
राष्ट्र के जागरण का समय
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राष्ट्र के जागरण का समय आ गया।
अब युवाओं सृजन का समय आ गया॥
अब न बिखरे रहें, आत्मबल के धनी।
आज बनना तुम्हें, विश्व में अग्रणी॥
सुप्त देवत्व को है, जगाना तुम्हें।
है इसी भूमि पर, स्वर्ग लाना तुम्हें॥
स्वर्ग के अवतरण का समय आ गया॥
डगमगाये न हम, डगमगाने न दें।
पाँव पीछे किसी को, हटाने न दें॥
जो पिछड़ने लगें हम, उन्हें थाम लें।
कंटकों में बहुत, धैर्य से काम लें॥
चाल के सन्तुलन का, समय आ गया॥
धार को जिन्दगी की, जरा मोड़ दें।
स्वार्थ- संकीर्णता, क्षुद्रता छोड़ दें॥
अब कहीं काम इनसे, न चलना यहाँ।
है जरूरी स्वयं को, बदलना यहाँ॥
दिव्यता के वरण का समय आ गया॥
धर्म- भाषाजनित, भिन्नता भूलकर।
आज हो राष्ट्र का, संगठित एक स्वर॥
एक हो जायें सब, भावना से भरे।
स्नेह- संवेदना, प्रेरणा से भरे॥
श्रेष्ठ के संगठन का, समय आ गया॥
मुक्तक --
यह समय है आत्मबल के जागरण का।
और मिल जुलकर नये युग के सृजन का॥
स्वार्थ से उबरें, उबारें चिन्तकों को।
जवानों! यह समय है संगठन का॥
अब युवाओं सृजन का समय आ गया॥
अब न बिखरे रहें, आत्मबल के धनी।
आज बनना तुम्हें, विश्व में अग्रणी॥
सुप्त देवत्व को है, जगाना तुम्हें।
है इसी भूमि पर, स्वर्ग लाना तुम्हें॥
स्वर्ग के अवतरण का समय आ गया॥
डगमगाये न हम, डगमगाने न दें।
पाँव पीछे किसी को, हटाने न दें॥
जो पिछड़ने लगें हम, उन्हें थाम लें।
कंटकों में बहुत, धैर्य से काम लें॥
चाल के सन्तुलन का, समय आ गया॥
धार को जिन्दगी की, जरा मोड़ दें।
स्वार्थ- संकीर्णता, क्षुद्रता छोड़ दें॥
अब कहीं काम इनसे, न चलना यहाँ।
है जरूरी स्वयं को, बदलना यहाँ॥
दिव्यता के वरण का समय आ गया॥
धर्म- भाषाजनित, भिन्नता भूलकर।
आज हो राष्ट्र का, संगठित एक स्वर॥
एक हो जायें सब, भावना से भरे।
स्नेह- संवेदना, प्रेरणा से भरे॥
श्रेष्ठ के संगठन का, समय आ गया॥
मुक्तक --
यह समय है आत्मबल के जागरण का।
और मिल जुलकर नये युग के सृजन का॥
स्वार्थ से उबरें, उबारें चिन्तकों को।
जवानों! यह समय है संगठन का॥