होंने योगाभ्यास प्रारम्भ किया। ग्रह-गणित के अध्ययन से लेकर समाधि अवस्था तक पहुंचने की यौगिक प्रणाली का गहन अभ्यास उन्होंने किया। पीछे उन्होंने अपना नाम आनन्दाचार्य रख लिया था। जन्म उनका भारत में हुआ था, साधना उन्होंने नार्वे में की। पर भारतीय दर्शन का संचार सारे विश्व में किया। न्यूयार्क और लन्दन से प्रकाशित उनकी पुस्तकों ‘ब्रह्म दर्शन’, ‘तत्व जीवनम्’ तथा भारतीय दर्शन का ख्यातिपूर्ण ‘कालक्रम’ में उन्होंने भारतीय समाज की वर्तमान अवस्था और उसके भावी निर्माण का जो स्वरूप कई शताब्दियों पूर्व लिखा था वह आज स्पष्ट सत्य होता दिखाई दे रहा है।आनन्दाचार्य पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1910 में ही बता दिया था कि चार वर्ष बाद लोग विश्वयुद्ध (प्रथम) के लिये तैयार रहें। जुलाई की आखिरी तारीखों में किसी बहुत ही सामान्य घटना को लेकर युद्ध प्रारम्भ होगा, पर पीछे विश्व के लिये जिन देशों में परस्पर तनातनी चल रही है वे सब युद्ध में कूद जायेंगे। युद्ध नवम्बर 1918 तक चलेगा और जब युद्ध समाप्त हो जाएगा तो सारे विश्व की राजनीति एक स्थान पर केन्द्रित हो जाएगी। एक ऐसा संस्थान बनेगा जिसमें विश्व के अधिकांश देश सम्मिलित होंगे पर उसमें सच्चाई और ईमानदारी के स्थान पर कूटनीति का स्थान अधिक होने से लोग इसके निर्णय बहुत कम स्वीकार किया करेंगे।तब इस भविष्यवाणी पर लोगों का कोई विशेष ध्यान नहीं गया, 1914 की बात है कि सर्विया के एक नवयुवक ने वहां के आर्कड्यूक फर्निनेंड को गोली मार दी। आर्कड्यूक आस्ट्रिया राज्य का उत्तराधिकारी था। यह छोटी-सी घटना घटी तब भी संसार के किसी भी व्यक्ति ने विश्वयुद्ध जैसी कल्पना नहीं की। पर उसके एक दिन बाद ही आस्ट्रिया ने हंगरी पर आक्रमण कर दिया। फिर क्या था दोनों ओर से मित्र देश कूदते गए और जर्मनी, तुर्की, बल्गेरिया, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस, बेल्जियम, जापान, इटली, अमेरिका आदि सभी देश कूद गये। विश्वयुद्ध हुआ। सोम, मांस और वर्डून की लड़ाई इतनी भयंकर हुई कि युद्ध के प्रति लोगों में घृणा के तीव्र भाव पैदा हो गये। उसी का परिणाम हुआ कि राष्ट्र संघ (लीग आफ नेशन्स) की स्थापना हुई। इस तरह दोनों भविष्यवाणियां अक्षरशः सिद्ध हुईं।अब नार्वे और इंगलैण्ड वालों का ध्यान आनन्दाचार्य की ओर गया उनसे ब्रिटेन का एक पत्रकार मंडल विशेष रूप से मिला और भावी विश्व पर अपने विचार देने का आग्रह किया। तब उन्होंने कहा—अति शीघ्र ही एक और विश्वयुद्ध के लिए तैयार रहिए। इस द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी का हिटलर और रूस के स्टालिन जिस भयंकरता से कूदेंगे युद्ध का अन्त उससे भी भयंकर होगा। अगस्त 1945 में संसार में पहली बार एक भयंकर धमाका होगा, लाखों लोग एक क्षण में मारे जायेंगे तभी जाकर शान्ति समझौता होगा।इस भविष्यवाणी के कुछ वर्षों बाद ही सितम्बर 1936 में पोलैंड पर जर्मनी ने आक्रमण कर दिया और इस युद्ध के बाद उसकी ज्वालाएं भड़कती ही गईं और फिर एक विश्वयुद्ध भड़का। इसी युद्ध में 8 अगस्त 1945 को प्रातः ही हिरोशिमा नागासाकी (जापान) में अणुबम गिराए नए जिससे एक लाख से भी अधिक व्यक्तियों की मौत हुई।मुसोलिनी की मृत्यु, आइजन हाबर और ख्रुश्चेव के प्रभुत्व की भी उनकी भविष्यवाणियां सच निकलीं और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उन्होंने जिन परिस्थितियों का वर्णन किया था वह भी सच निकलीं। इसके बाद अष्टग्रही योग आया। उस समय उन्होंने जो कुछ कहा वह लेख की प्रारम्भिक पंक्तियों में कहा गया है। पर उसका सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग वह है जो उन्होंने न्यूयार्क में कहा और बाद में उसे न्यूयार्क, पेरिस बेल्जियम, इंगलैण्ड और नावें आदि कई देशों में छापा गया।उन्होंने बताया एक ओर दुनियां भर के वैज्ञानिक भौतिक विज्ञान में यहां तक प्रगति करेंगे कि चन्द्रमा की यात्रा से लेकर मंगल तक की यात्रा सम्भव होगी। परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबन्ध के राजनैतिक प्रयत्न तीव्र होंगे पर छोटे-छोटे देश परमाणु बम बनाने के लिए प्रयत्नशील होंगे। कम से कम समय में दूर-दूर मार करने बाली मशीनों और बमों का निर्माण होगा। दुनियां के दूसरे देशों में बसे भारतीयों पर संकट आयेंगे। कई देशों से तो उन्हें अपमानित होकर निकलना पड़ेगा। लंका और भारत में महिलाएं शासन प्रभुत्व में आयेंगी। इंगलैण्ड की राजनीति में जल्दी-जल्दी परिवर्तन होंगे। कनेडी और लूथरकिंग की हत्या की उनकी भविष्यवाणियां सत्य हुयीं।भविष्यवाणी का महत्वपूर्ण अंश है ‘‘कि तृतीय विश्वयुद्ध से 24 वर्ष के पहले और 24 वर्ष बाद भारतवर्ष में तीव्र हलचल का समय होगा। पहले 24 वर्ष महाभारत के बाद में विकृत परिस्थितियों की संध्या के रूप में होंगे और अन्तिम 24 वर्ष नवयुग के सूर्योदय के ऊषाकाल के होंगे। मैं तो अपनी जन्मभूमि को स्वतन्त्र हुआ देखने के थोड़े ही पीछे अपना यह शरीर छोड़ दूंगा, पर दूसरे लोग देखेंगे कि स्वाधीनता के बाद भारतवर्ष में कैसे विलक्षण परिवर्तन होंगे।’’‘‘धर्म मेरे देश में संगठित संस्था’’ का रूप लेकर पनपेगा। जन्म तो उसका स्वतन्त्रता के साथ ही हो जायगा पर 24 वर्ष बाद 1971 में वह एक शक्तिशाली संगठन के रूप में सारे भारतवर्ष में प्रकाश में आ जायेगा। एक ओर विश्व राजनीति में व्यापक हलचलें होती रहेंगी और उनमें भारतीय राजनीति प्रमुख रूप से क्रियाशील होती दिखाई देंगी। वह संगठन जो धार्मिक उद्धार के रूप में प्रकट होगा इस बीच विश्व कल्याण का नया नक्शा तैयार करेगा। इस संगठन का स्वामी संचालक कोई गृहस्थ व्यक्ति होगा और अब तक दुनिया के सबसे बड़े विचारक के रूप में ख्याति प्राप्त करेगा। वह व्यक्ति सामाजिक उत्तरदायित्वों से लेकर—संसार के सब देश शांतिपूर्वक कैसे रहें, उसकी एक व्यवस्थित आचार संहिता तैयार करेगा। उसके जीवन भर के संग्रहीत विचारों को यदि एक पुस्तक में लिखा जाये तो वह पुस्तक 100 पौण्ड वजन से अधिक होगी। उस समय तो लोग आश्चर्य करेंगे कि आज के भौतिक युग में इन विचारों का क्या उपयोग? पर संसार पर व्यापक रूप से पड़ने वाली आपत्तियां और 1995 के बाद होने बाला विश्वयुद्ध संसार में छाई वर्तमान भौतिकता की दशा को मोड़ देगा, तब यह आचार संहिताएं वेद, बाइबिल एंजील की तरह पूजी जायेंगी। आज लोगों में जो तत्परता भौतिक प्रगति की दिशा में दिखाई दे रही है तब लोग लोक-परलोक आत्मा-परमात्मा, मोक्ष और सद्गति जैसे आध्यात्मिक तत्वों के प्रति वैसी ही तत्परता दिखायेंगे। महाभारत के पूर्व भारत की जो स्थिति थी उससे आगे का विकास काल इस तृतीय विश्व युद्ध के बाद होगा और उसका सन्तुलन यह नया धार्मिक संगठन करेगा।चार्ल्स क्लार्क—चार्ल्स क्लार्क की भविष्यवाणियां अन्य भविष्य वक्ताओं से भिन्न कोटि की हैं। स्वयं एक वैज्ञानिक और साहित्यकार होने के कारण उनकी भविष्य सम्बन्धी पूर्वोक्तियां विज्ञान और मनुष्य के अन्त:करण को छूने वाली भावनाओं के साथ-साथ लेकर हुई हैं। उनकी भविष्यवाणियां इतनी स्पष्ट और सत्य सिद्ध हुईं कि पीछे वैज्ञानिकों ने उनके भविष्य कथन को आधार मानकर प्रयोग भी करने प्रारम्भ कर दिए।1959 की शाम एक दावत में उन्होंने अपने मित्रों को बताया—‘‘'1969 की 30 जून पृथ्वी के इतिहास का सर्वाधिक रोमांचक दिन होगा। मैं स्पष्ट देख रहा हूं कि कोई पृथ्वीवासी उस दिन चन्द्रमा पर उतर जाएगा।’’उन्होंने जिस दिन यह भविष्यवाणी की थी तब तक अन्तर्ग्रही प्रक्षेपण की एक भी घटना घटित नहीं हुई थी। इससे ठीक दो वर्ष पीछे 1961 में पहली बार रूसी वैज्ञानिकों ने यूरी गागरिन को अन्तरिक्ष में भेजकर पृथ्वी की प्रदक्षिणा कराई थी। इसलिए मित्रों को उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। पर सारे संसार ने देखा कि पिछले वर्ष उनकी दस वर्ष पूर्व की गई भविष्यवाणी कुल 20 दिन के अन्तर से सिद्ध हो गई। 1969 में अमेरिका का एक अपोलो केप-कैनेडी में ही जलकर नष्ट नहीं हो गया होता तो सम्भवतः यह 20 दिन का भी अन्तर न पड़ता।चार्ल्स क्लार्क छोटे थे तभी से उनमें अतीन्द्रिय ज्ञान और पूर्वाभास की विचित्र क्षमता उत्पन्न हो गई थी। वह कहा करते थे—मनुष्य शरीर नहीं एक शक्ति है। उस शक्ति में प्रकाश है, तेजस्विता है, और वे सब क्षमतायें हैं, जिनकी मनुष्य भगवान में अपेक्षा किया करता है। मानव-अन्तःकरण की यही शक्ति अभी सोई पड़ी है पर मैं यह देख रहा हूं—‘‘एशिया के किसी देश (भारतवर्ष की ओर संकेत कर) से कुछ ही दिनों में एक प्रचण्ड विचार क्रान्ति उठने वाली है। वह 1971 तक उस देश और उसके 10 वर्ष बाद सारे विश्व में इस तरह गूंज जाएगी कि मानव का सोया अन्तःकरण जागने को विवश हो जाएगा। आज जिन शक्तियों की ओर लोगों का ध्यान भी नहीं जाता तब वह शक्तियां जन-जन की शोध और अनुभूति का विषय बन जायेंगी। विज्ञान एक नई मोड़ लेगा जिसमें आध्यात्मिक तत्वों की प्रचुरता होगी। सारे ब्रह्माण्ड को एक नए सूत्र में बांधने का आधार यह आध्यात्मिक सिद्धियां और सामर्थ्यें ही होंगी।’’लोगों ने तर्क प्रस्तुत किया कि जीवन का अस्तित्व तो केवल पृथ्वी में है। वैज्ञानिक भी कहते हैं कि अन्य ग्रह जीवन रहित हैं। इस पर उन्होंने कहा—‘‘मैंने 1945 में कहा था कि सारी पृथ्वी समुद्र को तारों से पाटने की जरूरत नहीं। यदि कोई कृत्रिम उपग्रह 17000 मील की गति से अन्तरिक्ष में उड़ा दिया जाय और पृथ्वी की परिक्रमा करता रहे तो वह बेतार के तार वाले सन्देश पहुंचाने की आवश्यकता को पूरी कर देगा। तब लोगों को मेरी बात हंसी जैसी लगी। किन्तु 1962 में बेल टेलीफोन कम्पनी ने ‘टेलस्टार’ नामक उपग्रह छोड़कर मेरे कथन की सत्यता सिद्ध करदी। अब तो अलीवर्ड और टालराम जैसे दूरसंचार उपग्रह भी बन गए हैं जो एक स्थान से पृथ्वी के दूसरे स्थान तक 1 मिनट में 17 अखबारी पेजों के बराबर सन्देश भेज सकते हैं।एक बार मैंने कहा था—मनुष्य छोटे से छोटे अणु (अणु) से इतनी शक्ति उत्पन्न करने में सक्षम हो जायेगा जो कुछ ही मिनट में संसार को नष्ट-भ्रष्ट कर डालने की क्षमता से ओत-प्रोत होगी। तब लोगों ने मेरी बात का विश्वास नहीं किया पर जब नागासाकी और हिरोशिमा काण्ड हो गये तब लोग मेरी बात मान गये। यह भविष्यवाणियां मैंने जिस दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ की हैं उसी आत्म विश्वास के साथ मैं आज भी कहता हूं कि यह सृष्टि कर्ता रहित नहीं। एक रहस्यमय चेतना शक्ति है जिसके आगे मानवीय बुद्धि, मानवीय योग्यतायें नगण्य हैं। विराट् सृष्टि का निर्माण उसी की इच्छा से होता है। यदि उसने पृथ्वी पर जीवन उत्पन्न किया है तो कोई कारण नहीं कि अन्य ग्रह भी अपवाद न हों। यदि अन्य ग्रहों में जीवन हुआ तो इसमें रत्ती भर सन्देह नहीं कि वे सब पास-पास आयें और अपनी समस्याओं के समाधान के सार्वभौमिक नियम तय करें।श्री क्लार्क की भविष्यवाणियों में भी भारतवर्ष की उन्नति की वह बातें आती हैं, जो श्रीमती डिक्सन, कीरो, एण्डरसन आदि ने कही है। उनका कथन है कि—भारतवर्ष ने अतीत में अपनी आध्यात्मिक उन्नति के रूप में ही नहीं एक महान वैज्ञानिक देश के रूप में भी गौरव अर्जित किया है। मैंने सुना है कि यहां कई तरह के आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र और अनेक गगनगामी विमानों के भी अनुसन्धान हो चुके हैं। आगे भी यह देश इस तरह की उन्नति करेगा और इस दौड़ में दुनिया के तमाम देशों को पछाड़ देगा। पर मूलतः इसकी ख्याति और विश्व प्रतिष्ठा का आधार यहां का धर्म और दर्शन होगा। विश्वधर्म के रूप में भारतीय धर्म और संस्कृति को ही स्थान मिलेगा।उनकी भारतवर्ष की स्वतन्त्रता, चीन और पाकिस्तान की मैत्री, रूस और चीन की युद्ध सम्बन्धी भविष्यवाणियां नितान्त सत्य हो गयी हैं। थोड़े दिनों का कभी हेर फेर हुआ हो वह अलग बात है। फिर यदि सन् 2000 से पहले सारी पृथ्वी में एक अनोखी विचार क्रान्ति और युग परिवर्तन जैसी उनकी यह भविष्यवाणी सत्य हो तो इसमें सन्देह नहीं है, क्योंकि आज की परिस्थितियों का झुकाव भी कुछ वैसा ही है।चार्ल्स क्लार्क ने 1980 से सन् 2000 तक विश्व परिस्थितियों के सम्बन्ध में जो भविष्य कथन किये हैं; वे पूर्वोक्त भविष्यवाणियों से ही मिलती जुलती हैं। अर्थात् इस अवधि में उन्होंने विश्व युद्ध की सम्भावना तो सुनिश्चित बताई ही है, इस बीच भयंकर बीमारियां फैलने, सूखा पड़ने और अनावृष्टि होने जैसी सम्भावनायें भी व्यक्त की हैं।महात्मा रामचन्द्रमहात्मा रामचन्द्र भी अपनी सफल भविष्यवाणियों के लिए विख्यात हैं। राष्ट्रधर्म के जनवरी 1971 अंक में उनका एक लेख प्रकाशित हुआ था। इस लेख में बिहार प्रदेश के व्यापक रूप से जलमग्न और क्षतिग्रस्त होने की भी भविष्यवाणी की थी। उस समय तक ऐसा कोई लक्षण नहीं था जिससे तत्काल यह मान लिया जाता कि वस्तुतः ऐसा होगा। किन्तु बाद में सचमुच दो समुद्री तूफान आये और पूर्वी पाकिस्तान के 20 लाख लोगों को नष्ट करके रख गये। आज भी वहां की प्रलय-विभीषिका समाप्त नहीं हुई। जब होगी तब पूर्वी पाकिस्तान प्रलय के बाद वाले शान्त और सुसंस्कृत सभ्य समाज वाले देश के रूप में दिखाई देगा। बिहार के सम्बन्ध में की गई भविष्यवाणी की सत्यता भी स्पष्ट देखी का सकती है। यह पंक्तियां जिस समय लिखी जा रही हैं अधिकांश बिहार बाढ़ की चपेट फंसा हुआ है जबकि उसकी भविष्यवाणी 10-11 महीने पहले ही कर दी थी। यह भविष्यवाणी शाहजहां पुर के एक सुप्रसिद्ध योगी और सन्त महात्मा रामचन्द्र ने की।‘‘संसार में जब भी कोई देवदूत आया, अवतार हुआ तब-तब प्रकृति ने उनके निर्माण के पूर्व की अवस्था को ध्वंस करने में सहयोग अवश्य दिया है। वह महासंघर्ष की भूमिका इसी शताब्दी के अन्त तक निश्चित रूप से घटित हो जानी चाहिए। परिवर्तन का समय आ गया है जो अब टल नहीं सकता। ईश्वरीय सत्ता मानवीय रूप में अपनी परम प्रिय ‘स्वर्गादपि गरीयसी’ धरती पर भारतवर्ष में जन्म ले चुकी है और अपना काम करने में लगी हुई है। जब उसकी तमाम योजनायें और क्रिया-कलाप सामने आवेंगे, तब लोगों को पता चलेगा और पश्चाताप भी होगा कि भगवान् राम, श्रीकृष्ण, भगवान बुद्ध और परशुराम की तरह का अवतार हमारे समय में आया और हम उन्हें पहचान भी न सके, सहयोग देना तो दूर की बात रही।यह शब्द भी उन्हीं महात्मा रामचन्द्र के हैं जिनकी भविष्य वाणियों का इन पंक्तियों में उल्लेख किया जा रहा है। ये किसी प्रकार के यश लोकेषणा की कामना के बिना एक सच्चे योगी के समान आत्म-कल्याण और लोकमंगल में रत रहते हैं। यह भविष्यवाणी तो उनकी इस प्रेरणा का प्रतीक समझी जानी चाहिए कि जागृत आत्मायें, यदि उनका विवेक साथ देता हो तो विद्यमान देवदूत को पहचानें और उसके नव निर्माण के महासंघर्ष में हनुमान, नल-नील अंगद की तरह मुक्ति-वाहिनी का सेनापतित्व करने के लिए आगे आयें।कुछ शंकालु और आर्य समाजी जैसे तर्क वाले व्यक्तियों ने महात्मा रामचन्द्र से प्रश्न किया कि परमात्मा तो सर्व व्यापी सत्ता है, तत्व रूप में है वह अवतार कैसे ले सकता है? इस पर उन्होंने समझाया—हर व्यक्ति में एक अचेतन तत्व काम करता है, उसे सांसारिक काय-कलाप के लिए मन भी मिला है। अचेतन मन (अतीन्द्रिय जगत का अधिष्ठाता) मन प्रत्यक्ष जगत का कारण है। मन से ही योजनायें बनतीं और फिर क्रियान्वित होती हैं। परमात्मा में ‘मनस’ शक्ति नहीं होती है पर मनुष्य जाति के उद्बोधन और मार्गदर्शन के लिए तो यह शक्ति ही आवश्यक है। इसलिए अदृश्य चेतना के रूप में काम करने वाली सत्ता को मन में परिपूर्ण होने के लिए किसी शरीर में व्यक्त होना पड़ता है। शरीर में होने पर भी उसकी शरीर में कोई आसक्ति नहीं होती अर्थात्—काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि मनोविकार उसका कुछ नहीं कर पाते। वह भूत भविष्य—सब कुछ जानने वाला होने पर भी अन्य मनुष्य की तरह ही काम करने वाला होता है किन्तु उसका अतीन्द्रिय ज्ञान और बल एवं मनोबल इतना प्रचण्ड और प्रखर होता है कि संसार का कोई भी दुस्तर से दुस्तर कार्य उसके लिए असम्भव अशक्य नहीं होता। ऐसी ही दिव्य सत्ता भारतवर्ष में अपना काम कर रही है, बहुत शीघ्र उसे लोग पहचानेंगे।अपनी इस भविष्यवाणी में ही महात्मा रामचन्द्र ने जहां इस दिव्य सत्ता की प्रचंड सामर्थ्य का दिग्दर्शन करा दिया वहां लोगों की पहचान के लिए मानो संकेत भी दे दिया है। उनकी भविष्यवाणी का यह अंश बार-बार पढ़ने और मनन करने योग्य है—सूर्य की गर्मी पिछले कुछ समय से कम हो रही है। वैज्ञानिक हैरान हैं कि सूर्य के इस ह्रास का कारण क्या है? वे इस कारण चिन्तित हैं कि सूर्य की ऊर्जा व गर्मी समाप्त हो जाने से सारे भौतिक साधन होने पर भी मनुष्य जाति का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है और उससे बचने का कोई उपाय उनकी समझ में नहीं आ रहा है।सूर्य की शक्ति के इस असाधारण ह्रास पर प्रकाश डालते हुए योगाचार्य लिखते हैं कि यह ह्रास मनुष्य के रूप में इस महान् ईश्वरीय सत्ता द्वारा उसका उपयोग है। प्रकृति जो परिवर्तन करती है वह सूर्य के परिवर्तन से ही प्रारम्भ होता है, क्योंकि दृश्य जगत का आत्मा सूर्य ही है। तीव्र ह्रास का तात्पर्य यह है कि जो परिवर्तन होना है वह जल्दी ही हो जाय। इस शक्ति का उपयोग भगवान द्वारा नियुक्त यह अवतार ही कर रहा है। जैसे ही कार्य पूरा हुआ और प्रकृति ने अपनी नई व्यवस्था का क्रम जमा लिया, सूर्य फिर से अपनी पूर्व प्रखरता पर आ जायेगा (अखंड ज्योति के पाठकों को यह स्मरण दिलाना समयोचित ही होगा कि गायत्री उपासना का सीधा सम्बंध सूर्य से है)। अखण्ड ज्योति में कई बार छप चुका है कि गायत्री सिद्ध हुए आत्म दर्शी पुरुष और सूर्य में कोई अन्तर नहीं होता, दोनों तदाकार हो जाते हैं। अतएव यह निर्विवाद सत्य है कि यह नया अवतार महान् सावित्री शक्ति—गायत्री तत्व और सूर्य शक्ति का सिद्ध होगा। यह स्पष्ट संकेत है नये निर्माण की पहचान का।प्रसिद्ध भविष्य वक्ता श्री रामचन्द्र इस बात से पूर्णतया सहमत हैं कि आज का बुद्धिवाद और नास्तिकता धर्म और अध्यात्म के प्रति उत्कृष्ट आस्था में बदल जायेंगे। उसके लिए जो ईश्वरीय सत्ता उदित हुई और काम कर रही है वह अहंभाव से पूर्णतया मुक्त होगी। शरीर में होने पर भी वह नितान्त भावनाओं से बनी एक प्रकार की भाव प्रतिमा होगी—अर्थात् वह मानवी मन न होकर ईश्वरीय मन होगी, जो सैकड़ों लोगों की सहायता करती हुई युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया को पूरा कर रही है।यह भविष्यवाणी केवल कौतूहल के लिए नहीं हैं। अतीन्द्रिय दृष्टा की प्रेरणा को समझा जाना चाहिए और यदि मन किसी ईश्वरीय दिव्य सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करता हो तो उसकी सहायता के लिए साहस भी प्रदर्शित किया ही जाना चाहिए।जौन एडमएक प्रमाणिक भविष्य वक्ता के रूप में जर्मनी के जौन एडम को विश्व ख्याति मिली है। वहां की प्रसिद्ध पत्रिका ‘एक्सप्रेस रिव्यू’ के जनवरी 78 अंक में प्रकाशित उनकी भविष्यवाणी उल्लेखनीय है। कुछ व्यक्ति उनसे संसार का भविष्य जानने के लिए पहुंचे। पूछने पर निराशा पूर्ण शब्दों में कहा कि ‘‘इस सम्बन्ध में हमसे न पूछा जाय तो ही अच्छा होगा।’’ अधिक आग्रह करने पर उन्होंने उत्तर दिया कि ‘इन दिनों प्रकृति के अन्तराल में मैं असामान्य परिवर्तनों को देख रहा हूं। ध्यान की गहराइयों में पहुंचने पर मुझे स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि प्रकृति ध्वंस का सरंजाम जुटाने में लगी है। ध्वंसात्मक तत्व इन दिनों सूक्ष्म जगत में बढ़ते जा रहे हैं। मेरी अन्तःचेतना में संसार के नष्ट होने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं।’’ यह पूछे जाने पर कि दुर्भाग्यशाली समय कौन-सा होगा? कुछ देर के लिए शान्त होकर वे आंखें बन्द करके बैठ गये। थोड़े समय पश्चात उन्होंने कहा—‘‘हमें जो संकेत मिल रहे हैं, उनके अनुसार यह समय फरवरी और अगस्त 82 के मध्य होना चाहिए। विनाश का भावी स्वरूप स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘मानवी दुर्बुद्धि एवं उसके कुकृत्यों के कारण प्रकृति अत्यन्त क्रुद्ध है। फलस्वरूप सन् 82 के फरवरी और अगस्त के मध्य विश्व का अधिकांश भाग भयंकर भूकम्प झंझावात, तूफान तथा विस्फोट से नष्ट हो सकता है। इसी समय दो प्रभावशाली राष्ट्रों के बीच युद्ध छिड़ जाने के कारण तृतीय विश्व युद्ध की पूरी-पूरी सम्भावना है। ये राष्ट्र कम्युनिस्ट होंगे। तृतीय विश्वयुद्ध एवं प्रकृति-प्रकोपों की दोहरी मार से जिस विदारक दृश्य की कल्पना हमारी चेतना में उठती है, उसे देखकर हमारा हृदय कांप उठता है।’’‘जौन एडम’ ने अब तक जितनी भी भविष्यवाणियां कीं, उनमें अधिकांशतः सही उतरी हैं। जिस समय भारत और पाकिस्तान की सेनाएं बंगलादेश के युद्ध में एक दूसरे के सामने डटी नर-संहार कर रही थीं; युद्ध-विराम के एक दिन पूर्व उन्होंने जपने एक मित्र से कहा कि कल पाकिस्तानी-सेना आत्म-समर्पण कर देगी। भारत-विजयी होगा। बंगला-देश—पाकिस्तान के हाथों से निकल कर, एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में उभरेगा। दूसरे दिन जब पाकिस्तानी सेना ने आत्म-समर्पण किया तो ‘एडन’ का मित्र आश्चर्य-चकित रह गया। उनकी अतीन्द्रिय-सामर्थ्य से उसने जन-सामान्य को अवगत कराया तब से लेकर अब तक संसार के विभिन्न देशों के सम्बन्ध में जो भविष्य वाणियां की हैं, वे अधिकांशतः सही उतरी हैं। अरब-इसराइल युद्ध में, अरब राष्ट्रों के गठजोड़ के बावजूद भी इसराइल की अप्रत्याशित विजय की घोषणा, भारत में ऐतिहासिक, राजनैतिक परिवर्तन, पाकिस्तानी-शासन में भुट्टो की तानाशाही का दुखद-अन्त जैसी भविष्यवाणियां समय एवं तथ्यों के अनुसार सही पायी गई हैं।यह पूछे जाने पर कि क्या भावी विनाश से बचने का कोई मार्ग है? उन्होंने कहा कि चेतना की सामर्थ्य प्रकृति की तुलना में जबरदस्त है। प्रकृति के नियमों से मुक्त चेतना उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकने में समर्थ होती है। ऐसा ही प्रचण्ड आत्म-बल सम्पन्न महामानव जन-कोलाहल से दूर, भावी संकटों से मानव जाति की सुरक्षा के लिए प्रयत्नशील है। वह प्रकृति में आवश्यक हेर-फेर कर सकने में समर्थ है। उसकी आध्यात्मिक शक्ति सभी भौतिक शक्तियों से अधिक है। प्रकृति के अनुकूल एवं जन-मास को सही मार्ग पर चलाने में वह अपनी शक्ति का नियोजन कर रहा है। सूर्य की प्रकाश किरणों के माध्यम से वह अपनी सूक्ष्म शक्ति द्वारा भावनाशील व्यक्तियों को अभिप्रेरित करने में संलग्न है। उसमें अद्भुत संगठन बल है, जिसके कारण उसके संरक्षण में संसार को दिशा देने के लिए एक दृढ़ संगठन-शक्ति उभर रही है। उसके लाखों अनुयायी प्रचंड एवं विवेकयुक्त विचारों द्वारा जन-मानस में लोक मंगल की भावना उत्पन्न कर रहे हैं। उसके तर्कयुक्त एवं विज्ञान सम्मत आध्यात्मिक विचारों के समक्ष नास्तिक वर्ग भी नत-मस्तक होगा। उस महामानव के जीवन में 24 अक्षर का विशेष महत्व होगा। वह 24 महाशक्तियों का अधिष्ठाता होगा। जीवन के उत्तरार्द्ध में वह अपनी शक्ति का विकेन्द्रीकरण विभिन्न केन्द्रों के माध्यम से करेगा। इस समय उस दिव्य मानव को भारत के उत्तराखण्ड में कहीं किसी पहाड़ी तीर्थ स्थान पर विश्वव्यापी परिवर्तनों के कार्यों में तल्लीन होना चाहिए। उसके मानवतावादी विचार एवं कार्यक्रमों को अपनाने से ही भावी संकटों को रोका जा सकता है वहां एक ऐसी संस्कृति का बीजारोपण हो रहा है, जो सम्प्रदाय एवं मजहब की दीवारों को तोड़ती हुई एक मानवतावादी धर्म की स्थापना करेगी।कुम हैलरमैक्सिको के महान ज्योतिर्विद् आर्नाल्ड कुम हैलर की अब तक 88 प्रतिशत भविष्यवाणियां सही उतरी हैं।श्री कुम हैलर अपने आप को ज्योतिषी कहलाने की अपेक्षा—कास्मा बायोलॉजिस्ट (ब्रह्माण्ड जीवशास्त्री) कहलाना अधिक पसन्द करते हैं। ब्रह्माण्ड जीव शास्त्र की प्रतिष्ठापना भी उन्होंने ही की है। उनकी मान्यता भारतीय दर्शन के इस सिद्धान्त से पूरी तरह मेल खाती है कि जीवन तत्व मात्र पार्थिव नहीं अपितु समूचा ब्रह्माण्ड ही जैव-द्रव्य से ओत-प्रोत है। शरीर के किसी भी अंग में पिन चुभे उसकी जानकारी अविलम्ब मस्तिष्क को होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि मस्तिष्कीय चेतना का शरीर से अविच्छिन्न सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। ठीक इसी तरह समूचे ब्रह्माण्ड में सूक्ष्म संचार सूत्र फुटबाल में भरी हवा की तरह आत्म सात रहते हैं। मनुष्य के न केवल तात्कालिक क्रिया-कलाप अपितु दूरगामी योजनायें जिस तरह मस्तिष्क के गर्भ में ताने बाने बुनती और पकती रहती हैं ठीक उसी तरह भविष्य में घटने वाली सारी घटनायें ब्रह्माण्ड के उस अविभक्त जैव द्रव्य में तरंगित होती रहती हैं। हम कल जो भी कुछ होंगे उसकी पूर्व भूमिका आज ही बना लेते हैं यही है भविष्य दर्शन का विज्ञान इसी को कहते हैं—‘‘कास्मोबायोलॉजी’’। मेरे अन्तरंग की कास्मोबायोलॉजी उन दृश्यों को फिल्म की तरह मानस पटल पर उतार देती है और मैं भविष्य बता देता हूं।इस कथन को चुनौती न भी दी जाय तो भी इस समय आणविक शस्त्रास्त्रों की चल रही भयानक घुड़दौड़ को देखकर, और महाशक्तियों के मध्य बिछी कूटनीतिक शतरंज को देखकर कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि कहीं से भी एक चिनगारी भर फूटने की देर है, बारूद का ढेर इतना विशाल है कि उससे 70 हजार मनुष्यों के बच जाने की बात तो दूर एक भी व्यक्ति जीवित न बचे तो उसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह बात तो गणित की तरह निर्विवाद और स्पष्ट समझी जानी चाहिए।इस कथन के ज्योतिष पक्ष को भी गम्भीर दृष्टि से देखने के कुछ स्पष्ट आधार हैं (1) हिटलर की सेनायें हालैंड, फ्रान्स और डेनमार्क को उदरस्थ कर चुकी थीं उस समय कोई कल्पना भी नहीं करता था कि फ्युहरर को कोई पराजित कर सकेगा। तभी 23 नवम्बर 1945 के अखबारों में छपा कि अब हिटलर की पराजय के ही नहीं उसकी मृत्यु के भी दिन एक दो माह से अधिक नहीं। और सचमुच सारे संसार ने देखा कि उनकी भविष्यवाणी अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई। उनकी कुछ भविष्य वाणियां सितम्बर 1972 की कादम्बिनी में भी छपी थीं।(2) सन् 1958 में मैक्सिको में भयंकर भूचाल आने वाला है तीन वर्ष पूर्व ही जब उनने इस बात की भविष्यवाणी की तो लोगों ने उन्हें डराने वाला दैत्य तक कहा। पर सचमुच उस वर्ष मैक्सिको में ऐसा वीभत्स भूचाल आया कि मैक्सिको वासी त्राहि-त्राहि कर उठे।(3) स्टालिन की मृत्यु, मार्टिन लूथर किंग की हत्या तथा तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के लिए उन्होंने जो परिस्थितियां बताई थीं उनकी मृत्यु ठीक वैसी ही हुई। इससे डॉ. क्रुम हैलर ख्याति के उच्च शिखर पर जा पहुंचे।(4) एक बार वे लास ऐंजिल्स की यात्रा कर रहे थे। उनसे इंटरव्यू के लिए अनेक पत्रकार उनके पास पहुंचे। उस समय उन्होंने ठंडी आह भरते हुए कहा मित्रो! मुझे न जाने क्यों परमात्मा ने अशुभ समाचार ही देने को भेजा है। जिस प्रान्त में मैं इस समय बैठा हूं कुछ ही महीनों बाद यहां के ध्वंस और लाशों के ढेर मुझे अभी से दिखाई पड़ रहे हैं। उस समय तक उसका भविष्य वक्ता स्वरूप बहुत प्रसिद्ध हो उठा था अतएव समाचार पत्रों में छपी उनकी भविष्य वाणियों पर जहां कुछ ने मखौल उड़ाया वहां अनेकों नागरिकों और सरकारी अधिकारियों ने उस तथ्य को गम्भीरता से लिया—उनके इस भविष्य कथन के कुछ ही दिन वाद लास एंजिल्स में सचमुच इतिहास का सर्वाधिक रोमांचक भूकम्प आया। जिसमें बस्तियां उजड़ गयीं। लाखों लोगों की जानें गयीं, पर उनके पूर्वाभास ने लाखों को बचा भी दिया अन्यथा स्थिति इतनी दयनीय होती कि अमेरिका के सम्भाले न सम्भलती।(5) रूस और चीन के मध्य युद्ध और तनाव की भविष्यवाणी करने के बाद उनका सर्वाधिक उपहास हुआ था, पर दो साम्यवादी देशों के मध्य युद्ध और बुरे सम्बन्ध आज सारी दुनिया देख रही है।सन् 1961 को अमेरिकी राष्ट्रपति यात्रा पर थे। सुरक्षा के लिए सैकड़ों पुलिस अधिकारी जुटे थे। पुलिस का घेरा तोड़कर क्रुम हैवर उनके पास पहुंच गये और उनके हाथ में एक परचा थमा दिया। कैनेडी ने पर्ची पढ़ी, उनकी ओर देखकर अविश्वास की मुद्रा में मुस्कराये और पर्ची फेंक दीं घटना का विवरण अखबारों में छपा। लिखा था दो वर्ष बाद 22 नवम्बर को आपकी हत्या कर दी जायगी। पीछे लोगों ने उस भविष्य कथन को सत्य पाया तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।अगले कई वर्ष में सृष्टि के महाविनाश के पूर्वाभास भी ऐसे ही हैं जिन पर लोगों को हंसी आ सकती है। मनुष्य सर्व शक्तिमान नहीं है उससे भी ऊपर समर्थ सत्ता परमात्मा की है वह स्वयं नियामक सत्ता है, विधान बदल भी सकता है किन्तु उसके लिए मानवीय प्रकृति को बदलना भी आवश्यक है। अंधाधुन्ध अपराध करने वाला सजा से बचेगा? यह मात्र दुराशा है यदि वह प्रायश्चित के लिए तैयार हो तब यह सम्भव है कि उसकी दंड प्रक्रिया सह्य और सरल बना दी जाये। महाविनाश से बचने के लिए मानवीय आस्थाओं का परिवर्तन आवश्यक है। इन दिनों हो रही स्वार्थ और भोगवादी घुड़दौड़ रोकी जाए, मनुष्य की उच्छृंखलता पर रोक लगे विलासिता का स्थान प्रकृतिस्थ जीवन ग्रहण करे। मर्यादाओं का उल्लंघन रुके तो सम्भव है इस ईश्वरीय दण्ड से कुछ विमुक्ति मिले अन्यथा सृष्टि के विनाश की सम्भावना तो चर्मचक्षुओं से ही देखी जा सकती है।आर्नल्ड क्रुम हैलर की इस समीक्षा का भविष्य क्या है लोगों ने उन से प्रश्न किया तो उन्होंने उत्तर दिया—महाविनाश अवश्यम्भावी है किन्तु मानव जाति का लोप हो जायेगा ऐसा नहीं। उन्होंने कहा हमारे पुरखों को आद्य संस्कृति को नया जन्म मिलने वाला है यह स्मरणीय है कि मैक्सिको किसी समय मय संस्कृति का घर रहा है। ‘मय सभ्यता’ वहां भारतवर्ष से गई है। महायुद्ध की विभीषिकायें ही विकसित नहीं हो रहीं पवित्रता समता करुणा उदारता न्याय नीति मैत्री और विश्व-बन्धुत्व वाली शक्तियां भी अवतरित हो चुकी हैं विश्व की तुलना में वह यद्यपि अभी शिशु जैसी और गहन अन्तराल में है—वहां श्रद्धा और विश्वास की शक्ति कार्य कर रही है तथापि वह परमाणु से भी अति समर्थ है और अन्त में इसी महाशक्ति की सांस्कृतिक पौध सारी दुनिया में वितरित होगी, रोपी जाएगी पुष्पित पल्लवित होगी और इस तरह शान्ति प्रगति और प्रसन्नता की एक नई फुलवारी दुनिया में लहलहायेगी।सन् 1972 में उन्होंने कुछ भविष्यवाणियां इस प्रकार की थीं—(1) अफगानिस्तान में दो बड़ी समस्यायें—अन्तर्क्रान्ति और सैनिक शासन।(2) पाकिस्तान में प्रजातन्त्र का सदा के लिए अन्त।(3) भारतवर्ष में सत्ता परिवर्तन भयंकर प्राकृतिक प्रकोप जो सन् 1982 तक प्रतिवर्ष और अधिक उग्र होते चले जायेंगे—यही वह देश है जिसके प्रताप से महायुद्ध की उग्रता शान्त होगी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतवर्ष विश्व का शिरोमणि राष्ट्र बनेगा।(4) कैलिफोर्निया में भयंकर भूचाल और उसका बहुत भाग पृथ्वी में समा जायेगा।(5) भारत वर्ष और रूस की अटूट मैत्री और साम्यवादी रूस का धार्मिक देश के रूप में परिवर्तन।(6) इंगलैंड में भयंकर मुद्रा संकट।(7) चीन में भयंकर गृहयुद्ध—जिससे बचने के लिए चीन द्वारा विश्व युद्ध प्रारम्भ करने का पलीता।इनमें से अनेक भविष्यवाणियों को लोग सत्य हुआ देख भी चुके हैं। श्री क्रुम हैलर एक ऐसे ज्योतिर्विद् हैं जिनकी भविष्यवाणियों की कतरनें पश्चिमी देशों में अनेक पत्रकार अपनी सम्पत्ति की तरह फाइलों में सुरक्षित रखते हैं। ‘‘हैरिएट’’ के संवाददाता—जान मिलर—जो कई बार भारतवर्ष की यात्राएं कर चुके हैं- का कथन है कि उनके पास क्रुम हैलर की एक ऐसी भविष्यवाणी है जिसको उन्होंने अपनी अन्तिम भविष्यवाणी बताया है—यह भारतवर्ष से सम्बन्धित है और इसीलिए मैंने भारतवर्ष विशेषकर उत्तराखंड हिमालय की कई बार यात्रायें की हैं। बहुत पूछने पर वे इतना ही बताते हैं कि इसका सम्बन्ध उस महाशक्ति से है जिसे क्रुम हैलर इस युग की एक बहुत बड़े चमत्कार की संज्ञा दिया करते थे और कहा करते थे धार्मिक आस्थाओं के कारण लोग राजकीय वैभव तक का परित्याग कर देते हैं यह बात बुद्ध के इतिहास में तो मिलती है, पर उसकी पुनरावृत्ति इस युग के लोग अपनी आंखों से देखेंगे। यही वह आदर्श है जो इस महाविनाश का शमन करेंगे अन्यथा आगामी विश्वयुद्ध में पूर्ण प्रलय तक की आशंका है।वर्तमान परिस्थितियों और भविष्य की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में उनका कथन है कि ‘‘इस सम्बन्ध में मेरे पास एक बहुत ही अशुभ समाचार है। जो बात मैं पूरे आत्मविश्वास से करता हूं, समझना चाहिए वह अवश्य होकर रहती है। इस समय मेरा अन्तरात्मा उत्प्रेरित है और मैं यह अशुभ समाचार देने को बाध्य हूं कि सन् 1982 की जुलाई विश्व के महाविनाश के दृश्य लिये दौड़ी चली आ रही है। उस समय दो महाशक्तियों के मध्य कुल 12 मिनट का ऐसा वीभत्स परमाणु युद्ध होगा, जिसमें छहों महाद्वीपों के कुल 70 हजार व्यक्ति जीवित बचेंगे। इस महाप्रलय की विभीषिका को देखने के लिए मैं तो जीवित नहीं रहूंगा। किन्तु संसार उसके लिए अभी से तैयार रहे।भविष्य में क्या होगा? उसकी सत्यता तो समय बतायेगा पर वस्तुतः अब जो स्थितियां हैं वे अपने आप में एक बहुत बुरी खबर है, मानवीय जीवन में व्याप्त आस्था संकट नैतिक और सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन राजनैतिक दर्प, जन संख्या की बाढ़, खाद्य संकट, मुद्रास्फीति और परमाणु अणुओं का अन्धाधुन्ध निर्माण ही इस बुरी खबर को सत्य सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। होने वाला तो इससे भी भयंकर है, तब जबकि मनुष्य अपनी जीवन दृष्टि बदलने को तैयार नहीं होगा।****समाप्त*
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