
जन्म लिया फिर भागीरथ
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जन्म लिया फिर भागीरथ ने ज्ञान गंग सरसाने।
देवतत्व सब आज जुटे हैं, ज्योति अखण्ड जलाने॥
तेज दिया खुद सविता ने, तप विश्वमित्र से ऋषि ने। गायत्री ने प्राण पिलाया, शीतलता दी शशि ने॥
धर्म हेतु वीरों की बलि- सा, प्रखर हौसला दिल में।
मन में इतना स्नेह कि, क्या चिकनाहट होगी तिल में॥
यह आया है व्यथित धरा की, अन्तर पीर मिटाने॥
हरिश्चन्द्र- सा सत्य कर्ण- सी, है उदारता मन में। जनहित में लगने दधीचि की, लगी हड्डियाँ तन में॥
एक बना था चन्द्रगुप्त तब, इसने लाख बनाये।
आज करोड़ों व्यक्ति स्वार्थ तज, जन सेवा हित आये॥
वे अपने हो गये आज तक, थे जो जन- अनजाने॥
लिखा व्यास बन युग साहित्य, जिसे यह विश्व पढ़ेगा। पढ़कर बदलेंगे विचार, जिससे यह युग बदलेगा॥
यह कबीर की साखी, इसमें गीता जैसा बल है।
परमहंस ने मानवता को, दिया नया सम्बल है॥
रचा नव्य प्रज्ञा पुराण, नवजीवन ज्योति जगाने॥
नवयुग के इस महायज्ञ में, बन शाकल्य जला है। और हमें जीवन जीने की, दी अनमोल कला है॥
सारे ऋषियों की साधों को, नूतन प्राण मिला है।
शैल शृंखलाओं में चिन्मय, ब्राह्मी कमल खिला है॥
स्वर मुरली के बाण राम के, आज रहे न पुराने॥
मुक्तक-
हे वेदमूर्ति हे तपोनिष्ठ, हे युगदृष्टा हे युग त्राता। गूँजेगी सदियों तक तेरे,जीवन की प्रज्ञामय गाथा॥
श्रीराम तुम्हारे चरणों में, शत्- शत् वन्दन, शत्- शत् वन्दन।
हो गया धन्य यह धरा धाम, पाकर पावन ये वरद चरण॥
देवतत्व सब आज जुटे हैं, ज्योति अखण्ड जलाने॥
तेज दिया खुद सविता ने, तप विश्वमित्र से ऋषि ने। गायत्री ने प्राण पिलाया, शीतलता दी शशि ने॥
धर्म हेतु वीरों की बलि- सा, प्रखर हौसला दिल में।
मन में इतना स्नेह कि, क्या चिकनाहट होगी तिल में॥
यह आया है व्यथित धरा की, अन्तर पीर मिटाने॥
हरिश्चन्द्र- सा सत्य कर्ण- सी, है उदारता मन में। जनहित में लगने दधीचि की, लगी हड्डियाँ तन में॥
एक बना था चन्द्रगुप्त तब, इसने लाख बनाये।
आज करोड़ों व्यक्ति स्वार्थ तज, जन सेवा हित आये॥
वे अपने हो गये आज तक, थे जो जन- अनजाने॥
लिखा व्यास बन युग साहित्य, जिसे यह विश्व पढ़ेगा। पढ़कर बदलेंगे विचार, जिससे यह युग बदलेगा॥
यह कबीर की साखी, इसमें गीता जैसा बल है।
परमहंस ने मानवता को, दिया नया सम्बल है॥
रचा नव्य प्रज्ञा पुराण, नवजीवन ज्योति जगाने॥
नवयुग के इस महायज्ञ में, बन शाकल्य जला है। और हमें जीवन जीने की, दी अनमोल कला है॥
सारे ऋषियों की साधों को, नूतन प्राण मिला है।
शैल शृंखलाओं में चिन्मय, ब्राह्मी कमल खिला है॥
स्वर मुरली के बाण राम के, आज रहे न पुराने॥
मुक्तक-
हे वेदमूर्ति हे तपोनिष्ठ, हे युगदृष्टा हे युग त्राता। गूँजेगी सदियों तक तेरे,जीवन की प्रज्ञामय गाथा॥
श्रीराम तुम्हारे चरणों में, शत्- शत् वन्दन, शत्- शत् वन्दन।
हो गया धन्य यह धरा धाम, पाकर पावन ये वरद चरण॥