
रामायण पर्याप्त न पढ़ना
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रामायण पर्याप्त न पढ़ना, उस साँचे में ढलना होगा।
चलें राम के पद्चिन्हों पर, अब इतिहास बदलना होगा॥
रूप अनेकों बना ताड़का, ऋषि- मुनियों को सता रही हैं।
जाने कितनी सूर्पनखाएँ, अपना नाटक दिखा रही हैं॥
कई मन्थरायें कुबुद्धि से, घर का नाश किया करती हैं।
भ्रमित हुई कितनी कैकेयी, पति के प्राण लिया करती हैं॥
हमें कहीं पथ- भ्रष्ट न कर दे, इनसे प्रथम निपटना होगा॥
जाने कितनी सीताओं का, अब भी यहाँ हरण होता है।
कितने परहित रत गिद्धों का, यूँ ही यहाँ मरण होता है॥
जाने कितने कालनेमि, सुन्दर बाने में छिपे हुए हैं॥
पर नारी को छलने कितने, रावण योगी बने हुए हैं॥
जो समाज के शोषक उनको, कर संकल्प कुचलना होगा॥
कितने बालि भाइयों के हक, प्रतिदिन ही छीना करते हैं।
कितने ही रावण भाई को, लातों से पीटा करते हैं॥
विजयादशमी पर भारत में, हम नाटक खेला करते हैं।
सचमुच के रावण जिन्दा हैं, कागज के रावण जलते हैं॥
ऋषियों का आदर्श ग्रहण कर, अब हम सबको चलना होगा॥
चलें राम के पद्चिन्हों पर, अब इतिहास बदलना होगा॥
रूप अनेकों बना ताड़का, ऋषि- मुनियों को सता रही हैं।
जाने कितनी सूर्पनखाएँ, अपना नाटक दिखा रही हैं॥
कई मन्थरायें कुबुद्धि से, घर का नाश किया करती हैं।
भ्रमित हुई कितनी कैकेयी, पति के प्राण लिया करती हैं॥
हमें कहीं पथ- भ्रष्ट न कर दे, इनसे प्रथम निपटना होगा॥
जाने कितनी सीताओं का, अब भी यहाँ हरण होता है।
कितने परहित रत गिद्धों का, यूँ ही यहाँ मरण होता है॥
जाने कितने कालनेमि, सुन्दर बाने में छिपे हुए हैं॥
पर नारी को छलने कितने, रावण योगी बने हुए हैं॥
जो समाज के शोषक उनको, कर संकल्प कुचलना होगा॥
कितने बालि भाइयों के हक, प्रतिदिन ही छीना करते हैं।
कितने ही रावण भाई को, लातों से पीटा करते हैं॥
विजयादशमी पर भारत में, हम नाटक खेला करते हैं।
सचमुच के रावण जिन्दा हैं, कागज के रावण जलते हैं॥
ऋषियों का आदर्श ग्रहण कर, अब हम सबको चलना होगा॥