
उनके पद्चिन्हों पर चलकर
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उनके पद्चिन्हों पर चलकर
उनके पद्- चिह्नों पर चलकर, यश- गौरव हम पायें।
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
मातृभूमि के लिये जिन्होंने, अगणित कष्ट उठाये थे।
वन- वन भटके पर न जिन्होंने,अपने शीश झुकाये थे॥
बच्चे भूखे रहे न फिर भी, जो किंचित् घबराये थे।
जाति- धर्म के हित संघर्षों, के कण्टक अपनाये थे॥
सहीं देश के लिए जिन्होंने, अगणित विपदायें।
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
जिये सत्य के लिए सदा जो, कष्ट अनेकों विहँस सहे।
आन निभाई चाहे बिककर, मरघट में बन भृत्य रहे॥
सम्पत्ति त्याग नारि- सुत बेचे, दुःख की सीमा कौन कहे।
फिर भी कष्ट पुण्य सम समझे, रहे सत्य का पंथ गहे॥
सत्य मार्ग से डिगे न, चाहे- आईं विपदाएँ।
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
दानशील भी हुए यहाँ, निज तन- मन देने वाले।
कवच और कुण्डल भी अपने, जिनने हँस- हँस दे डाले॥
मरण सेज पर भी आ पहुँचे, याचक बन छलने वाले।
स्वर्ण विमण्डित दाँत तोड़कर, दानशील ने दे डाले॥
अपने व्रत के लिये वार दीं, सारी क्षमताएँ।
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
जीवन भर तप किया जिन्होंने, शक्ति अपरिमित पायी थी।
पर क्या अपने हित किंचित् भी, उनने वह अपनाई थी॥
लेकिन जब इस पावन भू पर- दनुजों की बन आई थी।
दिया विहँस निज अस्थि दान तब, देवों ने जय पायी थी॥
जिनकी जीवन ज्योति देखकर, जन- जन पथ पाएँ।
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
वेदमूर्ति जो बने भगीरथ, ज्ञानगंग भू- पर लाये।
तप से सूक्ष्म जगत शोधितकर, तपोनिष्ठ वे कहलाये॥
ऋषि जीवन की परिपाटी को, जन जीवन से जोड़ दिया।
जन- जन में देवत्व जगाकर, चक्र आसुरी तोड़ दिया॥
उनके निर्देशों पर चलकर- नवयुग हम लायें॥
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
मुक्तक-
खपे जो लोक मंगल में, करें सम्मान हम उनका।
तपे जो लोक हित में ही, करें गुणगान हम उनका॥
अमर, इतिहास में जो हो गए, बलिदान दे करके।
उन्हीं के चरण चिन्हों पर चलें धर ध्यान हम उनका॥
पूजात्कोटी गुणं स्तोत्रं, स्तोत्रात्कोटिगुणो जपः।
जपात्कोटिगुणं गानं, गानात्परतरं न हि॥ (गांधर्व विधान)
अर्थात- पूजा से कोटि गुना फल स्तोत्र के पाठ से होता है, स्त्रोत से कोटि गुना फल जप से तथा जप से कोटि गुना फल गायन से होता है।
उनके पद्- चिह्नों पर चलकर, यश- गौरव हम पायें।
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
मातृभूमि के लिये जिन्होंने, अगणित कष्ट उठाये थे।
वन- वन भटके पर न जिन्होंने,अपने शीश झुकाये थे॥
बच्चे भूखे रहे न फिर भी, जो किंचित् घबराये थे।
जाति- धर्म के हित संघर्षों, के कण्टक अपनाये थे॥
सहीं देश के लिए जिन्होंने, अगणित विपदायें।
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
जिये सत्य के लिए सदा जो, कष्ट अनेकों विहँस सहे।
आन निभाई चाहे बिककर, मरघट में बन भृत्य रहे॥
सम्पत्ति त्याग नारि- सुत बेचे, दुःख की सीमा कौन कहे।
फिर भी कष्ट पुण्य सम समझे, रहे सत्य का पंथ गहे॥
सत्य मार्ग से डिगे न, चाहे- आईं विपदाएँ।
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
दानशील भी हुए यहाँ, निज तन- मन देने वाले।
कवच और कुण्डल भी अपने, जिनने हँस- हँस दे डाले॥
मरण सेज पर भी आ पहुँचे, याचक बन छलने वाले।
स्वर्ण विमण्डित दाँत तोड़कर, दानशील ने दे डाले॥
अपने व्रत के लिये वार दीं, सारी क्षमताएँ।
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
जीवन भर तप किया जिन्होंने, शक्ति अपरिमित पायी थी।
पर क्या अपने हित किंचित् भी, उनने वह अपनाई थी॥
लेकिन जब इस पावन भू पर- दनुजों की बन आई थी।
दिया विहँस निज अस्थि दान तब, देवों ने जय पायी थी॥
जिनकी जीवन ज्योति देखकर, जन- जन पथ पाएँ।
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
वेदमूर्ति जो बने भगीरथ, ज्ञानगंग भू- पर लाये।
तप से सूक्ष्म जगत शोधितकर, तपोनिष्ठ वे कहलाये॥
ऋषि जीवन की परिपाटी को, जन जीवन से जोड़ दिया।
जन- जन में देवत्व जगाकर, चक्र आसुरी तोड़ दिया॥
उनके निर्देशों पर चलकर- नवयुग हम लायें॥
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥
मुक्तक-
खपे जो लोक मंगल में, करें सम्मान हम उनका।
तपे जो लोक हित में ही, करें गुणगान हम उनका॥
अमर, इतिहास में जो हो गए, बलिदान दे करके।
उन्हीं के चरण चिन्हों पर चलें धर ध्यान हम उनका॥
पूजात्कोटी गुणं स्तोत्रं, स्तोत्रात्कोटिगुणो जपः।
जपात्कोटिगुणं गानं, गानात्परतरं न हि॥ (गांधर्व विधान)
अर्थात- पूजा से कोटि गुना फल स्तोत्र के पाठ से होता है, स्त्रोत से कोटि गुना फल जप से तथा जप से कोटि गुना फल गायन से होता है।