
लिया पाथेय भी पूरा
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लिया पाथेय भी पूरा कि, आगे ही लगा बढ़ने।
चला बिन साधना के वीर, तू जीवन समर लड़ने॥
कहीं आकर निराशा घेर ले, ऐसा न हो साथी।
अतः ले दीप आशा का, जला विश्वास की बाती॥
डिगे आस्था न तेरी इसलिए, निष्ठा जरूरी है।
पराजय और जय के बीच में, ज्यादा न दूरी है॥
न हो ऐसा सुमन उत्साह के, असमय लगें झड़ने॥
कहीं मग में भ्रमायेंगे, विविध रस रूप आकर्षण।
करूँ हर वस्तु को करगत, कहेगा लालसायुत मन॥
जरूरत है वहाँ संयम, सुबुद्धि, विवेक की हर दम।
बढ़ा इनको अतः और वासना के, बोझ कर ले कम।
न काँटे लालसा के तीव्र, पैंरों में लगें गड़ने॥
लगन का दीप बुझ न जाये, स्वारथ की बयारों से।
अतः कर ओट जीवन ज्योति, जिससे पथ नया पायें॥
न टूटे लोक मंगल की, मधुरता मूर्ति मानस में।
मनोबल इसलिए दृढ़कर, निभा परमार्थ की रस्में॥
बढ़ा ले आत्मबल अपना, लगे यह मुक्ति गिरि चढ़ने॥
मुक्तक-
जहाजों को डूबा दे जो, उसे तूफान कहते हैं।
जो तूफानों से टकराये, उसे इन्सान कहते हैं॥
चला बिन साधना के वीर, तू जीवन समर लड़ने॥
कहीं आकर निराशा घेर ले, ऐसा न हो साथी।
अतः ले दीप आशा का, जला विश्वास की बाती॥
डिगे आस्था न तेरी इसलिए, निष्ठा जरूरी है।
पराजय और जय के बीच में, ज्यादा न दूरी है॥
न हो ऐसा सुमन उत्साह के, असमय लगें झड़ने॥
कहीं मग में भ्रमायेंगे, विविध रस रूप आकर्षण।
करूँ हर वस्तु को करगत, कहेगा लालसायुत मन॥
जरूरत है वहाँ संयम, सुबुद्धि, विवेक की हर दम।
बढ़ा इनको अतः और वासना के, बोझ कर ले कम।
न काँटे लालसा के तीव्र, पैंरों में लगें गड़ने॥
लगन का दीप बुझ न जाये, स्वारथ की बयारों से।
अतः कर ओट जीवन ज्योति, जिससे पथ नया पायें॥
न टूटे लोक मंगल की, मधुरता मूर्ति मानस में।
मनोबल इसलिए दृढ़कर, निभा परमार्थ की रस्में॥
बढ़ा ले आत्मबल अपना, लगे यह मुक्ति गिरि चढ़ने॥
मुक्तक-
जहाजों को डूबा दे जो, उसे तूफान कहते हैं।
जो तूफानों से टकराये, उसे इन्सान कहते हैं॥