• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • आस्तिक दर्शन—तथ्यपूर्ण आधार
    • परम श्रद्धेय ईश्वरीय सत्ता
    • विराट ब्रह्माण्ड एक सूत्र में आबद्ध
    • दृश्य के अदृश्य संचालन सूत्र
    • जीवन पृथ्वी तक ही सीमित नहीं है
    • ईश्वर—एक सत्य एक जीवन दर्शन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • आस्तिक दर्शन—तथ्यपूर्ण आधार
    • परम श्रद्धेय ईश्वरीय सत्ता
    • विराट ब्रह्माण्ड एक सूत्र में आबद्ध
    • दृश्य के अदृश्य संचालन सूत्र
    • जीवन पृथ्वी तक ही सीमित नहीं है
    • ईश्वर—एक सत्य एक जीवन दर्शन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - दृश्य जगत के अदृश्य संचालन सूत्र

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


दृश्य के अदृश्य संचालन सूत्र

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last
ईश्वरीय अस्तित्व का एक बड़ा प्रमाण यह है कि इस सृष्टि में कोई भी वस्तु सर्वतन्त्र स्वतन्त्र नहीं है। प्रत्येक वस्तु और प्राणी अपने आस पास की दूरवर्ती और कहा जाये कि विश्व ब्रह्माण्ड की सभी ज्ञात अज्ञात वस्तुओं और घटनाओं से प्रभावित होते हैं। प्रत्यक्षतः भले ही कोई स्वतन्त्र, अपनी मनमानी का स्वामी मालूम पड़े पर वस्तुतः उसके क्रिया-कलापों को, उनके परिणामों को कितनी ही बातें प्रभावित करती हैं।

यह बात और है कि हम उन प्रभाव कारणों को समझ न पाते हों। हमारी स्थूल दृष्टि उन वस्तुओं की शक्ति और महत्ताएं स्वीकार करती हैं, जो आंखों से दीखती हैं या प्रत्यक्ष अनुभव में आती हैं। किन्तु गहराई से देखा जाय तो प्रतीत होगा कि दृश्य का सूत्र संचालन अदृश्य से हो रहा है। जितनी महत्वपूर्ण शक्तियां संसार में हैं, वे सभी अदृश्य हैं।

हवा यों पेड़-पौधों को हिलाने, त्वचा का स्पर्श करने जैसे सामान्य कार्य करती भर दीखती है, पर वस्तुतः उसका कार्य सृष्टि का सन्तुलन बनाये रखना है। धरती की जो स्थिति हम आज देखते हैं, उसके निर्माण में हवा का बहुत बड़ा हाथ है।

इस धरती के, और उस पर निवास करने वाले प्राणियों के अस्तित्व को—उनके उत्थान-पतन को हवा जिस तरह प्रभावित करती है, उसे देखते हुए जीवन मूरि ही कह सकते हैं। यों सभी जानते हैं कि प्राणियों का प्रधान आहार उनकी नाक द्वारा सांस के रूप में ही ग्रहण किया जाता है। जल और अन्न तो उसके बाद की आवश्यकताएं हैं। प्रकृति के अन्तराल में एक ऐसी शक्ति काम करती है, जो हवाओं की गरम अयनवृत्त और ठण्डे बर्फीले ध्रुवीय-क्षेत्र को परस्पर बदलती रहती है। एक दूसरी वायु-शक्ति ऐसी भी है, जो विषवत् रेखा पर 1000 मील प्रति घण्टे की चाल से उत्पन्न होती है और पृथ्वी को अपनी धुरी पर घूमने के लिए आवश्यक बल प्रदान करती है। जमीन को प्राणियों के योग्य बनाने में हवाओं का बड़ा हाथ है। दक्षिणी-अमेरिका के पश्चिमी किनारों को गर्मी से उत्तरी-ध्रुव की हवाएं ही बचाती हैं। नीदरलैण्ड की आर्थिक रीढ़ वायु-सम्पदा के साथ जुड़ी हुई है। वहां लगभग 100 कारखाने ऐसे हैं, जो हवा के बल पर ही चलते हैं और अनाज पीसने, लकड़ी चीरने जैसे पचासों औद्योगिक प्रयोजन पूरे करती है।

संसार भर में वर्षा का बहुत कुछ दारोमदार इन हवाओं के उतार-चढ़ाव और अनुग्रह पर ही निर्भर रहता है। प्राचीन काल में जलयानों का भाग्य हवाओं की अनुकूलता-प्रतिकूलता के साथ जुड़ा रहता था। रोमन लोगों ने हवाओं के बहाव का गहरा अध्ययन करके अपनी जहाहरानी-को व्यवस्थित किया था और किस देश के साथ कब आवागमन का समय निर्धारित करना—इस तथ्य के सहारे अपना व्यापार खूब चमकाया था। अंग्रेजों ने दक्षिण अफ्रीका को अपना उपनिवेश बनाने में सबसे बड़ी सहायता अनुकूल हवाओं से ही प्राप्त की।

गत शताब्दी में मेथ्यू फन्टेन नामक वायु-विशेषज्ञ ने संसार भर में हवाओं का औंधे-तिरछे प्रवाहों का क्रमबद्ध सर्वे किया, उससे अंग्रेजों के आस्ट्रेलिया आवागमन में जल-मार्ग की आधी कठिनाई दूर हो गई। सहारा का रेगिस्तान हवाओं की देन है। ईरान में लगभग चार महीने ऐसा अन्धड़ चलता, जिससे बालू के टीले खड़े हो जाते हैं और पानी की भारी कमी पड़ जाती है।

सन् 1609 में सर जार्ज सोमेर का जहाज धुक्कड़ हवाओं के फेर में फंसकर वरमूडा के तट पर जा टकराया, उसने उस सुन्दर भू-प्रदेश को देखा और इंग्लैण्ड को अच्छी आजीविका देने वाला उपनिवेश बना दिया। वाटर लू की लड़ाई नैपोलियन इसलिए हारा कि हवाओं ने उससे दुश्मनी निवाही और पानी बरसाकर युद्धस्थल को कीचड़ में बदल दिया। बुलगे के युद्धक्षेत्र में हिटलर को प्रारम्भिक लाभ अनुकूल हवाओं के कारण ही प्राप्त हुआ था।

प्रकृति की सूक्ष्म-सत्ता का अध्ययन करके वैज्ञानिक आश्चर्य-चकित हैं कि अदृश्य जगत में कितनी बड़ी सामर्थ्य भरी पड़ी है।

शक्ति सागर में एक मीन

मोटी आंखों से जब हम अपने चारों ओर नजर उठा कर देखते हैं तो जमीन, पेड़, खेत, आसमान, सूरज, तारे जैसी मोटी वस्तुयें ही देखकर रह जाते हैं पर जब बारीकी के साथ खोज-बीन करते हैं तब पता चलता है कि हम प्रचण्ड शक्ति से भरे-पूरे एक ऐसे समुद्र में मछली की तरह रह रहे हैं जिसके एक-एक कण को अद्भुत और आश्चर्यजनक कहा जा सकता है।

मिट्टी का एक ढेला, छदाम से भी कम कीमत का होता है। उसमें अणु परमाणुओं की एक अगणित संख्या रहती है, ऐसी दशा में मूल्य और महत्व की दृष्टि से उसकी कीमत नगण्य ही होगी। छोटे ढेले के प्रहार का परिणाम स्वल्प सा होता है, फिर हाथ से छूने और आंख से देखने तक में न आने वाले परमाणु की प्रतिक्रिया ही कितनी हो सकती है?

यह मोटी दृष्टि हुई। शक्ति के अनन्त भाण्डागार की प्रत्येक छोटी इकाई अपने आप में इतनी महत्ता संजोये बैठी है कि दांतों तले उंगली दबानी पड़ती है। जब एक कण का यह हाल है तो फिर इन अगणित इकाइयों के पुंज की सत्ता और महत्ता को किस प्रकार समझा और आंका जाय।

अति लघु से अति विशाल कितना बड़ा है। इसकी गणना तो दूर, कल्पना कर सकना भी मानवी बुद्धि से बाहर की बात है। परमाणु भी अब सबसे छोटी इकाई नहीं रही। उनके भी भेद-उपभेद हैं। वह भी एक सौर मण्डल है और इस सबसे छोटी इकाई की सूक्ष्मता के अन्तर्गत अपना एक अलग संसार भरा और वसा पड़ा है। उसकी अद्भुतता विराट् ब्रह्माण्ड की विलक्षणता से कम रहस्यमय है।

फिर विराट् कितना बड़ा है? इसकी थोड़ी कल्पना करने के लिये पहले उस दूरी का नाप लेने के फीते का स्वरूप समझना चाहिये। प्रकाश एक सैकिण्ड में एक लाख छियासी हजार मील चलता है। यह प्रकाश समस्त पृथ्वी का एक चक्कर एक सेकिण्ड के सातवें हिस्से जैसे स्वल्प समय में लगा लेता है। पृथ्वी से चन्द्रमा तक पहुंचने में डेढ़ मिनट और सूर्य तक पहुंचने में आठ मिनट लगते हैं। यह है प्रकाश की चाल, इस चाल से चलते हुये एक वर्ष में प्रकाश जितनी दूरी तक पहुंच सके वह हुआ एक प्रकाश वर्ष। खगोल भौतिकी में गणना का माप यह प्रकाश वर्ष ही है।

हमारे सबसे निकट का तारा प्रोक्सिमा सेन्टोरी चार प्रकाश वर्ष मील दूर है। ऐसे तारों में एक सूर्य भी है जिसके सौर परिवार में अपनी पृथ्वी जुड़ी हुई है। अपनी आकाश गंगा जिसमें ऐसे-ऐसे हजारों तारे हैं उसका नाम मन्दाकिनी है। मन्दाकिनी आकाश गंगा का व्यास लगभग एक लाख प्रकाश वर्ष है।

अपनी आकाश गंगा ध्रुव द्वीप की 19 आकाश गंगाओं में से एक है। पर ऐसे ध्रुव द्वीप भी विराट् में असंख्य बिखरे पड़े हैं। माउण्ट पैलोमर पर लगी हुई 200 इंच व्यास के लेंस वाली संसार की सबसे बड़ी हाले दुर्बीन से पता लगाया गया है कि विराट् में कम से कम एक अरब आकाश गंगाएं हैं।

धरती सौर मण्डल का एक नन्हा सा ग्रह—सूर्य एक तारा—ऐसे तारों की लाखों की संख्या वाली अपनी आकाश गंगा और फिर एक अरब आकाश गंगाओं से भरा-पूरा विराट् ब्रह्माण्ड। परमाणु के-उनके खण्डकों को सबसे छोटा मानें तो उसकी तुलना में यह विराट् कितना बड़ा है यह गणित की अथवा कल्पना की परिधि में कैसे समा सकेगा। विज्ञानी नीत्सवोहर कहते थे अस्तित्व के विशाल नाटक में हम ही अभिनेता हैं और हम ही दर्शक हैं। मनुष्य अपने आप में एक रहस्य है। मानवी कलेवर—शरीर और मस्तिष्क उन्हीं तत्वों से बना है जिनसे कि यह ब्रह्माण्ड। अपने आपकी खोज और ब्रह्माण्ड की खोज में असाधारण साम्य है। अणु की रचनात्मक शक्ति का अभी विकास नहीं किया गया और विनाशोन्मुख मानवी चित्त वृत्ति केवल ध्वंस सोचती है और उसी का उपक्रम खड़ा करती है। अस्तु अणु की शक्ति को अभी ध्वंसात्मक बमों की परिभाषा के अन्तर्गत ही देखा समझा जाता है। उसकी सृजनात्मक शक्ति का जब सृजनोन्मुख मनुष्य उपयोग करेगा तब पता चलेगा कि उसकी सृजन सम्भावना ध्वंस से कम नहीं वरन् अधिक ही है।

मोटी आंख से देखने पर विश्व के दृश्यमान पदार्थों का मूल्यांकन अकिंचन ही ठहरता है पर गहन स्तर पर उतरने से उसकी क्षमता असामान्य सिद्ध होती है ठीक इसी प्रकार हाड़-मांस का पुतला मनुष्य दीखता भर तुच्छ है, वस्तुतः इसकी महत्ता इतनी बड़ी है कि यह अपनी समग्र शक्ति का उपयोग कर सकने में समर्थ हो तो दूसरा परमेश्वर सिद्ध हो सकता है।

यह शक्तियां न मनुष्य के वशवर्ती हैं और न वह अपनी इच्छानुसार इनके गतिनियमों को बदल सकता है, इन्हें वशवर्ती बनाना और इच्छानुसार इनमें परिवर्तन प्रस्तुत करना तो दूर रहा मनुष्य उन्हें अभी तक समझ भी नहीं पाया है। और ये शक्तियां हैं कि अपनी निर्धारित मर्यादा नियमों के अनुसार कार्य करती रहती हैं।

प्रत्यक्ष जीवन में इनके सूक्ष्म प्रभाव को जाना समझा भी नहीं जा सकता परन्तु इनके प्रभाव तो होते हैं। यह सही है कि मनुष्य की इच्छाशक्ति और पुरुषार्थ परायणता उसे बहुत हद तक उन्नति अपनाने का अवसर प्रदान करती है पर यह सर्वांशतः सत्य नहीं है नियति की विधि व्यवस्था भी इसे बलात् अपने विशिष्ट प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त करती रहती है और मनुष्य विवश होकर उसके सामने नत मस्तक होता रहता है।

मनुष्य विवश या स्वतन्त्र

सृष्टि संतुलन के लिये प्रकृति मनुष्य को कभी प्रगति तो, कभी अवगति के मार्ग पर धकेलती है। कभी उत्पादन के अवसर प्रस्तुत करती है तो कभी-कभी विनाश की विभीषिकाएं सामने लाकर खड़ी कर देती है और मनुष्य को यह सोचने के लिये विवश करती है कि जहां वह बहुत कुछ है वह वहां प्रकृति के हाथ का नगण्य सा खिलौना भी है। उसे अपनी स्थिति पर अनावश्यक अहंकार नहीं करना चाहिये।

डा. क्लारेन्स ए. मिल्स ने अपनी खोज पूर्ण पुस्तक ‘क्लाइमट मेक्स दि मैन’ में ऐसे आंकड़े प्रस्तुत किये हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि मौसम के उतार-चढ़ाव के अनुसार अमुक बीमारियां घटती और अमुक बढ़ती हैं इसी प्रकार लोगों की प्रसन्नता-अप्रसन्नता शान्ति तथा उद्विग्नता में भी अनायास ही अन्तर आता है। जुलाई, अगस्त में जब सड़ी गर्मी पड़ती है तब अक्सर पारिवारिक कलह बढ़ते हैं। अप्रेल से अगस्त तक की अवधि में सामूहिक उपद्रवों की बाढ़ आती है। मौसम की गर्मी लोगों का पारा गरम कर देती है। मानसून आने पर इस प्रकार के फिसाद अपने आप कम हो जाते हैं।

मौसम का मनुष्य की प्रवृत्तियों पर क्या असर पड़ता है इसका विशाल अध्ययन प्रो. ई. डेक्सटर ने किया है। उन्होंने 40 हजार अपराधों की—घटनाओं की जांच-पड़ताल करके यह पाया कि जैसे-जैसे मौसम गरम होता गया वैसे-वैसे अपराध बढ़ते गये और जिस क्रम से ठण्डक आई उसी अनुपात से अपराधों की संख्या घटती चली गई। जार्ज स्टीवर्ट ने अपने ग्रन्थ ‘स्टार्म’ में यह दर्शाया है कि मौसम के उतार-चढ़ाव राज सत्ताओं को उखाड़ सकने वाले उपद्रवों की पृष्ठभूमि बना सकते हैं और ठण्डक में लोग निराश एवं ठण्डी तबियत के साथ दिन गुजार सकते हैं।

बसन्त ऋतु मनुष्यों में ही नहीं अन्य प्राणियों में भी कामोत्तेजना उत्पन्न करती है। गर्भ धारण का आधा औसत उन्हीं दो महीने में पूरा हो जाता है, जबकि शेष दस महीनों में कुल मिलाकर उतनी ही मात्रा पूरी होती है। कोई अविज्ञात शक्ति प्राणियों के मन में अकारण ही प्रणयकेलि के लिये उत्साह भर देती है और वे उस दिशा में किसी के द्वारा खींचे, धकेले जाने वाले की तरह उस प्रयोजन में प्रवृत्त हो जाते हैं।

सूर्य विशेषज्ञों का कथन है कि जिन दिनों सूर्य में लम्बे धब्बों की लाइनें बनती हैं, भयंकर विस्फोट होते हैं उन दिनों लोगों के दिमागों और परिस्थितियों में भी भयंकर उथल-पुथल होती है। अमरीकी क्रान्ति फ्रांसीसी राज क्रान्ति, रूसी क्रान्ति उन्हीं दिनों हुई जिन दिनों सूर्य में विस्फोट के चिह्न धब्बों के रूप में दिखाई पड़ रहे थे। इनका असर मौसम, फसल, वनस्पति, समुद्र तथा प्राणियों की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर असाधारण रूप से पड़ता है।

न केवल मौसम और सूर्य का प्रकाश वरन् लाल पीले हरे नीले पीले रंग भी मनुष्य की अन्तरंग स्थिति को प्रभावित करते हैं। कुछ वर्षों पूर्व तक इस दिशा में संभवतः कोई ध्यान नहीं दिया गया था। किंतु द्वितीय महायुद्ध के दौरान रंगों के सम्बन्ध में कई विचित्र बातें प्रकाश में आईं इसलिये कई देशों में ‘‘रंगों के जीवन पर प्रभाव’’ विषय पर व्यापक खोजें प्रारम्भ हुईं। विभिन्न प्रकार के रंग विभिन्न प्रकार के मनोभाव जागृत करने की चमत्कारिक क्षमता रखते हैं। विवाह शादियों और ऐसे किन्हीं धर्मोत्सवों में रही, पीली, लाल, नीली झाड़ियों से द्वार सजाते हैं तो सम्बन्धित व्यक्ति ही नहीं सभी वहां से गुजरने वाले दर्शक भी प्रसन्न हो उठते हैं यह रंगों का अज्ञात मनोवैज्ञानिक प्रभाव ही है।

जर्मनी की एक कैमरा बनाने वाली फैक्ट्री में एक प्रयोग किया गया। उसकी दीवारें, दरवाजे सब गहरे नीले रंग से रंग दिये गये। श्रमिकों पर उसका यह प्रभाव हुआ कि वे अधिक फुर्ती और परिश्रम से काम करने लगे। उत्पादन बढ़ने लगा। आय भी बढ़ने लगी। किन्तु बाद में उस रंग के ऊपर काला जैसा कोई रंग पोतकर बिगाड़ दिया गया उसका फल कुछ और ही हुआ। मजदूरों में निराशा आलस, उद्वेग की भावनायें भड़कने लगीं। उससे उत्पादन बहुत अधिक गिरा।

यह विषय इसलिये प्रस्तुत किया जा रहा है कि रंगों का सौन्दर्य और साज-सजावट से सीधा सम्बन्ध है। सौन्दर्य आत्मा का एक गुण है यदि उसकी उपयुक्त जानकारी न हो तो लाभ उठाने के स्थान पर हानि हो सकती है। घर, दरवाजे, खिड़कियां, दीवारों के बेल-बूटों, वस्त्रों का चयन इस सम्बन्ध में कौन-सा रंग कैसी मनोभूमि उत्पन्न करता है इसकी जानकारी हो जाये तो जीवन में प्रसन्नता का अभिवर्द्धन किया जा सकता है, उसे सुधारा और संवारा जा सकता है।

बुद्धिशील लोगों को गहरा लाल रंग पसन्द नहीं होता। एक अस्पताल में एक मानस चिकित्सक के पास एक प्रोफेसर आये उन्होंने बताया कि उनके मस्तिष्क में न जाने क्यों क्षोभ और उद्विग्नता बनी रहती है उन्हें प्रसन्नता नहीं रहती। चिकित्सक महोदय ने परिस्थितियों का सूक्ष्म अध्ययन किया पर कोई विशेष कारण जब समझ में न आया तो वे एक दिन उनके घर पहुंचे। घर जाकर देखा कि उनकी बैठक में खिड़कियों, दरवाजों के अधिकांश पर्दे लाल हैं। पूछने पर मालूम हुआ कि उनकी धर्मपत्नी भी अधिकांश लाल रंग की साड़ी और ब्लाउज पहनती हैं। उन्हें घर के सब फर्श पर्दे बदल कर हरे और नीले रंग के कर देने की सलाह दी गई उसी प्रकार उनकी धर्मपत्नी ने भी अपनी वेशभूषा बदल डाली उसका तात्कालिक प्रभाव परिलक्षित हुआ। प्रोफेसर की सारी उद्विग्नता और परेशानी जाती रही।

भगवती सरस्वती ज्ञान और मधुरता की देवी हैं उनकी कल्पना में रंग का विशेष महत्व है। ऋषि ने उनको—
या कुन्देन्दु तुषार हार धवला— या शुभ्र वस्त्रावृता ।।

वह श्वेत वर्ण के वस्त्र धारण किये हुये हैं। यहां श्वेत रंग ज्ञान, मधुरता, गम्भीरता एवं पवित्रता का उद्बोधक है। इसीलिये कुंआरी कन्याओं और उन महिलाओं को जिनके पतियों का निधन हो गया होता है श्वेत वस्त्र धारण कराने की भारतीय परम्परा है। श्वेत वस्त्र से दूसरों के मन में भी द्वेष दुर्भाव नहीं आते इसलिये विद्यालयों में जाने वाली कन्याओं को श्वेत अथवा हलकी एक रंग की ही साड़ी पहननी चाहिये।

नीले रंग के सम्बन्ध में यह माना जाता है कि उसे देखकर उदारता और सौन्दर्य की प्रेरणा मिलती है। माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों के चरित्र-निर्माण में नीले रंग का विशेष प्रभाव देखा गया है। इस आयु के बच्चे-बच्चियों को नीले रंग के वस्त्रों का सम्पर्क मिले तो अति लाभदायक होता है। अमेरिका में एक प्रयोग करके देखा गया कि यदि बिजली का प्रकाश उसके ट्यूब नीले कर दिये जाते हैं तो मच्छर दूर भागते हैं। नीला रंग मच्छरों को कष्टदायक होता है। वहां धूल के रंग का प्रयोग करके अन्य कीटाणुओं से रक्षा करने में सफलता मिली है।

लाल रंग आक्रामकता, हिंसा और स्फूर्ति का प्रतीक है। सांड़ को यदि लाल रंग दिखा दिया जाये तो वह तुरंत भड़क उठता है। इसी तरह केसरिया रंग वीरता और बलिदान का प्रेरक है यह दोनों ही रंग इसलिये युद्ध में प्रयुक्त होते हैं। मिलिट्री के बड़े अफसरों के कन्धे पर पी-कैंपों पर लाल पट्टे इसलिये बांधे जाते हैं। उन्हें देखकर जवानों में रोष और जोश पैदा होता है। यह रंग व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन के उपयोग का नहीं होता है। इसी कारण काले और भूरे रंग भी शक्ति के प्रतीक तो हैं किन्तु उनका आंशिक उपयोग साज-सज्जा में ही हो सकता है।

जीवित प्राणियों को प्रभावित करने में गुलाबी रंग के महत्व को बहुत पहले से ही लोग जानते रहे हैं। गुलाबी प्रकाश से पौधे अच्छी तरह उगते हैं, पक्षियों की संख्या में वृद्धि होती है, ज्वर, छोटी चेचक, जलकेन्सर जैसी बीमारियों पर भी गुलाबी रंग के प्रकाश से आशातीत लाभ होता पाया गया है। अल्माअता के प्रसिद्ध जीव-शास्त्री विक्टर इन्यूशियन ने मालेक्युलर बायोलॉजी के नये प्रयोगों के दौरान यह सिद्ध किया है कि गुलाबी रोशनी के जैविक कार्य-कलाप उसकी आत्मिक प्रकृति के साथ सम्बद्ध हैं उन्होंने अल्बर्ट जेन्ट जोजी (नोबुल पुरस्कार विजेता बायोकेमिस्ट) के जैविक ऊर्जा सिद्धान्त को विकसित करते हुये बताया कि गुलाबी रंग के प्रकाश के प्रति जीवधारियों की अत्यधिक सम्वेदनशीलता उसके अस्तित्व के लिए बहुत अनुकूल पड़ती है। हमारे देश में भी पूजा स्थल में गुलाबी रंग के वस्त्र और लघु सर्वतोभद्र चक्र आदि में लाल रंग का बहुत प्रयोग होता रहा है। स्त्रियां गुलाबी रंग महावर के रूप में पैरों में लगाती और सिन्दूर के रूप में मस्तक में धारण करती हैं उससे सौन्दर्य वृद्धि के साथ ही देखने वालों की अन्तर्भावनाओं में शक्ति और पवित्रता का विकास होता है।

इन्यूशियन ने सूर्य-किरणों के विश्लेषण के समय पाया कि जैविक क्रिया-कलापों में खर्च हुई शक्ति का 660 से 680 मिलीमाइक्रोन तक अंश मनुष्य किस प्रकार किरणों से ग्रहण कर लेता है उसे सौर वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) के नारंगी रंग के हिस्से के अध्ययन द्वारा ठीक-ठीक जाना जा सकता है। इन्यूशियन ने इन खोजों में 5 वर्ष से भी अधिक समय लगाया। एक्स-रे उपकरणों द्वारा, प्रकाश द्वारा जानवरों के शरीर में घातक रेडियेशन द्वारा बीमारियां उत्पन्न कीं और फिर गुलाबी प्रकाश से उसका इलाज कर यह पाया गया कि 25 प्रतिशत रोगग्रस्त जानवर 20 दिन में पूर्ण स्वस्थ हो गये। उनका रक्तचाप सामान्य हो गया तथा वे पूर्ण स्वस्थ हो गये। उनका कहना है कि गुलाबी रंग के प्रकाश में अत्यधिक प्रवेशनीतता (ट्रान्सपैरेन्टल) के कारण इलेक्ट्रान तेजी से विस्फुटित होते जो किसी भी अवयव की सम्वेदनशीलता की गति बढ़ा देते हैं साथ ही विषाणुओं को मार कर उन्हें बाहर निकाल देते हैं। इसमें जीव की प्रकृति भी एक अंश तक हिस्सा लेती है किन्तु रंगों के मेल-जोल का समान प्रभाव सभी पर होता है। अर्थात् बहुरंगी सजावट से प्रायः सभी लोगों को प्रसन्नता होती है। विवाह, उत्सवों में या सभी मंच पर अनेक तरह के रंगों की झंडियां में काले, भूरे रंग की झंडियां भी लगा दी जायें तो उनसे भी अप्रसन्नता नहीं होती।

हिन्दुओं में यह प्रथा बहुत पहले से ही विकसित हुई थी। अभी भी राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कई भागों में दीवारों पर रंगीन चित्र बनाने की प्रथा है उससे जान-अनजान में मानव प्रकृति प्रभावित होने का बड़ा रहस्य छिपा हुआ है। आजकल फोटोइन रगो थैरेपी में क्वान्टम इलेक्ट्रानिक्स का तेजी से विकास हो रहा है उससे इस विषय में और भी रहस्यपूर्ण जानकारी बढ़ेगी और तब सम्भवतः अधिक लोग रंगों की शक्ति का लाभ उठा सकेंगे। विद्यालयों और सार्वजनिक स्थानों में रंगीन डिजाइनें, कलाकृतियां खींचने, खिड़कियों, दरवाजों में रंगीन परदे टांगने कई रंगों और बेलबूटों से सजे सद्वाक्य लिख कर अभी भी सैकड़ों लोग इनका लाभ ले रहे हैं भविष्य में तो और भी अधिक तत्परता-पूर्वक रंगों के इस प्रभाव का लाभ लोग ले सकेंगे।

पीले रंग का प्रेम-भावनाओं से सम्बन्ध है इस बात को भारतीयों ने बहुत पहले जाना था प्रकृति के अनुरूप बासंती परिथान पहनने की परम्परा अति प्राचीन है। उपासना अनुष्ठानों में तो उसका महत्व और अधिक है वह बौद्धिक क्षमताओं को विकसित करने वाला और आरोग्यवर्धक भी माना गया है। प्रातःकाल उगते हुये पीतवर्ण सूर्य का दर्शन और ध्यान करने से बुद्धि और मेधा विकसित होती है। विवाह-शादियों और उपासना पुरश्चरणों पर पीत-वस्त्र धारण करने की भारतीय परम्परा भी इसलिये विकसित हुई कि इस रंग के प्रभाव से प्रेम और विवेक का उदय हो यह दोनों भाव मनुष्य-जीवन के कल्याण में बड़े सहायक होते हैं इसलिये पीले रंग का भी अपना विशिष्ट महत्व है। हरा रंग आनन्द और प्रसन्नता प्रदान करता है। अधिक बौद्धिक श्रम करने वाले और अस्वस्थ लोगों को यह उपलब्ध न हो तो हरे रंग का प्राकृतिक उपयोग करना चाहिये। जंगलों या पहाड़ों पर जाकर प्रकृति की हरियाली देखकर मन को बड़ी शान्ति और प्रसन्नता होती है। प्राकृतिक स्थानों के दर्शन और यात्रा का लाभ जिसे भी मिल सके अवश्य उठाना चाहिये उससे जीवन की थकावट दूर होती है पर जिसके लिये वह सुलभ न हो वह अपने घर के आस-पास हरे वृक्ष, साग-भाजी के पौधे और बेलें उगाकर भी उस आवश्यकता की पूर्ति कर सकते हैं।

हरे रंग से कार्य क्षमता भी बढ़ती है। बरसात के दिनों में किसान जितना काम अकेला कर लेता है ज्येष्ठ में उतना कई आदमी मिलकर नहीं कर पाते। एक बार एक हवाई जहाज बनाने वाले कारखाने में घास के रंग का प्रयोग किया गया। उस पर कृत्रिम रीति से सूर्य का प्रकाश डाला गया तो मजदूरों की कार्य क्षमता में व्यापक वृद्धि हुई। जीवन को प्रभावित करने वाले प्रमुख रंग यही हैं पर अन्य रंगों का महत्व भी किसी प्रकार कम नहीं है। सभी रंगों के मेल कई बार बहुत आकर्षक होते हैं। इन्द्र धनुष की सतरंगी छवि बड़ी प्रिय लगती है। धार्मिक दृष्टि से गेरुये रंग का महत्व हिन्दू एवं बौद्ध मतावलम्बी दोनों से स्वीकार किया है। यह रंग पवित्र और सात्विक जीवन के प्रति प्रेम तथा श्रद्धा-भाव जागृत करते हैं।

यह रंग सूर्य की किरणों से बने बताये जाते हैं। सूर्य के प्रकाश को ‘‘स्पेक्ट्रो मीटर’’ यन्त्र से तोड़ा जाता है तो वह सात रंगों से विभक्त हो जाता है।

मनुष्य का स्थान व मर्यादा

जीवन को प्रभावित करने वाले कतिपय कारणों का ही ऊपर की पंक्तियों में उल्लेख किया गया है। इनके अतिरिक्त और भी कई कारण हैं जो मनुष्य को प्रभावित करते हैं। मनुष्य को स्वतन्त्रता है तो इतनी भर कि वह अपने क्रिया-कलापों, विचारों और गतिविधियों से मनचाही दिशा में उन्मुख हो सके तथा उस आधार पर जीवन को प्रभावित करने वाले कारणों का भला-बुरा परिणाम प्राप्त करे।

यह नहीं सोचना चाहिये कि मनमाने, उच्छृंखल क्रिया-कलाप अपनाये तथा वह उनके दुष्परिणामों से भी मुक्त रहे। मनुष्य का इतना महत्व सृष्टि में है भी नहीं। इतने विराट् ब्रह्माण्ड में मनुष्य का ज्ञान कितना और क्या हो सकता है। यह विराट ब्रह्माण्ड कितना विशाल है और उसकी तुलना में हमारी पृथ्वी कितनी छोटी बैठती है इसका थोड़ा-सा भी अनुमान लगाने पर सिर चकराने लगता है कि किसी बड़े पहाड़ की तुलना में धूलि का कण जितना छोटा होता है उतनी ही ब्रह्माण्ड की तुलना में अपनी पृथ्वी है। उस पृथ्वी की विशालता को यदि एक मनुष्य से तुलना की जाय तो वह और भी तुच्छ रह जाता है। प्रभु की अनन्त सृष्टि में मनुष्य का कितना स्वल्प, कितना नगण्य सा स्थान है इसे यदि वह समझ सके तो जिस अहंता से वह इठलाता फिरता है उसका कोई कारण ही प्रतीत न हो।

निस्सन्देह मनुष्य महान भी है पर वह महानता भौतिक नहीं, आत्मिक है। भौतिक दृष्टि से ही वह अन्य जीव-जन्तुओं और पशु-पक्षियों से भी गया बीता है। हाथी, सिंह, गोरिल्ला जैसी सामर्थ्य उसमें नहीं है। घोड़े, हिरन जैसे बड़े जानवर ही नहीं खरगोश और कुत्ते भी दौड़ में आगे हैं। रात्रि में देखने की सामर्थ्य बिल्ली जितनी भी नहीं। पक्षियों की तरह आकाश में उड़ना और जलचरों की तरह पानी में रहना किस मनुष्य के लिये सम्भव है। सर्प और रीछ की तरह छह-छह महीने बिना खाये-पीये कौन निर्वाह कर सकता है?

प्रकृति प्रदत्त समर्थता को छोड़ दें तो भी शारीरिक, कायिक रोग और मानसिक उद्वेग से उसे जितना संतप्त व्यथित रहना पड़ता है उतना अन्य कोई प्राणी नहीं रहता। ऐसी दशा में उसकी भौतिक समर्थता का अहंकार सर्वथा मिथ्या ही कहा जायेगा। ब्रह्माण्ड में अवस्थित असंख्य ग्रह-नक्षत्रों में अपनी पृथ्वी का स्थान राई भर है। इस पृथ्वी पर किसी मनुष्य का स्थान तो समस्त शरीर की तुलना में एक रक्त कण से भी स्वल्प बैठता है। इतनी छोटी हस्ती लेकर भी वह अहंता से मदोन्मत्त होकर उद्धत आचरण करने पर उतारू हो तो उसे मूर्खता के अतिरिक्त और क्या समझा जाय।

ब्रह्माण्ड और पृथ्वी की तुलना करना, अपनी चिन्तन परिधि से—कल्पना शक्ति से बाहर की चीज है। इसलिए उस कल्पना की तुक बिठाने के लिये सूर्य को एक मध्यवर्ती आधार मानकर चलो, उस तुलना के करने में थोड़ी सहायता मिलेगी। यद्यपि ब्रह्माण्ड में करोड़ों सूर्य अपने ग्रह-उपग्रह के साथ अपना-अपना सौर मण्डल बनाकर भ्रमण करते रहते हैं और किसी महाकेन्द्र की परिक्रमा में संलग्न रहते हैं। तो भी अपने सौर मण्डल के केन्द्र सूर्य का ही ऊहापोह इतना विशाल हो जाता है कि उसकी कल्पना करने से ही मानवीय बुद्धि एक प्रकार से हताश होकर बैठ जाती है। फिर करोड़ों सूर्यों की सम्मिलित शक्ति एवं विशालता की कल्पना किस तरह की जाय? ज्वलनशील गैसों के पिण्ड—सूर्य का व्यास पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है। व्यास 865380 मील, परिधि 2700000 मील और उसका क्षेत्र 3393000 अरब वर्ग मील है। यदि वह पृथ्वी से 9 करोड़ 30 लाख मील की दूरी पर न होकर कुल 10 लाख मील दूर होता तो हमें आकाश में एक मात्र सूर्य ही सूर्य दिखाई देता।

सूर्य की शक्ति का कोई बारापार नहीं। उसकी सतह का तापक्रम 600 डिग्री सेन्टीग्रेड है तो अन्दर का अनुमानित ताप 15000000 डिग्री सेन्टीग्रेड। 12 हजार अरब टन कोयला जलाने से जितनी गर्मी पैदा हो सकती है उतनी सूर्य एक सेकेण्ड में निकाल देता है। अनुमान है कि सूर्य का प्रत्येक वर्ग इन्च क्षेत्र 60 अश्वों की शक्ति (हार्स पावर) के बराबर शक्ति उत्सर्जित करता है। उसके सम्पूर्ण 3393000000000000 वर्ग मील क्षेत्र में शक्ति का अनुमान करना हो तो इस गुणन खण्ड को हल करना चाहिए—339000000000000×1760×3×12 इतने हार्स पावर की शक्ति न होती तो यह जो इतनी विशाल पृथ्वी और विराट् सौर जगत् आंखों के सम्मुख प्रस्तुत है वह अन्धकार के गर्त में बिना किसी अस्तित्व के डूबा पड़ा होता।

इस प्रचण्ड क्षमता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि 93000000 मील लम्बी और 880 गज मोटी बर्फ की सिल्ली के ऊपर उसको केन्द्रित (फोकस) कर दिया जाये तो सारी बर्फ एक सैकिण्ड में गलकर बह निकलेगी। सूर्य के 1 इंच में जिस ऊर्जा व प्रकाश की कल्पना की गई है वह 5 लाख मोमबत्तियों के एक साथ जलाने की शक्ति के बराबर होता है। यह सारी शक्ति एक साथ पृथ्वी पर फेंक दी जाती तो यहां की मिट्टी भी जलने लगती। जलने ही नहीं लगती यह भी एक प्रकार का सूर्य पिण्ड हो जाती जबकि सामान्य स्थिति में पृथ्वी को सूर्य-शक्ति का लगभग 220 करोड़वां हिस्सा ही मिलता है। 3 अरब आबादी मनुष्यों की, 100 अरब आबादी पक्षियों की, 1000 अरब आबादी अन्य जीव-जन्तुओं की और पृथ्वी पर पाये जाने वाले विशाल वनस्पति जगत तथा ऋतु संचालन का सारा कार्य उस 220 करोड़वें हिस्से जितनी शक्ति से सम्पन्न हो रहा है। पूरी शक्ति जो सौर-मंडल के करोड़ों ग्रहों-उपग्रहों, क्षूद्र ग्रहों का नियमन करती है, प्रकाश और गर्मी देती है। अपने 19 करोड़ 98 लाख महाशंख भार को 200 मील प्रति सैकिण्ड की भयानक गति से 25 करोड़ वर्ष में पूरी होने वाली विराट् आकाश की परिक्रमा भी वह अपनी इसी शक्ति से पूरी करता है। उस सम्पूर्ण शक्ति और सक्रियता को कूता जाना सम्भव नहीं है, उसे भावनाओं में केवल मात्र उतारा जाना भर ही सम्भव है।

वह तो पृथ्वी से उसकी उतनी दूरी है जो जीव-जन्तुओं को हंसने कुदकने का अवसर दें रही है यदि यह दूरी घट जाय तो जीवन अग्नि रूप हो जाय अर्थात् जो चेतना अब दिखाई दे रही है वह सूर्य के गहरे कराल अग्नि ज्वाल में समा जाये। कदाचित किसी तेज से तेज रफ्तार वाली रेल गाड़ी से सूर्य तक जाना सम्भव हो जाय तो वहां तक पहुंचते-पहुंचते एक मनुष्य को 85-85 वर्ष के दो जीवन धारण करने पड़ जायें। इसमें मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच की निद्रा के 5 वर्ष अभी जोड़े ही नहीं गये। ध्वनि से भी तीव्र रफ्तार वाले जहाज को ही वहां पहुंचने तक 20 वर्ष लग सकते हैं और इस बीस वर्ष में तो सारी पृथ्वी का खाका ही बदल सकता है।

शक्ति की—विशालता की—कर्तृत्व की—वैभव की थोड़ी सी झांकी अपने सूर्य के सम्बन्ध में ऊपर दी है। इससे भी हजारों गुने बड़े सूर्य-करोड़ों की संख्या में अपने सौर मण्डलों सहित उस ब्रह्माण्ड में धूम रहे हैं। उन सबकी गरिमा का लेखा-जोखा कैसे लिया जाय। पर देखते हैं कि वे समस्त शक्ति केन्द्र अपने-अपने काय में नियमितता व्यवस्था और मर्यादा लेकर चल रहे हैं। कहीं न उद्धतता है न उच्छृंखलता। निर्धारित कर्तव्य कर्म को अणु से लेकर महत् तक सभी पालन कर रहे हैं। यदि ऐसा न होता तो यह इतना बड़ा ब्रह्माण्ड व्यवसाय एक क्षण भर में बिखर जाता। ग्रह-नक्षत्र आपस में टकरा जाते या शक्ति का व्यतिक्रम करके सारी ईश्वरीय व्यवस्था को नष्ट भ्रष्ट करके रख देते। मनुष्य को यह नहीं समझना चाहिये कि वह इस सृष्टि का सर्वतः समर्थ स्वतन्त्र सदस्य है और उसे कर्म करने की जो स्वतन्त्रता मिली है उसके अनुसार वह इस सृष्टि के महानियन्ता को नियामक व्यवस्था द्वारा निर्धारित दंड से भी बच जायेगा। इस विराट् ब्रह्माण्ड में पृथ्वी का ही अस्तित्व एक धूलिकण के बराबर नहीं है तो मनुष्य का स्थान कितना बड़ा होगा।

दृश्य संसार का संचालन सूत्र अदृश्य, अज्ञात और अपरिचित हाथों में है। कहना चाहिए जो सत्ता इस सृष्टि संसार का नियमन, नियंत्रण और व्यवस्थापन करती है वह मनुष्य के प्रति कितनी उदार है। अतएव यह निश्चित मानना चाहिए कि प्रकृति की नियम मर्यादाओं को, ईश्वर की विधि व्यवस्था को तोड़ कर मनुष्य कोई लाभ में नहीं रह सकता इस प्रकार तो वह अपने आपको ही नष्ट कर लेगा। प्रकृति की व्यवस्था को बदल सकना और मर्यादा को बदलना उस क्षुद्र के लिए किसी भी प्रकार संभव नहीं है। नीति और सदाचार की कर्तव्य और धर्म की मर्यादाओं का उल्लंघन करके वह अपने आतंक और अनाचार का परिचय दें सकता है पर इससे वह विश्व व्यवस्था को अपने अनुरूप बदलने में सफल नहीं हो सकता। इस उद्धत आचरण से वह अपनी मानसिक, सामाजिक और आंतरिक समस्वरता ही नष्ट करेगा। उसे समझना चाहिए कि जो नियामक शक्ति इतने बड़े ब्रह्मांड को—सूर्य को, शक्ति स्रोतों को मर्यादा में रहने और कर्तव्य पर चलने के लिए विवश करती है, वह इस क्षुद्र प्राणी के नगण्य से अस्तित्व को अपने ओछेपन पर इतराने और व्यवस्थायें बिगाड़ने की छूट देर तक कैसे दें सकती है।

अच्छा हो कि महनीयता द्वारा कष्टकारक दंड का प्रयोग किये जाने से पूर्व ही हम सचेत हो जायें और अपनी मर्यादा में रह कर ब्रह्माण्ड की एक विशिष्ट इकाई की तरह वह आचरण करें जिसे उचित एवं उपयुक्त कहा जा सके।
First 3 5 Last


Other Version of this book



दृश्य जगत के अदृश्य संचालन सूत्र
Type: TEXT
Language: HINDI
...

दृश्य जगत के अदृश्य संचालन सूत्र
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • आस्तिक दर्शन—तथ्यपूर्ण आधार
  • परम श्रद्धेय ईश्वरीय सत्ता
  • विराट ब्रह्माण्ड एक सूत्र में आबद्ध
  • दृश्य के अदृश्य संचालन सूत्र
  • जीवन पृथ्वी तक ही सीमित नहीं है
  • ईश्वर—एक सत्य एक जीवन दर्शन
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj