
अवतरित हुई माँ गायत्री
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अवतरित हुई माँ गायत्री
अवतरित हुई माँ गायत्री, युग शक्ति बनी निश्चय जानो।
आ गया समय युग बदलेगा, इस काल शक्ति को पहचानो॥
जब- जब होता है धर्म नष्ट, बदली अधर्म की छाती है।
जब अनाचार बढ़ जाता है, यह मानवता दुःख पाती है।
तब कोई राम, कृष्ण,गौतम, गाँधी, इस भू- पर आते हैं।
पृथ्वी को देते अभय और, उसका संताप मिटाते हैं।
वह शपथ पुनः पूरी होगी, चिर सत्य यही है सच मानो॥
इस समय हमें भी चुप न बैठना, और सामने आना है।
अपनी- अपनी लाठी का बल दे, गोवर्धन उठवाना है।
बनकर वानर दे साथ राम का, पुनः सेतु बँधवाने में।
प्रज्ञावतार का यश फैले, घर- घर में और जमाने में।
मन की संकल्प शक्ति मानव को, क्या से क्या कर देती है।
निष्क्रिय शरीर में गति मन में, नव चेतनता भर देती है।
व्रत लो युग के आवाहन पर, तत्काल दौड़ते जायेंगे।
युग धर्म निभाकर नवयुग के, अभिनव शिल्पी कहलायेंगे।
तुम महामनस्वी हो सब कुछ, कर सकते हो मनु संतानों॥
मुक्तक
दुष्कर्मों की आँधी छाई, विपरीत धर्म आचरण हुआ।
युग- युग की रक्षा करने वाली, युगशक्ति का अवतरण हुआ॥
अवतरित हुई माँ गायत्री, युग शक्ति बनी निश्चय जानो।
आ गया समय युग बदलेगा, इस काल शक्ति को पहचानो॥
जब- जब होता है धर्म नष्ट, बदली अधर्म की छाती है।
जब अनाचार बढ़ जाता है, यह मानवता दुःख पाती है।
तब कोई राम, कृष्ण,गौतम, गाँधी, इस भू- पर आते हैं।
पृथ्वी को देते अभय और, उसका संताप मिटाते हैं।
वह शपथ पुनः पूरी होगी, चिर सत्य यही है सच मानो॥
इस समय हमें भी चुप न बैठना, और सामने आना है।
अपनी- अपनी लाठी का बल दे, गोवर्धन उठवाना है।
बनकर वानर दे साथ राम का, पुनः सेतु बँधवाने में।
प्रज्ञावतार का यश फैले, घर- घर में और जमाने में।
मन की संकल्प शक्ति मानव को, क्या से क्या कर देती है।
निष्क्रिय शरीर में गति मन में, नव चेतनता भर देती है।
व्रत लो युग के आवाहन पर, तत्काल दौड़ते जायेंगे।
युग धर्म निभाकर नवयुग के, अभिनव शिल्पी कहलायेंगे।
तुम महामनस्वी हो सब कुछ, कर सकते हो मनु संतानों॥
मुक्तक
दुष्कर्मों की आँधी छाई, विपरीत धर्म आचरण हुआ।
युग- युग की रक्षा करने वाली, युगशक्ति का अवतरण हुआ॥