
आज आपके लिए दिलों में
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आज आपके लिए दिलों में
आज आपके लिए दिलों में, उमड़ रहा अनुराग। फिर से, जाग रे कबीरा जाग, जाग रे कबीरा जाग॥
यह दुनियाँ तो आनी- जानी, गहरी नदिया नाव पुरानी। बहुत सुनाई कथा कहानी, मगर किसी ने बात न मानी।
सब अपनी सफेद चादर में, लगा रहे हैं दाग॥
छापा तिलक लगाने वाले, पोथी पाठ पढ़ाने वाले। जग को ज्ञान सुनाने वाले, तन के उजले मन के काले।
हंस बने बैठे ऊपर से, भीतर विषधर नाग॥
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन पारसी बुद्ध बहाई। आपस में सब भाई- भाई, लेकिन इनको समझ न आई।
खेल रहे हैं एक- दूसरे, से सब खूनी फाग॥
ऊँचे कुल में जन्म लिया पर, करनी नीच किया जीवन भर। सोने कलश वारुणी भरकर, कौन सराहे वह नर पामर।
उससे तो वह हरिजन सुन्दर, दिये दोष सब त्याग॥
गुरु परमेश्वर गुरु ही प्यारे, गुरु ही पार लगावन हारे। गुरु बिन कौन जगत् को तारे, ज्ञानरूप गुरुदेव हमारे।
सद्गुरु बिना नहीं हो सकती, युग की पूरी माँग॥
मुक्तक-
तुमने आँखिन देखी मानी, ज्यों की त्यों चादर लौटायी।
ढाई अक्षर पढ़कर पंडित, बनने की प्रतिभा दिखलाई॥
मोह निशा में सोये हैं जो, उनको तुम झकझोर जगा दो।
प्यार जगाकर सबके मन में, सबको जीवन नीति सिखा दो॥
आज आपके लिए दिलों में, उमड़ रहा अनुराग। फिर से, जाग रे कबीरा जाग, जाग रे कबीरा जाग॥
यह दुनियाँ तो आनी- जानी, गहरी नदिया नाव पुरानी। बहुत सुनाई कथा कहानी, मगर किसी ने बात न मानी।
सब अपनी सफेद चादर में, लगा रहे हैं दाग॥
छापा तिलक लगाने वाले, पोथी पाठ पढ़ाने वाले। जग को ज्ञान सुनाने वाले, तन के उजले मन के काले।
हंस बने बैठे ऊपर से, भीतर विषधर नाग॥
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन पारसी बुद्ध बहाई। आपस में सब भाई- भाई, लेकिन इनको समझ न आई।
खेल रहे हैं एक- दूसरे, से सब खूनी फाग॥
ऊँचे कुल में जन्म लिया पर, करनी नीच किया जीवन भर। सोने कलश वारुणी भरकर, कौन सराहे वह नर पामर।
उससे तो वह हरिजन सुन्दर, दिये दोष सब त्याग॥
गुरु परमेश्वर गुरु ही प्यारे, गुरु ही पार लगावन हारे। गुरु बिन कौन जगत् को तारे, ज्ञानरूप गुरुदेव हमारे।
सद्गुरु बिना नहीं हो सकती, युग की पूरी माँग॥
मुक्तक-
तुमने आँखिन देखी मानी, ज्यों की त्यों चादर लौटायी।
ढाई अक्षर पढ़कर पंडित, बनने की प्रतिभा दिखलाई॥
मोह निशा में सोये हैं जो, उनको तुम झकझोर जगा दो।
प्यार जगाकर सबके मन में, सबको जीवन नीति सिखा दो॥