
ईश के सन्तान सोते न रहो
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ईश के सन्तान सोते न रहो
ईश के सन्तान सोते न रहो, समय यह दुबारा कहाँ आये।
ओऽऽऽ युग के सृजेता गुरु, युग वानरों को जगाओ॥
गुरु की गरिमा को पहचानो, भ्रम के बन्धन तोड़ो।
अगुंलिमाल, अम्बपाली, बन बुद्ध से नाता जोड़ो॥
शिवा समर्थ से जागे, नरेन्द्र गुरु से जागे।
अनाचार को मिटाने, परशुराम आते आगे॥
ओऽऽऽ वानरों से सेतु बाधें, ग्वालों से गोवर्धन उठवाऐ॥
हरने को अज्ञान हमारी, ज्ञान की दीप जलाई।
प्रज्ञायुग अवतरण कराने, नई योजना बनाई॥
लिया ताप का सहारा, युग की बदलेंगे धारा।
लाखों कष्ट जो उठा के, मैले हीरों को निखारा॥
सबके लिए वो तपे ओऽऽऽ भटके को राह दिखाऐ॥
महानाश के लिए मनुज नित, लगे हैं ब्यूह रचाने।
रावण, कंस और कौरव दल, चले हैं ध्वजा फहराने॥
राम, हनुमान आओ कृष्ण, अर्जुन कहाँ हो।
महाकाल ने पुकारा दौड़े, आओ तुम कहाँ हो॥
ओ संस्कृति की सीता रहे ओऽऽऽ धर्म की ध्वजा फहराऐ॥
ईश के सन्तान सोते न रहो, समय यह दुबारा कहाँ आये।
ओऽऽऽ युग के सृजेता गुरु, युग वानरों को जगाओ॥
गुरु की गरिमा को पहचानो, भ्रम के बन्धन तोड़ो।
अगुंलिमाल, अम्बपाली, बन बुद्ध से नाता जोड़ो॥
शिवा समर्थ से जागे, नरेन्द्र गुरु से जागे।
अनाचार को मिटाने, परशुराम आते आगे॥
ओऽऽऽ वानरों से सेतु बाधें, ग्वालों से गोवर्धन उठवाऐ॥
हरने को अज्ञान हमारी, ज्ञान की दीप जलाई।
प्रज्ञायुग अवतरण कराने, नई योजना बनाई॥
लिया ताप का सहारा, युग की बदलेंगे धारा।
लाखों कष्ट जो उठा के, मैले हीरों को निखारा॥
सबके लिए वो तपे ओऽऽऽ भटके को राह दिखाऐ॥
महानाश के लिए मनुज नित, लगे हैं ब्यूह रचाने।
रावण, कंस और कौरव दल, चले हैं ध्वजा फहराने॥
राम, हनुमान आओ कृष्ण, अर्जुन कहाँ हो।
महाकाल ने पुकारा दौड़े, आओ तुम कहाँ हो॥
ओ संस्कृति की सीता रहे ओऽऽऽ धर्म की ध्वजा फहराऐ॥