
भागीरथ तो गये किन्तु
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भागीरथ तो गये किन्तु, गंगा उनके गुण गाती है।
आज स्वयं गायत्री माता, गुरुवर तुम्हें बुलाती हैं॥
यह सच है गंगा ने आकर, लाखों का उपकार किया।द्रवित हुई जब भागीरथ ने, तप करना स्वीकार किया॥
गंगा इसलिए तो जग में, भागीरथी कहाती है॥
गहन तपस्या से गुरुवर ने, गायत्री को प्राप्त किया।फिर सारी धरती में उनको, पूजित कर संव्याप्त किया॥
हे गायत्री माता! गुरू की, महिमा कही न जाती है॥
माँ के जन्म दिवस पर, उनके जाने का दिन आया था।निश्चित ही माता ने हँसकर, उनको गले लगाया था॥
पुत्रों को तो याद पिता की, बारम्बार सताती है॥
अब श्रद्घा विश्वास हमारा, एक मात्र दृढ़ सम्बल है।सूक्ष्म और कारण सत्ता का, संरक्षण ही प्रतिफल है॥
फिर भी बिछुड़न की व्याकुलता, हमसे सही न जाती है॥
हाथ पकड़कर दोनों ने, जिस पथ पर हमें चलाया है।हम विश्वास दिलाते हैं, उस पथ को नहीं भुलाया है॥
जन- पीड़ा से पीड़ित छाती, अब करूणा छलकाती है॥
संकल्पों को पूर्ण करेंगे, गुरुवर! सदा- प्राण पण से ।।पीछे नहीं हटेंगे गुरूवर! संघर्षों वाले रण से॥
लाख- लाख पुत्रों की श्रद्घा, यह विश्वास दिलाती है॥
मनुजों में देवत्व जगाकर, स्वर्ग धरा पर लायेंगे।हम अज्ञान अभावों से, मानव को मुक्त करायेंगे॥
ज्ञान- गंग प्रज्ञापुत्रों द्वारा, अब घर- घर जाती है॥
मुक्तक-
आद्यशक्ति को भू- पर लाकर, तुम भागीरथ स्वयं बन गये।प्यासी मनोभूमि सिंचितकर, सारे जग को तृप्त कर गये॥
आज स्वयं गायत्री माता, गुरुवर तुम्हें बुलाती हैं॥
यह सच है गंगा ने आकर, लाखों का उपकार किया।द्रवित हुई जब भागीरथ ने, तप करना स्वीकार किया॥
गंगा इसलिए तो जग में, भागीरथी कहाती है॥
गहन तपस्या से गुरुवर ने, गायत्री को प्राप्त किया।फिर सारी धरती में उनको, पूजित कर संव्याप्त किया॥
हे गायत्री माता! गुरू की, महिमा कही न जाती है॥
माँ के जन्म दिवस पर, उनके जाने का दिन आया था।निश्चित ही माता ने हँसकर, उनको गले लगाया था॥
पुत्रों को तो याद पिता की, बारम्बार सताती है॥
अब श्रद्घा विश्वास हमारा, एक मात्र दृढ़ सम्बल है।सूक्ष्म और कारण सत्ता का, संरक्षण ही प्रतिफल है॥
फिर भी बिछुड़न की व्याकुलता, हमसे सही न जाती है॥
हाथ पकड़कर दोनों ने, जिस पथ पर हमें चलाया है।हम विश्वास दिलाते हैं, उस पथ को नहीं भुलाया है॥
जन- पीड़ा से पीड़ित छाती, अब करूणा छलकाती है॥
संकल्पों को पूर्ण करेंगे, गुरुवर! सदा- प्राण पण से ।।पीछे नहीं हटेंगे गुरूवर! संघर्षों वाले रण से॥
लाख- लाख पुत्रों की श्रद्घा, यह विश्वास दिलाती है॥
मनुजों में देवत्व जगाकर, स्वर्ग धरा पर लायेंगे।हम अज्ञान अभावों से, मानव को मुक्त करायेंगे॥
ज्ञान- गंग प्रज्ञापुत्रों द्वारा, अब घर- घर जाती है॥
मुक्तक-
आद्यशक्ति को भू- पर लाकर, तुम भागीरथ स्वयं बन गये।प्यासी मनोभूमि सिंचितकर, सारे जग को तृप्त कर गये॥