
इन्सान कहाने वालों क्यों
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इन्सान कहाने वालों क्यों
इन्सान कहाने वालों क्यों, शैतान से रिश्ता जोड़ लिया।
विज्ञान बढ़ाया ठीक किया, ईमान भला क्यों छोड़ दिया॥
ऊँचे पद यश धन के खातिर, सब दांव लगाते जीवन भर।
भूले मानवता के रस्ते, सब स्वार्थ साधते जी भरकर॥
नेकी भूली तो बढ़ी- बढ़ी, हालात हुए बद से बदतर।
सब मिला मगर ना मिली शान्ति, जीवन ढोते हैं रो- रोकर॥
मन में नेकी की फसल उगे, वह हुनर अरे क्यों छोड़ दिया॥
मंदिर,मस्जिद हर जगह बने, पूजा सिज़दा सब करते हैं।
कहलाते हैं बन्दे उसके, लेकिन मनमानी करते हैं॥
बातों से भले सभी बनते हैं, कर्मों में नहीं उतरते हैं।
उससे ही राह माँगते हैं, लेकिन चलने से डरते हैं॥
जिसके बन्दे कहलाते हैं, क्यों मार्ग उसी का छोड़ दिया॥
क्यों समझदार इन्सान अरे, कुविचार मनों में भरता है।
कुविचार हजारों दुःख रचते, उनमें नर खपता रहता है॥
आँखों वाला होकर भी क्यों अंधों सी हरकत करता है।
कर अहित दूसरों का देखो, निजहित की आशा करता है॥
सबने छल करना सीख लिया, क्यों राह दिखाना छोड़ दिया॥
परिवर्तन का युग आया है, अपना दुर्भाग्य मिटाने रे॥
युगदेव बुलाता हे सुन लो, सोया सौभाग्य जगालो रे॥
दाता देने को आतुर है, अपनी झोली फैला लो रे।
यदि उसके ढंग से खर्च करो तो, चाहे जितना पालो रे॥
हो गये धन्य उनके जीवन, जिनने यह रिश्ता जोड़ लिया॥
इन्सान कहाने वालों क्यों, शैतान से रिश्ता जोड़ लिया।
विज्ञान बढ़ाया ठीक किया, ईमान भला क्यों छोड़ दिया॥
ऊँचे पद यश धन के खातिर, सब दांव लगाते जीवन भर।
भूले मानवता के रस्ते, सब स्वार्थ साधते जी भरकर॥
नेकी भूली तो बढ़ी- बढ़ी, हालात हुए बद से बदतर।
सब मिला मगर ना मिली शान्ति, जीवन ढोते हैं रो- रोकर॥
मन में नेकी की फसल उगे, वह हुनर अरे क्यों छोड़ दिया॥
मंदिर,मस्जिद हर जगह बने, पूजा सिज़दा सब करते हैं।
कहलाते हैं बन्दे उसके, लेकिन मनमानी करते हैं॥
बातों से भले सभी बनते हैं, कर्मों में नहीं उतरते हैं।
उससे ही राह माँगते हैं, लेकिन चलने से डरते हैं॥
जिसके बन्दे कहलाते हैं, क्यों मार्ग उसी का छोड़ दिया॥
क्यों समझदार इन्सान अरे, कुविचार मनों में भरता है।
कुविचार हजारों दुःख रचते, उनमें नर खपता रहता है॥
आँखों वाला होकर भी क्यों अंधों सी हरकत करता है।
कर अहित दूसरों का देखो, निजहित की आशा करता है॥
सबने छल करना सीख लिया, क्यों राह दिखाना छोड़ दिया॥
परिवर्तन का युग आया है, अपना दुर्भाग्य मिटाने रे॥
युगदेव बुलाता हे सुन लो, सोया सौभाग्य जगालो रे॥
दाता देने को आतुर है, अपनी झोली फैला लो रे।
यदि उसके ढंग से खर्च करो तो, चाहे जितना पालो रे॥
हो गये धन्य उनके जीवन, जिनने यह रिश्ता जोड़ लिया॥