
संगीत सुर का सागर है।
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संगीत सुर का सागर है।
संगीत जीवन का रस है। ऐ मेरे दिल के टुकड़ों
ऐ मेरे दिल के टुकड़ों, कुछ करके तुम्हें दिखाना। यह आश हमारी तुमसे, नवयुग तुमको ही लाना॥
जब साथ थी मेरी काया, हर पल तुमको दुलराया। अब सूक्ष्म रूप होने पर, हर क्षण तुमको सहलाया॥
इस क्रम को तुम्हीं बढ़ाना, युग धर्म तुम्हीं अपनाना। अकुलाए तृषित सुतों पर, करुणा ममता बरसाना॥
यह आस तुम्हीं से करते, नवयुग तुम ही लाओगे। हर क्षण हर पल तुम मुझको, अपने करीब पाओगे।
मेरे नन्हें छौनों को, ममता रस तुम्हीं पिलाना। इन दुखियारे पुत्रों को, बस ढाँढस तुम्हीं दिलाना॥
मैने सौंपी है तुम पर, संस्कृति की जिम्मेदारी। धरती को स्वर्ग बनाने, तुमको करनी तैयारी॥
तुम स्वयं आज लो अणुव्रत, सबको संकल्प दिलाना। मेरे विचार काया से, अवगत तुम उन्हें कराना॥
टूटे ना कोई भी दिल, बस ध्यान यही तुम रखना। अभियान लक्ष्य तक पहुँचे, बस ध्यान नित्य तुम करना॥
कंधे मजबूत तुम्हारे, तुम श्रवण कुमार कहाना। तुम पले स्नेह आँचल में, औरों को राह दिखाना॥
विद्या विस्तार समय है, अज्ञान ग्रसित मानवता। देवत्व आज सोया है, बढ़ती जाती दानवता॥
मेरे विचार अमृत से, नवजीवन उन्हें दिलाना। मेरे जीवन सूत्रों को, घर- घर में तुम फैलाना॥
मैं दीपक में रहता हूँ, तुम ज्ञान दीप प्रकटाना॥
मुक्तक-
ये मेरे दिल के टुकड़ों, तुम दर्द समझ लो दिल का। तुम बनो नयन का तारा, ये अवसर है तुम सबका॥
पर मत भूलो तप मेरा, अनुदान बाँटने आये।
तुम याद उसे भी कर लो, आशीष सदा तुम पाये॥
साम साहित्य में उद्रीथ का सम्बन्ध उच्च स्वर में गाये जाने वाले ओंकार अथवा प्रणव से बतलाया गया है।
मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना संगीत के सैद्धान्तिक ज्ञान का लक्ष्य है। साधना मार्ग का प्रधान माध्यम संगीत ही है। संगीत भावों से उत्पन्न होता है।
संगीत जीवन का रस है। ऐ मेरे दिल के टुकड़ों
ऐ मेरे दिल के टुकड़ों, कुछ करके तुम्हें दिखाना। यह आश हमारी तुमसे, नवयुग तुमको ही लाना॥
जब साथ थी मेरी काया, हर पल तुमको दुलराया। अब सूक्ष्म रूप होने पर, हर क्षण तुमको सहलाया॥
इस क्रम को तुम्हीं बढ़ाना, युग धर्म तुम्हीं अपनाना। अकुलाए तृषित सुतों पर, करुणा ममता बरसाना॥
यह आस तुम्हीं से करते, नवयुग तुम ही लाओगे। हर क्षण हर पल तुम मुझको, अपने करीब पाओगे।
मेरे नन्हें छौनों को, ममता रस तुम्हीं पिलाना। इन दुखियारे पुत्रों को, बस ढाँढस तुम्हीं दिलाना॥
मैने सौंपी है तुम पर, संस्कृति की जिम्मेदारी। धरती को स्वर्ग बनाने, तुमको करनी तैयारी॥
तुम स्वयं आज लो अणुव्रत, सबको संकल्प दिलाना। मेरे विचार काया से, अवगत तुम उन्हें कराना॥
टूटे ना कोई भी दिल, बस ध्यान यही तुम रखना। अभियान लक्ष्य तक पहुँचे, बस ध्यान नित्य तुम करना॥
कंधे मजबूत तुम्हारे, तुम श्रवण कुमार कहाना। तुम पले स्नेह आँचल में, औरों को राह दिखाना॥
विद्या विस्तार समय है, अज्ञान ग्रसित मानवता। देवत्व आज सोया है, बढ़ती जाती दानवता॥
मेरे विचार अमृत से, नवजीवन उन्हें दिलाना। मेरे जीवन सूत्रों को, घर- घर में तुम फैलाना॥
मैं दीपक में रहता हूँ, तुम ज्ञान दीप प्रकटाना॥
मुक्तक-
ये मेरे दिल के टुकड़ों, तुम दर्द समझ लो दिल का। तुम बनो नयन का तारा, ये अवसर है तुम सबका॥
पर मत भूलो तप मेरा, अनुदान बाँटने आये।
तुम याद उसे भी कर लो, आशीष सदा तुम पाये॥
साम साहित्य में उद्रीथ का सम्बन्ध उच्च स्वर में गाये जाने वाले ओंकार अथवा प्रणव से बतलाया गया है।
मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना संगीत के सैद्धान्तिक ज्ञान का लक्ष्य है। साधना मार्ग का प्रधान माध्यम संगीत ही है। संगीत भावों से उत्पन्न होता है।