
इस विवाह में वर वालों ने
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इस विवाह में वर वालों ने
इस विवाह में वर वालों ने, जो आदर्श निभाया है।
मानवता का मान बढ़ाकर, जीवन धन्य बनाया है॥
जिसे मिली सद्बुद्धि, पड़ा वह बिल्कुल नहीं दिखावे में।
व्यर्थ प्रदर्शन छोड़, न उलझा नेग- दहेज चढ़ावे में॥
जिसने धन का लोभ छोड़कर, केवल गुण पर ध्यान दिया।
कन्या वालों को भी उसने, अपनों- सा सम्मान दिया॥
याद रखें वह पाठ, हमें जो गुरुवर ने सिखलाया है॥
भाग्यवान, जिसने बेटे की, कभी न बोली लगवाई।
पुत्र- ब्याह से घर भरने की, बात नहीं मन में आई॥
धन भी है अनमोल उसे तो, अपनेपन का कोष मिला।
रत्नखान- सी बेटी पायी, और आत्म संतोष मिला॥
धन्य वही, जिसने जीवन में, कुछ साहस दिखलाया है॥
ब्याह ऋचाओं से अभिमंत्रित, स्नेह, मिलन की बेला है।
बुद्धिहीन है जो ऐसे में, दम्भ- लोभ से खेला है॥
वृक्ष- वल्लरी के मिलने का, यही सुपावन अवसर है।
कटुता वे फैलाते जिनको, जरा न ईश्वर का डर है॥
उस पथ पर अनगिन चलेंगे, जो तुमने अपनाया है॥
मुक्तक-
है विवाह संस्कार अरे व्यापार नहीं है,
मिलन पर्व है, सौदे का बाजार नहीं है।
पुरुषार्थी पुत्रों के पिता बधाई तुमको,
क्योंकि तुम्हें दानव दहेज स्वीकार नहीं है॥
इस विवाह में वर वालों ने, जो आदर्श निभाया है।
मानवता का मान बढ़ाकर, जीवन धन्य बनाया है॥
जिसे मिली सद्बुद्धि, पड़ा वह बिल्कुल नहीं दिखावे में।
व्यर्थ प्रदर्शन छोड़, न उलझा नेग- दहेज चढ़ावे में॥
जिसने धन का लोभ छोड़कर, केवल गुण पर ध्यान दिया।
कन्या वालों को भी उसने, अपनों- सा सम्मान दिया॥
याद रखें वह पाठ, हमें जो गुरुवर ने सिखलाया है॥
भाग्यवान, जिसने बेटे की, कभी न बोली लगवाई।
पुत्र- ब्याह से घर भरने की, बात नहीं मन में आई॥
धन भी है अनमोल उसे तो, अपनेपन का कोष मिला।
रत्नखान- सी बेटी पायी, और आत्म संतोष मिला॥
धन्य वही, जिसने जीवन में, कुछ साहस दिखलाया है॥
ब्याह ऋचाओं से अभिमंत्रित, स्नेह, मिलन की बेला है।
बुद्धिहीन है जो ऐसे में, दम्भ- लोभ से खेला है॥
वृक्ष- वल्लरी के मिलने का, यही सुपावन अवसर है।
कटुता वे फैलाते जिनको, जरा न ईश्वर का डर है॥
उस पथ पर अनगिन चलेंगे, जो तुमने अपनाया है॥
मुक्तक-
है विवाह संस्कार अरे व्यापार नहीं है,
मिलन पर्व है, सौदे का बाजार नहीं है।
पुरुषार्थी पुत्रों के पिता बधाई तुमको,
क्योंकि तुम्हें दानव दहेज स्वीकार नहीं है॥