
ओ ईश्वर के अंश आत्म
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मुक्तक-
संसार के नश्वर सुखों का, तू भोग करेगा कितने दिन।
फिर न मिले अवसर ऐसा, यह मानुष चोला कितने दिन॥
तू अजर अमर अविनाशी है, तू देह भाव में पड़ा हुआ।
ईश्वर अंश है आत्मा, भ्रम फाँस रहेगा कितने दिन॥
ओ ईश्वर के अंश आत्म
ओ ईश्वर के अंश आत्म विश्वास जगाओ रे।
होकर राजकुमार न तुम, कंगाल कहाओ रे॥
दीन- हीन बन करके तुम क्यों साहस खोते हो।
क्यों आशक्ति, अज्ञान अभावों को ही रोते हो॥
जगा आत्म- विश्वास दीनता दूर भगाओ रे॥
आत्मबोध के बिना, सिंह शावक सियार होता।
आत्मबोध होने पर वानर सिन्धु पार होता॥
आत्मशक्ति के धनी न कायरता दिखलाओ रे॥
नेपोलियन उसी बल पर आल्पस से टकराया।
जिसके बल पर था प्रताप से अकबर घबराया॥
उसके बल पर अपनी बिगड़ी बात बनाओ रे॥
सेनापति के बिना न सेना लड़ने पाती है।
सेनापति का आत्म- समर्पण हार कहाती है॥
गिरा आत्म- बल, जीती बाजी हार न जाओ रे॥
आत्म मनुज अनगिन साधन,बल का अधिकारी है।
बिना आत्म- विश्वास मनुजता किन्तु भिखारी है॥
अरे! आत्मबल की पारसमणि तनिक छुवाओ रे॥
अडिग आत्म- विश्वास, मनुज रूप निखारेगा।
उसके बल पर मनुज धरा पर स्वर्ग उतारेगा॥
इसके बल पर जो भी चाहो कर दिखलाओ रे॥
संसार के नश्वर सुखों का, तू भोग करेगा कितने दिन।
फिर न मिले अवसर ऐसा, यह मानुष चोला कितने दिन॥
तू अजर अमर अविनाशी है, तू देह भाव में पड़ा हुआ।
ईश्वर अंश है आत्मा, भ्रम फाँस रहेगा कितने दिन॥
ओ ईश्वर के अंश आत्म
ओ ईश्वर के अंश आत्म विश्वास जगाओ रे।
होकर राजकुमार न तुम, कंगाल कहाओ रे॥
दीन- हीन बन करके तुम क्यों साहस खोते हो।
क्यों आशक्ति, अज्ञान अभावों को ही रोते हो॥
जगा आत्म- विश्वास दीनता दूर भगाओ रे॥
आत्मबोध के बिना, सिंह शावक सियार होता।
आत्मबोध होने पर वानर सिन्धु पार होता॥
आत्मशक्ति के धनी न कायरता दिखलाओ रे॥
नेपोलियन उसी बल पर आल्पस से टकराया।
जिसके बल पर था प्रताप से अकबर घबराया॥
उसके बल पर अपनी बिगड़ी बात बनाओ रे॥
सेनापति के बिना न सेना लड़ने पाती है।
सेनापति का आत्म- समर्पण हार कहाती है॥
गिरा आत्म- बल, जीती बाजी हार न जाओ रे॥
आत्म मनुज अनगिन साधन,बल का अधिकारी है।
बिना आत्म- विश्वास मनुजता किन्तु भिखारी है॥
अरे! आत्मबल की पारसमणि तनिक छुवाओ रे॥
अडिग आत्म- विश्वास, मनुज रूप निखारेगा।
उसके बल पर मनुज धरा पर स्वर्ग उतारेगा॥
इसके बल पर जो भी चाहो कर दिखलाओ रे॥